तत् त्वं असि / बलराम अग्रवाल
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दरवाजा खुलवाने को घंटी बजी। अन्दर से आवाज आयी—“कौन?”
“दरवाजा खोलके देख!”
“भाई, तू है कौन? यह जाने बिना मैं दरवाजा नहीं खोल सकता!”
“ दरवाजा खोले बिना ...
4 months ago
आप जहां है...
यही दस्तूर है वहां का...
ये उलझन है सोच और सच्चाई की धागों का...
बेशक... सोच से फतह होती है मंजिले...
और सच्चाई की भी है एक मंजिल...
जूझना काम है वीरों का...
और कोसना ही कर्म है अभागों का...
खाओ-पीयो
घूमो-पीयो
मस्त रहो,
सारी उलझनें खत्म।
Be positive!