गोपाल सिंह नेगी
इसे मेरा दुर्भाग्य कहिए या क्षीण स्मृति का परिणाम कि मुझे उन कवि का नाम याद नहीं आ रहा जिनकी ये पंक्तियाँ मैं अक्सर गुनगुनाता हूँ-

"काली घटा का घमंड घटा, नभ मंडल तारक वृन्द खिले"

दरअसल इस कविता याद होने के पीछे मुख्य रूप से दो कारण हैं।
पहला तो ये कि मुझे अलंकार पढ़ने और समझने का बड़ा शौक था। हमारे आचार्य जी जब कभी यमक अलंकार की व्याख्या करते थे तो इन्हीं पंक्तियों का उदहारण देकर समझाते थे। दूसरा कारण ये कि मैंने अभी तक अपने जीवन में अधिकांश शरद् ऋतुएं पहाड़ों में ही देखी हैं और
मैंने वास्तव में काली घटाओं का घमंड देखा है। लेकिन पिछले तीन साल के दिल्ली प्रवास के दौरान मुझे अपनी आंखों देखी घटनाओं पर भी संदेह होने लगा है। ऐसा लगता है मानो जो कुछ मैंने पहाड़ों में देखा है और कवि ने जिस भावना से ओत-प्रोत होकर ये कविता लिखी वो काल्पनिक है।

ये संदेह करने की पुख्ता वजह भी है। वो ये कि पिछले तीन साल में मैंने कभी भी राजधानी क्षेत्र में काली घटाओं को गर्व करते नहीं देखा। ऐसा प्रतीत होता है मानो मेरे दिल्ली आगमन से पूर्व ही किसी ने उनकी अस्मिता तार-तार कर दी हो और अब वो किसी को मुंह दिखने के काबिल नहीं रही। या फिर आसमान से प्रेम-प्रसंग के चलते उन्हें भी ओनर किलिंग की भेंट चढ़ा दिया गया हो। खैर यदा-कदा कभी आसमान में उनका आगमन भी होता भी है तो लगता है मानो किसी रूढ़िवादी परिवार की नवविवाहिता घूंघट डाले चाय देने आई और बिना चेहरा दिखाए चली गई। उनके इस क्षणिक अस्तित्व का परिणाम यत्र-तत्र-सर्वत्र व्याप्त कीचड़ और चहुं ओर बाधित परिवहन व्यवस्था के रूप में देखने को मिलता है।


बहरहाल मैं बात कविता की कर रहा था, बड़ी ही सुन्दर कविता है- नभ मंडल तारक वृन्द खिले...। यहां दिल्ली में तो नभ मंडल ही दृष्टिगोचर नहीं हो पाता। तारक वृन्दो को तो शायद ये भी ज्ञात नहीं कि वो विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की राजधानी में अपना प्रकाश बिखेर रहे हैं। ओह! मैं फिर से मुद्दे से भटक गया। बहरहाल मैं कवि का नाम याद करने का प्रयास करता हूँ और अगर आपको इसके विपरीत कोई कविता सूझे तो मुझे अवश्य बताइएगा, जैसे- "काली घटा का रंग उड़ा, नभ मंडल तारक वृन्द बुझे....." यहां तो कुछ ऐसा ही है न?
3 Responses
  1. प्रभु! आपकी रचनाएं पढ़ने में हमेशा ही आनंद आता है। दिल खुश हो गया.. जय हो..


  2. Neha Pathak Says:

    ye panktiya hamne bhi yamak alankaar ko samajhne ke liye hi padhi thi....


  3. Anonymous Says:

    ye panktiya shreedhar pathak dwara rachit hain!