उस रात मुझे ये नहीं मालूम था कि अपने फ्लोर पर मैं अकेला हूं। रोज़ की तरह ऑफिस से आकर सोने की तैयारी कर रहा था। तभी कहीं से चूड़ियों के खनकने की आवाज़ आने लगी। मैंने सोचा कि बगल वाले कमरे में कोई लैपटॉप पर फिल्म देख रहा होगा या फिर गाने सुन रहा होगा। मैंने ध्यान नहीं दिया और आराम से रजाई तानकार सो गया। तभी किसी ने मेरा दरवाज़ा खटखटाया। अब इतनी ठंड में कौन बाहर निकले... ये सोचकर मैं दुबका रहा। दोबारा काफी देर तक कोई दस्तक नहीं सुनाई दी। पांच-छह मिनट बाद, अभी मेरा आंख लगी ही थी कि किसी ने मेरे दरवाज़े पर लात मार दी..। मैं गुस्से से तिलमिलाता हुआ उठा। जो भी था मैं उसे खरी-खोटी सुनाने वाला था। मुझे लगा कि बगल वाले कमरे में आए नए लड़के ने ये दरवाज़े पर लात मारी है। वो पहले भी कई लोगों से उलझ चुका था..। मैंने ठान ली थी कि स**ले को सबक सिखा कर दम लूंगा। दरवाज़े पर लात मारने की आवाज़ आने और मेरे उठकर दरवाज़ा खोलने के बीच में 2 सेकेंड से भी कम वक्त बीता होगा..। मैं तुरंत दरवाज़ा खोला..., बाहर देखा तो पूरी गैलरी में कोई नहीं था। फिर मैंने दूसरे कमरों में जाना शुरु किया। मैंने देखा की मेरे फ्लोर पर कोई भी नहीं है। कुछ लोग छुट्टियां मनाने घर गए हैं तो कुछ थ्री ईडियट फिल्म का नाईट शो देखने गए हैं..। फिर मैं ऊपर वाले फ्लोर पर गया.. वहां देखा तो एक पढ़ाकू लड़का अपनी रजाई में दुबककर कुछ रटने में लगा है। मुझसे नीचे वाले फ्लोर पर खुद अंकल रहते हैं... और सबसे नीचे वाले फ्लोर से आने वाला आदमी इतनी जल्दी भाग जाए ऐसा हो नहीं सकता।
मैं चुपचाप आकर सो गया। सुबह उठकर मैंने रात की घटना के बारे में सोचना शुरु किया। इतने में अंकल ऊपर आ गए। उन्होंने मुझसे पूछा कि भई तुममें से रात को दरवाज़े को कौन लात मार रहा था? उनके इस सवाल से मुझे एक संतुष्टि हुई कि कम से कम मैं किसी मानसिक भ्रम या रोग का शिकार तो नहीं हूं। मैंने उन्हें पूरी घटना कह सुनाई... सुनते ही वो हंसते हुए वापस चले गए। खैर, इस घटना के बाद भी कई दिन तक रोज़ रात को सिक्का गिरने के बाद आने वाले शोर की तरह की आवाज़ आती रही। रात में कई बार ऐसी आवाज़ आती जैसे मेरे कमरे में किसी ने सिक्का गिराया हो। मैंने कई बार कमरे की लाइट ऑन करके भी देखा लेकिन कहीं कोई सिक्का नहीं गिरता था। लेकिन इसी तरह की आवाज़ मेरे रूममेट को भी आती थी। इस घटना ने एक बार फिर भूत की चर्चाओं को पेइंग गेस्ट में गर्मा दिया।
इन घटनाओं के बाद ही मैंने इस अनुभव के बारे में लिखना भी शुरु किया। लेकिन आपको बता दूं कि इस भुतहा अनुभव के बारे में मैं कभी भी अपने पीजी में रहकर नहीं लिख पाया। एक रात जब मैं इस कहानी को लिखने लगा तो मेरा लैपटॉप अपने आप बंद हो गया। बैटरी भी फुल थी और कोई समस्या भी नहीं। फिर भी ऐसा कैसे हुआ? मैंने उसे ऑन करने की पूरी कोशिश की लेकिन ऑन नहीं हुआ। मैं वैसे ही सो गया, अगली सुबह मैंने जैसे ही लैपटॉप ऑन करने का बटन दबाया, वो तुरंत ऑन हो गया। ये घटना भी चौंकाने वाली रही। अगरे दिन मैं फिर इस बारे में लिखने बैठा तो लैपटॉप की स्क्रीन पर लाइनें आने लगीं। मैंने सोचा शायद मोबाइल की वजह से या किसी और वजह से ऐसा हो रहा है। लेकिन मोबाइल बंद करने के बाद भी ऐसा जारी रहा है। मैं हैरान था, ऐसा कैसे हो सकता है, पिछले डेढ साल से तो ऐसा नहीं हुआ...। लेकिन मैंने घबराकर लैपटॉप ऑफ कर दिया..। उसके बाद मैंने ये अनुभव साइबर कैफे से लिखकर ही पोस्ट किया...। पेइंग गेस्ट में रहकर इस बारे में लिखने की हिम्मत नहीं हुई।
(इन घटनाओं के पीछे क्या वजह है, इस बारे में कई धारणाएं हैं। कुछ के बारे मे आपको मैं पहले बता चुका हूं, वहीं कुछ के बारे में अगली पोस्ट में बताऊंगा। और जो कारण मैं बताने जा रहा हूं, संभवत: वह ही पेइंग गेस्ट को भुतहा बना रहे हैं)
सत्य घटनाओं पर आधारित इस सीरीज को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
