Aadarsh Rathore
ज हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले और आसपास के इलाकों में 'सैर' मनाई जा रही है। यह त्योहार हर साल सितंबर महीने में मनाया जाता है। इस दिन सुबह-सुबह ताजा फसल के आटे से रोट बनाए जाते हैं, साथ ही देवताओं को नई फसलों और फलों वगैरह का भोग लगाया जाता है। पहले इस दिन अखरोट (walnut) से निशाना लगाने वाला खेल भी खेला करते थे। शायद आज कुछ गांवों में यह परंपरा बची हुई हो। इसी दिन रक्षाबंधन के दिन पहनी गई राखी को भी उतारा जाता है।


इस त्योहार को मनाए जाने की भी अपनी वजह है। देखा जाए तो यह बरसात का आखिरी दौर है। कई साल पहले भारी बारिश की वजह से लोगों को तरह-तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता था। बरसात में कई संक्रामक बीमारियां फैल जाया करती थीं, जिससे कई लोगों को इलाज न मिल पाने की वजह से अपनी जान गंवानी पड़ती थी। कई बार भारी बारिश, बाढ़, बिजलनी गिरने से भी तबाही होती थी। न सिर्फ जान-मान का भारी नुकसान होता था, बल्कि फसलें भी तबाह हो जाया करती थीं।

ऐसे में अगर सब कुछ सही से निपटे, तो बरसात के खत्म होने पर लोग ईश्वर का शुक्रिया अदा करते थे कि कोई अनहोनी नहीं हुई। अश्विन महीने में सूर्य की कन्या संक्रांति (सैर संक्रांति) पर ज्यादातर फसलें पककर तैयार हो जाती है। इसलिए देवताओं को नई फसल, जैसे कि धान की बाली, भुट्टा (गुल्लु), खट्टा (सिट्रस), ककड़ी वगैरह का भोग लगाया जाता था। आज भी यह परंपरा जारी है। साथ ही लोग बारिश की वजह से पहले कहीं जा नहीं पाते थे, ऐसे में इस दिन वह अपने संगे-संबंधियों से मुलाकात करने घर से निकलते थे। शायद (पक्का नहीं पता, सिर्फ कयास है) इसीलिए इसे सैर कहा जाता है।

तो इस बार भी बरसात ईश्वर की कृपा से अच्छे बरसात निकल गई। इसलिए ईश्वर का शुक्रिया, आपको भी सैर मुबारक हो। आने वाला साल आपके लिए संपन्नता और अच्छा स्वास्थ्य लाए। खुद जानिए, और Share करके दूसरों को भी बताइए कि क्यों मनाई जाती है सैर।

नोट: यही ऑरिजनल पोस्ट है, जिसे सबसे पहले जोगिंदर नगर कम्यूनिटी पेज पर शेयर किया गया था। बाद में वहीं से कुछ साइट्स और पेजों ने बिना क्रेडिट दिए चुराया है। अगर यह जानकारी आपको शेयर करनी है तो बेझिझक कीजिए, मगर ब्लॉग का URL देना न भूलिएगा।



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