जिस पेइंग गेस्ट में मैं रहता हूं, चर्चा है कि उसमें भूत भी रहते हैं..। वैसे भी भूत को किसी ने देखा हो या नहीं, लेकिन उसकी चर्चा हर कोई करता है... ठीक हमारे ब्लॉग्स की तरह, पढ़ता कोई है नहीं लेकिन टिप्पणी ज़रूर मिल जाती है...। खैर, कहते हैं कि पहले ये लड़कियों का पीजी हुआ करता था.. और जिस कमरे में मैं रहता हूं, उस में रहने वाली एक लड़की ने आत्महत्या कर ली थी...। अब इस बात में कितनी सच्चाई है ये तो ईश्वर जाने या फिर वो पुराना कुक जिसने हमें ये बात बताई थी..।
इस पीजी में भूतों के होने की चर्चा मैं तब से सुना करता था जब मैं यहां नहीं रहता था। मेरे साथ पढ़ने वाले कुछ साथी इस पीजी में रहा करते थे.. और अपने साथ घटे वाकयों की चर्चा किया करते थे। खास बात ये कि इन भूतों का आतंक सर्दियों में रहा करता था। गर्मियों में ये कथित भूतहा घटनाएं एकाएक बंद हो जाती थीं...। लेकिन हर साल सर्दियों में शुरु..।
ये तब की बात है जब मैं यहां नहीं रहता था। दो साल पहले की ही बात है, एक दिन कॉलेज पहुंचा तो उस पीजी में रहने वाले साथी कुछ चर्चा कर रह थे। बात ये थी कि कोई रात को दरवाज़ा खटखटाया करता था..। अगर बाहर निकलकर देखो तो कोई भी नहीं मिलता था..। ऐसा भी नहीं है कि कोई दरवाज़ा खटखटाकर एकदम छिप जाए क्योंकि वहां ऐसा करने की संभावना नहीं थी..। कुछ दिन तक तो सभी इसे शरारत समझते रहे लेकिन बाद में कई लोगों के साथ ऐसा हुआ। आतंक का आलम ये था कि सभी लोग एक ही कमरे में आकर सोने लगे थे। एक कमरें में एकसाथ 8-9 लोग पड़े रहते थे। मैंने भी किसी काम से अपने मित्र से मिलने गया था तो ये नज़ारा देखा था। कई बार पीजी में लंबे-लंबे बाल भी मिला करते थे जो ज़ाहिर है किसी लड़के के नहीं हो सकते। वैसे भी ये सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है...।
इसके बाद की एक घटना ने सबको परेशान कर दिया। जिस कमरे में मैं इन दिनों रह रहा हूं, उसी कमरे में उस वक्त रोहित नाम का एक लड़का रहता था। उससे हमारे साथियों की बोलचाल भी नहीं थी। एक दिन वो देर रात तक बाहर गलियारे में घूमता रहा और अपने कमरे की तरफ नहीं जा रहा था। सुबह के चार बजे का वक्त था..। वह गलियारे में लगातार टहलता जा रहा था..। मेरे साथियों ने खिड़की से झांककर देखा तो उसके चेहरे की हवाईयां उड़ रही थीं..। वो बार-बार अपने कमरे की तरफ झांककर देख रहा था और वापस हट जा रहा था..। सुबह हो गई और वो अपने कमरे में घुसा, सामान पैक किया और निकल गया। उस दिन के बाद वो वापस नहीं लौटा..। वो पीजी क्या दिल्ली छोड़कर ही चला गया..। इस घटना के बाद सभी और डर गए थे..। लेकिन सर्दियां खत्म होने के साथ ही वो रहस्यमयी आवाज़ें भी बंद हो गईं और सब कुछ सामान्य हो गया।
