वो ढोंगी ही सही
पर मजबूर भी तो होंगे।
हफ्तों न नहाकर
चीथड़े पहनना,
घटिया अभिनय करके
बेहद लाचार दिखना
किसी का शौक नहीं होता।
क्या कभी सोचा है
कि गलती किसकी है
कौन है दोषी
और किसने बनाया इन्हें
भिखमंगा।
देश का पैसा लूटने वालों ने
या फिर हमने,
जो देखते तो सब कुछ हैं
पर करते कुछ नहीं।
करते हैं तो ढोंग
जताते हैं सहानुभूति,
देकर कुछ रुपये
कर देते हैं अहसान।
या फिर देते हैं गाली
कभी इन मजबूर ढोंगियों को
या उन मगरूर ढोंगियों को
जो निष्ठा से कर रहे हैं
"जन कल्याण"।
पर मजबूर भी तो होंगे।
हफ्तों न नहाकर
चीथड़े पहनना,
घटिया अभिनय करके
बेहद लाचार दिखना
किसी का शौक नहीं होता।
क्या कभी सोचा है
कि गलती किसकी है
कौन है दोषी
और किसने बनाया इन्हें
भिखमंगा।
देश का पैसा लूटने वालों ने
या फिर हमने,
जो देखते तो सब कुछ हैं
पर करते कुछ नहीं।
करते हैं तो ढोंग
जताते हैं सहानुभूति,
देकर कुछ रुपये
कर देते हैं अहसान।
या फिर देते हैं गाली
कभी इन मजबूर ढोंगियों को
या उन मगरूर ढोंगियों को
जो निष्ठा से कर रहे हैं
"जन कल्याण"।
nice thought
सच है
अच्छी कविता है भाई ।
विचारणीय बात!
अच्छी बात कही है। सभी ढोंगी हैं।
"Majboor dhongi aur Magroor dhongi"
wah kya khoob likha hai.....
आदर्श,
याद करें आपने एक पोस्ट पोस्ट की थी: मुझे भारतीय होने पर गर्व नहीं!!!
और मैंने कहा था निस्संदेह आप देशभक्त हैं.
एक झलक यहाँ भी मिली!
सिस्टम से आपकी नाराजगी ज़ाहिर है...
कविता सन्देश देने में सक्षम है.
आभार,
आशीष
--
बैचलर पोहा!!!!