Aadarsh Rathore
स्कूल टाइम की एक मज़ेदार घटना बताता हूं। खबर आई थी कि कारगिल में पाकिस्तान ने घुसपैठ की है। मुझे एक कविता याद थी, जो हालात पर सटीक बैठ रही थी। अगले ही दिन मॉर्निंग असेम्बली में मैं वह कविता सुनाने लग गया। वह थी तो वीर रस की एकदम जोश भरी कविता, लेकिन मैंने महसूस किया कि स्टूडेंट्स ठहाके लगाकर हंस रहे थे।

कविता थी- लौट जा बर्बर लुटेरे लौट जा, मत लगा इस ओर फेरे लौट जा। जैसे-तैसे कविता ख़त्म की और हैरान होकर सोचने लग गया कि लोग आखिर हंस क्यों रहे थे। बाद में मालूम हुआ कि मेरे उच्चारण में एक बड़ी गलती थी। मैं 'ओ' और 'औ' को एक ही तरह से पढ़ता था।

तो मैं मंच से लोगों को सुना रहा था- लोट जा बर्बर लुटेरे लोट जा, मत लगा इस ओर फेरे लोट जा  ज़रा लुटेरे को ज़मीन पर लोटकर पलटियां खाते इमैजिन कीजिए।
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