3 दिसंबर यानी विकलांगता दिवस... एक ऐसा दिन जब कुछ लोग विकलांगों के बारे में विचार-विमर्श करते हैं, योजनाएं बनाते हैं, कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं और अपनी दरियादिली दिखाते हैं..। जी हां, इस तरह के दिन अब फैशनेबल लोगों के फैशन का हिस्सा बन गए हैं...। मौका तो है लोगों को विकलांगों और उनकी समस्याओं के बारे जागरूक करने का... लेकिन कहीं पर भी ऐसा होता दिखाई नहीं दे रहा...। विकलांगता दिवस के नाम पर कुछ संस्थाएं आज कई तरह के कार्यक्रम आयोजित कर रही हैं...। लेकिन इस सब के बीच इस दिन को मनाने का मुख्य मकसद कहीं गुम होता हुआ नज़र आ रहा है...। किसी को सरकारी ग्रांट की दरकार है तो किसी को फेम चाहिए...। ऐसे दिनों में उन लोगों का तामझाम ज्यादा दिखाई देता है जो बातें ज्यादा करते हैं लेकिन काम कम..। लोग आलीशान होटलों के कमरों में महंगे प्रोजेक्टरों के सामने बैठकर विकलांगों और उनकी समस्या पर चर्चा करते हैं..। घड़ियाली आंसू बहाते हैं और अपनी शाम रंगीन करके चलते बनते हैं...। हालांकि सिर्फ एक दिन इस तरह का आयोजन करने से कुछ नहीं होने वाला... हां, हम और आप अपनी जिम्मेदारी समझ सकते हैं... विकलांगों के प्रति घृणा या उनपर दया करने की ज़रूरत नहीं है... ज़रूरत है उन्हें समझने की... और दूसरों को भी ये समझाने की कि ये भी समाज का हिस्सा हैं... हमारी और आपकी तरह...।
लघुकथा की भाषिक संरचना / बलराम अग्रवाल
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यह लेख मार्च 2024 में प्रकाशित मेरी आलोचनात्मक पुस्तक 'लघुकथा का साहित्य
दर्शन' में संग्रहीत लेख 'लघुकथा की भाषिक संरचना' का उत्तरांश है। पूर्वांश
के लि...
1 week ago
you are hundred percent right Mr. Adasrsh...As I know will poer of a handicapped person's often many times more than a normal person and there is no need to point out that he is a handicapped or physically challenged. If organization give them oppotunity, they will work more efficiently than normal complete person....
hummmmmmm!!!!!
ek dum sahi likha aapne ......aaj kuch log sawamj sewa ke roop mein sahi roop se wo kewal apni sewa ker rahe hai .