Aadarsh Rathore
दृश्य #1

मां: बेटा आदर्श! पापा इंतज़ार कर रहे हैं डाइनिंग टेबल पर. खाना लगा दिया है... जब देखो तब लैपटॉप लेकर बैठे रहते हो...


दृश्य #2


मित्र: अरे छोड़ो यार, हम अकेले ही ‘पार्टी’ कर लेते हैं. आदर्श को कॉल करने का कोई फायदा नहीं. वो आएगा ही नहीं, पता नहीं क्या हो गया है उसे...


दृश्य #3

प्रियतमा: आदर्श! क्या हो गया है तुम्हें? तुम्हारे पास मुझसे मिलने के लिए 5 मिनट समय भी नहीं! आखिर ऐसे कौन से काम में बिज़ी हो तुम?


दृश्य #4

सहकर्मी बॉस से: सर, कुछ बात कहनी थी आपसे. आदर्स खुद तो ब्लागिंग करता ही है अब आफिस में सबको ई बीमारी लगा दिया है. ई सब ठीक नहीं हो रहा है...

दृश्य #5

रूममेट: आदर्श! रात के 2 बज रहे हैं यार !!! अब तो लाइट ऑफ कर दो, अपना नहीं तो कम से कम दूसरों का तो ख्याल रखो...


दृश्य #6

डॉक्टर: देखिए कम्प्यूटर के सामने देर तक लगातार बैठकर काम करने से फटीग हो जाती है. यही वजह है कि आपकी आंख और नाक से लगातार पानी आ रहा है. थोड़ा अवॉइड कीजिए...

दृश्य #7

इंजीनियर: ज्यादा यूज़ करने की वजह से लैपटॉप का की-बोर्ड खराब हो गया है. टच पैड भी इसीलिए स्किप कर रहा है. पूरा रिप्लेस होगा. करीब 4500 रुपये का खर्च है...


साल भर पहले तक यही हालात थे. दिन-रात ब्लॉगिंग में ही लगा रहता था. क्या ऑफिस क्या घर. हालांकि ऑफिस में ब्लॉग लिखता तो नहीं था लेकिन खाली समय में पढ़ा ज़रूर करता था. धीरे-धीरे ऑफिस में कई लोगो को ब्लॉगिंग का चस्का लगा दिया. बहुत से सहकर्मियों के ब्लॉग बनाए, कई लोगों के ब्लॉग्स की साज-सज्जा की, फोटो लगाने आदि के तरीके भी बताए. जो लोग ब्लॉग बनाकर निष्क्रिय पड़े थे उन्हें भी प्रोत्साहित किया. एक समय आया था कि पूरा ऑफिस ब्लॉगमय हो गया था. जिधर देखो कोई न कोई ब्लॉग खुला रहता था. कई लोग बॉस के पास जाकर शिकायत भी करने लगे थे.

उधर घरवाले भी परेशान हो गए. कोई काम नहीं बस लैपटॉप पर लगे रहना. न खाने-पीने का होश न नहाने-धोने की चिंता. एक बार लैपटॉप ऑन करके बैठ गया तो फिर पता नहीं चलता था कि सुबह से कब शाम हो गई. पापा ने तो त्रस्त होकर कह दिया था कि ग़लती कर दी ये लैपटॉप दिलवा कर.


मित्रजनों से भी इसी चक्कर में कट सा गया था. घर से या अपने पीजी से बाहर ही नहीं निकलता था. मॉर्निगं एंड ईवनिंग वॉक दोनों बंद हो गई थी क्योंकि ब्लॉग जगत पर विचरण करना बहुत ज्यादा पसंद रहा था. कहीं उल्टे-सीधे लेख तो कहीं रोचक और ज्ञानवर्धक बातें. एक समय आया कि दोस्तों ने भी मुझे दरकिनार कर दिया. उन्हें लगता कि क्या फायदा इसे बुलाने का, वैसे भी कोई बहाना करके पक्का मना कर देगा...


