बादलों से सजा अंबर
हवा में आई ठंडक
बेदम सूरज की किरणें
बारिश की फुहारें
धुले हुए पेड़-पौधे
ताजा उगी हरी घास
छत से गिरती जलधारा
आंगन में आई फिसलन
पानी के ये छपड़े
धुली हुई काली सड़क
नदियों का मटमैलापन
और उनका संगीत
पगडंडियों का साफ़ कीचड़
गिनाने को तो बहुत कुछ है
फिर भी वो कहते हैं
कि नया कुछ भी नहीं है...
(नोट- दिल्ली वालों के लिए नहीं है)
हवा में आई ठंडक
बेदम सूरज की किरणें
बारिश की फुहारें
धुले हुए पेड़-पौधे
ताजा उगी हरी घास
छत से गिरती जलधारा
आंगन में आई फिसलन
पानी के ये छपड़े
धुली हुई काली सड़क
नदियों का मटमैलापन
और उनका संगीत
पगडंडियों का साफ़ कीचड़
गिनाने को तो बहुत कुछ है
फिर भी वो कहते हैं
कि नया कुछ भी नहीं है...
(नोट- दिल्ली वालों के लिए नहीं है)
Nice My Dear Yaad Aa rahi Hai himachal ki lagta hai
बहुत सुन्दर रचना!! बधाई।
बहुत सुन्दर प्रभु....आखिर इस सावन में आपको घर की याद आ ही गयी.....इस रचना में जो सबसे सुन्दर लाइन हैं वो हैं (नोट- दिल्ली वालों के लिए नहीं है)......बधाई महाराज
GREAT
kya baat aadarash bhai kisi ne ye kah diya tha kya ki ye kavita delhi par likhi gayi hai jo apko alag se mention karne ki jarurat padi
बेहतरीन रचना...
भई वाह मौसम के हिसाब से कविता लिखी है....ये तो सच है कि दिल्ली वालों के लिये नहीं है...पर आजकल सच बताउं दिल्ली का यही हाल है
हाहाहहाहा