मेरी प्रेमिका और मेरे अजीज दोस्तों को इस बात का पता है कि मैं मोबाइल फोन का कितना बड़ा फैन हूं. जब भी मुझे अपने किसी कथन की सत्यता को प्रमाणित करना होता है तो मैं निःसंकोच अपने मोबाइल की कसम खा लेता हूं और उसके बाद लोगों को स्पष्टीकरण देता हू कि मेरे लिये ये मात्र एक यन्त्र नहीं है अपितु मेरी प्रेमिका के समकक्ष है. तो कहने का ये तात्पर्य है कि मुझे मोबाइल फोन से बहुत प्यार है. लेकिन कल रात के घटनाक्रम के बाद मोबाइल से मेरा ये प्रेम इबादत में परिवर्तित हो गया है. अर्थात मोबाइल अब मेरे लिये देवतुल्य हो गया है.
आपको तो विदित ही है कि बीते हुए कल, सनातन संस्कृति में विवाहित महिलाओं (अविवाहित प्रेमिकाओं) का पर्व करवा चौथ हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी उतने ही उल्लास, उन्माद, श्रद्धा और सौन्दर्य के साथ मनाया गया. संध्या समय कार्यालय से घर जाते समय मेरे भी मन में आया की अब विवाह कर लेना चाहिए, अन्यथा सौन्दर्य की समस्त प्रतिमूर्तियां राजभवनो की शोभा बढ़ाएंगी और मेरा ग़रीब खाना मदर इंडिया के लाला के घर की तरह रहेगा. खैर मु्द्दा ये नहीं है, बात हो रही थी मोबाइल देवता की.
तो अपने अतृप्त नेत्रों को एक्स्ट्रा तृप्त करके मैं घर पंहुचा. रोजाना की तरह कक्ष में तीन-चार मित्र बैठे थे. वो सभी लोग काम-काजी हैं तो अपने कपड़े बदलकर बिल्कुल आराम की मुद्रा में बैठे हुए थे सिवाय एक के. हमारा वो मित्र पांव से लेकर सर तक तैयार बैठा था. मैंने औपचारिकतावश पूछ लिया कि कहीं जा रहे हो या कहीं से आ रहे हो? तो उसने एक छोटी सी मुस्कान दी और अपने मोबाइल देवता के साथ व्यस्त हो गया. हो सकता था कि वो करवा चौथ के लिये अपनी पत्नी को अपने दर्शन करने जा रहा हो, लेकिन मन में इस ख्याल के लिये स्थान ही नहीं था क्योंकि सौभाग्य से वो भी अब तक कुंवारा था.. बातों का सिलसिला प्रारंभ हो गया. ओबामा की भारत यात्रा से लेकर बिग बॉस तक और कौन बनेगा करोडपति से लेकर सुरेश कलमाड़ी तक कई मुद्दों पर चर्चा हुई.
इस बीच हमारा वो दोस्त कई बार मोबाइल पर बात करते हुए कमरे से बाहर निकला, लेकिन जब-जब वो अन्दर आया तो उसके चेहरे पर मायूसी सी झलक रही थी. पूछना इसलिए उचित नहीं समझा कि मामला कहीं व्यक्तिगत न हो. खैर हमारी बातें चलती रही और वो फोन पर लगा रहा. आखिरकार कुछ देर बाद उसने प्रसन्न मुद्रा में, एक विजेता कि भांति कमरे में प्रवेश किया और बोला "चाँद दिख गया." इस बात को सुनकर सबसे ज्यादा चौंकने वाला संभवत: मैं ही था. क्योंकि शायद कक्ष में मौजूद अन्य मित्रों को पहले से ही घटना कि जानकारी थी. अब मेरे लिए अपनी जिज्ञासा को रोक पाना बिल्कुल ऐसे ही था जैसे राष्ट्रमंडल खेलों के तुरंत बाद घोटालों की जांच को रोकना. मैंने तुरंत मित्र से पूछा कि चाँद के दिखने से तुम्हारा क्या सम्बन्ध? फिर उसने विस्तार से पूरी बात बताई कि उक्त राज्य (सुदूर उत्तर) में मेरी प्रेमिका रहती है और उसने मेरे लिये करवा चौथ का व्रत रखा था. वो चाँद के निकलने की प्रतीक्षा कर रही थी और आखिरकार चाँद निकल आया और उसका व्रत पूरा हुआ.