ब्लॉगिंग के उतने फायदे नहीं हुए जितने नुकसान हो गए. इसके चक्कर मे प्रियतमा से संबंध विच्छेद ही हो गया. पहले तो ब्लॉगिंग के चक्कर में मैं उससे न मिलने के बहाने करता रहता था. बार-बार मैंने उसे गोली दी लेकिन एक बार वह गुस्सा हो गई. मैंने उसे मनाने के लिए मिलने और घूमने के लिए एक दिन निश्चित किया. उस दिन जैसे ही अपनी शिफ्ट ओवर होने के बाद मैं ऑफिस से घर जाने लगा बॉस ने पकड़ लिया. बोले कि आदर्श आज हमारा भी ब्लॉग बना दो. मैं किंकर्तव्यविमूढ हो गया. जाऊं तो समस्या, न जाऊं तो समस्या...!!! बॉस को कैसे मना कर दूं? और न गया तो आज तो खैर नहीं. आखिरकार मैंने प्रियतमा को फोन करके वेट करने को कहा.


वो बेचारी नीयत स्थान पर मेरा इंतज़ार करती रही. इधर हमारे बॉस को टैंपलेट ही पसंद नहीं आ रहा था. एक घंटा हो गया माथापच्ची करते-करते लेकिन उन्हें पता नहीं क्या चाहिए था. आखिरकार एक थीम उन्हें पसंद आई तो बोलने लगे कि घड़ी जोड़ो ये जोड़ो वो जोड़ो(गैजेट्स). मैं बोलता रहा कि सर जी कल कर लेंगे, लेकिन वो तो उसी दिन सब करने की जिद पर अड़े थे. 2 घंटे कब बीत गए मुझे पता ही नहीं चला. जैसे ही यहां से निपटा, ऑफिस से बाहर निकलते ही प्रियतमा का नंबर ट्राई करने लगा. स्विच ऑफ बता रहा था. मैंने तुरंत ऑटो पकड़ा और नीयत स्थान की तरफ बढ़ चला. एक घंटा मुझे सीपी पहुंचने में लग गया. वहां पर वो नहीं थी उसका मोबाइल भी स्विच ऑफ था.

उसने उस दिन खासतौर पर ऑफिस से उसने छुट्टी भी ली थी. लेकिन मेरे न आने की वजह से उसे गहरा धक्का पहुंचा. उसने सोचा कि आज मैंने फिर बहाना कर दिया. उस दिन से वह मुझसे बात करने को तैयार नहीं. इससे पहले कई बार ऐसा हो चुका था. मुझे यकीन था कि हर बार की तरह मैं उसे मना लूंगा लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ. इस तरह से संबंध पूरी तरह खत्म हो गया. हर कोशिश करके देख ली लेकिन नहीं वो बात करने को ही तैयार नहीं.


हां, तो ब्लॉगिंग के चक्कर में आंखें भी खराब हो गईं. दिन में 9 घंटे कम्प्यूटर के सामने काम करता था और घर आकर दोबारा लैपटॉप पर बिज़ी हो जाता था. लगातार इस तरह बैठे रहने से आंख और नाक से पानी बहना शुरु हो गया. डॉक्टर ने बताया कि आखों में थकान हो गई है इस वजह से ऐसा है. आई ड्रॉप्स तो उन्होंने सस्ती सी लिखीं लेकिन कंसल्टेंसी फीस ने तो प्राण ही सुखा दिए. एंटीक लेयर लेंस वाला चश्मा बनवाना पड़ा सो अलग...

यही नहीं, लैपटॉप पर भी अतिभारण की मार पड़ गई. ज्यादा टाइप करने से की-बोर्ड में समस्या पैदा हो गई. टच पैड भी जवाब दे गया. सर्विस सेंटर ले गया तो पता चला पूरा तामझाम रिप्लेस होगा. कुल मिलाकर 4500 रुपये खर्च हो गए.


