हफ्ता भर पहले ख्याल आया कि जो भाव मन में हैं उन्हें जग जाहिर कर दूं। फेसबुक ने तो वैसे भी अभिव्यक्तिकरण को सरल बना दिया है। तुरंत स्टेटस अपडेट में लिखा कि, "कभी-कभी तो लगता है कि कुछ नहीं रखा है हिन्दुस्तानी होने में..." ये लिखने भर की देर थी कि धड़ाधड़ कॉमेंट आने लगे। संभवत: फेसबुक पर मुझे सबसे ज्यादा टिप्पणियां इसी पोस्ट पर मिली। लोगों ने तीखे प्रहार किए, कुछ ने कहा कि मेरी मति मारी गई है तो कुछ ने मुझे राष्ट्रद्रोही करार दे दिया। शुभचिंतकों ने खैरियत जानने के लिए फोन भी कर दिया तो कुछ लोगों ने पूरी नींद लेने की सलाह दे दी। इस बीच सिर्फ एक-दो लोग ही ऐसे थे जिन्होंने मेरी बातों का समर्थन किया और मेरे कथन के पक्ष में तर्क भी दिए। जो लोग मुझे बचपन से जानते हैं उन्हें तो लगा कि मैंने मानसिक संतुलन ही खो दिया है। उन्हें लगा कि कहां ये राष्ट्रभक्त हुआ करता था और कहां अब ऐसी बहकी-बहकी बातें कर रहा है। शुभचिंतकों ने पूछा कि भई ऐसा क्या हो गया कि कुछ दिन पहले तक तो तुम ये कहते और लिखते थे कि तुम्हें अपने देश पर गर्व है, फिर ऐसा क्या हो गया कि अब विचार एकदम बदल गए। उनकी चिंताएं जायज हैं, लेकिन उन्हें कैसे बताऊं कि राष्ट्रभक्त हूं इसीलिए तो ऐसी बातें कर रहा हूं।
फेसबुक पर जो लिखा था उस बात पर मज़बूती से बना हुआ हूं। सच कहता हूं मुझे भारतीय होने पर गर्व नहीं है। दरअसल पिछले रविवार इस्कॉन टैंपल के पास वाले टीले पर गया था। ईस्ट ऑफ कैलाश में स्थित इस जगह की ऊंचाई आसपास के इलाके से थोड़ी ज्यादा है। अक्सर वहीं एकांत में बैठकर मनन और आत्मसंवाद किया करता हूं। उस रोज़ भी एक शिला पर बैठकर दूर जगमगा रहे नेहरू स्टेडियम को देख रहा था। अचानक कुछ बच्चे खेलते-खेलते वहां आए और उनमें से एक पत्थर पर चॉक से कुछ लिखने लग गया। पहले तो उसने कुछ भी ड्राइंग बनाई और साथ में अपना नाम लिख दिया। फिर वो दूसरे पत्थर की ओर गया और वहां लिखा- मेरा भारत महान..। इस बच्चे की उम्र मुश्किल से 7-8 साल रही होगी। मैं सोच रहा था कि इस बालक को ये मालूम है कि इसने क्या लिखा... क्या ये महान शब्द का आशय समझता होगा। तभी अंदर से आवाज़ आई, "इस बालक के बारे में क्या सोचता है, अपने बारे में बता... क्या भारत महान है?"
"ओह! ये कैसा सवाल.... भारत सनातन काल से महान है.. इसकी कला, संस्कृति..." अभी मैं अपन बात पूरी भी नहीं कर पाया था कि अंतर्मन जोर से हंस पड़ा..."हा हा हा हा..... ।"
मैं चुप हो गया...। कोई और होता तो तर्क-कुतर्क कुछ भी देकर भारत को महान साबित करने के लिए कोशिश की जा सकती थी। लेकिन यहां सामना खुद से ही था, खुद को अंधेरे में रखें भी तो कैसे। यकीन मानिए, कुछ भी जवाब नहीं सूझा। लगा कि जो भी तर्क दूंगा वो खुद को दिलासा देने के सिवा कुछ नहीं होंगे। किस बात की दुहाई दूं मैं? देश का वर्तमान तो डांवाडोल है ही और इस हिसाब से भविष्य भी अंधकार में है। तो फिर क्या क्या देश के "गौरवशाली" इतिहास का बखान करूं जिसमें गर्व करने लायक 'शून्य' को छोड़कर कुछ है ही नहीं। थोड़ी देर मैं चुप रहा और यही सब कुछ सोचता रहा। अंतर्मन ने मेरी दशा समझ ली और वो अपनी हंसी रोकते हुए अब गंभीर हो चुका था। उस शाम इसी विषय पर आत्मसंवाद हुआ जो निष्कर्ष जो निकला वो मैंने फेसबुक पर अपडेट कर दिया।
