पिछले तीन साल से मैं उसे जब भी देखता हूँ तो वही आकर्षण नज़र आता था जो पहली बार देखने मे था...लेकिन चंद रोज़ से उसके चेहरे का नूर.......शायद वो भी मेकअप करने लगी है.
लघुकथा की भाषिक संरचना / बलराम अग्रवाल
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यह लेख मार्च 2024 में प्रकाशित मेरी आलोचनात्मक पुस्तक 'लघुकथा का साहित्य
दर्शन' में संग्रहीत लेख 'लघुकथा की भाषिक संरचना' का उत्तरांश है। पूर्वांश
के लि...
उनके घर भले ही कच्चे थे, मगर उनके दिल सच्चे थे
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*घर की मुंढेरें सिसक रही हैं,* दरवाजे खुद को तन्हा महसूस कर रहे हैं, चौखटें
किसी पहाड़ की तरह उदास हैं.. गांव की पगडंडियों को आज भी किसी अपने का इंतज़ार
हैं,...
मम्मा की डायरी- कुछ पन्ने यूं हीं
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17 मई की संध्या। इंडिया हैबिटेट सेंटर का केसोरिना हॉल। जब हम पहुंचे तो हॉल
में गिनती के लोग। देखते ही देखते हॉल में बच्चों की शैतानियां शुरू हो गईं।
मम्मिय...
बादल फटना- प्राकृतिक आपदा या कुछ और....
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उत्तराखंड में बादल फटने से आई आपदा ने मुझे सोचने पर मजबूर किया कि हर साल
बादल फटने की घटनाएं क्यों बढ़ रही हैं। क्या ये सिर्फ प्रकृति का बदला हुआ
रूप है। ...
यूपीएससी के रिजल्ट के अगले दिन मेरा दिन खराब...
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* सिविल सर्विसेज का जब भी रिजल्ट आता है...उस दिन मेरा दिन ख़राब हो जाता है.*..क्योंकि
सुबह-सुबह ही अख़बार वाले रिजल्ट फ्रंट पेज पर छाप देते हैं औऱ जैसे ही ...
बदक़िस्मत होकर जाना, कितना खुशक़िस्मत था!
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*प्रभाष जी चले गए... अब भी हमें यकीन नहीं हो रहा। ग़मगीन हूं। मेरे एक दोस्त
तनसीम हैदर प्रभाष जी के पड़ोस में रहते हैं। उन्होंने प्रभाष जी के जाने को
जैसा ...
बहुत खूब भाई... सच्चाई जाहिर की है आपने इसे पढ़कर शायद अब लोग मेकअप ना करें
मुझे इन पंक्तियों पर आपत्ति है। आप सुन्दरता और कुरूपता के हिसाब से कैसे भेद कर सकते हैं। ये सब इंसान के वश की बात तो नहीं है। आपको कोई अधिकार नहीं।
आपकी खूबसूरत पोस्ट को ४-९-१० के चर्चा मंच पर सहेजा है.. आके देखेंगे क्या?
सटीक!
पिछले तीन साल से मैं उसे जब भी देखता हूँ तो वही आकर्षण नज़र आता था जो पहली बार देखने मे था...लेकिन चंद रोज़ से उसके चेहरे का नूर.......शायद वो भी मेकअप करने लगी है.