क्या बताएं आपको कि क्या हुआ है
ग़म भी कभी क्या बांटने से कम हुआ है?
उलझनों में उलझकर रहता हूं खामोश
और लोग कहते हैं कि ये सुलझा हुआ है.
छोड़ ऐ दिल अब किसी को क्या मनाना
क्या करूं जब वक़्त ही रूठा हुआ है?
टूटते तारे से क्यों मांगूं मैं मन्नत
क्या करेगा ख़ुद ही जो टूटा हुआ है.
रिश्ता न कोई अब किसी से जोड़ पाऊं
खुद मैं खुद से खुद ही तो छूटा हुआ हूं.
करके यकीं जी जान से वादे पे तेरे
अपनी नजरों में ही साबित झूठा हुआ हूं.
ग़म भी कभी क्या बांटने से कम हुआ है?
उलझनों में उलझकर रहता हूं खामोश
और लोग कहते हैं कि ये सुलझा हुआ है.
छोड़ ऐ दिल अब किसी को क्या मनाना
क्या करूं जब वक़्त ही रूठा हुआ है?
टूटते तारे से क्यों मांगूं मैं मन्नत
क्या करेगा ख़ुद ही जो टूटा हुआ है.
रिश्ता न कोई अब किसी से जोड़ पाऊं
खुद मैं खुद से खुद ही तो छूटा हुआ हूं.
करके यकीं जी जान से वादे पे तेरे
अपनी नजरों में ही साबित झूठा हुआ हूं.
:)
jo bhi likha hai achchha likha hai