मुझे अपने देश से प्यार है , बहुत प्यार है लेकिन गर्व नहीं । जिस भूमि में मैंने जन्म लिया, जहां मेरी परवरिश हुई उससे प्यार होना स्वाभाविक है। लेकिन प्यार का मतलब ये नहीं है कि आप अंधे ही हो जाएं।
हम लोग बचपन से कहते, रटते आ रहे हैं भारत महान है, हमें भारतीय होने पर गर्व है। बिना सोचे-समझे हम ये नारा बुलंद करते हैं। लेकिन कभी सोचा है कि महानता का अर्थ क्या होता है और गर्व कैसे होता है। महानता श्रेष्ठता की परिचायक है। क्या हम श्रेष्ठ हैं? असलीयत ये है कि भारत को महान कह देने की आड़ में हम उसकी तमाम कमियों और बुराइयों को छिपा देते हैं। साथ ही गर्व एक ऐसा भाव है जो अंदर से आता है। कोई बड़ी उपलब्धि हासिल करने पर ये भाव उमड़ आता है। एक ओर हमारा देश अभी भी अशिक्षा, संकीर्णता, कुरीतियों, गरीबी, धर्मांधता, भ्रष्टाचार और ऐसी ही अगनित समस्याओं से जूझ रहा है। ऐसे में गर्व वाली भावना कहां से आ रही है? हां, कुछ एक व्यक्तिगत या विशिष्ट उपलब्धियों पर गर्व किया जाता है लेकिन संपूर्ण राष्ट् पर नहीं। अगर फिर भी किसी को गर्व होता होता है तो वह उसका भ्रम है। वह False Feeling है।
जब भारत तमाम बुराइयों से मुक्त होगा, लोगों का आर्थिक और सामाजिक जीवन स्तर अच्छा होगा और साथ ही सभी मामलों में आत्मनिर्भर होकर पश्चिमी देशों की ओर देखना बंद करेगा तभी भारत महान बन पाएगा और तभी हर मुझे उस पर गर्व होगा। लेकिन ये सब काम ऐसे नहीं होने वाला, हम में से हर किसी को पहले ये स्वीकार करना होगा कि भारत अभी महान नहीं है। इसके बाद हमें नागरिक कर्तव्यों का पालन करते हुए अपने जीवन स्तर को सुधारना होगा। तभी देश तरक्की करेगा और महान बनेगा। हम भले ही गर्व न कर पाएं लेकिन हमारी आने वाली पीढ़ियां ज़रूर देश पर गर्व कर पाएंगी। हां, अगर आप और हम चाहें तो अभी भी खुद को अंधेरे में रखकर देश पर गर्व होने का वहम पाल सकते हैं। आज तक यही तो होता आया है।
फेसबुक पर जो लिखा था उस बात पर मज़बूती से बना हुआ हूं। सच कहता हूं मुझे भारतीय होने पर गर्व नहीं है। दरअसल पिछले रविवार इस्कॉन टैंपल के पास वाले टीले पर गया था। ईस्ट ऑफ कैलाश में स्थित इस जगह की ऊंचाई आसपास के इलाके से थोड़ी ज्यादा है। अक्सर वहीं एकांत में बैठकर मनन और आत्मसंवाद किया करता हूं। उस रोज़ भी एक शिला पर बैठकर दूर जगमगा रहे नेहरू स्टेडियम को देख रहा था। अचानक कुछ बच्चे खेलते-खेलते वहां आए और उनमें से एक पत्थर पर चॉक से कुछ लिखने लग गया। पहले तो उसने कुछ भी ड्राइंग बनाई और साथ में अपना नाम लिख दिया। फिर वो दूसरे पत्थर की ओर गया और वहां लिखा- मेरा भारत महान..। इस बच्चे की उम्र मुश्किल से 7-8 साल रही होगी। मैं सोच रहा था कि इस बालक को ये मालूम है कि इसने क्या लिखा... क्या ये महान शब्द का आशय समझता होगा। तभी अंदर से आवाज़ आई, "इस बालक के बारे में क्या सोचता है, अपने बारे में बता... क्या भारत महान है?"