इसके बाद 2007 के अक्तूबर महीने में किसी कारणवश मुझे पेइंग गेस्ट ज्वाइन करना पड़ा। मुझे वही कमरा मिला जिस कमरे में कथित तौर पर लड़की ने आत्महत्या की थी। वही कमरा जिसमें रोहित रहता था। इस कमरे मे मेरा दोस्त अभिषेक भी रहा करता था। वो भी आवाज़ों के बारे में बात करता था लेकिन ध्यान नहीं देता था। उसका कहना था कि आवाज तो आती है लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ जो डराए या फिर परेशान करे। फिर सर्दियां भी आ गईं...। मैं इंतज़ार करने लगा कि कब आवाज़ें आएं..। एक दिन मैं सोया था कि गलियारे में किसी के चलने की आवाज़ आने लगी..। मैंने दरवाज़ा धीरे से खोला और बाहर देखा तो कोई भी नहीं था..। लेकिन आवाज़ों का आना रुका नहीं...। मैं थोड़ा सा घबराया.. ओsम नम: शिवाय का जाप करते हुए आगे बढ़ा...। बाहर ग़ज़ब की धुंध थी और बालकॉनी में को भी अपने आगोश में ले चुकी थी..। आवाज़ें लगातार आ रही थी... लेकिन बाहर कुछ दिखाई नहीं दे रहा था...। मेरी हिम्मत नहीं हुई आगे बढ़ने की...। मैं आहिस्ता से मुड़ा और वापस कमरे में आकर सो गया...। लेकिन मैंने इस बात का जिक्र नहीं किया..। इसके बाद मैं इस बात को भूल गया..।
लगभग एक सप्ताह बाद मैं कमरे में अकेला था..। दिसंबर माह की बात थी और पेइंग गेस्ट लगभग खाली था। अपने फ्लोर पर मैं अकेला ही था क्योंकि बाकी सभी क्रिसमस की छुट्टियां होने पर घर गए हुए थे। रात के करीब एक बज रहे थे.. दीवार का सहारा लेकर बिस्तर पर बैठा था और लैपटॉप पर फिल्म देख रहा था..। इतने में ठीक मेरे सिर के पीछे वाली दीवार पर बाहर की तरफ से ठक-ठक की आवाज़ आने लगी.। मैंने सोचा कि शायद पीछे वाले घर में कोई कुछ कर रहा होगा.. कील ठोंक रहा होगा..। मेरा सिर दीवार से टिका हुआ था इसलिए दीवार में हर बार हथौड़े की चोट से होने वाली कंपन को महसूस
कर रहा था..। मैंने ध्यान नहीं दिया और फिल्म देखने के बाद सो गया...। अगले दिन सुबह उठा... मैंने देखा कि जिस तरङ से आवाज़ आ रही थी उस तरफ तो कोई घर ही नहीं है..। मेरा कमरा तीसरे फ्लोर पर है और जिस तरफ से आवाज़ आ रही है उस तरफ वाला घर सिंगल स्टोरी है..। यानी सवाल ही पैदा नहीं होता कि कोई यहां पर कुछ कर सके...। इस बात ने दिल में थोड़ी घबराहट पैदा की...। अगले ही दिन मैंने तय किया कि अकेले नहीं सोऊंगा और अपने एक मित्र के यहां चला गया..। जब मेरा रूममेट घर से लौटा तभी वापस पीजी आया..।
इसके बाद वो सर्दियां गईं और इस बार की सर्दियां शुरु...। नवंबर महीने से ये सिलसिला फिर शुरु है...। लेकिन इस बार कुछ और भी हो रहा है..। इस बारे में अगली पोस्ट में बताऊंगा...।
इस पीजी में भूतों के होने की चर्चा मैं तब से सुना करता था जब मैं यहां नहीं रहता था। मेरे साथ पढ़ने वाले कुछ साथी इस पीजी में रहा करते थे.. और अपने साथ घटे वाकयों की चर्चा किया करते थे। खास बात ये कि इन भूतों का आतंक सर्दियों में रहा करता था। गर्मियों में ये कथित भूतहा घटनाएं एकाएक बंद हो जाती थीं...। लेकिन हर साल सर्दियों में शुरु..।
