Aadarsh Rathore
सोच रहा हूं
मैं कहां हूं,
कल वहां था
आज यहां हूं...

परिवेश बदला
हालात नहीं,
मुश्किलें नईं
हैं जुड़ गईं...



प्रतिरोध करूं
या सहता रहूं,
किससे कहूं
अगर चुप न रहूं...

क्या करूं
क्या न करूं,
उलझन में हूं
जहां भी हूं...
4 Responses
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  2. आप जहां है...
    यही दस्तूर है वहां का...

    ये उलझन है सोच और सच्चाई की धागों का...
    बेशक... सोच से फतह होती है मंजिले...
    और सच्चाई की भी है एक मंजिल...
    जूझना काम है वीरों का...
    और कोसना ही कर्म है अभागों का...


  3. खाओ-पीयो
    घूमो-पीयो
    मस्त रहो,
    सारी उलझनें खत्म।