tag:blogger.com,1999:blog-63450421307643981742024-02-02T15:24:52.361+05:30एक प्याला विचार भरा...मिटा सका है कौन उसे जिसने बस जीना ही सीखा है, विष भी तो मधु बना जिसने बस पीना ही सीखा है.....Aadarsh Rathorehttp://www.blogger.com/profile/15887158306264369734noreply@blogger.comBlogger239125tag:blogger.com,1999:blog-6345042130764398174.post-17014475427202209232014-10-02T16:10:00.001+05:302014-10-02T16:10:23.836+05:30स्पोर्ट्स पीरियड में सफाई करवाने से बनेंगे खिलाड़ी?<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px; margin-bottom: 6px;">
आज टीवी पर स्कूल के बच्चों को सफाई करते देखा तो अपना टाइम याद आ गया। मगर सफाई के बहाने कोई दूसरी बात ध्यान में आई। मैं 11 साल तक सरकारी स्कूल में पढ़ा हूं। हफ्ते में सिर्फ 1 पीरियड(35 मिनट का) होता था खेल का और उसमें भी हमसे स्कूल कैंपस की सफाई करवाई जाती थी। सफाई क्या, पेड़ों से गिरे पत्ते उठवाए जाते थे और घास उखड़वाई जाती थी।</div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<br />स्कूल में खेल का माहौल तभी बनता था जब टूर्नमेंट आते थे। इससे पहले खेल-कूद का सामान सिर्फ स्टोर्स में रखा नजर आता था। पीटीआई और डीपी का काम मॉर्निंग असेंबली करवाना और स्कूल कैंपस में अनुशासन बनाए रखना था। इस वजह से उन्हें बच्चों को खेल-कूद के बारे में बताना का समय ही नहीं मिलता था।</div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<br />अब सोचिए, जब स्कूलों में हफ्ते में सिर्फ एक पीरियड खेल के लिए दिया जाएगा और उसमें भी सफाई करवाई जाएगी या ग्राउंड में कहीं छाया पर शोर न मचाने की हिदायत के साथ बिठाकर रखा जाएगा तो खिलाड़ी कहां से पैदा होंगे? हम लोग खेलों में मेडल तो चाहते हैं, लेकिन स्कूलों में खेल-कूद को आज भी तवज्जो नहीं देते।</div>
<div style="background-color: white; color: #141823; display: inline; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px; margin-top: 6px;">
<br />पुरानी कहावत है हिमाचली में- मुतरा मंझ मछियां नी मिलदी। इसलिए अगर इंटरनैशनल स्पोर्ट्स इवेंट्स में छाना है, तो स्कूलों में हर रोज स्पोर्ट्स का पीरियड होना चाहिए। भले ही एक-आध सब्जेक्ट कम करना पड़े या सिलेबस घटना पड़े।</div>
Aadarsh Rathorehttp://www.blogger.com/profile/15887158306264369734noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6345042130764398174.post-65500887790455430242014-09-29T19:42:00.000+05:302014-09-29T19:43:48.320+05:30देव परंपरा के नाम पर जातिवाद, छुआछूत खत्म हो<div style="background-color: white; color: #141823; line-height: 19.3199996948242px; margin-bottom: 6px;">
<span style="font-family: inherit;">हिमाचल प्रदेश में दलित बच्चों के साथ दुर्व्यवहार की शर्मनाक घटना ने हिलाकर रख दिया है। <span style="line-height: 19.3199996948242px;">अमर उजाला ने शिमला से एक खबर छापी है कि किसी स्कूल में दलित बच्चों को अलग बिठाकर मिड-डे मील खिलाया गया। यही नहीं, सामान्य वर्ग के पैरंट्स भी स्कूलों में पहुंच गए और उन्होंने अपने बच्चों को अलग बिठाकर खाना खिलाया। उनका कहना था कि स्कूल के बाहर भी यही परंपरा है। गैर-जिम्मेदार अमर उजाला ने भी स्कूल का नाम तो नहीं दिया, मगर बच्चों की तस्वीर छाप दी।</span></span></div>
<div style="background-color: white; color: #141823; line-height: 19.3199996948242px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<span style="font-family: inherit;"><br /></span>
<span style="font-family: inherit;">मैं इस घटना से सन्न हूं। ऐसा भेदभाव बेहद शर्मन<span class="text_exposed_show" style="display: inline;">ाक है। मासूम बच्चों के दिमाग पर कितना बुरा असर पड़ा होगा इस घटना का। सामान्य वर्ग के बच्चों के बाल मन में यह भावना घर कर गई होगी कि वे श्रेष्ठ हैं और बाकियों के साथ नहीं बैठना चाहिए। वहीं दलित परिवारों के बच्चों के मासूम दिल पर इसका जो असर हुआ होगा, उसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते।</span></span></div>
<div class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #141823; display: inline; line-height: 19.3199996948242px;">
<span style="font-family: inherit;"><div style="margin-bottom: 6px;">
<br />
स्कूल में ऐसी घटिया, बांटने वाली और शर्मनाक घटना को होने देने से बेहतर होता कि मिड-डे मील परोसा ही नहीं जाता। स्कूल के स्टाफ को भी अड़ जाना जाना चाहिए था कि या तो बच्चे साथ खाएंगे या फिर किसी को मिड-डे मील नहीं परोसा जाएगा। विभाग को सूचित किया जाना चाहिए था।</div>
<div style="margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<br />
अरे ओ नालायको! अपने घर में जो करते हो करो, इस सोच को अपने घर की चारदीवारी के बाहर मत आने दो। विद्या के मंदिरों को तो बख्श दो। कैसे समाज का निर्माण करना चाह रहे हो आप? बहिष्कार तो इन चू**यों का किया जाना चाहिए, जिनकी अक्ल पर पत्थर पड़ गया है। भाड़ में जाएं ऐसी अगड़ी जातियां, जिनकी सोच पिछड़ी हुई है।</div>
<div style="line-height: 19.3199996948242px; margin-bottom: 6px;">
जानकारी मिली है कि जिन बच्चों ने स्कूल छोड़ा है, उनके घरों में द्यो(देवता की पालकी) हैं। इनके पैरंट्स देव परम्परा का हवाला देकर कह रहे हैं कि हमारे बच्चे 'अछूतों' के साथ नहीं बैठेंगे। ये लोग मन्दिरों में भी दलितों को आने नहीं देते न ही द्यो के पास। अगर कोई दलित गलती से ऐसा कर दे तो उससे कहते हैं- सट बकरा, द्यो नराज़ होई गेया(देव नाराज़ हैं, प्रसन्न करने के लिए बकरे की बलि दो)।</div>
<div style="line-height: 19.3199996948242px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<br />
दलित के घर से आया बकरा इनके लिए अछूत नहीं, उसे देखकर तो लार टपकती है। देव परम्परा के नाम पर सदियों से य<span class="text_exposed_show" style="display: inline;">े लोग ऐसा ही करते आए हैं। चौहार घाटी के देवताओं के कारिंदे भी ऐसा ही करते हैं। हमारे यहां देवताओं को बहुत माना जाता है। लोगों का विश्वास है कि आज के युग में भी वे इंसानों से अपने पुजारी के जरिए बात करते हैं। लोगों को हिदायतें देते हैं, समस्याओं को दूर करते हैं। मगर ऐसे देवता अगर वाकई इस घटिया परम्परा को बनाए रखने के हिमायती हैं, तो मैं उन्हें ख़ारिज करता हूं।</span></div>
<div class="text_exposed_show" style="display: inline; line-height: 19.3199996948242px;">
<div style="margin-bottom: 6px;">
<br />
जब हॉस्पिटल में जाते हो तो डॉक्टर की जाति पूछते हो, कभी सोचा है कि आपके कपड़े, दवाइयां, बिस्किट और अन्य पैक्ड आइटम्स किसने बनाई हैं? होटेल, रेस्तरां में खाना बना और परोस रहा है? तब कहां जाती है छूत-अछूत वाली बात। असल बात यह है कि गांव-पड़ोस में ही हीरो बन सकते हैं आप। किसी को नीचा दिखाकर अपनी झूठी शान जो बनाए रखनी है।</div>
<div style="margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
काश! अपने देश में भी ऐसी व्यवस्था होती कि निकम्मे पैरंट्स से उनके बच्चे छीन लिए जाएं और सरकार खुद उनकी परवरिश करे। मगर अफ़सोस! यहां तो अभी भुखमरी और कुपोषण दूर करने के लिए 'मिड डे मील' खिलाया जा रहा है। इस बार घर जाऊंगा तो चौहार घाटी के बड़े देवताओं से 'पूछ' लेने की कोशिश करूंगा कि इस जातिवाद पर उनका क्या रुख है।</div>
</div>
</span></div>
Aadarsh Rathorehttp://www.blogger.com/profile/15887158306264369734noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6345042130764398174.post-57397167490245080382014-09-29T19:41:00.003+05:302014-09-29T19:44:59.658+05:30वीर रस की कविता पर जब हंसने लगे थे लोग<div style="background-color: white; color: #141823; line-height: 19.3199996948242px; margin-bottom: 6px;">
<span style="font-family: inherit;">स्कूल टाइम की एक मज़ेदार घटना बताता हूं। <span style="line-height: 19.3199996948242px;">खबर आई थी कि कारगिल में पाकिस्तान ने घुसपैठ की है। मुझे एक कविता याद थी, जो हालात पर सटीक बैठ रही थी। अगले ही दिन मॉर्निंग असेम्बली में मैं वह कविता सुनाने लग गया। वह थी तो वीर रस की एकदम जोश भरी कविता, लेकिन मैंने महसूस किया कि स्टूडेंट्स ठहाके लगाकर हंस रहे थे।</span></span></div>
<div style="background-color: white; color: #141823; line-height: 19.3199996948242px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<span style="font-family: inherit;"><br /></span>
<span style="font-family: inherit;">कविता थी- लौट जा बर्बर लुटेरे लौट जा, मत लगा इस ओर फेरे लौट जा। जैसे-तैसे कविता ख़त्म की और हैरान होकर सोचने लग गया कि लोग आखिर हंस क्यों रहे थे। बाद में मालूम हुआ कि मेरे उच्चारण<span class="text_exposed_show" style="display: inline;"> में एक बड़ी गलती थी। मैं 'ओ' और 'औ' को एक ही तरह से पढ़ता था।</span></span></div>
<div class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #141823; display: inline; line-height: 19.3199996948242px;">
<div style="margin-bottom: 6px;">
<span style="font-family: inherit;"><br />
तो मैं मंच से लोगों को सुना रहा था- लोट जा बर्बर लुटेरे लोट जा, मत लगा इस ओर फेरे लोट जा <i class="_4-k1 img sp_LWp1MpKGrs1 sx_924edc" style="background-image: url(https://fbstatic-a.akamaihd.net/rsrc.php/v2/yP/r/90b8T5aM1AH.png); background-position: 0px -8037px; background-repeat: no-repeat; background-size: auto; display: inline-block; height: 16px; vertical-align: -3px; width: 16px;"></i> ज़रा लुटेरे को ज़मीन पर लोटकर पलटियां खाते इमैजिन कीजिए।</span></div>
</div>
Aadarsh Rathorehttp://www.blogger.com/profile/15887158306264369734noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6345042130764398174.post-41963913308222080742014-09-29T19:34:00.000+05:302014-09-29T19:45:24.144+05:30हिमाचल की नई पहचान- तिब्बती<div style="background-color: white; color: #141823; line-height: 19.3199996948242px; margin-bottom: 6px;">
<span style="font-family: inherit; line-height: 19.3199996948242px;">Humans of New York वाले फटॉग्रफर ब्रैंडन स्टैंटन पिछले दिनों भारत यात्रा पर आए थे। वह हिमाचल प्रदेश भी आए थे और धर्मशाला में ठहरे थे। उन्होंने कुछ तस्वीरें भी शेयर की हैं, जिनमें से ज्यादातर तिब्बतियों की हैं। पेज पर आपको हिमाचल और हिमाचलियों को स्थापित करती कोई भी तस्वीर आपको नहीं मिलेगी।</span></div>
<div style="background-color: white; color: #141823; line-height: 19.3199996948242px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<span style="font-family: inherit;"><br /></span>
<span style="font-family: inherit;">आखिर क्या वजह रही इसकी? हालांकि ब्रैंडन पर सिलेक्टिव फोटोब्लॉगिंग के आरोप लगते रहे हैं। यानी वे दुनिया के आम आदमियों की सिर्फ वैसी ही तस्वीरें और बातचीत शेयर क<span class="text_exposed_show" style="display: inline;">रते हैं, जो न्यू यॉर्क के लोगों को पसंद आएं। मगर क्या उस पॉइंट ऑफ व्यू से भी हम अपीलिंग नहीं हैं?</span></span></div>
<div class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #141823; display: inline; line-height: 19.3199996948242px;">
<span style="font-family: inherit;"><div style="margin-bottom: 6px;">
<br />
शायद नहीं। क्योंकि हमारे पास अपनी संस्कृति के नाम पर रह क्या गया है? हमारा खान-पान, बोल-चाल, रहन-सहन और पहनावा वगैरह सब बदल गया है। हम खुद अपनी पहचान खो चुके हैं। ऐसे में भीड़ में सिर्फ वे लोग ही नजर आते हैं, जो कुछ अलग हों। जैसे तिब्बती। पराये मुल्क में रह रहे है, लेकिन बहुत हद तक वैसे ही, जैसे तिब्बत में रहते थे।</div>
<div style="margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<br />