मैं चुपचाप आकर सो गया। सुबह उठकर मैंने रात की घटना के बारे में सोचना शुरु किया। इतने में अंकल ऊपर आ गए। उन्होंने मुझसे पूछा कि भई तुममें से रात को दरवाज़े को कौन लात मार रहा था? उनके इस सवाल से मुझे एक संतुष्टि हुई कि कम से कम मैं किसी मानसिक भ्रम या रोग का शिकार तो नहीं हूं। मैंने उन्हें पूरी घटना कह सुनाई... सुनते ही वो हंसते हुए वापस चले गए। खैर, इस घटना के बाद भी कई दिन तक रोज़ रात को सिक्का गिरने के बाद आने वाले शोर की तरह की आवाज़ आती रही। रात में कई बार ऐसी आवाज़ आती जैसे मेरे कमरे में किसी ने सिक्का गिराया हो। मैंने कई बार कमरे की लाइट ऑन करके भी देखा लेकिन कहीं कोई सिक्का नहीं गिरता था। लेकिन इसी तरह की आवाज़ मेरे रूममेट को भी आती थी। इस घटना ने एक बार फिर भूत की चर्चाओं को पेइंग गेस्ट में गर्मा दिया।
इन घटनाओं के बाद ही मैंने इस अनुभव के बारे में लिखना भी शुरु किया। लेकिन आपको बता दूं कि इस भुतहा अनुभव के बारे में मैं कभी भी अपने पीजी में रहकर नहीं लिख पाया। एक रात जब मैं इस कहानी को लिखने लगा तो मेरा लैपटॉप अपने आप बंद हो गया। बैटरी भी फुल थी और कोई समस्या भी नहीं। फिर भी ऐसा कैसे हुआ? मैंने उसे ऑन करने की पूरी कोशिश की लेकिन ऑन नहीं हुआ। मैं वैसे ही सो गया, अगली सुबह मैंने जैसे ही लैपटॉप ऑन करने का बटन दबाया, वो तुरंत ऑन हो गया। ये घटना भी चौंकाने वाली रही। अगरे दिन मैं फिर इस बारे में लिखने बैठा तो लैपटॉप की स्क्रीन पर लाइनें आने लगीं। मैंने सोचा शायद मोबाइल की वजह से या किसी और वजह से ऐसा हो रहा है। लेकिन मोबाइल बंद करने के बाद भी ऐसा जारी रहा है। मैं हैरान था, ऐसा कैसे हो सकता है, पिछले डेढ साल से तो ऐसा नहीं हुआ...। लेकिन मैंने घबराकर लैपटॉप ऑफ कर दिया..। उसके बाद मैंने ये अनुभव साइबर कैफे से लिखकर ही पोस्ट किया...। पेइंग गेस्ट में रहकर इस बारे में लिखने की हिम्मत नहीं हुई।
(इन घटनाओं के पीछे क्या वजह है, इस बारे में कई धारणाएं हैं। कुछ के बारे मे आपको मैं पहले बता चुका हूं, वहीं कुछ के बारे में अगली पोस्ट में बताऊंगा। और जो कारण मैं बताने जा रहा हूं, संभवत: वह ही पेइंग गेस्ट को भुतहा बना रहे हैं)
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बहुत उम्दा ।
बधाई स्वीकारें ।
आदमी से बड़ा भूत कोई नहीं होता।
आप के लेपटाप मै भुतनी घुस गई है.... अब इस का उपाय बापू आसा राम के सिवा कोई नही कर सक्ता
फिर कहानी को अधूरा छोड़ दिया
कब पूरी होगी
हा हा हा हा
सभी बातें मनगड़ंत है। पक्का अगली पोस्ट में आप कहोगे कि ये सब झूठ था।
भाटिया जी, आपकी टिप्पणी हर बार की तरह बहुत मज़ेदार है... :)
अगर आपको इस विषय पर लिखना ही था तो बेहतर लिखते। मतलब मेरा ये मानना है कि आप इसे और अच्छा लिख सकते थे। खौफ झलक नहीं रहा इसमें। गुस्ताखी माफ
अरे रे.. ये गज़ब किस्सा रहा..
आजतक तो केवल फिल्मों में ही देखा था.. कारण भी बताईयेगा..
कोई छुपी बात भी हो सकती है..
देखते हैं खैर..
सही है मज़ा आ रहा है पढ़ने वालों को भी और लिखने वाले को भी क्यों सही कहां न, ऐसी चीजे लिखत वक्त सिहरन सी रहती है तबी ख्याल निकलकर आते है
ापने तो हमे भी डरा दिया हमारा कमेन्ट देख कर कहीं भू9त यहाँ भी न आ जाये। शुभकामनायें ध्यान रखें
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अभी तो केवल पढ़ रहा हूँ मित्र, बाद में ही शायद कुछ कह पाउंगा।
भाई साहब अगर उस रात आप ही थ्री एडियेट देखने चले जाते तो भूत खाली कमरे मे लात मरता और वो भी एडियेट कहलाता...
aadarsh bhaiya ye to mujhe pta nahi ki bhoot voot hota hai ya nahi magar apki post kafi interesting lag rahi hai.
आपके किस्सागोई का अन्दाज़ बढ़िया है ।
वैसे मुझे आपके सभी भूतहा लेख अच्छे लगे...पर मैं आपसे पूछना चाहती हूं कि अगर आपके पीजी में लगातार ऐसी घटनाए हो रही है तो आप अपने पीजी को छोड़ क्यों नही देते ?