Aadarsh Rathore
जिंदगी... कई बार गुस्सा आता है इस पर और कई बार प्यार... वैसे ये सब हालात पर निर्भर करता है. कई बार हालात इतने खराब हो जाते हैं कि सब फालतू लगने लगता है. लगता है कि जीवन ही बेकार है. लेकिन कई बार हालात इतने अच्छे हो जाते हैं कि आप हर पल को जीना चाहते हैं. हर किसी की जिंदगी में ये उतार-चढ़ाव आता रहता है, ये सामान्य सी बात है. लेकिन असामान्य सी बात ये है कि मेरी जिंदगी में इन उतार-चढ़ाव का सिलसिला कुछ ज्यादा ही है. शायद ऐसा इसलिए भी है कि मैं अति महत्वाकांक्षी हूं. सपने तो बड़े-बड़े हैं और वो भी कई सारे... लेकिन समस्या ये है हकीकत में उन सपनों के आसपास भी नहीं हूं. इसीलिए कभी-कभी ये भाव आते हैं कि ये सपने तो पूरे होने नहीं हैं, मेहनत तो व्यर्थ जा रही है सो क्या फायदा. इस तरह से दिल एकदम बैठ जाता है और निराशा में घिर जाता हूं. लेकिन मेरी चंचल प्रकृति का ही फायदा ये भी है कि मैं इस तरह निराशा और हताशा में भी ज्यादा दिन नहीं बैठ सकता. मैं फिर उठता हूं नई ऊर्जा और उत्साह के साथ. फिर अपने सपनों को पूरा करने की चाह में चलना शुरू कर देता हूं. आसपास की हर चीज़ फिर से अच्छी लगने लगती है. जो जगहें निराशा में मनहूस लगा करती हैं वही चीजें मंदिर की तरह सुंगधमय और पवित्र प्रतीत होती हैं. जिन लोगों पर हताशा के भाव में गुस्सा, झल्लाहट और खीझ आया करती थी, वही लोग अब सामान्य और अच्छे लगने लगते हैं.


वैसे तो ये दौर अब तक कई बार जिंदगी में आ-जा चुका है लेकिन ऐसा पहली बार है कि मैंने बैठकर इस सबका विश्लेषण किया हो. जब किया तो महसूस किया है व्यक्ति की जिंदगी पर या फिर उस व्यक्ति पर ही बाहरी हालात का उतना ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता जितना की उसके आंतरिक हालात का. यानी कि आसपास के हालात के कारण व्यक्ति की मनोस्थिती पर असर डाल सकते है लेकिन उन हालात पर वह कैसी प्रतिक्रिया देता है ये ज्यादा महत्वपूर्ण है. अगर वह हालात से प्रभावित हो जाता है तो चीज़ें नियंत्रण से बाहर होती चली जाएंगी. चारों तरफ समस्याओं का अंबार लगा होगा. हर काम बिगड़ता नज़र आएगा और हर व्यक्ति, हर घटना, हर चीज़ मनहूस लगेगी. वहीं अगर मुश्किल हालात का सामना शांतिपूर्ण तरीके और समझदारी से किया जाए तो हालात इतने खराब नहीं होंगे. घबड़ाहट पैदा करना तो आत्मघाती कदम होता है. ये सब तो मर्ज को पहचानने वाली बात है लेकिन फायदा तब हो जब आगे इस तरह के हालात पैदा होने पर मैं उनका समझदारी से मुकाबला कर सकूं.

स्वास्थ्य, कई बार यही एक बड़ी वजह रहता है मनोबल तोड़ने में. स्वास्थ्य खराब हो तो शरीर के साथ-साथ मनोबल तो यूं ही टूट जाता है. कई तरह के नकारात्मक ख्याल मन में आते हैं. इसलिए अब तय किया है कि हालात कैसे भी हों, कम से कम स्वास्थ्य को अच्छा रखने की कोशिश जारी रहेगी. स्वस्थ तन, स्वस्थ मन... ये सिर्फ कहावत ही नहीं, सच्चाई है. जान वही सकता है जो भुक्तभोगी हो. बहरहाल, अच्छा लग रहा है कि बुरे स्वास्थ्य के दौर से बाहर निकल आया हूं. हताशा भी जाती रही है और निराशा भी. सब बढ़िया लग रहा है, ऑफिस में रहूं, सड़क पर या फिर घर पर... कहीं भी रहूं.. सारा जग मधुबन लगता है... चाहता हूं कि लगता भी ऐसा ही रहे... :)
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5 Responses
  1. Neha Pathak Says:

    mere comment ke bina ye blog adhoora hai
    :)


  2. कहा भी है- "शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्‌" अर्थात्‌ स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन/मस्तिष्क का विकास होता है। बहुत सुंदर आलेख.


  3. इसी का नाम जिंदगी है दोस्त और सुख - दुःख तो जिंदगी के दो पहलूँ हैं एक भी नहीं है तो जिंदगी अधूरी है तो दोनों का मज़ा लो तभी तो एहसास का मज़ा ले पाओगे |
    सुन्दर रचना |


  4. Anonymous Says:

    "Work incessantly, but give up all attachment to work." Do not identify yourself with anything. Hold your mind free. All this that you see, the pains and the miseries, are but the necessary conditions of this world; poverty and wealth and happiness are but momentary; they do not belong to our real nature at all. Our nature is far beyond misery and happiness, beyond every object of the senses, beyond the imagination; and yet we must go on working all the time. "Misery comes through attachment, not through work." As soon as we identify ourselves with the work we do, we feel miserable; but if we do not identify ourselves with it, we do not feel that misery


  5. आदर्श जी बहुत ही अच्छे से व्यक्त किया है आपने अपने भावनओं को.