हिमाचल, जो सांस्कृतिक रूप से बेहद समृद्ध था, आज गुम होता जा रहा है। बाहर से लोग यहां इसका सांस्कृतिक रंग देखने नहीं आते। वे तीन वजहों से आते हैं-<br />
<br />
1. हनीमून या छुट्टियां मनाने के लिए<br />
2. चरस और गांजा पीने के लिए<br />
3. तिब्बती/बौद्ध परंपरा को समझने के लिए</div>
<div style="margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<br />
अब कुछ किया भी नहीं जा सकता। जिस पथ पर हम आगे बढ़ चुके हैं, वहां से पीछे जाना संभव नहीं है।</div>
</span></div>
Aadarsh Rathorehttp://www.blogger.com/profile/15887158306264369734noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6345042130764398174.post-78097499818523297382014-09-29T19:31:00.001+05:302014-09-29T19:45:49.485+05:30बम-बम भोले, जिसकी चिट्ठी वही खोले <div style="background-color: white; color: #141823; line-height: 19.3199996948242px; margin-bottom: 6px;">
<span style="font-family: inherit;"><br /></span>
<span style="font-family: inherit; line-height: 19.3199996948242px;">क्या आपने कभी किसी को लव लेटर भेजा है? संभवत: हमारी वाली जेनरेशन आखिरी जेनरेशन है, जिसने लव लेटर या प्रेम पत्र इस्तेमाल किया होगा। मैं तो ऐसा नहीं कर पाया, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि जब मैं तीसरी क्लास में पढ़ता था, तब मेरे एक क्लासमेट ने क्लास में नई आई एक लड़की को 'प्रेम पत्र' भेजा था।</span></div>
<div style="background-color: white; color: #141823; line-height: 19.3199996948242px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<span style="font-family: inherit;">मैं हमेशा यह सोचकर हैरान रहता था कि इतनी कम उम्र में जनाब को ऐसा करने की प्रेरणा कैसे मिली होगी। कमाल की बात यह है कि जब वह लड़का 'प्रेम पत्र' लिख रहा <span class="text_exposed_show" style="display: inline;">था, तब हम कुछ और लड़के भी आसपास बैठे थे। उसने बड़ी ही सादगी से कागज पर सबसे ऊपर लिखा: बम-बम भोले, जिसकी चिट्ठी वही खोले। इसके बाद 3 लाइनें लिखी थीं, जो शायद इस तरह से थीं-</span></span></div>
<div class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #141823; display: inline; line-height: 19.3199996948242px;">
<span style="font-family: inherit;"><div style="margin-bottom: 6px;">
'प्रिय *****, मैं जब भी तुम्हें देखता हूं तो मुझे बहुत अच्छा लगता है। मुझे तुम्हारे पास बैठना पसंद है। मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं।'</div>
<div style="margin-bottom: 6px;">
<br /></div>
<div style="margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
जब यह सब लिखा जा रहा था, तब मुझे पता नहीं चल रहा था कि यह क्या हो रहा है। न ही ऐसा महसूस हुआ कि यह सब गलत है या हमारी उम्र के हिसाब से कुछ ज्यादा ही अलग व्यवहार है। इसका अहसास तब हुआ जब मेरे उस क्लासमेट ने किसी के जरिए उस लड़की तक वह कागज का पुर्जा पहुंचा दिया। इसके बाद लड़कियों के खेमे में जो खुसर-पुसर शुरू हो गई, तब लगा कि मामला कुछ गड़बड़ है।</div>
<div style="margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<br />
वह 'प्रेम पत्र' एक टीचर तक पहुंचा और फिर तमाम टीचर्स बारी-बारी से उसे पढ़ने लगे। कुछ हंस रहे थे, कुछ गंभीर थे। इसके बाद पहले तो उस आशिक की धुनाई हुई। रोते-रोते उसने कहा कि जब मैं यह लिख रहा था, तो आदर्श और बाकी लड़के भी साथ थे। बस फिर क्या था, सबकी ऐसी परेड हुई कि जिंदगी में कभी प्रेम पत्र लिखने की हिम्मत नहीं पड़ी। <i class="_4-k1 img sp_LWp1MpKGrs1 sx_35a5d8" style="background-image: url(https://fbstatic-a.akamaihd.net/rsrc.php/v2/yP/r/90b8T5aM1AH.png); background-position: 0px -7986px; background-repeat: no-repeat; background-size: auto; display: inline-block; height: 16px; vertical-align: -3px; width: 16px;"></i></div>
</span></div>
Aadarsh Rathorehttp://www.blogger.com/profile/15887158306264369734noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6345042130764398174.post-34788930338385298782014-06-11T02:13:00.000+05:302014-06-11T10:00:44.607+05:30मेरी जिंदगी की पहली चोरीकुछ बातें ऐसी होती हैं, जो सिर्फ आपको ही मालूम होती हैं। यानी हर किसी के कुछ सीक्रिट होते हैं। क्या हमारे अंदर इतनी हिम्मत है कि हम उन्हें राज न रहने दें? मेरी जिंदगी की बहुत सी ऐसी बाते हैं, जिन्हें मैं सबसे शेयर कर देना चाहता हूं। इनमें से कुछ मजेदार हैं, कुछ दुखद तो कुछ कल्पना से भी परे। तो यह रहा मेरा पहला कन्फेशन:<br />
<br />
क्या आपने कभी चोरी की है? हो सकता है कि हम सभी ने छोटी-मोटी चोरियां की हों। जैसे कि बागीचे से अमरूद चुरा लेना, गन्ने चुरा लेना वगैरह-वगैरह। ये ऐसी घटनाएं भी हो सकती हैं, जिन्हें शायद चोरी न भी माना जाए। लेकिन कभी आपने ऐसा कुछ किया है, जिसे पकड़े जाने पर आप चोर घोषित हो सकते थे? मैंने किया है। अपनी जिंदगी की पहली और शायद आखिरी चोरी का किस्सा कुछ यूं है-<br />
<br />
यह घटना उस वक्त की है, जब मैं चौथी क्लास में पढ़ता था। गांव के स्कूल से जोगिंदर नगर बॉयज स्कूल के प्राइमरी स्कूल में आए एक साल हो चुका था। यहां स्कूल में एक कमरा था, जिसे स्टोर कहा जाता था। इस स्टोर से अक्सर दोपहर 2 बजे एक स्टोव निकाला जाता और उसपर टीचर चाय बनाया करते थे।<br />
<br />
इस स्टोव को निकालने की जिम्मेदारी प्रवीण नाम के मेरे क्लासमेट को दी गई थी। जिम्मेदारी क्या दी गई थी, वह खुद ही वॉलंटियर कर दिया करता था। मेरा भी शौक जगा कि देखा जाए उस स्टोर रूम को। क्योंकि दरवाजे में लगे शीशों से दिखता था कि अंदर किताबों के ढेर भी लगे थे। मैंने तय कर लिया था कि मैं भी प्रवीण के साथ स्टोव लाने के बहाने अंदर जाऊंगा<br />
<br />
एक दिन मैं टीचर से कहा कि मैं भी प्रवीण के साथ जाना चाहूंगा। इजाजत मिल गई, सो मैं भी चला गया। प्रवीण स्टोव और मिट्टी के तेल की बोलत उठा रहा था औऱ मैं किताबों के ढेर को देखकर गदगद था। प्रवीण ने कहा- चलो, देर हो रही है। मगर मैं तो किसी औऱ ही दुनिया में था। वाह! ... तरह-तरह की किताबें।<br />
<br />
किताबों के ढेर को उलटते-पलटते मुझे एक किताब दिखी- The Art of Cricket. मैंने इस किताब को हाथ में उठाया ही था कि एक टीचर की आवाज सुनाई दी- क्या कर रहे हो, इतनी देर लगा दी। रखो इस किताब को! चलो बाहर। मैंने वह किताब रखी और भारी मन से बाहर आ गया। मगर तमन्ना जग गई कि वह किताब तो पढ़नी ही है।<br />
<br />
<span style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 19.31999969482422px;">पता नहीं क्यों, दिमाग ने काम नहीं किया। पापा से कहता तो किताब खरीद देते। लेकिन चाय बन जाने के बाद स्टोव अंदर रखने के लिए स्टोर रूम का दरवाजा खुला, मैं प्रवीण के साथ अंदर गया और मैंने वह किताब अपने स्वेटर के अंदर डाल दी। बाहर आया और अपनी सीट पर बैठ गया। लेकिन इसके बाद जो कुछ हुआ, उसने मेरी जिंदगी बदल दी।</span><br />
<br />
2 बजे के करीब मैंने वो किताब उठाई या यूं कहिए कि चुराई होगी। छुट्टी होने में अभी डेढ़ घंटा बाकी था। सर्दियों के दिन थे, लेकिन मैं पसीने से तर-ब-तर हो चुका था। डर लग रहा था कि कहीं पकड़ा गया तो मेरा क्या होगा। जैसे-तैसे छुट्टी हुई, मैं स्कूल से निकला और पापा के पास चला गया। इस बीच चुपके से मैंने वह किताब बैग में डाल ली थी।<br />
<br />
मेरी हालत खराब हो चुकी थी। घर पहुंचने पर डर लगा रहा कि मैं इस किताब को पढ़ूं कहां। अगर ममी-पापा में से किसी ने देखकर पूछ लिया कि यह किताब कहां से आई तो क्या जवाब दूंगा? यह सोचकर घर में भी परेशान रहा। उस रात नींद नहीं आई। सोचता रहा कि मैंने यह क्या कर दिया है। तय किया कि अगले ही दिन मैं यह किताब वापस उस स्टोर में रख दूंगा।<br />
<br />
अगले दिन स्कूल पहुंचा। सर्दियों के दिनों में हमें क्लासरूम्स से बाहर बरामदे में बिठाया जाता था, जहां धूप आती थी। वहीं बैठकर मैं एकटक स्टोर रूम के दरवाजे को देखता जा रहा था। 2 भी बज गए, लेकिन न जाने क्यों आज किसी टीचर का मन चाय पीने को नहीं हुआ। उस दिन वह दरवाजा नहीं खुला।<br />
<br />
मेरी हालत खराब हो चुकी थी। बुखार की चपेट में आ चुका था। हालात इतनी खराब हो गई कि 2 दिन स्कूल भी नहीं जा सका। हो सकता है कि शायद वायरल का असर रहा हो, लेकिन मुझे लगता है कि वह किताब का ही असर था। हर वक्त यह सोचता रहा कि कैसे इस किताब को वापस रखूं। 2 दिन बाद स्कूल लौटा। इस फिराक में था कि कब स्टोर रूम खुले।<br />
<br />
संयोग की ही बात थी कि उस दिन प्रवीण नहीं आया था। 2 बजते ही मैंने खुद से टीचर से कहा कि मैं स्टोव बाहर निकाल देता हूं। चाबियों को गुच्छा मुझे थमाया गया, मैंने ताला खोला और स्टोर रूम में दाखिल हो गया। सुबह से ही तैयारी करके आया था। किताब को स्वेटर के अंदर छिपा रखा था। झट से मैंने वह किताब ढेर पर फेंकी, स्टोव उठाया और चहकते हुए बाहर आ गया।<br />
<br />
उसके बाद आप अंदाजा नहीं लगा सकते कि मैं कितना हल्का महसूस कर रहा था। जैसे कई मन बोझ उतर गया हो सिर से। बीमारी दूर हो गई, मेरे चेहरे की मुस्कुराहट लौट आई। साथ ही शरारती आदर्श की वापसी हो गई, जो पिछले कुछ दिनों से गुमसुम था। वह दिन था और आज का दिन है। मैंने कोई ऐसा काम नहीं किया, जिससे कोई मुझपर हेराफेरी या चोरी का इल्जाम लगा सके।<br />
<br />
साथ ही एक बात और...। मुझे बाद में पता चला था कि वे किताबें हम स्टूडेंट्स के लिए ही आई थीं। लाइब्रेरी के लिए। मगर उन्हें स्टूडेंट्स को पढ़ने देने के बजाय स्टोर रूम में धूल फांकने के लिए रख दिया गया था। सरकारी प्राइमरी स्कूलों में यही आलम था उन दिनों। अगर वह किताब पढ़ने के लिए दी होती या बताया गया होता कि मैं इसे पढ़ने के लिए इशू करवा सकता हूं, तो शायद मैं वैसा नहीं करता।<br />
<br />
मगर यह भी सच है कि चोरी करना तो किसी भी हाल में गलत है ही। और हां, मैं उस किताब को आज तक नहीं पढ़ पाया हूं। उस दौर में क्रिकेट की दीवानगी थी और आज रुचि कम हो चुकी है। मगर उस किताब को बिना पढ़े ही मैंने जिंदगी का एक बड़ा सबक पाया है। उसके लिए मैं हालात और ईश्वर का आभारी हूं। कुछ दिनों बाद एक और कन्फेशन। अपनी विध्वंकारी शरारतों पर।Aadarsh Rathorehttp://www.blogger.com/profile/15887158306264369734noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6345042130764398174.post-82663780142645155602013-09-16T14:07:00.001+05:302013-09-17T00:12:31.052+05:30जानिए, क्यों और कैसे मनाई जाती है सैर<div class="MsoNormal" style="mso-layout-grid-align: none; text-align: justify; text-autospace: none;">
<span style="font-family: inherit;"><span lang="HI" style="mso-ascii-font-family: "\@Arial Unicode MS"; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";"><span style="color: #cc0000; font-size: x-large;"><b>आ</b></span>ज हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले और आसपास
के इलाकों में</span> '<span lang="HI" style="mso-ascii-font-family: "\@Arial Unicode MS"; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">सैर</span>' <span lang="HI" style="mso-ascii-font-family: "\@Arial Unicode MS"; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">मनाई
जा रही है। यह त्योहार हर साल सितंबर महीने में मनाया जाता है। इस दिन सुबह-सुबह ताजा
फसल के आटे से रोट बनाए जाते हैं</span>,
<span lang="HI" style="mso-ascii-font-family: "\@Arial Unicode MS"; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">साथ ही देवताओं को नई फसलों और फलों वगैरह का भोग लगाया जाता है।
पहले इस दिन अखरोट (</span>walnut)
<span lang="HI" style="mso-ascii-font-family: "\@Arial Unicode MS"; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">से निशाना लगाने वाला खेल भी खेला करते थे। शायद आज कुछ गांवों
में यह परंपरा बची हुई हो। इसी दिन रक्षाबंधन के दिन पहनी गई राखी को भी उतारा जाता