ये तब की बात है जब मैं यहां नहीं रहता था। दो साल पहले की ही बात है, एक दिन कॉलेज पहुंचा तो उस पीजी में रहने वाले साथी कुछ चर्चा कर रह थे। बात ये थी कि कोई रात को दरवाज़ा खटखटाया करता था..। अगर बाहर निकलकर देखो तो कोई भी नहीं मिलता था..। ऐसा भी नहीं है कि कोई दरवाज़ा खटखटाकर एकदम छिप जाए क्योंकि वहां ऐसा करने की संभावना नहीं थी..। कुछ दिन तक तो सभी इसे शरारत समझते रहे लेकिन बाद में कई लोगों के साथ ऐसा हुआ। आतंक का आलम ये था कि सभी लोग एक ही कमरे में आकर सोने लगे थे। एक कमरें में एकसाथ 8-9 लोग पड़े रहते थे। मैंने भी किसी काम से अपने मित्र से मिलने गया था तो ये नज़ारा देखा था। कई बार पीजी में लंबे-लंबे बाल भी मिला करते थे जो ज़ाहिर है किसी लड़के के नहीं हो सकते। वैसे भी ये सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है...।
इसके बाद की एक घटना ने सबको परेशान कर दिया। जिस कमरे में मैं इन दिनों रह रहा हूं, उसी कमरे में उस वक्त रोहित नाम का एक लड़का रहता था। उससे हमारे साथियों की बोलचाल भी नहीं थी। एक दिन वो देर रात तक बाहर गलियारे में घूमता रहा और अपने कमरे की तरफ नहीं जा रहा था। सुबह के चार बजे का वक्त था..। वह गलियारे में लगातार टहलता जा रहा था..। मेरे साथियों ने खिड़की से झांककर देखा तो उसके चेहरे की हवाईयां उड़ रही थीं..। वो बार-बार अपने कमरे की तरफ झांककर देख रहा था और वापस हट जा रहा था..। सुबह हो गई और वो अपने कमरे में घुसा, सामान पैक किया और निकल गया। उस दिन के बाद वो वापस नहीं लौटा..। वो पीजी क्या दिल्ली छोड़कर ही चला गया..। इस घटना के बाद सभी और डर गए थे..। लेकिन सर्दियां खत्म होने के साथ ही वो रहस्यमयी आवाज़ें भी बंद हो गईं और सब कुछ सामान्य हो गया।
इसके बाद 2007 के अक्तूबर महीने में किसी कारणवश मुझे पेइंग गेस्ट ज्वाइन करना पड़ा। मुझे वही कमरा मिला जिस कमरे में कथित तौर पर लड़की ने आत्महत्या की थी। वही कमरा जिसमें रोहित रहता था। इस कमरे मे मेरा दोस्त अभिषेक भी रहा करता था। वो भी आवाज़ों के बारे में बात करता था लेकिन ध्यान नहीं देता था। उसका कहना था कि आवाज तो आती है लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ जो डराए या फिर परेशान करे। फिर सर्दियां भी आ गईं...। मैं इंतज़ार करने लगा कि कब आवाज़ें आएं..। एक दिन मैं सोया था कि गलियारे में किसी के चलने की आवाज़ आने लगी..। मैंने दरवाज़ा धीरे से खोला और बाहर देखा तो कोई भी नहीं था..। लेकिन आवाज़ों का आना रुका नहीं...। मैं थोड़ा सा घबराया.. ओsम नम: शिवाय का जाप करते हुए आगे बढ़ा...। बाहर ग़ज़ब की धुंध थी और बालकॉनी में को भी अपने आगोश में ले चुकी थी..। आवाज़ें लगातार आ रही थी... लेकिन बाहर कुछ दिखाई नहीं दे रहा था...। मेरी हिम्मत नहीं हुई आगे बढ़ने की...। मैं आहिस्ता से मुड़ा और वापस कमरे में आकर सो गया...। लेकिन मैंने इस बात का जिक्र नहीं किया..। इसके बाद मैं इस बात को भूल गया..।
लगभग एक सप्ताह बाद मैं कमरे में अकेला था..। दिसंबर माह की बात थी और पेइंग गेस्ट लगभग खाली था। अपने फ्लोर पर मैं अकेला ही था क्योंकि बाकी सभी क्रिसमस की छुट्टियां होने पर घर गए हुए थे। रात के करीब एक बज रहे थे.. दीवार का सहारा लेकर बिस्तर पर बैठा था और लैपटॉप पर फिल्म देख रहा था..। इतने में ठीक मेरे सिर के पीछे वाली दीवार पर बाहर की तरफ से ठक-ठक की आवाज़ आने लगी.। मैंने सोचा कि शायद पीछे वाले घर में कोई कुछ कर रहा होगा.. कील ठोंक रहा होगा..। मेरा सिर दीवार से टिका हुआ था इसलिए दीवार में हर बार हथौड़े की चोट से होने वाली कंपन को महसूस