"ओह! ये कैसा सवाल.... भारत सनातन काल से महान है.. इसकी कला, संस्कृति..." अभी मैं अपन बात पूरी भी नहीं कर पाया था कि अंतर्मन जोर से हंस पड़ा..."हा हा हा हा..... ।"
मैं चुप हो गया...। कोई और होता तो तर्क-कुतर्क कुछ भी देकर भारत को महान साबित करने के लिए कोशिश की जा सकती थी। लेकिन यहां सामना खुद से ही था, खुद को अंधेरे में रखें भी तो कैसे। यकीन मानिए, कुछ भी जवाब नहीं सूझा। लगा कि जो भी तर्क दूंगा वो खुद को दिलासा देने के सिवा कुछ नहीं होंगे। किस बात की दुहाई दूं मैं? देश का वर्तमान तो डांवाडोल है ही और इस हिसाब से भविष्य भी अंधकार में है। तो फिर क्या क्या देश के "गौरवशाली" इतिहास का बखान करूं जिसमें गर्व करने लायक 'शून्य' को छोड़कर कुछ है ही नहीं। थोड़ी देर मैं चुप रहा और यही सब कुछ सोचता रहा। अंतर्मन ने मेरी दशा समझ ली और वो अपनी हंसी रोकते हुए अब गंभीर हो चुका था। उस शाम इसी विषय पर आत्मसंवाद हुआ जो निष्कर्ष जो निकला वो मैंने फेसबुक पर अपडेट कर दिया।
मुझे अपने देश से प्यार है , बहुत प्यार है लेकिन गर्व नहीं । जिस भूमि में मैंने जन्म लिया, जहां मेरी परवरिश हुई उससे प्यार होना स्वाभाविक है। लेकिन प्यार का मतलब ये नहीं है कि आप अंधे ही हो जाएं।
हम लोग बचपन से कहते, रटते आ रहे हैं भारत महान है, हमें भारतीय होने पर गर्व है। बिना सोचे-समझे हम ये नारा बुलंद करते हैं। लेकिन कभी सोचा है कि महानता का अर्थ क्या होता है और गर्व कैसे होता है। महानता श्रेष्ठता की परिचायक है। क्या हम श्रेष्ठ हैं? असलीयत ये है कि भारत को महान कह देने की आड़ में हम उसकी तमाम कमियों और बुराइयों को छिपा देते हैं। साथ ही गर्व एक ऐसा भाव है जो अंदर से आता है। कोई बड़ी उपलब्धि हासिल करने पर ये भाव उमड़ आता है। एक ओर हमारा देश अभी भी अशिक्षा, संकीर्णता, कुरीतियों, गरीबी, धर्मांधता, भ्रष्टाचार और ऐसी ही अगनित समस्याओं से जूझ रहा है। ऐसे में गर्व वाली भावना कहां से आ रही है? हां, कुछ एक व्यक्तिगत या विशिष्ट उपलब्धियों पर गर्व किया जाता है लेकिन संपूर्ण राष्ट् पर नहीं। अगर फिर भी किसी को गर्व होता होता है तो वह उसका भ्रम है। वह False Feeling है।
जब भारत तमाम बुराइयों से मुक्त होगा, लोगों का आर्थिक और सामाजिक जीवन स्तर अच्छा होगा और साथ ही सभी मामलों में आत्मनिर्भर होकर पश्चिमी देशों की ओर देखना बंद करेगा तभी भारत महान बन पाएगा और तभी हर मुझे उस पर गर्व होगा। लेकिन ये सब काम ऐसे नहीं होने वाला, हम में से हर किसी को पहले ये स्वीकार करना होगा कि भारत अभी महान नहीं है। इसके बाद हमें नागरिक कर्तव्यों का पालन करते हुए अपने जीवन स्तर को सुधारना होगा। तभी देश तरक्की करेगा और महान बनेगा। हम भले ही गर्व न कर पाएं लेकिन हमारी आने वाली पीढ़ियां ज़रूर देश पर गर्व कर पाएंगी। हां, अगर आप और हम चाहें तो अभी भी खुद को अंधेरे में रखकर देश पर गर्व होने का वहम पाल सकते हैं। आज तक यही तो होता आया है।
बकवास
सही कहा दुम गद्दार ही हो
आपका लेख काफी हद तक आज की युवा पीढ़ी की मनोदशा को चित्रित करता हैं...मुझे आपका ये कथन अच्छा लगा की हम अपने देश से प्रेम करते हैं लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं की हम उस पर गर्व कर सकें....जहाँ तक मैं सोचता हूँ तो हमारी गर्व मिश्रित महानता तो आज़ादी के साथ ही समाप्त हो गयी थी....उसके बात तो देश में नौकरशाही और राजनीति का ऐसा घालमेल हुआ की आज की पीढ़ी ""मेरा भारत महान" के साथ "सारे नेता बेईमान" कहना नहीं भूलती. शायद उन्हें लगाता हैं की भारत इसीलिए महान हैं की यहाँ कोई भी नेता ईमानदार नहीं हैं....