है।</span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="mso-layout-grid-align: none; text-align: justify; text-autospace: none;">
<span style="font-family: inherit;"><br />
</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjj5WJA6MFX6VXGqzoX367vykc7HLNIUGoUYsQzlxWZHPT5jTkjACj_VKQznCBVfq5DHh3YAwGAYFhaqwgX6OO_OXmOmpLL0NOFs0hZrB5FBynZs3HV_TrvROT0fPD7nkpHs1KMWByFTG4/s1600/1.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><span style="font-family: inherit;"><img border="0" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjj5WJA6MFX6VXGqzoX367vykc7HLNIUGoUYsQzlxWZHPT5jTkjACj_VKQznCBVfq5DHh3YAwGAYFhaqwgX6OO_OXmOmpLL0NOFs0hZrB5FBynZs3HV_TrvROT0fPD7nkpHs1KMWByFTG4/s200/1.jpg" width="188" /></span></a></div>
<span style="font-family: inherit;"><span lang="HI">इस त्योहार को मनाए जाने की भी अपनी वजह
है। देखा जाए तो यह बरसात का आखिरी दौर है। कई साल पहले भारी बारिश की वजह से लोगों
को तरह-तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता था। बरसात में कई संक्रामक बीमारियां फैल
जाया करती थीं</span>, <span lang="HI">जिससे
कई लोगों को इलाज न मिल पाने की वजह से अपनी जान गंवानी पड़ती थी। कई बार भारी बारिश</span>, <span lang="HI">बाढ़</span>, <span lang="HI">बिजलनी
गिरने से भी तबाही होती थी। न सिर्फ जान-मान का भारी नुकसान होता था</span>, <span lang="HI">बल्कि
फसलें भी तबाह हो जाया करती थीं।</span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="mso-layout-grid-align: none; text-align: justify; text-autospace: none;">
<span style="font-family: inherit;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="mso-layout-grid-align: none; text-align: justify; text-autospace: none;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi1rb6eUWOmztTct6ibnAp2PFHg0xRA0l14fXj2RS6YUsue7KY0EwWZZSEeTVSKwNZNRK6EntL-He8qj_OgB47hONU1pWPjJPS-19uIuHwKmVtrfAYk6cHiqOZzGXLEVzUd0IGMsTa2Gfc/s1600/2.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em; text-align: center;"><span style="font-family: inherit;"><img border="0" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi1rb6eUWOmztTct6ibnAp2PFHg0xRA0l14fXj2RS6YUsue7KY0EwWZZSEeTVSKwNZNRK6EntL-He8qj_OgB47hONU1pWPjJPS-19uIuHwKmVtrfAYk6cHiqOZzGXLEVzUd0IGMsTa2Gfc/s200/2.jpg" width="150" /></span></a><span style="font-family: inherit;"><span lang="HI" style="mso-ascii-font-family: "\@Arial Unicode MS"; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">ऐसे में अगर सब कुछ सही से निपटे</span>, <span lang="HI" style="mso-ascii-font-family: "\@Arial Unicode MS"; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">तो
बरसात के खत्म होने पर लोग ईश्वर का शुक्रिया अदा करते थे कि कोई अनहोनी नहीं हुई।
अश्विन महीने में सूर्य की कन्या संक्रांति (सैर संक्रांति) पर ज्यादातर फसलें पककर
तैयार हो जाती है। इसलिए देवताओं को नई फसल</span>,
<span lang="HI" style="mso-ascii-font-family: "\@Arial Unicode MS"; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">जैसे कि धान की बाली</span>,
<span lang="HI" style="mso-ascii-font-family: "\@Arial Unicode MS"; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">भुट्टा (गुल्लु)</span>,
<span lang="HI" style="mso-ascii-font-family: "\@Arial Unicode MS"; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">खट्टा (सिट्रस)</span>,
<span lang="HI" style="mso-ascii-font-family: "\@Arial Unicode MS"; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">ककड़ी वगैरह का भोग लगाया जाता था। आज भी यह परंपरा जारी है। साथ
ही लोग बारिश की वजह से पहले कहीं जा नहीं पाते थे</span>, <span lang="HI" style="mso-ascii-font-family: "\@Arial Unicode MS"; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">ऐसे में इस दिन वह अपने संगे-संबंधियों से
मुलाकात करने घर से निकलते थे। शायद (पक्का नहीं पता</span>, <span lang="HI" style="mso-ascii-font-family: "\@Arial Unicode MS"; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">सिर्फ
कयास है) इसीलिए इसे सैर कहा जाता है।<o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="mso-layout-grid-align: none; text-align: justify; text-autospace: none;">
<span style="font-family: inherit;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="mso-layout-grid-align: none; text-align: justify; text-autospace: none;">
<span style="font-family: inherit;"><span lang="HI" style="mso-ascii-font-family: "\@Arial Unicode MS"; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">तो इस बार भी बरसात ईश्वर की कृपा से अच्छे
बरसात निकल गई। इसलिए ईश्वर का शुक्रिया</span>,
<span lang="HI" style="mso-ascii-font-family: "\@Arial Unicode MS"; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">आपको भी सैर मुबारक हो। आने वाला साल आपके लिए संपन्नता और अच्छा
स्वास्थ्य लाए। खुद जानिए</span>,
<span lang="HI" style="mso-ascii-font-family: "\@Arial Unicode MS"; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">और </span>Share
<span lang="HI" style="mso-ascii-font-family: "\@Arial Unicode MS"; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">करके दूसरों को भी बताइए कि क्यों मनाई जाती है सैर।<o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="mso-layout-grid-align: none; text-align: justify; text-autospace: none;">
<span style="font-family: inherit;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="mso-layout-grid-align: none; text-align: justify; text-autospace: none;">
<span style="font-family: inherit;"><span lang="HI" style="mso-ascii-font-family: "\@Arial Unicode MS"; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";"><b><i>नोट: </i></b><i>यही ऑरिजनल पोस्ट है</i></span><i>, <span lang="HI" style="mso-ascii-font-family: "\@Arial Unicode MS"; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">जिसे
सबसे पहले <a href="https://www.facebook.com/photo.php?fbid=491761230841973" target="_blank">जोगिंदर नगर कम्यूनिटी पेज </a>पर शेयर किया गया था। बाद में वहीं से कुछ साइट्स
और पेजों ने बिना क्रेडिट दिए चुराया है। अगर यह जानकारी आपको शेयर करनी है तो बेझिझक
कीजिए</span>, <span lang="HI" style="mso-ascii-font-family: "\@Arial Unicode MS"; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">मगर
ब्लॉग का </span>URL <span lang="HI" style="mso-ascii-font-family: "\@Arial Unicode MS"; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">देना
न भूलिएगा।<o:p></o:p></span></i></span></div>
<span style="font-family: inherit;"><i><br />
</i></span><br />
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<br /></div>
Aadarsh Rathorehttp://www.blogger.com/profile/15887158306264369734noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6345042130764398174.post-39827443748859798792013-09-16T09:47:00.001+05:302013-09-16T12:12:25.916+05:30...तो सारी महिलाएं वेश्यावृत्ति करने लगेंगी<div style="font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 17px; padding: 0px; text-align: justify;">
<strong><em>'ऐसा हो ही नहीं सकता कि कोई महिला जीवन भर वर्जिन रहे। अगर उसकी इच्छाओं की पूर्ति नहीं होगी, तो वह वेश्यावृत्ति करने लगेगी। इस दुनिया में पुरुषों से ज्यादा महिलाएं हैं। ऐसे में उनका ख्याल कौन रखेगा? क्या है आपके पास कोई तरीका? नहीं न? अल्लाह ने पवित्र कुरान में इस बात का सॉल्यूशन दिया है। इस्लाम में 4 महिलाओं से शादी करने की बात इसीलिए कही गई है।'</em></strong><br />
<strong><em><br /></em></strong></div>
<div style="font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 11px; text-align: justify;">
</div>
<div style="font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 11px; text-align: justify;">
<span style="font-size: 17px;">जी हां, इस्लाम में 4 महिलाओं से शादी करने की इजाजत इसलिए दी है, ताकि ज्यादा से ज्यादा महिलाओं की 'वासना' को शांत करके उन्हें प्रॉस्टिट्यूशन में जाने से रोका जाए। यह बात मैं नहीं, पीस टीवी देखकर तालियां बजाने और वाह-वाह करने वाले मुस्लिम भाइयों के 'हीरो' डॉक्टर जाकिर नायक कहते हैं। इससे पहले कि मैं अपनी बात रखूं, आप लोग खुद ही यह यू-ट्यूब विडियो देख लें। इससे यह पुष्टि भी हो जाएगी कि वाकई जाकिर नायक ने ये बातें कही हैं या नहीं। </span><br />
<span style="font-size: 17px;"><br /></span></div>
<div style="font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 11px; text-align: justify;">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<iframe allowfullscreen='allowfullscreen' webkitallowfullscreen='webkitallowfullscreen' mozallowfullscreen='mozallowfullscreen' width='320' height='266' src='https://www.youtube.com/embed/MZ0oaAD6--U?feature=player_embedded' frameborder='0'></iframe></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<br /></div>
</div>
<div style="font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 11px; text-align: justify;">
<span style="font-size: 17px;">डॉक्टर जाकिर नायक अक्सर सेमिनारों का आयोजन करते हैं, जहां पर वह ऑडियंस के सवालों के जवाब भी देते हैं। इसी तरह के एक सेमिनार में एक शख्स ने जाकिर नायक से इस्लाम में 4 शादियों के कॉन्सेप्ट पर सवाल किया कि एक से ज्यादा महिलाओं के साथ शादी करना महिलाओं का दमन नहीं है? इस पर जाकिर ने कहा-</span></div>
<blockquote style="background-color: #faf9f9; border: 1px solid rgb(255, 255, 255); font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 11px;">
<div style="text-align: justify;">
<em><span style="font-size: 17px;">अगर आपको लगता है कि एक महिला से ज्यादा से शादी करना उनके साथ अन्याय करना है, तो लाखों महिलाओं का ख्याल कौन रखेगा, आप रखेंगे? पवित्र कुरान में अल्लाह ने इस समस्या का हल दिया है। इस दुनिया में मर्दों से ज्यादा महिलाएं हैं, उनका ख्याल कौन रखेगा? अगर आप हर महीने उन्हें चैरिटी देंगे, तब भी नाकाफी होगी। <em>(अपनी बात के समर्थन में डॉक्टर जाकिर नायक कुरआन के चैप्टर नंबर 30 अर-रूम के वर्स नंबर 21 का हवाला देते हुए कहते हैं कि पुरुष और महिला के बीच में कुदरत ने प्यार और उलफ़त पैदा की है।) </em>मैं मेडिकल डॉक्टर हूं और यह बता सकता हूं कि एक महिला जिंदगी भर वर्जिन नहीं रह सकती। यह पॉसिबल ही नहीं है। क्या होगा, वह प्रॉस्टिट्यूशन में चली जाएंगी। सॉल्यूशन कोई नहीं है। अल्लाह ने इस बात का हल दिया है। </span></em></div>
</blockquote>
<br />
<div style="font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 11px; text-align: justify;">
</div>
<div style="font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 11px; text-align: justify;">
<span style="font-size: 17px;">जाकिर नायक ने इस विडियो में और बातें भी कही हैं, जैसे कि इस्लाम में 4 शादियां करने की बाध्यता नहीं है। मगर उनका यह तर्क सुनकर मेरा सिर घूम गया कि चार शादियों की व्यवस्था क्यों दी गई है। </span><span style="font-size: 17px;">जिस दौरान डॉक्टर जाकिर नायक दूसरे धर्मों की खिल्ली उड़ा रहे होते हैं, उस दौरान सभागार में मौजूद और पीस टीवी देख रहे कुछ लोग गदगद होकर तालियां बजा रहे होते हैं। उन्हें इतना मजा आ रहा होता है कि पूछो मत। ऊपर वाले विडियो में भी आप ऐसा देख सकते है। मगर खुश होने वाले लोग ये नहीं जानते कि जाकिर नायक उन्हें गुमराह कर रहे हैं। ऊपर जो तर्क डॉक्टर नायक ने पेश किए हैं, वे तथ्यहीन होने के साथ-साथ शर्मनाक भी हैं।</span><br />
