तत् त्वं असि / बलराम अग्रवाल
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दरवाजा खुलवाने को घंटी बजी। अन्दर से आवाज आयी—“कौन?”
“दरवाजा खोलके देख!”
“भाई, तू है कौन? यह जाने बिना मैं दरवाजा नहीं खोल सकता!”
“ दरवाजा खोले बिना ...
3 months ago
लाजवाब.. चार लाइनों में ही बहुत कुछ कह दिया..
वाह!! बहुत खूब!!
क्यों हो गया ना......
मैं तो पहले ही जानता था की ये होगा.....
भैया अब जल्दी से इन चार लाइनो की कहानी पाठकों से सम्मुख प्रस्तुत करो.....
in chaar lino mein hi sab kuchh kah gaye aap... adbhutaas...
kam shabdo main bahut kuch bayan kar diya aapne .....
सही है महाराज समझ रहे है
iska mai kya arth nikaaloo?