ब्लॉगिंग का भूत इस कदर सवार हुआ था कि जिंदगी ही ब्लॉगमय हो गई थी. सपनों में भी कई ब्लॉग्स पर जाकर टिप्पणी करता रहता था. जहां भी नेट दिखे सबसे पहले अपना ब्लॉग देखता था. चेक करता था कि कितने नए हिट्स हुए, कितनी नई टिप्पणियां मिली. ग़ज़ब जुनून चढ़ा था ब्लॉगिंग का...।


मैं महसूस कर रहा हूं कि पिछले कुछ दिनों से ये जुनून कम होता जा रहा है. पता नहीं क्या वजह है कि कुछ लिखने का मन तो बहुत करता है लेकिन लिख नहीं पाता. दूसरों के ब्लॉग्स पर जाना भी कुछ कम हो गया है. कुछ एक ब्लॉग्स हैं जिनपर हफ्ते में एक बार नज़र दौड़ा लेता हूं, लेकिन अब वो पहले वाली तलब नहीं रही. ऐसा नहीं है कि ऊपर जो घटनाएं मैंने बताई हैं, इसके लिए वो जिम्मेदार हैं. जबकि इसका कारण कुछ और ही है... ब्लॉगिंग का भूत अब उतरने लगा है. लेकिन ये मेरी ही समस्या नहीं, कई सारे लोगों की समस्या है. देख रहा हूं कि अब लोगों ने ब्लॉग लिखना कम कर दिया है. मुझ जैसे कइयों से सिर से ब्लॉगिंग के भूत को उतारने का काम किया है एक चुड़ैल ने. लेकिन ये चुड़ैल भी हम सब के सिर पर सवार हो चुकी है.

इस चुड़ैल का नाम है –फेसबुक! अक्सर लोग ब्लॉग में अपने विचारों, अनुभवों, भावनाओं और कल्पनाओं को लिपिबद्ध किया करते हैं. कम से कम मैं तो ऐसा ही करता हूं. इसमें भी सबसे ज्यादा विचार वो रहते हैं जिनका जन्म रोज़ाना होने वाले अनुभवों से होता है. लेकिन फेसबुक में हमें इन अनुभवों या विचारों को तुरंत ही शेयर करने की आजादी मिलती है. इसलिए हम वहां शेयर कर देते हैं और तुरंत ही मित्र-मंडली की प्रतिक्रियाएं भी आ जाती हैं. इस तरह से ब्लॉग के बजाए फेसबुक में आपके विचारों को पढ़े जाने की संभावनाएं ज्यादा रहती हैं. क्योंकि ब्लॉग एग्रीगेटर्स के माध्यम से आपके ब्लॉग पर आने वाले पाठकों का मकसद आपकी पोस्ट पढ़ना कम, अपने ब्लॉग पर बुलाना ज्यादा रहता है.

इस तरह से एक ब्लॉग पोस्ट जो कि एक छोटे से विचार से पनपकर विस्तृत रूप धारण करती थी, फेसबुक में स्टेटस अपडेट और उस पर मिलने वाली टिप्पणियों में तब्दील हो गई है. लेकिन मुझे लगता है कि अगर मैंने लिखना छोड़ दिया तो मैं पंगु हो जाऊंगा. इसीलिए मैंने तय किया है कि चाहे कुछ भी हो जाए, लिखना नहीं छोड़ूंगा. इसलिए इसी बात पर लिख रहा हूं कि आजकल लिखने का मन क्यों नहीं करता. आगे भी लिखते रहने की ईमानदार कोशिश जारी रहेगी...
3 Responses
  1. badhiya likha hai aapne , chaliye ab jo blog kholenge aap to hamari ek tippani se khush ho jaayiega........ blogging jaari rakhne ka ek aur faayeda :) keep writing ,it helps :)


  2. shukra hai FB hai , warna hum jaison ke vichar kaun sunta ,,,, aapka to fir bhi achha khasa blog hai...... dhanya ho zuckerberg koti koti pranam :)


  3. Unknown Says:

    मैं आपसे पूरी तरह से सहमत हूँ राठौड़ साहब.. लेकिन आवश्यक है लिखते रहना.. चाहे माध्यम चुड़ैल हो या भूत...!