<span style="font-size: 17px;"><br /></span></div>
<div style="font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 11px; text-align: justify;">
</div>
<div style="font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 11px; text-align: justify;">
<span style="font-size: 17px;"><strong>1.</strong> पहली बात तो यह कि इस दुनिया में महिलाओं की तादाद पुरुषों के मुकाबले ज्यादा नहीं हैं। पूरी दुनिया का सेक्श रेशियो देखा जाए तो 101 मर्दों के मुकाबले सिर्फ 100 महिलाएं हैं। यानी महिलाओं की तादाद पुरुषों से कम है। </span><br />
<span style="font-size: 17px;"><br /></span></div>
<div style="font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 11px; text-align: justify;">
</div>
<div style="font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 11px; text-align: justify;">
<span style="font-size: 17px;"><strong>2.</strong> दूसरी बात यह कि महिलाएं आत्मनिर्भर क्यों नहीं हो सकतीं? अगर पुरुष उन्हें नहीं संभालेंगे तो क्या वे कुछ कर ही नहीं सकतीं? यही डॉक्टर जाकिर नायक पहले तो इस्लाम का हवाला देखकर महिलाओं पर तमाम तरह की बंदिशें लगाने की बात कहते हैं। इतनी बंदिशें कि महिलाएं आत्मनिर्भर हो ही न पाएं। फिर कहेंगे कि चूंकि महिलाएं आत्मनिर्भर नहीं हैं, इसलिए उन्हें सहारे की जरूरत है।</span><br />
<span style="font-size: 17px;"><br /></span></div>
<div style="font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 11px; text-align: justify;">
</div>
<div style="font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 11px; text-align: justify;">
<span style="font-size: 17px;"><strong>3.</strong> जाकिर नायक का कहना है कि कोई महिला ताउम्र वर्जिन नहीं रह सकती। उनका कहने का अर्थ है कि वह सेक्स करेगी ही करेगी और अपनी इच्छाओं की पूर्ती के लिए प्रॉस्टिट्यूशन में उतर जाएगी। यह निहायत की बेवकूफाना सोच है। प्रॉस्टिट्यूशन के धंधे में कोई अपनी वासना शांत करने भी आता हो, यह पहली बार सुना है। जहां तक वासना की ही बात है, जगजाहिर है कि वासना के अधीन होकर रेप जैसी घटनाओं को अंजाम देने में पुरुष आगे रहते हैं या महिलाएं। मगर जाकिर साहब पुरुषों को कुछ नहीं कहेंगे। उन्हें आत्मनियंत्रण की सलाह नहीं देंगे। बस महिलाओं को 'ठरकी' बताएंगे और उन्हें सलाह देंगे कि घर पर बैठी रहो, बाहर जाओ तो पर्दा करके नहीं तो रेप हो जाएगा।</span><br />
<span style="font-size: 17px;"><br /></span></div>
<div style="font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 11px; text-align: justify;">
</div>
<div style="font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 11px; text-align: justify;">
<span style="font-size: 17px;"><strong>4</strong>. सबसे अहम बात कि अपनी बात पर बल देने के लिए जाकिर नायक ने पवित्र कुरआन का सहाला लेते हुए <strong><a href="http://www.islaminhindi.org/docs/quraan/surah/30.%20Sura%20Ar%20room.pdf" style="background-image: none; background-position: initial initial; background-repeat: initial initial; color: #003399; list-style-type: square; text-decoration: none;" target="_blank">सुर: अर-रूम के वर्स नंबर 21</a></strong> का हवाला दिया है। अगर आप इस आयत का अर्थ जानेंगे, तो साफ हो जाएगा कि जाकिर नायक ने अपने हिसाब खुद ही ऊपर वाली मनगढ़ंत बातें कही हैं और उसका अल्लाह या कुरआन से कोई लेना देना नहीं है। [30:21] में सिर्फ इतना कहा गया है- <strong><em>और उसी की (कुदरत) की निशानियों में से एक यह भी है कि उसने तुम्हारे लिए तुम्हारी ही तरह के साथी पैदा किए, जिनमें तुम चैन पा सको। उसी ने तुम दोनों के बीच प्यार और उलफत पैदा कर दी। अगर गौर करोगे तो पाओगे कि खुदा की कुदरत की इसी तरह की बहुत सी निशानियां हैं।</em></strong> बाकी के तर्क जाकिर नायक ने खुद जोड़े हैं।</span><br />
<span style="font-size: 17px;"><br /></span></div>
<div style="font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 11px; text-align: justify;">
</div>
<div style="font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 11px; text-align: justify;">
<span style="font-size: 17px;">इससे साफ होता है कि डॉक्टर जाकिर नायक जैसे लोग, जो कि कुरआन में कही गई बातों की व्याख्या अपने हिसाब से कुतर्कों के साथ कर देते हैं, वे लोग ही इस्लाम की छवि को नुकसान पहुंचा रहे हैं। यह अकेला यू-ट्यूब विडियो नहीं है, जिसमें जाकिर ने इस तरह की बातें की हैं। आप Dr. Zakir Naik सर्च करेंगे, तो यू-ट्यूब पर आपको हजारों विडियो मिल जाएंगे। ज्यादातर में आपको दिखेगा कि वह कैसे दूसरे धर्मों की बुराई करके इस्लाम को बेहतर दिखाने की कोशिश करते हैं। कुछ ऐसे विडियो भी आपको मिलेंगे, जो दिखाएंगे कि जाकिर नायक फ्लो में बोलते हुए मनगढ़ंत कुछ भी कह जाते हैं और वहां बैठी जनता को लगता है कि बंदे को तो दुनिया भर की चीज़ें याद हैं।</span><br />
<span style="font-size: 17px;"><br /></span></div>
<div style="font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 11px; text-align: justify;">
</div>
<div style="font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 11px; text-align: justify;">
<span style="font-size: 17px;">अपने ईमान, अपनी दीन को मानने और उसके प्रचार में कोई बुराई नहीं है। भारत का संविधान भी इसकी इजाजत देता है। मगर इसका मतलब यह नहीं है कि आप दूसरों के विश्वास पर प्रहार करें। इससे लोग आपके धर्म की तरफ आकर्षित नहीं होंगे, बल्कि वे नफरत करने लगेंगे। ऐसा हो भी रहा है। जो कुछ डॉक्टर नायक बोलते हैं, उसका भावार्थ यही निकलता है कि इस्लाम के हिसाब से दूसरे धर्मों और उससे अनुयायियों के लिए कोई जगह नहीं है। हिंदू, ईसाई, सिख, यहूदी और बाकी धर्मों के लोग पथभ्रष्ट हैं। खुद को इस्लामिक स्कॉलर कहने वाले जाकिर नायक के मुंह से ऐसी बातें सुनकर गैर-इस्लामिक धर्म के लोग इस्लाम के बारे में कैसी राय बनाते होंगे, आप अंदाजा लगा सकते हैं।</span><br />
<span style="font-size: 17px;"><br /></span></div>
<div style="font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 11px; text-align: justify;">
</div>
<div style="font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 11px; text-align: justify;">
<span style="font-size: 17px;">मेरे कुछ मित्रों को शिकायत है कि इस्लाम को लेकर बिना वजह दुष्प्रचार किया जाता है और इसी की वजह से पूरी दुनिया में इस्लामोफोबिया फैल रहा है। उनकी बात सही भी है, मगर इस बारे में भी विचार करने जरूरत है कि कहीं इस इस्लामोफोबिया के फैलने के पीछे कहीं खुद कुछ मुस्लिम ही जिम्मेदार तो नहीं। मुझे पूरा विश्वास है कि डॉक्टर जाकिर नायक जैसे लोगों को खारिज करने के लिए खुद मुसलमान ही आगे आएंगे। ऐसा इसलिए, क्योंकि मुस्लिम ही अपने मजहब को बेहतर जान-समझ सकते हैं। अगर उनके मजहब के बारे में कहीं से गलत राय बन रही है, तो यह उन्हीं का फर्ज है कि उसका हल कैसे किया जाए।</span></div>
Aadarsh Rathorehttp://www.blogger.com/profile/15887158306264369734noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6345042130764398174.post-16921721058001086942013-06-18T00:56:00.001+05:302013-06-18T00:57:43.284+05:30मृदा<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS"; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">अति
विस्तृत<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS"; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">पर
खंडित-खंडित</span><span style="font-family: Mangal; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-bidi-font-family: "Arial Unicode MS";">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS"; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS"; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">जीवन
परिचारक<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS"; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">पर
स्वयं निर्जीव।<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS"; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">हिमालय
से अपरदित<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS"; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">मैदान
में तलछट</span><span style="font-family: Mangal; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-bidi-font-family: "Arial Unicode MS";">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS"; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";"><o:p></o:p></span></div>
मैं मृदा...<br />
<div class="MsoNormal">
<o:p></o:p></div>
Aadarsh Rathorehttp://www.blogger.com/profile/15887158306264369734noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6345042130764398174.post-40042126811410186702013-06-18T00:53:00.001+05:302013-06-18T00:53:20.490+05:30व्याकुल हृदय<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS"; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">है
हृदय व्याकुल मेरा<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS"; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">अवरुद्ध
सा यह श्वास है</span><span style="font-family: Mangal; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-bidi-font-family: "Arial Unicode MS";">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS"; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS"; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">विचित्र
होगा कुछ घटित<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS"; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">हो
रहा आभास है।<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<br /></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS"; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">नीर
स्वयं हैं बहा रहे<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS"; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">नयनों
में फिर भी प्यास है</span><span style="font-family: Mangal; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-bidi-font-family: "Arial Unicode MS";">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS"; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS"; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">कथनों
से मांदे हैं अधर<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS"; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">अब
श्रवण की आस है।<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<br /></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS"; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">क्या
है ये सब</span><span style="font-family: Mangal; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-bidi-font-family: "Arial Unicode MS";">, </span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS"; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">और क्यों<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS"; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">सृजन