इतना कहने के बाद लज्जा उसके चेहरे पर एक महीन सा आवरण बना चुकी थी, लेकिन मेरी जिज्ञासा और हिलोरे मारने लगी. मैंने कुछ समय बाद पूछा कि "दोस्त तुम तो यहाँ पर हो और वो वहां पर फिर क्या तुम्हारी फोटो देखकर उन्हों व्रत खोला होगा?." मित्र बोला नहीं मेरी कोई भी फोटो वहां नहीं है. मैंने पूछा "फिर तुम्हें देखे बिना व्रत कैसे पूरा होगा?" वो अपना मोबाइल दिखाकर बोला "ये है न.., इससे सब कुछ होता है" मुझे ऐसा लगा मानो वो किसी मोबाइल कंपनी के विज्ञापन की पंच लाइन बोल रहा हो. उसने बात जारी रखी "हमने ये निर्धारित किया था कि जब चाँद निकलेगा तो हम दोनों एक साथ चाँद को देखेंगे और ठीक उसी समय मोबाइल पर बात करेंगे, इससे ऐसा लगेगा कि जैसे हम दोनों बिल्कुल एक दूसरे के सम्मुख खड़े हों" इतना सुनने के बाद मेरा अगला प्रश्न तुरंत निकला "अगर मोबाइल नहीं होता तो?" मित्र तपाक से बोला "तो फिर वो व्रत नहीं रखती,"
दोस्त तो कहकर निकल गया लेकिन मैं इतनी गहरी सोच में डूब गया कि मुझे पता ही नहीं चला कि कब मैं भी छत पर आ गया और चाँद को देखने लगा. मैंने उसकी बातो का विवेचनात्मक विश्लेषण किया और निष्कर्ष निकला कि अगर मोबाइल नहीं होता तो व्रत नहीं होता, आस्था, विश्वास, भाव और श्रद्धा ये तो शब्द मात्र हैं असली चीज़ है मोबाइल. घंटी बजाओ और व्रत समाप्त करो. बोलो मोबाइल देवता की...जय!!!
आपको तो विदित ही है कि बीते हुए कल, सनातन संस्कृति में विवाहित महिलाओं (अविवाहित प्रेमिकाओं) का पर्व करवा चौथ हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी उतने ही उल्लास, उन्माद, श्रद्धा और सौन्दर्य के साथ मनाया गया. संध्या समय कार्यालय से घर जाते समय मेरे भी मन में आया की अब विवाह कर लेना चाहिए, अन्यथा सौन्दर्य की समस्त प्रतिमूर्तियां राजभवनो की शोभा बढ़ाएंगी और मेरा ग़रीब खाना मदर इंडिया के लाला के घर की तरह रहेगा. खैर मु्द्दा ये नहीं है, बात हो रही थी मोबाइल देवता की.
तो अपने अतृप्त नेत्रों को एक्स्ट्रा तृप्त करके मैं घर पंहुचा. रोजाना की तरह कक्ष में तीन-चार मित्र बैठे थे. वो सभी लोग काम-काजी हैं तो अपने कपड़े बदलकर बिल्कुल आराम की मुद्रा में बैठे हुए थे सिवाय एक के. हमारा वो मित्र पांव से लेकर सर तक तैयार बैठा था. मैंने औपचारिकतावश पूछ लिया कि कहीं जा रहे हो या कहीं से आ रहे हो? तो उसने एक छोटी सी मुस्कान दी और अपने मोबाइल देवता के साथ व्यस्त हो गया. हो सकता था कि वो करवा चौथ के लिये अपनी पत्नी को अपने दर्शन करने जा रहा हो, लेकिन मन में इस ख्याल के लिये स्थान ही नहीं था क्योंकि सौभाग्य से वो भी अब तक कुंवारा था.. बातों का सिलसिला प्रारंभ हो गया. ओबामा की भारत यात्रा से लेकर बिग बॉस तक और कौन बनेगा करोडपति से लेकर सुरेश कलमाड़ी तक कई मुद्दों पर चर्चा हुई.