कर रहा था..। मैंने ध्यान नहीं दिया और फिल्म देखने के बाद सो गया...। अगले दिन सुबह उठा... मैंने देखा कि जिस तरङ से आवाज़ आ रही थी उस तरफ तो कोई घर ही नहीं है..। मेरा कमरा तीसरे फ्लोर पर है और जिस तरफ से आवाज़ आ रही है उस तरफ वाला घर सिंगल स्टोरी है..। यानी सवाल ही पैदा नहीं होता कि कोई यहां पर कुछ कर सके...। इस बात ने दिल में थोड़ी घबराहट पैदा की...। अगले ही दिन मैंने तय किया कि अकेले नहीं सोऊंगा और अपने एक मित्र के यहां चला गया..। जब मेरा रूममेट घर से लौटा तभी वापस पीजी आया..।
इसके बाद वो सर्दियां गईं और इस बार की सर्दियां शुरु...। नवंबर महीने से ये सिलसिला फिर शुरु है...। लेकिन इस बार कुछ और भी हो रहा है..। इस बारे में अगली पोस्ट में बताऊंगा...।
भूतहा पेइंग गेस्ट....चाहे जो भी हो...पढ़ने में रोमांचक तो है ही....मानना, न मानना अलग बात है......
आपने पेइंग गेस्ट का मुद्दा छेड़ा है, वाकया पूरा पढ़ा :) और मजेदार लगा ! तो इसी पर मैं भी आपको एक इंटरेस्टिंग वाकिया कह लो या फिर जोक के तौर पर ले लो, सुनाता हूँ ! इसे सिर्फ यहाँ मनोरंजन के लिहाज से ही लिख रहा हूँ इसलिए कृपया अन्यथा न ले !
दिल्ली यूनिवर्सिटी के पास की एक मशहूर जगह है(नाम नहीं लूंगा ) जहाँ अक्सर बाहरी प्रान्तों से आये लड़के लडकिया (विद्यार्थी-विद्या की अर्थी उठाने वाले ) पेइंग गेस्ट के तौर पर रहते है ! एक की फ्लोर पर लड़के भी और लडकिया भी ! आइडिया भी बुरा नहीं, क्योंकि इस तरह एक ही फ्लैट को चार पांच लोग शेयर करके रहते है तो कॉस्ट कम आती है ! विद्यार्थी लोग पापा-मम्मी से मिली पॉकेट मनी को इस तरह बचाकर अन्य मनोरजन के कार्यों में खर्च कर पाते है ! इसी तरह एक लड़का लडकी एक फ़्लैट पर रह रहे थे ! कुछ दिनों बाद लड़के की मम्मी बेटे के हाल-चाल जानने आ धमकी ! लड़का-लडकी और मम्मी जब खाना खा रहे थे तो मम्मी जिस शक भरी निगाहों से लडकी को घूरे जा रही थी तो बेटा समझ गया ! उसने मम्मी को समझाया कि अम्मी जो आप समझ रही हो, वैसा बिलकुल भी नहीं है ! यहाँ का कल्चर ही ऐसा है, अत: हम खर्चे कम करने के उद्देश्य से ज्वाइंट में पेईंग गेस्ट बनकर रहते है! साथ खाते है मगर वह अपने कमरे में सोती है और मैं अपने कमरे में.......! मम्मी चली गई तो एक दिन लडकी ने लड़के से कहा, कि मैं यह नहीं कहती कि चांदी की चमचो के बण्डल में से एक चम्मच तुम्हारी मम्मी ले गई, मगर एक चम्मच उसी दिन से गायब है जिस दिन से तुम्हारी मम्मी गई ! अब बेटे ने अपनी मम्मी को संकुचाते हुए फोन लगाया और कहा कि मम्मी मैं यह नहीं कह रहा कि वह चांदी की चम्मच आप इरादतन ले गई, मगर एक बार अप अपना बैग चेक कर लो, हो सकता है कि गलती से चली गई हो आप के बैग में !