है या विनाश है</span><span style="font-family: Mangal; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-bidi-font-family: "Arial Unicode MS";">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS"; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS"; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">हर
शंका</span><span style="font-family: Mangal; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-bidi-font-family: "Arial Unicode MS";">, </span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS"; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">समस्या का हल<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS"; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">बस
तुम्हारे ही पास है।</span> </div>
Aadarsh Rathorehttp://www.blogger.com/profile/15887158306264369734noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6345042130764398174.post-26977468557719626242013-06-18T00:46:00.000+05:302013-06-18T00:47:59.077+05:30उजड़े जीवन को आबाद कर लेता हूं<div class="MsoNormal">
<div style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0cm;">
<span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS';">1.<br />
कर्म से जीती दुनिया मैंने</span>,<span class="apple-converted-space"> </span><span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS';">पर किस्मत से हारा हूं</span><o:p></o:p></div>
<div style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0cm;">
<span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS';">भीड़ में रहकर भी हूं तन्हा</span>,<span class="apple-converted-space"> </span><span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS';">उफ! कितना बेचारा हूं।<br />
<br />
2.</span><o:p></o:p></div>
<div style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0cm;">
<span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS';">इस उजड़े जीवन को आबाद कर लेता हूं</span><o:p></o:p></div>
<div style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0cm;">
<span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS';">आंखें बंद कर जब तुम्हें याद कर लेता हूं।</span><o:p></o:p></div>
<div style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0cm;">
<br /></div>
<div style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0cm;">
<span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS';">3.<br />
अब काहे का रोना-धोना</span><span lang="EN-US">,<span class="apple-converted-space"> </span></span><span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS';">पहले ही सब समझाना था</span><o:p></o:p></div>
<div style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0cm;">
<span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS';">वह वक्त गया</span><span lang="EN-US">,<span class="apple-converted-space"> </span></span><span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS';">वह दौर गया जब मैं तेरा
दीवाना था।<br />
<br />
4.<br />
अब तक जो सहता रहा</span><span lang="EN-US">,<span class="apple-converted-space"> </span></span><span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS';">वह तेरे हिस्से का था</span><o:p></o:p></div>
<div style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0cm;">
<span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS';">अपने हिस्से का दर्द सहना तो बाकी है अभी...।<br />
<br />
5.<br />
अंदाज़ तो देखो उनका क्या कमाल करते हैं</span><o:p></o:p></div>
<div style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0cm;">
<span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS';">जानते हैं हर जवाब फिर भी सवाल करते हैं...</span><o:p></o:p></div>
<div style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0cm;">
<span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS';">6.<br />
तन्हाई में ख्वाबों का</span><span class="apple-converted-space"><span lang="EN-US"> </span></span><span lang="EN-US">'</span><span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS';">खजाना</span><span lang="EN-US">'</span><span class="apple-converted-space"><span lang="EN-US" style="font-family: Mangal;"> </span></span><span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS';">हो तुम</span><o:p></o:p></div>
<div style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0cm;">
<span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS';">सच कहूं तो जीने का बहाना हो तुम।</span><span class="apple-converted-space"> </span><span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS';"><br />
<br />
7.<br />
घर से लेकर आया था वह मासूमियत की पोटली</span><o:p></o:p></div>
<div style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0cm;">
<span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS';">असफलता की नोंक पर</span><span lang="EN-US"> </span><span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS';">दिल्ली ने वह भी लूट ली</span><span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS';">।</span><span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS';"><br />
<br />
8.<br />
एक पल में ही तो अपना बनाया था यकायक</span><o:p></o:p></div>
<div style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0cm;">
<span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS';">एक पल में ही बेगाना भी कर गए वो अचानक।</span><o:p></o:p></div>
<div style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0cm;">
<span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS';"><br />
9.<br />
निद्राविहीन नयनों में स्वप्न सजे तुम्हरे प्रियतम</span><o:p></o:p></div>
<div style="margin: 0cm 0cm 0.0001pt;">
<span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS';">मध्यरात्रि की बेला में</span><span lang="EN-US">,<span class="apple-converted-space"> </span></span><span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS';">अरुणिम आभा सी छाई है।<br />
<br />
<b>(अलग-अलग समय पर फेसबुक पर पोस्ट लाइनें)</b></span><b><o:p></o:p></b></div>
<u1:p></u1:p>
<u1:p></u1:p>
<u1:p></u1:p>
<u1:p></u1:p>
<u1:p></u1:p>
<u1:p></u1:p>
<u1:p></u1:p>
<br />
<div class="MsoNormal">
<br /></div>
</div>
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS"; font-size: 12.0pt; mso-ansi-language: EN-US; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-GB; mso-hansi-font-family: Arial;"><!--[endif]--></span>Aadarsh Rathorehttp://www.blogger.com/profile/15887158306264369734noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6345042130764398174.post-80817403967841691112013-06-18T00:39:00.004+05:302013-06-18T00:39:37.035+05:30मैं वृक्ष बन जाऊं<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS"; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";"><span style="color: red; font-size: large;">कि</span>तना
अच्छा हो<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS"; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">अगर
मैं वृक्ष बन जाऊं</span><span style="font-family: Mangal; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-bidi-font-family: "Arial Unicode MS";">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS"; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS"; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">खड़ा
रहूं एक जगह<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS"; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">सब
चुपचाप सह जाऊं।<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<br /></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS"; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">खुद
तपूं मैं तेज धूप में<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS"; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">सब
जन को छांव में सुलाऊं</span><span style="font-family: Mangal; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-bidi-font-family: "Arial Unicode MS";">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS"; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS"; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">खुद
पिऊं मिट्टी से पानी<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS"; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">सबको
मधु फल खिलाऊं।<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<br /></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS"; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">हवा
दूं</span><span style="font-family: Mangal; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-bidi-font-family: "Arial Unicode MS";">, </span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS"; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">जलावन दूं<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS"; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">और
क्या-क्या गिनाऊं</span><span style="font-family: Mangal; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-bidi-font-family: "Arial Unicode MS";">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS"; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS"; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">पूरा
जीवन रहूं एकाकी<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS"; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">परहित
में मर मिट जाऊं। <o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<br /></div>
<span lang="HI" style="font-family: "Arial Unicode MS"; font-size: 12.0pt; mso-ansi-language: EN-GB; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-GB; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";"><b><i>(बचपन में लिखी थी यह कविता)</i></b><br />
<!--[endif]--></span>Aadarsh Rathorehttp://www.blogger.com/profile/15887158306264369734noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6345042130764398174.post-54749194377684640112013-06-08T19:43:00.000+05:302013-06-08T19:45:12.950+05:30जिद्दी<div style="margin-bottom: .0001pt; margin: 0in;">
<span style="background: white; color: #37404e; font-family: Arial; font-size: 13.5pt; mso-bidi-font-family: "Arial Unicode MS";">'</span><span lang="HI" style="background: white; color: #37404e; font-family: "Arial Unicode MS"; font-size: 13.5pt; mso-ascii-font-family: Arial; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: Arial;">भागा कब मैदान छोड़कर</span><span style="font-size: 13.5pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div style="margin: 0in 0in 0.0001pt;">
<span lang="HI" style="background: white; color: #37404e; font-family: "Arial Unicode MS"; font-size: 13.5pt; mso-ascii-font-family: Arial; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: Arial;">अब भी जिद पर अड़ा हूं मैं</span><span style="background: white; color: #37404e; font-family: Arial; font-size: 13.5pt; mso-bidi-font-family: "Arial Unicode MS";">,</span><span style="font-size: 13.5pt;"><o:p></o:p></span></div>