हम तो ना तो गर्व की बात करते हैं और ना ही प्रेम की बस बात करते हैं तो केवल कर्तव्य की। जैसा भी है यह देश और यहां के नागरिक सब हमारे हैं और हमें ही इन्हें ठीक करना है।
अब तो युवा पीढ़ी ही सुधार ला सकती है.
meri salah hai ki
rajiv dixit ji ke vyakhyan sune.
http://ankurthoughts.blogspot.com/2010/08/blog-post_02.html
aadarsh bhai apka lekh padke bohot acha laga..hum log aksar aankhein moond kar kisi bhi cheez ko maan lete hain..chahe woh dharm ho,chahe desh, chahe woh be-buniyad kathan jo ki peedi dar peedi hume saump diye jaate hain..par jaise aapne is lekh mein har baat par sawaal poocha usse yeh baat saaf hai ki aap bhed bakriyon ki tarah zindagi nahin jeete ho...bohot badiya yun hi likhte rahiye
आपको गद्दार कहने वाले भी मुंह छिपा कर गद्दार कह रहे हैं.. क्या बात है.. :)
आपका कथन बिल्कुल सही है. मैं तो आपसे एक कदम आगे जा कर ये भी खुले तौर पर कहता हूँ कि जब भी किसी सरकारी दफ्तर, चपरासी या बाबु से पाला पड़ता है तो मुझे तो हर बार अपने भारतीय होने पर शर्म महसुस होती है. हमारे देश में इंसान की नहीं बल्कि नेता और अफसरशाह की ही कद्र होती है. भारतीय होंने पर गर्व हो इसके लिए सपनो के भारत का निर्माण करना पड़ेगा.
आपने एक बात बिलकुल सही कही कि हम सब अपने देश से बहुत प्यार करते हैं पर गर्व नहीं करते...आज के युग के हर युवा की सोच यही होती जा रही है...लेकिन आज भी, कुछ तो है जो हमे इसी देश से, अपनी मातृभूमि से जोड़े हुए है...ये हमारा सर्वोच्च कर्त्तव्य बनता है कि अपने देश कि अच्छाइयों पर गर्व करें और बुराइयों पर उसे सुधारने की प्रबल कोशिश...
आदर्श,
ज़ाहिर है आप देश भक्त हैं. मुझे कोई संदेह नहीं. और आपके द्वारा चिह्नित की गयी समस्याओं को भी नकारा नहीं जा सकता... लेकिन दोस्त, क्या ये अपने आप में गर्व की बात नहीं है के इतने विरोधाभासों के बावजूद हिन्दुस्तान एक सचाई है! हम हैं!!!!!!! थोडा सोचो दोस्त, ये अपने आप में उपलब्धि है!
यार मैं बेसिकली एक खुशमिजाज़ इंसान हूँ, ज्यादा टेंशन नहीं लेता.... मगर तुम्हे पेसिमिसटिक देख कर रुक नहीं पाया....
मुझे अपने मुल्क से मुहब्बत है, और गर्व भी है! ज़बरदस्ती कोई नहीं, पर यकीन मत खोना दोस्त..... एक इल्तेजाह है!
"कोई मुल्क अच्छा नहीं होता, उसे अच्छा बनाना पड़ता है", जाने कौन सी फ़िल्म का डाइलोग है, लेकिन यहाँ प्रासंगिक है!
खुश रहो!
जय हिंद!
आदर्श भाई
वो कहते है ना की "एक गन्दी मछली सारे तालाब को गन्दा कर देती है ....!!!"
बस कुछ ऐसा ही हो रहा है हमारे भारतवर्ष में ...
एक और तो हमारा देश हर मुश्किलों से, हर क्षेत्र में दुसरे देशो से आगे बढ़ रहा है......
जिसकी वजह से सारे देशो पर अपनी साख छोड़ रहा है
वही दूसरी और हमारे देश के नेता और कुछ उनके ही भाई लोग अपने ही भारत को लूट रहे है
और अपने खाते भर रहे है.
आप सही हो आदर्श भाई
आज मुझे भी लगता है की हाँ मुझे अपने भारत से प्यार है और गर्व भी है
पर यहाँ की उन गन्दी मछलियों की वजह से मै पुरे भारत को तो गन्दा नही कह सकता हु ?
आज करोडो भारतीय भारत के बाहर और भारत में रहकर हरपल देश का विकास करने मै लगे है
अब हम उनकी उम्मीदों को तो नही तोड़ सकते है ना....??
मुझे अपने भारत पर गर्व था, हे और रहेगा
बस फर्क इतना है की मुझे उस दिन का इंतज़ार है जब
आपको और आप जैसे भारतीयों को भी गर्व हो जाए मतलब आप जिस कमी को भारत मै देखते हो वो कम हो जाए, क्यूंकि वो ख़त्म तो हो नही सकती है
यही सच्चाई है
सबका अपना अपना नजरिया है ....
"कोई कहता है की गिलास आधा भरा है और कोई कहता है की गिलास आधा तो भरा है ना"
और अब ये लगता हे की वो दिन दूर नही है जब आप भी भारत पर गर्व महसूस करेंगे .....
_विपिन