कल शाम की बात है, संत नगर (ईस्ट ऑफ़ कैलाश) के चौराहे से गुजर रहा था... मन में भविष्य को लेकर कई चिंताएं थी... आगे का रास्ता समझ नहीं आ रहा था... हालात चौराहे जैसे ही थे... किस दिशा में जाना है... कौन सा रास्ता किस तरफ ले जाएगा... इतने में अचानक एक बाबा मेरे पास आए और हाथ फैलाकर याचना करने लगे... अपने संघर्ष और बाबा की याचना का समन्वय करती कुछ पंक्तियाँ मस्तिष्क में कौंधी...
करो ना हमको शर्मिंदा, बढ़ो आगे कहीं बाबा
हमारे पास आंसू के सिवा कुछ भी नहीं बाबा
कटोरा ही नहीं है हाथ में बस इतना अंतर है
मगर बैठे जहाँ हो तुम, खड़े हम भी वहीँ बाबा
तुम्हारी ही तरह हम भी रहे हैं आज तक प्यासे
ना जाने दूध की नदियाँ किधर होकर बही बाबा
सफाई थी, सच्चाई थी, पसीने की कमी थी
हमारे पास ऐसी ही कई कमियां रही बाबा
हमारी आबरू का प्रश्न है, सबसे ना कह देना
वो बातें हमने जो तुमसे अभी खुलकर कही बाबा.
करो ना हमको शर्मिंदा, बढ़ो आगे कहीं बाबा
हमारे पास आंसू के सिवा कुछ भी नहीं बाबा
कटोरा ही नहीं है हाथ में बस इतना अंतर है
मगर बैठे जहाँ हो तुम, खड़े हम भी वहीँ बाबा
तुम्हारी ही तरह हम भी रहे हैं आज तक प्यासे
ना जाने दूध की नदियाँ किधर होकर बही बाबा
सफाई थी, सच्चाई थी, पसीने की कमी थी
हमारे पास ऐसी ही कई कमियां रही बाबा
हमारी आबरू का प्रश्न है, सबसे ना कह देना
वो बातें हमने जो तुमसे अभी खुलकर कही बाबा.
जय हो...
सच कहा गोपाल जी
बस कटोरा ही नहीं है...
ओह! बेहद गहन और सच कहा……………सभी के यही तो हालात हैं।
Baba is in far better than our condition because he is free from the tension of this world.