<div style="margin: 0in 0in 0.0001pt;">
<span lang="HI" style="background: white; color: #37404e; font-family: "Arial Unicode MS"; font-size: 13.5pt; mso-ascii-font-family: Arial; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: Arial;">औंधे मुंह भी गिरा था तो क्या</span></div>
<div style="margin: 0in 0in 0.0001pt;">
<span lang="HI" style="background: white; color: #37404e; font-family: "Arial Unicode MS"; font-size: 13.5pt; mso-ascii-font-family: Arial; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: Arial;">लो! सीना ताने खड़ा हूं मैं...</span><span style="background: white; color: #37404e; font-family: Arial; font-size: 13.5pt; mso-bidi-font-family: "Arial Unicode MS";">'</span><span style="font-size: 13.5pt;"><o:p></o:p></span></div>
Aadarsh Rathorehttp://www.blogger.com/profile/15887158306264369734noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6345042130764398174.post-16066713400550568332012-11-05T17:26:00.000+05:302012-11-05T17:32:53.576+05:30अंदर उसके हक का माल छिपा रखा है...<br />
<span style="color: red; font-size: x-large;">क</span>ल मैंने फेसबुक पर कुछ अपडेट किया तो उस पर हैरान कर देने वाले कॉमेंट आए। कुछ लोगों ने मुझे मैसेज करके लिखा कि इस तरह के अपडेट करना मुझे शोभा नहीं देता। मैं हैरान था कि मैंने ऐसा क्या कर दिया। दरअसल लोगों ने मेरी बात का मतलब खुद ही कुछ और निकाल लिया। चलिए, आपको बताता हूं कि सीन क्या है-<br />
<br />
अक्सर मैं देखता हूं कि दिल्ली की बड़ी-बड़ी कोठियों के बाहर चौकीदार रखने का ट्रेंड है। इन चौकीदारों की हालत बेहद खराब होती है। दिन-रात वे 4x4 फीट के केबिन में काट देते हैं। दिल्ली में वही उनका ठिकाना है, जबकि उनका परिवार दूर किसी गांव में दुर्दिन काट रहा होता है। कई चौकीदार इन्ही कोठियों के बाहर बूढ़े हो जाते हैं और फिर इन्हें निकाल दिया जाता है।<br />
<br />
यह कैसी व्यवस्था है जहां पर एक वर्ग तो नोट पर नोट कमाए जा रहा है और दूसरा गरीबी से ऊपर नहीं उठ पा रहा? देश में सभी का जीवन स्तर बराबर क्यों नहीं? धन, संपदा, संसाधन सभी नागरिकों के लिए हैं, लेकिन वे उन तक पहुंच ही नहीं पाते। गरीब लोग गरीब रहते हैं और जिन चीज़ों पर उनका हक है, वे एक ही क्लास के पास जा रही हैं। अमीर और अमीर हुआ जा रहा है और गरीब और गरीब।<br />
<br />
ठीक उसी तरह जो चौकीदार बड़ी सी कोठी के बाहर पहरा दे रहा है, उसका भी हक था उस पैसे और प्रॉपर्टी पर जो कि कोठी में रहने वाले के पास है। लेकिन विड़ंबना यह है कि वह बेबस है और उसे रोजी चलाने के लिए मुश्किल हालात में चौकीदारी करनी पड़ रही है। दिन-रात, हर मौसम में, बिना छुट्टी के। वह भी उस उस चीज़़ की, जिसपर उसका भी हक होना चाहिए।<br />
<br />
कल रात भी ऐसे ही एक बूढ़े चौकीदार को ठिठुरते देखा, तो लिखा-<br />
<br />
<b>"अंदर उसके हक का माल छिपा रखा है</b><br />
<b>बाहर उसी को बनाकर पहरेदार बिठा रखा है"</b><br />
<br />
चोट सिस्टम पर थी, लेकिन लोगों ने जाने क्या समझ लिया।<br />
<br />
<b>Like on Facebook: <a href="http://www.fb.com/aadarshrathore">Aadarsh Rathore</a></b>Aadarsh Rathorehttp://www.blogger.com/profile/15887158306264369734noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6345042130764398174.post-78655084561950275512012-11-05T17:10:00.002+05:302012-11-05T17:33:31.190+05:30'अरे ये माद@#$द लाए थे रैली के लिए'<br />
<span style="color: red; font-size: x-large;">अ</span>भी-अभी प्रगति मैदान मेट्रो स्टेशन के बाहर कांग्रेस का झंडा लिए खड़े लोगों एक ग्रुप से मुलाकात हुई। मैंने पूछा कि कहां से आए हो और यहां कैसे? सामने से जवाब आया- अरे ये माद@#$द लाए थे रैली के लिए। सुबह तो बस में ले आए लेकिन अभी पूछने वाला कोई नहीं है बहिन$%...<br />
<br />
मैंने पूछा कि बस कहां गई? तो जवाब आया कि कोई बस नहीं है। अभी खुद से जाना होगा वापस बदरपुर। पता चला कि वे सभी लोग ओखला इंडस्ट्रियल एरिया से लाए गए थे। 100 रुपये प्रति व्यक्ति की कीमत पर। ज्यादातर लोग दूसरे प्रदेशों के थे और ज्यादा पैसे पाने के लिए अपनी पत्नी और बच्चों को भी लाए थे।<br />
<br />
सच कहा मनमोहन सिंह ने कि आज देशवासियों को रोजगार की जरूरत है। हैरानी नहीं होनी चाहिए कि मनरेगा के साथ-साथ कल को राहुल गांधी अपनी रैलियों की भी तारीफ करने लग जाएं। यह कहकर कि हमने लोगों को 'रोज़गार' दिया है।<br /><br /><b>Like on Facebook: <a href="http://www.fb.com/aadarshrathore">Aadarsh Rathore</a></b>Aadarsh Rathorehttp://www.blogger.com/profile/15887158306264369734noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6345042130764398174.post-71521524986043891112012-11-05T17:06:00.003+05:302012-11-05T17:34:00.042+05:30मुफ्तखोरी की आदत डालते ये नेता<span style="color: red; font-size: large;">मैं</span> खुश था कि हिमाचल प्रदेश के नेताओं ने हमें मुफ्तखोरी की आदत नहीं डाली। अब तक बाकी राज्यों की तरह मुफ्त टीवी, साइकल वगैरह के फालतू चीज़ों का लालच देकर कभी वोट नहीं मांगे गए थे। लेकिन इस बार बीजेपी और कांग्रेस दोनों में होड़ मची है कि कौन क्या देकर वोटर्स को लुभाता है। कोई लैपटॉप का लालच दे रहा है तो कोई इंडक्शन चूल्हों का।<br />
<br />
ये बेहद शर्मनाक है।
अरे, बेहतर होता आप ऐसी नीतियों की बात करते जो लोगों
के सामाजिक और आर्थिक स्तर को ऊपर उठाएं। लोगों को इतना सक्षम बनाया जाए कि वे इन चीज़ों को खुद से खरीद सकें। धिक्कार है इस घटिया राजनीति पर, जहां नेताओं को अपनी काबिलियत पर भरोसा नहीं है।
एक बार यह गलत परंपरा शुरू हो गई तो फिर यह खत्म नहीं होगी।<br />
<br />
जनता के पास विकल्प भी नहीं है कि वह इस ओछी राजनीति का बहिष्कार करे, क्योंकि दोनों ही पार्टियों ने सरकारी खजाने को 'मुफ्त' में उड़ाने का वादा किया है। ये चीज़ें असल मुद्दों से भटकाती हैं। इसी वजह से बाकी राज्य गरीबी और भुखमरी से जूझ रहे हैं। क्योंकि जनता ने कभी असल मुद्दों के आधार पर वोट किया ही नहीं कभी। वे इन मुफ्त के तोहफों पर लार टपकाते नजर आते हैं।<br /><br /><b>Like on Facebook: <a href="http://www.fb.com/aadarshrathore">Aadarsh Rathore</a></b>Aadarsh Rathorehttp://www.blogger.com/profile/15887158306264369734noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6345042130764398174.post-51245855142581381732012-10-10T10:00:00.000+05:302012-10-10T11:26:06.509+05:30सवाल देश के भविष्य का है...<span style="color: red; font-size: x-large; text-align: justify;">फे</span><span style="text-align: justify;">सबुक पर एक दोस्त ने यू-ट्यूब का लिंक भेजा था। क्लिक किया तो देखा कि उस विडियो में कुछ लड़के गालियां दे रहे थे। कुछ सेकंड बाद समझ आया कि वे लोग महाभारत के एक अंश का मंचन कर रहे हैं। लेकिन इतनी गालियां और अश्लील संवाद कि उफ! 6 मिनट के उस विडियो को 1 मिनट के अंदर ही मैंने बंद कर दिया। समझ नहीं पा रहा था कि बाकायदा माइक लेकर अश्लील और घिनौने संवाद अदा कर रहे उन लोगों का मकसद क्या रहा होगा।</span><br />
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<i><br /></i>
<b>दिव्य हिमाचल: <a href="http://www.divyahimachal.com/himachal-articles/peoples-opinion/%E0%A4%B8%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2-%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%AD%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%AF-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%B9%E0%A5%88/">सवाल देश के भविष्य का है</a></b><br />
<br /></div>
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इतने में विडियो के नीचे दी गई जानकारी पर नजर गई। अपलोड करने वाले लिखा था कि कुछ दिन पहले मंडी शहर के एक जाने-माने होटल में आईआईटी मंडी के छात्रों ने एक कार्यक्रम का आयोजन किया था, जिसमें इस तरह से एक बेहूदा ड्रामा किया गया। अपलोड करने वाले ने यह भी लिखा था कि उसका मकसद किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने की नहीं है, वह तो बस इस शर्मनाक हरकत को लोगों के सामने लाना चाहता था।</div>
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विडियो देखने के बाद यह जानना मुझे सन्न कर गया कि यह हरकत आईआईटी मंडी के छात्रों ने की है। मुझे बहुत दुख पहुंचा। दुख इस बात का कि आखिर हमारे किस दिशा में जा रहे हैं? आईआईटी में पहुंचने वाले छात्रों को एक अलग नजर से देखा जाता है। वह आम छात्रों से हटकर इसलिए भी होते हैं, क्योंकि वे वहां अपनी मेहनत और काबिलियत के दम पर पहुंचे होते हैं। जिस गंभीरता और समर्पण से उन्होंने पढ़ाई की होती है, वह सभी के बस की बात नहीं होती। ऐसे में इन समझदार युवाओं से इस तरह की हरकत की उम्मीद नहीं थी।</div>
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उस विडियो को देखकर मुझे बुरा इसलिए नहीं लगा कि उसमें महाभारत के पात्रों का अपमान हुआ। मेरी ‘धार्मिक भावनाओं’ को ठेस भी नहीं पहुंची। अगर यूं ही छोटी-छोटी बातों से किसी की ‘धार्मिक भावना’ को ठेस पहुंचने लग जाए, तो इसके 2 ही मतलब हो सकते हैं। या तो आपके धर्म में कमी है, या फिर आपकी भावना में। इसलिए, मुझे चिंता उन छात्रों के व्यवहार को देखकर हुई। क्या युवाओं का बौद्धिक स्तर इतना गिर गया है, कि वे सही और गलत का फर्क ही न समझ पाएं?</div>
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जुए वाले प्रकरण में पांडवों ने सब कुछ हारकर अपनी इज्जत गंवा दी थी। आज उसी घटना का मंचन करते हुए वे छात्र भी मान-मर्यादा हार गए। मंच पर खुलेआम न सिर्फ गालियां दी जा रही थीं, बल्कि मां और बहनों को लेकर ऐसे संवाद कहे जा रहे थे, जिन्हें सुनकर सीने पर वज्रपात होता है। ड्रामा करने का उद्देश्य बेशक मनोरंजन रहा हो, लेकिन क्या इसके लिए अश्लील संवाद जरूरी थे? मुद्दा यह नहीं है कि वह ड्रामा महाभारत से प्रेरित था या रामायण से, प्रश्न यह है कि उसमें फूहड़ता क्यों डाली गई? गालियां समाज का अंग हैं और धार्मिक पात्रों को लेकर अश्लील चुटकुले सुनने-सुनाने वालों की भी कमी नहीं। लेकिन आज तक ऐसा घिनौना वाकया कहीं नहीं घटा था कि इस बौद्धिक दीवालिएपन का प्रदर्शन सार्वजनिक रूप से किया जाए।</div>
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इसे बालपन की नासमझी मानना सही नहीं होगा। अगर एक अकेला छात्र ऐसा करता, तो उसे उसकी नासमझी या शरारत समझा जा सकता था। लेकिन यह सब तो बड़े पैमाने पर सामूहिक रूप से हो रहा था। क्या किसी के भी मन पर यह विचार नहीं आया, हम इस तरह की गंदी भाषा सभी के सामने कैसे इस्तेमाल करेंगे? धार्मिक पात्रों को तो छोड़िए, क्या मां-बहन के प्रति अपमानजनक बातें कहते हुए किसी के मन में अपनी मां-बहन का ख्याल नहीं आया? इन फूहड़ता पर ठहाके लगा रहे लोगों की भीड़ में से भी किसी को यह गलत नहीं लगा? मालूम नहीं कि वहां लड़कियां थीं या नहीं, लेकिन अगर वे वहां थीं तो यह और भी शर्मनाक बात है। </div>
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हमारा हिमाचल प्रदेश बहुत ही खुले और प्रगतिवादी विचारों वाले लोगों से भरा है। यहां पर छोटी-छोटी बातों पर बाकी जगहों की तरह बवाल नहीं होते। यहां कोई किसी के काम में दखल नहीं देता। न यहां खाप पंचायतों की खप है, न ही धार्मिक रोक-टोक। फिर भी हमारे यहां कुछ मर्यादाएं और सीमाएं हैं। खास बात यह है कि ये मर्यादाएं हम पर किसी और ने नहीं थोपी हैं। इन मर्यादाओं को हमें खुद तय करना होता है और खुद ही इनका पालन भी करना होता है। हिमाचल की तरह की वैचारिक आजादी भारत के किसी दूसरे राज्य में आपको नहीं मिलेगी। लेकिन आजादी का सम्मान करना भी जरूरी होता है। आधुनिक होने का मतलब यह कतई नहीं है कि हम अपनी जड़ों को भूल जाएं।</div>
