Aadarsh Rathore
जब जला रहे थे सब फुलझड़ियां
तब बरस रही थीं आंसू की लड़ियां
आतिशबाजी सी उड़ने की चाह में
हर उमंग हुई थी बावली
मनाई कहां, बस देखी ही देखी
घर से दूर दीपावली...

जगमग रोशनी हो गई झिलमिल
हल हो नहीं पाई अजब ये मुश्किल
पटाखों की धमक को हराने की चाह में
हर धड़कन हुई थी उतावली...
मनाई कहां, बस देखी ही देखी
घर से दूर दीपावली...
4 Responses
  1. bahot dard jhalak raha hai aapke is post me


  2. वाह...मनोभावों का अत्यंत ही सजीव चित्रण...जितने भी लोगों ने अपने घर से बाहर दिवाली मनाई होगी, निःसंदेह सबके ह्रदय में यही भाव उमड़ रहे होंगे...


  3. ASHOK BAJAJ Says:

    'असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय ' यानी कि असत्य की ओर नहीं सत्‍य की ओर, अंधकार नहीं प्रकाश की ओर, मृत्यु नहीं अमृतत्व की ओर बढ़ो ।

    दीप-पर्व की आपको ढेर सारी बधाइयाँ एवं शुभकामनाएं ! आपका - अशोक बजाज रायपुर

    ग्राम-चौपाल में आपका स्वागत है
    http://www.ashokbajaj.com/2010/11/blog-post_06.html