उधर से मम्मी का फोन पर जबाब था ; "हरामजादे, मैंने चम्मच लडकी के बेड में चद्दर के नीचे रखी हुई है, अगर वह अपने बेड पर सोती तो उसे कैसे नहीं चम्मच मिलती !"
भूत है या नहीं ये तो नहीं कह सकता लेकिन लिखा रोचकता के साथ है। बढ़िया है। रही बात भूत की तो उसके इरादे भांप लेना
हाहाहाह पीसी साहब गजब का वाकया बताया है हाहहाह मजेदार है
एक ही घटना दो लोगो के लिए अलग अलग हो सकती है....भोगने वाले के लिए अलग और सुनने वाले के लिए अलग....।अगली पोस्ट की प्रतीक्षा रहेगी.।
गोदियाल जी का वाकया मजेदार है...
अजी कई बार दिल का वहम भी होता है, आप शायद जरुर कोई भुता फ़िल्म देख रहे होंगे, या नींद मै होंगे, अगर ज्यादा डर लगे तो ..... लगे फ़िर हम क्या कर सकते है.
गोदियाल जी की टिपण्णी मजेदार है
बात केवल सर्दियों की है. अत: थोड़ा जांच करें कहीं कोई कीड़ा आदि जो केवल सर्दियों में सक्रिय हो जाता हो और दीवारों दरवाजों में घुसकर आवाज करता हो. क्या भूतों को गर्मी से एलर्जी होती है? शायद इसका कोई वैज्ञानिक कारण हो क्योंकि बात केवल सर्दियों में ठक ठक की आवाज की है.
हा हा हा.. पीसी गोदियाल साहब..
क्या वाकया सुनाया है...। मज़ेदार..। बहरहाल इन सर्दियों का अनुभव बाकी है...।
मजेदार है
अरे भाई आप भी भूतों पर यकीन करते हैं? यकीन नहीं होता
अरे मित्र भूत-पिचास के चक्कर में कब पड़ गए....कभी हमें भी अपने पीजी में ठहराओं देखा जाए कि क्या माजरा है।
ek baat samajh me nahi aati hai, ki har Boys hostel kisi samay me girls hostel kyon hua karta hai? aur usame bhi 2-3 kamaron me koi na koi ladki atmhatya kyon ki hui rahti hai??
main baat kar raha hun aise hostel ki jo kam se kam 40-50 sal purana ho aur uska sahi itihas kisi ko pata nahi ho.. mere hostel ke bare me bhi maine college me aisa hi kuchh suna tha.. :)
ये ह्यूमन साइक्लोजी है.. जिस बात को हम नहीं भी मानते, उसके बारे में बार-बार सुनकर अक्सर उसके होने का एहसास होने लगता है... डरने की कोई ज़रूरत नहीं है, ऐसा कुछ भी नहीं होता... लेकिन वाक्या बड़ा ही दिलचस्प है..
aadarsh bhayi aapne to dara hi diya hai... jald hi apni bhutha kahani sunaunga...
वैसे मुझे आपके सभी भूतहा लेख अच्छे लगे...पर मैं आपसे पूछना चाहती हूं कि अगर आपके पीजी में लगातार ऐसी घटनाए हो रही है तो आप अपने पीजी को छोड़ क्यों नही देते ?
वैसे मुझे आपके सभी भूतहा लेख अच्छे लगे...पर मैं आपसे पूछना चाहती हूं कि अगर आपके पीजी में लगातार ऐसी घटनाए हो रही है तो आप अपने पीजी को छोड़ क्यों नही देते ?