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मुद्दा यह नहीं है कि वे किस संस्थान के छात्र हैं या कहां के रहने वाले हैं। साथ ही यह बात भी मायने नहीं रखती कि गालियां किसे दी गई हैं। बात सीधी सी है कि हमारे बीच में से ही कुछ लोगों ने ऐसा व्यवहार किया है। इसलिए इस मुद्दे पर ओवर रिऐक्ट करने या इसे ज्यादा तूल देने की जरूरत भी नहीं है। सुबह का भूला अगर शाम को घर लौट आए, तो उसे भूला नहीं कहते। बेहतर हो कि वे सभी युवा इस घटना के लिए माफी मांगें और गंभीरता से भविष्य निर्माण में जुट जाएं।</div>
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Aadarsh Rathorehttp://www.blogger.com/profile/15887158306264369734noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6345042130764398174.post-34342102185675812342012-10-10T01:57:00.000+05:302012-10-10T01:57:03.084+05:30कौन सी मजबूरी है?<br />
<span style="color: red;">हाहाकार</span> भी करते हो<br />
जय-जयकार भी करते हो,<br />
कौन सी मजबूरी है<br />
किस बात से डरते हो?<br />
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<i>(नेताओं की रैलियों में नारेबाजी कर रहे लोगों से सवाल)</i><br /><br /><b>Like on Facebook: <a href="http://www.facebook.com/aadarshrathore">Aadarsh Rathore</a></b><br /><br />
Aadarsh Rathorehttp://www.blogger.com/profile/15887158306264369734noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6345042130764398174.post-28373977489982929332012-06-12T11:03:00.002+05:302012-06-12T11:04:29.348+05:30क्यों?"आंखों से आंसू नहीं आते, सीना जलता है<br />
हर सुबह दिल में मेरे क्यों सूरज ढलता है?"Aadarsh Rathorehttp://www.blogger.com/profile/15887158306264369734noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6345042130764398174.post-19942991587513167032012-06-06T12:12:00.000+05:302012-06-06T12:12:13.812+05:30बेवजह नाराज़ हैं डॉक्टर!!!<br />
<i>"सत्यमेव जयते के एपिसोड के लिए माफी मांगें आमिर खान- डॉक्टर"</i><br />
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ये पढ़कर मैं हैरान सा हूं. डॉक्टरों को सत्यमेव जयते का विरोध नहीं करना चाहिए. बल्कि उन्हें तो खुद पहल करके अपने बीच की काली भेड़ों की पहचान करके उनके खिलाफ मोर्चा खोलना चाहिए. क्योंकि कुछ एक लालची डॉक्टर्स की वजह से पेशा बदनाम हो रहा है. डॉक्टर या मेडिकल की पढ़ाई कर रहे छात्र कुछ भी सोचें लेकिन हकीकत ये है कि ये पेशा धीरे-धीरे सम्मान खोता जा रहा है.<br />
<br />
माना कि जो व्यक्ति डॉक्टर बनता है वो अपनी काबिलियत के दम पर एक मेडिकल कॉलेज में पहुंचता है. लेकिन ये उसकी व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है, ये उस व्यक्ति का सौभाग्य है कि उसकी योग्यता और क्षमता को सरकार एक बेहद पवित्र और महत्वपूर्ण दिशा में इस्तेमाल करना चाहती है. सरकार चाहती है कि ये योग्य व्यक्ति डॉक्टर बने और जन के स्वास्थ्य का ख्याल रखे. इतना महत्वपूर्ण काम हर किसी ऐरे-गैरे को नहीं दिया जा सकता. इसलिए परीक्षा के माध्यम से अच्छे लोगों को चुना जाता है और वो भी लिमिटेड सीट्स के लिए. फिर सरकार उनकी पढ़ाई पर लाखों रुपये खर्च करती है (ऐसी प्रफेशनल एजुकेशन जिसमें सरकार प्रति छात्र सबसे ज्यादा खर्च करती है. ).<br />
<br />
फिर इतना खर्च करने के बाद एक डॉक्टर तैयार होता है. इसमें डॉक्टरों को ये घमंड नहीं होना चाहिए कि बाकी सभी नालायक थे और हम ही इस काबिल थे जो डॉक्टर बन गए. बल्कि उन्हें गर्व होना चाहिए कि वो इस काबिल थे कि उन्हें इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए चुना गया है.<br />
<br />
क्या हो जब डॉक्टर बजाए देश के लिए काम करने के (जिसके लिए उन्हें डॉक्टर बनाया गया है) सिर्फ अपने ही हितों के बारे में सोचने लग जाएं? अब कुछ डॉक्टर (ध्यान रहे कि सिर्फ "कुछ") जो सरेआम लूट-खसोट मचा रहे हैं, उनके काम को इसलिए जस्टिफाई नहीं किया जा सकता कि सरकार से उन्हें कम सैलरी मिलती है. अजी! अगर पैसा ही कमाना है तो आप मेडिकल प्रफेशन में क्यों गए? रात को किसी चौराहे पर लिपस्टिक लगाकर खड़े हो जाओगे तो भी भरपूर पैसा आएगा.<br />
<br />
डॉक्टरी के पेशे को सम्मान की नज़र से देखा जाता था और है भी. इसीलिए हर माता-पिता की ख्वाहिश होती थी कि उनका बच्चा डॉक्टर बने. लेकिन फिर इस ख्वाहिश की वजह बदल गई. डॉक्टर बनना मतलब पैसे की बरसात होगी.<br />
<br />
देश में रहने वाले डॉक्टर क्या करते हैं और क्या नहीं, ये तो बाद की बात है लेकिन पिछले ही साल 3000 डॉक्टर भारत से अमेरिका चले गए? इससे देश को अरबों रुपये का नुकसान हो गया.<br />
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डॉक्टर भगवान का रूप कहे जाते हैं तो इसका मतलब ये नहीं है कि वो भगवान हो गए और उनकी गलत बातों की आलोचना भी नहीं की जा सकती. डॉक्टर, इंजीनियर, सैनिक, अध्यापक समेत दुनिया का कोई भी अच्छा प्रफेशन अपनाने वाला आदमी अपनी जगह बराबर महत्व रखता है. डॉक्टर आसमान से नहीं टपके हैं, इसलिए उन्हें फिजूल की बहस करने से बचना चाहिए और गलतियों को स्वीकार करके उनमें सुधार करना चाहिए.<br />
<br />
ध्यान रहे कि अच्छे और बुरे लोग हर व्यवसाय में हैं. डॉक्टरों को भी इनसे अलग नहीं रखा जा सकता. किसी चीज़ में सुधार तभी हो सकता है जब पहले ये स्वीकार किया जाए कि सुधार की गुंजाइश है. अगर सब कुछ परफेक्ट होने के मुगालते में रहना तो फिर बहस यहीं खत्म हो जाती है.<br />Aadarsh Rathorehttp://www.blogger.com/profile/15887158306264369734noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6345042130764398174.post-22256728132801021202012-05-11T12:53:00.003+05:302012-05-11T12:53:55.945+05:30"हरा#जादी, कुत्ती, साली...<br />
"हरा#जादी, कुत्ती, साली, भै@ की लो*...!!! कहां से %#$ कर आ रही है...?"<br />
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बीती रात गर्ल्ज पीजी वाले लेन के अंधेरे कोने में एक लड़का अपने साथ खड़ी लड़की पर चीख रहा था. अचानक गालियों की बौछार तेज़ होने लगी. लड़की बेहद लाचार और बेबस होकर सिर झुकाए खड़ी थी. मैं अपने दोस्त के साथ पास की ही दुकान पर खड़ा था. इससे पहले की माजरा समझ में आता, लड़के ने पूरी ताकत से लड़की के गाल पर एक तमाचा जड़ दिया.<br />
<br />
ये देख मेरा दोस्त आग-बबूला हो उठा. बड़े ही तेज कदमों से वो उस अंधेरे कोने की तरफ बढ़ चला जहां ये सीन चल रहा था. मैं भी उसके पीछे हो लिया. लेकिन जैसे ही मेरा दोस्त उनके करीब पहुंचा वो ठिठक गया. 1-2 सेंकेंड बाद मुझसे बोला कि चलो वापस.<br />
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मंद रोशनी में मैंने देखा कि लड़की कोई और नहीं बल्कि मेरे दोस्त की एक्स गर्लफ्रेंड थी. जब वो दोनों शिमला में थे तो 3 साल रिलेशनशिप में थे. दिल्ली आने के बाद लड़की ने ऑफिस जॉइन किया और तब से उसके व्यवहार में परिवर्तन आने लगा था. लड़की पारिवारिक वजहों का हवाला देकर अलग होने की जिद करने लगी थी.<br />
<br />
मेरे दोस्त ने कभी भी उससे ऊंची आवाज में बात नहीं की थी. उस पर जान छिड़कता था. जितना समर्पण और प्रेम भाव मैंने उसके अंदर देखा था , वैसा आज तक कहीं और देखने को नहीं मिला. लेकिन लड़की उससे उतनी ही बदतमीजी और दुत्कार भरे रवैये से बात करती थी. वो उसकी हर बात मानता, उसकी हर हरकत को सहता. अकेले में रो लेता लेकिन शिकायत न करता.<br />
<br />
एक दिन दोस्त को पता चला कि उसकी गर्लफ्रेंड का ऑफिस में ही किसी से अफेयर चल रहा है. वो रोया, गिड़गिड़ाया लेकिन लड़की ने उल्टे उसे न जाने क्या-क्या कहा. इसी दौर में जब वो उसके जन्मदिन पर फूल लेकर पीजी के बाहर गया था (संयोग से मैं भी साथ गया था और दूर से देख रहा था.) तो उस लड़की ने सभी लड़कियों के सामने फूलों को न सिर्फ सड़क पर फेंक दिया बल्कि अनाप-शनाप कह कर बुरी तरह बेइज्जती की. इसके बाद वो कई दिन तक डिप्रेशन में रहा था.<br />
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खैर, आज 1 साल बाद हालात बदल गए थे. उसी लड़की को उसका बॉयफ्रेंड सरेआम जलील कर रहा था, गालियां दे रहा था, मारपीट कर रहा था. मैं हैरान होकर सोच रहा था कि ये भी कैसी विडंबना है कि <i>एक तरफ जहां एक लड़का उसे जी-जान से चाहता था, उसे बेपनाह प्यार करता था, उसका ख्याल रखता था, इज्जत से बात करता था, देखने में हैंडसम था, संस्कारी था.... उसे तो उस लड़की ने छोड़ दिया. लेकिन जिस लड़के के लिए उसने उसे छोड़ा... आज वही उसे गालियां दे रहा है, बेइज्जत कर रहा है, थप्पड़ मार रहा है.. लेकिन वो चुपचाप सह रही है!!!</i><br />
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<b><i>ये कैसी फितरत है कि जो आपको प्यार करता है, सम्मान देता है.. उसे तो आप दुत्कारते हैं लेकिन जो आपको दुत्कारता है, आपको भाव नहीं देता... उसे प्यार करते हैं...?</i></b><br />
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सदियों से भारतीय समाज में पुरुष महिलाओं को पांव की जूती समझकर उनका दमन करते आ रहे हैं. कहीं ऐसा तो नहीं कि कुछ महिलाओं की मानसिकता ऐसी ही हो गई हो. जाने ऐसी कौन सी मजबूरी है कि उन्हें प्यार, सम्मान और समानता के बजाए दुत्कार, अपमान और प्रताड़ना ज्यादा पसंद है!!!<br />Aadarsh Rathorehttp://www.blogger.com/profile/15887158306264369734noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6345042130764398174.post-893883620919683212012-03-28T18:49:00.002+05:302012-03-28T19:00:38.547+05:30वो लड़की नहीं, प्रेतात्मा थी...!!!<div style="border-bottom: medium none; border-left: medium none; border-right: medium none; border-top: medium none;">
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अब तक आप जान चुके हैं कि पेइंग गेस्ट में किस तरह की घटनाएं हो रही थीं. साल 2011 के मार्च महीने की ही बात है. पुरानी पोस्ट पढ़ने के लिए <a href="http://www.pyala.blogspot.com/search/label/भूत">यहां पर क्लिक</a> करें. मेरे पीजी के बगल में ही एक मंदिर है, जिसके बारे में मैं पहले ही बता चुका हूं. वहां पर एक पंडित जी भी हैं जो मंदिर के साथ ही ऊपर की तरफ बने कमरे में अपने परिवार के साथ रहते हैं. एक दिन सुबह मैं मंदिर की तरफ गया तो देखा पंडित जी पीजी में रहने वाले एक लड़के को कुछ बता रहे थे. पंडित जी बता रहे थे कि दिल्ली में अपराधी इस कदर बेखौफ हो चुके हैं बीती रात सामने वाले पार्क में एक लड़की के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश कर रहे थे. मेरी उत्सुकता जगी तो मैं भी पंडित जी के पास खड़ा होकर सुनने लग गया. बीती रात कुछ इस तरह का वाकया हुआ था. <br />
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पंडित जी को रात 2 से 2.30 बजे के करीब पंडित जी को आवाज सुनाई कि कोई मंदिर का दरवाजा खटखटा रहा है. पंडित जी उठे और उन्होंने ऊपर से झांककर देखा. नीचे एक लड़की खड़ी थी जो पागलों की तरह मंदिर का दरवाजा पीट रही थी. उसके चेहरे पर डर के भाव थे और बार-बार वो पार्क की तरफ देख रही थी. वो इतनी बदहवास ही थी कि उसे ये भी ख्याल नहीं रहा था कि दरवाजे पर ताला लगा है. हैरान-परेशान पंडित जी ने ऊपर से पूछा कि क्या हुआ, कौन हो... इस पर लड़की ने ऊपर देखकर कहा कि प्लीज, मुझे बचा लो... कुछ लोग मेरे पीछे पड़े हैं.. प्लीज़... पंडित जी ने पार्क की तरफ देखा तो अंधेरे में कुछ दिखाई नहीं दिया. फिर भी उन्होंने यूं ही डंडा उठाया और पार्क की दिशा में चिल्लाते हुए कहने लगे कि भाग जाओ वरना पुलिस को बुला दूंगा. इतने में पंडित जी की धर्मपत्नी भी जग गई थीं. दोनों नीचे उतरे और लड़की के पास गए. उन्होंने देखा कि लड़की का दम चढ़ा हुआ है और वो रोआंसी सी है. पंडिताइन ने पास ही रखे घड़े से पानी का गिलास लड़की को पीने को दिया. उसे इतनी प्यास लगी थी कि एक-एक गिलास करके पूरा घड़ा पी गई. </div>