इस बीच हमारा वो दोस्त कई बार मोबाइल पर बात करते हुए कमरे से बाहर निकला, लेकिन जब-जब वो अन्दर आया तो उसके चेहरे पर मायूसी सी झलक रही थी. पूछना इसलिए उचित नहीं समझा कि मामला कहीं व्यक्तिगत न हो. खैर हमारी बातें चलती रही और वो फोन पर लगा रहा. आखिरकार कुछ देर बाद उसने प्रसन्न मुद्रा में, एक विजेता कि भांति कमरे में प्रवेश किया और बोला "चाँद दिख गया." इस बात को सुनकर सबसे ज्यादा चौंकने वाला संभवत: मैं ही था. क्योंकि शायद कक्ष में मौजूद अन्य मित्रों को पहले से ही घटना कि जानकारी थी. अब मेरे लिए अपनी जिज्ञासा को रोक पाना बिल्कुल ऐसे ही था जैसे राष्ट्रमंडल खेलों के तुरंत बाद घोटालों की जांच को रोकना. मैंने तुरंत मित्र से पूछा कि चाँद के दिखने से तुम्हारा क्या सम्बन्ध? फिर उसने विस्तार से पूरी बात बताई कि उक्त राज्य (सुदूर उत्तर) में मेरी प्रेमिका रहती है और उसने मेरे लिये करवा चौथ का व्रत रखा था. वो चाँद के निकलने की प्रतीक्षा कर रही थी और आखिरकार चाँद निकल आया और उसका व्रत पूरा हुआ.
इतना कहने के बाद लज्जा उसके चेहरे पर एक महीन सा आवरण बना चुकी थी, लेकिन मेरी जिज्ञासा और हिलोरे मारने लगी. मैंने कुछ समय बाद पूछा कि "दोस्त तुम तो यहाँ पर हो और वो वहां पर फिर क्या तुम्हारी फोटो देखकर उन्हों व्रत खोला होगा?." मित्र बोला नहीं मेरी कोई भी फोटो वहां नहीं है. मैंने पूछा "फिर तुम्हें देखे बिना व्रत कैसे पूरा होगा?" वो अपना मोबाइल दिखाकर बोला "ये है न.., इससे सब कुछ होता है" मुझे ऐसा लगा मानो वो किसी मोबाइल कंपनी के विज्ञापन की पंच लाइन बोल रहा हो. उसने बात जारी रखी "हमने ये निर्धारित किया था कि जब चाँद निकलेगा तो हम दोनों एक साथ चाँद को देखेंगे और ठीक उसी समय मोबाइल पर बात करेंगे, इससे ऐसा लगेगा कि जैसे हम दोनों बिल्कुल एक दूसरे के सम्मुख खड़े हों" इतना सुनने के बाद मेरा अगला प्रश्न तुरंत निकला "अगर मोबाइल नहीं होता तो?" मित्र तपाक से बोला "तो फिर वो व्रत नहीं रखती,"
दोस्त तो कहकर निकल गया लेकिन मैं इतनी गहरी सोच में डूब गया कि मुझे पता ही नहीं चला कि कब मैं भी छत पर आ गया और चाँद को देखने लगा. मैंने उसकी बातो का विवेचनात्मक विश्लेषण किया और निष्कर्ष निकला कि अगर मोबाइल नहीं होता तो व्रत नहीं होता, आस्था, विश्वास, भाव और श्रद्धा ये तो शब्द मात्र हैं असली चीज़ है मोबाइल. घंटी बजाओ और व्रत समाप्त करो. बोलो मोबाइल देवता की...जय!!!
मोबाइल देवता की...जय!!
जय हो मोबाइल देवता की गोपाल भाई
सत्य वचन!
बाबा मोबाइल की जय हो..
मोबाइल देवता की...जय!!!