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पंडित जी ने हैरानी भरी हालत में उस लड़की से पूछा कि कौन हो तुम? और इतनी रात को यहां क्या कर रही थी? ये लड़के कौन थे? पंडित जी के सवालों पर लड़की खामोश रही और रोने लगी. जब पंडिताइन ने सहारा दिया और हिम्मत बढ़ाते हुए उससे पूछा तो लड़की ने ये कहानी बताई-<br />
<br />
<em>"मैं यही संत नगर में रहती हूं. एक छोटे से शहर (नाम याद नहीं है) से यहां पढ़ने आई थी. गरीब परिवार से हूं तो जैसे-तैसे परिवारवालों ने पढ़ाया ताकि मैं यहां कुछ कमाकर परिवार की मदद कर सकूं. नौकरी के लिए कई दिनों से मैं दर-दर भटक रही हूं लेकिन नौकरी नहीं मिली. यहां मेरी जान-पहचान का एक लड़का है जिसने मुझे अच्छी नौकरी दिलाने का वादा किया. इंटरव्यू के नाम पर आज मुझे उसने एक जगह बुलाया और वहां पर बहुत सारे लोग थे. वहां पर मुझे कुछ ठीक नहीं लगा इसलिए मैंने तबीयत खराब हो जाने का बहाना करके घर जाने की जिद की. इस पर वो सभी लोग एक गाड़ी में बिठाकर मुझे घर छोड़ने के लिए निकले. मैं समझ गई थी कि इनके इरादे ठीक नहीं है. कार में बैठी ही थी कि मेरे साथ छेड़छाड़ शुरू कर दी. लेकिन मैंने गाड़ी की खिड़की का शीशा बंद नहीं होने दिया इसलिए उनमें से किसी की हिम्मत नहीं पड़ी. जैसे ही गाड़ी संत नगर पहुंची तो जो मेरी जान-पहचान का लड़का था उसने हाथ-पकड़ लिया और कहने लगा कि प्लीज आज हमारे साथ चल लो. लेकिन मैं किसी तरह से गाड़ी से भाग निकली और भागते हुए इस गली में आ गई (आपको बता दूं कि हमारे पीजी वाली गली मेन रोड और पार्क की तरफ से पहली गली है). मैंने जब मंदिर का दरवाजा खटखटाना शुरू किया तो वो लोग पार्क में ही रुक गए. वो इधर उजाले में नहीं आने देना चाहते थे. "</em><br />
<br />
इस पर पंडित जी ने कहा कि तुमने पुलिस को फोन क्यों नहीं किया ? इस पर लड़की ने कहा <em>कैसे करूं पुलिस को फोन? मेरा फोन तो हड़बड़ी में गाड़ी में ही रह गया</em>. इस पर लड़की ने फिर से रोना शुरू कर दिया. पंडित जी ने अपनी पत्नी से कहा कि आप चाय बनाकर लाएं. पंडिताइन जी चाय बनाने के लिए ऊपर चली गईं. पंडित जी ने भी लड़की की हिम्मत बढ़ाई और कहा कि कोई बात नहीं, अब तुम यहां सुरक्षित हो. जब काफी देर हो जाने पर भी पंडिताइन चाय लेकर नहीं आईं तो पंडित जी खुद सीढ़ियां चढ़कर देखने चले गए कि क्या बात हो गई. पंडित जी ने 7-8 सीढ़ियां चढ़कर छत पर पहुंचते ही पार्क की तरफ देखा कि कहीं पार्क में वो बदमाश तो नहीं हैं जिनका जिक्र लड़की ने किया है. जब वो संतुष्ट हो गए कि वहां पर कोई नहीं तो उन्होंने यूं ही छत से झांककर एक नजर लड़की की तरफ भी दौड़ाई. वो हैरान रह गए कि जिस जगह पर लड़की बैठी थी, वो खाली है. वो तुरंत दौड़ते हुए नीचे उतरे और देखा कि लड़की का कोई अता-पता नहीं हैं. <br />
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पार्क और गली के बीच में कई फीट की रेलिंग लगी थी जिसे वो लड़की पार नहीं कर सकती थी. अगर उसे वहां से जाना होता तो उसी रास्ते से जा सकती थी जिस रास्ते से वो आई थी. अगर ऐसा होता तो 100 मीटर लंबी सड़क को 5-10 सेकेंड में तो "बोल्ट " जैसा रेसर भी पार नहीं कर सकता. पंडित जी ने सोचा कि अजीब लड़की है. जो बिना बताए ही चली गई. पंडित जी भी अपेन कमरे में गए और सो गए. <br />
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पंडित जी तो इसे सामान्य घटना मान रहे थे. लेकिन हमारे पेइंग गेस्ट में जैसे ही इस बात की खबर फैली, इसे पीजी में हो रही रहस्यमयी घटनाओं से जोड़ दिया गया. कहीं वो उसी लड़की की आत्मा तो नहीं थी जिसने हमारे पीजी में कथित तौर पर आत्महत्या की थी? कहीं इसी तरह की घटना (जो पंडित जी को मिली लड़की के साथ हुई थी) से परेशान होकर उस लड़की ने आत्महत्या तो नहीं की थी जिसने हमारी पीजी में जान दी थी? सभी को लग रहा था कि वो कोई आत्मा ही थी क्योंकि इतनी रात को कोई लड़की अगर ऐसे हालात में फंसती तो वो बजाए बस्ती के किनारे की तरफ जाने के वो बीच बस्ती की ओर जाती जहां उसे ज्यादा लोग सुन पाते. और अगर वाकई उसके पीछे गुंडे थे तो वो थे कहां? यही नहीं, उसने हमारे पीजी के साथ एक कोने में बने मंदिर को ही क्यों चुना? 5 सेकेंड के अंदर वो लड़की कहां गायब हो गई? कुछ लोगों का कहना है कि क्योंकि वो अच्छा आत्मा थी और खुद पीड़ित थी इसलिए वो मंदिर के पास तक आ गई.<br />
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ये कई सारे सवाल हैं जिनका जवाब कोई नहीं दे पाया. लेकिन इस घटना के बाद ये बात पुख्ता हो चली थी कि हो न हो, पीजी में आत्महत्या वाली बात में दम है. इस घटना के बाद एक और ऐसी ही घटना हुई जिससे ये आशंका गहरा गई कि आत्महत्या वाली बात अफवाह नहीं, बल्कि सच्चाई है... </div>
अगली पोस्ट में आपको बताऊंगा कि कैसे मेरे कमरे में आया नया रूममेट भी बना अजीब घटना का गवाह और कैसे एक और एक घटना ने पीजी में रहने वाले शरारती लड़कों की हवा गुम कर दी... कीजिए इंतजार अगली पोस्ट का...<br />
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<span style="font-size: xx-small;"><strong>(तस्वीर सिर्फ डेमो के लिए है)</strong></span>Aadarsh Rathorehttp://www.blogger.com/profile/15887158306264369734noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6345042130764398174.post-41099773859420801042012-03-24T21:47:00.005+05:302012-03-24T22:24:26.725+05:30चौथा कौन...?मेरे पीजी में होने वाली रहस्यमयी घटनाओं के बारे में तो आप पहले ही पढ़ चुके हैं. अगर नहीं पढ़ा तो <a href="http://pyala.blogspot.com/search/label/भूत">यहां पर क्लिक</a> करके पढ़ लीजिए. अब अगली घटना के बारे में आपको बताता हूं. <br />
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<div style="border-bottom: medium none; border-left: medium none; border-right: medium none; border-top: medium none;"><a href="http://img.dailymail.co.uk/i/pix/2008/02_01/GhostMEN0702_468x322.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; cssfloat: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"></a>ये घटना मार्च, 2011 की है जब सर्दियां खत्म हो रही थीं. जिस बड़े हॉल नुमा कमरे में मैं रहता हूं, वहां मेरे साथ दो लोग और रहते थे. मेरे रूममेट्स- एक अभिषेक और दूसरा राजेश. मेरा बिस्तर कमरे के एकदम बीच में है और दोनों रूममेट्स के बिस्तर अगल-बगल लगे हैं. एक दिन रात को मैं सो रहा था कि अचानक किसी के चीखने की आवाज सुनाई दी. मेरी नींद खुली तो कमरे में एक हलचल सी दिखाई दी और हाहाकार सा मचा हुआ था. अंधेरे में कुछ नहीं दिख रहा था. कुछ सेंकेंड्स बीतने के बाद अहसास हुआ कि अभिषेक चिल्ला रहा है. मैं उठकर बिस्तर में बैठा और हैरान होकर हालात को समझने की कोशिश कर रहा था. तभी दूसरी तरफ से राजेश ने चीखना शुरू कर दिया. वो जोर-जोर से चिल्ला रहा था- चौथा कौन? चौथा कौन? </div><div style="border-bottom: medium none; border-left: medium none; border-right: medium none; border-top: medium none;"><br />
</div>असमंजस वाली हालत में फंसा मैं कभी बाएं देखूं तो कभी दाएं. लेकिन अंधेरे में कुछ नहीं दिख रहा था. नींद से एकदम जगने के कारण समझ ही नहीं आ रहा था कि हो क्या रहा है और मुझे क्या करना चाहिए. एकदम हक्का-बक्का रह गया था मैं. कम से कम 10 सेकेंड बाद लाइट जली तो देखा कि मेरे दाईं तरफ अभिषेक अपने बिस्तर पर चढ़कर कोने पर खड़ा हुआ है और घबराया हुआ है. और जब बाईं तरफ देखा तो राजेश पसीने से लथपथ और बेहद घबराया हुआ गहरी सांसें भर रहा है. <br />
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आपको साफ कर दूं कि इस घटना में साजिश जैसी कोई बात नहीं थी. ऐसा नहीं था कि अभिषेक और राजेश दोनों ने मिलकर मुझे डराने की कोशिश की हो क्योंकि उन दोनों के बीच बातचीत ही नहीं होती थी.<br />
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<div style="border-bottom: medium none; border-left: medium none; border-right: medium none; border-top: medium none;">उन दोनों के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. मैंने पूछा कि क्या हुआ? लेकिन उन दोनों में से कोई भी बोलने की स्थिती में नहीं लग रहा था. एक मिनट तक कमरे में चुप्पी छाई रही और हर कोई खामोश होकर एक-दूसरे को देख रहा था. घड़ी रात के 2 बजा रही थी. इतनी देर तक आसपास के कमरों में रहने वाले लड़के भी शोर-शराबा सुनकर मेरे कमरे में आ गए थे. उन्होंने भी पूछा कि क्या हुआ?</div><br />
<div style="border-bottom: medium none; border-left: medium none; border-right: medium none; border-top: medium none;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"></div><div style="border-bottom: medium none; border-left: medium none; border-right: medium none; border-top: medium none;">राजेश थूक गटकता हुआ बोला कि कमरे में कोई चौथा था... हमारे अलावा भी कोई था जो अभी-अभी भागा है. उसकी बात सुनकर हम हैरान थे. आखिर कमरे में हम तीन के अलावा चौथा कौन हो सकता है और वो इतनी रात को क्या कर रहा था. फिर अभिषेक से पूछा गया कि तुम क्यों चिल्ला रहे थे. अभिषेक ने कहा कि मुझे लगा कि कोई मेरे साथ सोया हुआ है. हम सभी कहने लगे कि तुम लोगों को वहम हुआ है. लेकिन अंदर से हर कोई डरा हुआ था. लेकिन अभिषेक का कहना था कि नींद में उसे महसूस हुआ कि कोई उसके साथ सोया हुआ है. फिर उसने आंखें खोलकर महसूस किया कि उसकी टांग के पास कुछ है जो रेंग रहा है. उसने छूकर देखा तो कुछ रोएंदार सी चीज़ महसूस हुई. इस पर उसने तुरंत प्रतिक्रिया देते हुए उस चीज़ को एक तरफ झटका और चिल्लाने लगा था. </div></div><br />
वहीं राजेश का कहना था कि जैसे ही उसने अभिषेक की चीख सुनी थी तो उसकी नींद खुल गई थी. जैसे की उसने आंखें खोली थी तो उसने किसी को कमरे से भागते हुए देखा था. हालांकि कमरे में बत्ती बुझी हुई थी लेकिन चूंकि राजेश का बिस्तर दरवाजे के पास था, इसलिए अगर कोई वहां से गुजरता तो उसे पता चल ही जाता. <br />
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समझ ही नहीं आ रहा था कि आखिर क्या हुआ. वाकई कोई कमरे में था या नहीं. अगर था तो कौन और अगर नहीं था तो उन दोनों को एकसाथ भ्रम कैसे हो सकता था. मैं अपनी तरफ से कयास लगाता रहा कि हो सकता है कि अभिषेक के बगल में बिल्ली सो गई हो. क्योंकि बिल्लियां अक्सर सर्दियों में गर्म जगह ढूंढती हैं. ये भी हो सकता है शायद बिल्ली से घबराए अभिषेक ने जो शोर मचाया, उससे राजेश अचानक डर गया हो. शायद उसे हड़बड़ी में और नींद से जगने की हालत में लगा हो कि कमरे में कोई चौथा इंसान भी है. लेकिन हकीकत क्या है ये तो ऊपर वाला ही जाने. <br />
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पहली भी इतनी सारी अजीब घटनाएं घट चुकी थीं कि इस बार भी ये किसी भूत की ही करामात लग रही थी. इन्ही सर्दियों में एक और रहस्यमयी घटना हुई जिसके बारे में आपको अगली पोस्ट में बताउंगा. एक ऐसी घटना जिसके बारे में आप पढ़कर आप भी हैरान हो जाएंगे. एक रहस्यमयी लड़की की घटना जो जाने कहां से आई और कहां चली गई. क्या वो लड़की भटकती हुई आत्मा थी?<br />
इन सवालों का जवाब जानने की कोशिश कीजिए अगली पोस्ट में....Aadarsh Rathorehttp://www.blogger.com/profile/15887158306264369734noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6345042130764398174.post-30507880912529873692012-03-15T22:21:00.002+05:302012-03-15T22:21:32.078+05:30हकीकत...मुस्कुराकर वो खुद को खुश जताते रहे<br />
मगर अफसोस! आंसू सब सच बताते रहे...Aadarsh Rathorehttp://www.blogger.com/profile/15887158306264369734noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6345042130764398174.post-19213374454075081332012-03-15T21:04:00.000+05:302012-03-15T21:04:25.728+05:30ये क्या किया ?सुना था कि इश्क़ में खो देते हैं लोग अहम् अपना<br />
ये क्या किया जो तुम अपनी अहमियत ही गंवा बैठे...Aadarsh Rathorehttp://www.blogger.com/profile/15887158306264369734noreply@blogger.com0