दिल्ली के जमरुदपुर में हुए मैट्रो रेल हादसे के पीछे भले ही तकनीकी गड़बड़ियां और लापरवाही वजह बताई जा रही हो लेकिन स्थानीय लोगों का कुछ और ही मानना है। कहा जा रहा है कि दैवीय प्रकोप की वजह से ये हादसा हुआ। इन दिनों चारों ओर यही चर्चा गरम है कि हो न हो इस हादसे की पीछे कोई न कोई परालौकिक शक्ति जिम्मेदार रही है।
अगर आप जमरुदपुर मैट्रो हादसे वाली साइट पर जाएंगे तो आपको वहां किनारे में एक छोटा सा मंदिर रखा हुआ मिलेगा। यह छोटा सा मंदिर जिसे किसी तरह टिका कर रखा गया है, वास्तव में एक वृक्ष के नीचे स्थापित था। मैट्रो के निर्माण के दौरान उस वृक्ष को काट दिया गया और मंदिर को वहां से हटाकर एक तरफ रख दिया गया। माना जा रहा है कि पेड़ को काटने की वजह से ही ये हादसा हुआ। स्थानीय लोग दूसरी कई घटनाओं का हवाला देकर अपनी बात को पुष्ट कर रहे हैं। वो बताते हैं कि किस तरह कई बार वृक्षों पर देव, यक्ष, जिन्न आदि का वास होता है। हालांकि हमारी मान्यताओं और प्राचीन ग्रन्थों में भी इन बातों का उल्लेख मिलता है कि वृक्षों पर कुछ अलौकिक शक्तियों का वास होता है। लोग कह रहे हैं कि उस वृक्ष को काटने और मंदिर को हटाने की वजह से ही ये हादसा हुआ। लोग तर्क दे रहे हैं कि मैट्रो बच्चों का खेल तो है नहीं, लापरवाह और गैरजिम्मेदार लोग इस कार्य को नहीं कर रहे। उच्च प्रशिक्षित इंजीनियरों की देखरेख में हर कार्य को अंजाम दिया जाता है। ऐसे में हादसा होने की गुंजाइश कम ही होती है। दूसरा अगर इतनी ही लापरवाही अगर मैट्रोकर्मी बरतते हैं तो हादसों की बाढ़ सी आई रहती। लोग कहते हैं कि अगर ये हादसा मानवीय भूलवश हुआ होता तो एक बार ही हुआ होता। दूसरी बार जब मैट्रो कर्मचारी पूरी सावधानी से काम कर रहे थे तो दोबारा हादसा हो गया। और ये दोबारा हादसा होना साबित करता है कि ये कोई सामान्य घटना नहीं थी। हालांकि ज्यादातर लोग इसे बकवास और अंधविश्वास करार देंगे लेकिन ऐसे कई लोग मुझे मिले जो इस बात का दबी जबान से ही सही लेकिन समर्थन कर रहे थे। अब हकीकत क्या है किसे पता? अलौकिक शक्तियों पर विश्वास करने वाले इस बात को सच मानेंगे और विश्वास न करने वाले वैज्ञानिक गणित भिड़ाकर जांच करते रहेंगे और संभावित कारण तलाशेंगे!!! अक्सर अलौकिक शक्तियों को झूठ मानने वाले लोग जो वैज्ञानिक तर्क देते हैं, वो तर्क प्रमाण से ज्यादा संभावनाओं पर आधारित रहते हैं। यानि मान्यताओं पर यकीन करने वाले और वैज्ञानिक सोच रखने वाले दोनों वर्गों के लोग संभावनाओं के आधार पर ही बात करते हैं। इसलिए दोनों में कोई खास फर्क नहीं है। सच तो ईश्वर जानता है...
अगर आप जमरुदपुर मैट्रो हादसे वाली साइट पर जाएंगे तो आपको वहां किनारे में एक छोटा सा मंदिर रखा हुआ मिलेगा। यह छोटा सा मंदिर जिसे किसी तरह टिका कर रखा गया है, वास्तव में एक वृक्ष के नीचे स्थापित था। मैट्रो के निर्माण के दौरान उस वृक्ष को काट दिया गया और मंदिर को वहां से हटाकर एक तरफ रख दिया गया। माना जा रहा है कि पेड़ को काटने की वजह से ही ये हादसा हुआ। स्थानीय लोग दूसरी कई घटनाओं का हवाला देकर अपनी बात को पुष्ट कर रहे हैं। वो बताते हैं कि किस तरह कई बार वृक्षों पर देव, यक्ष, जिन्न आदि का वास होता है। हालांकि हमारी मान्यताओं और प्राचीन ग्रन्थों में भी इन बातों का उल्लेख मिलता है कि वृक्षों पर कुछ अलौकिक शक्तियों का वास होता है। लोग कह रहे हैं कि उस वृक्ष को काटने और मंदिर को हटाने की वजह से ही ये हादसा हुआ। लोग तर्क दे रहे हैं कि मैट्रो बच्चों का खेल तो है नहीं, लापरवाह और गैरजिम्मेदार लोग इस कार्य को नहीं कर रहे। उच्च प्रशिक्षित इंजीनियरों की देखरेख में हर कार्य को अंजाम दिया जाता है। ऐसे में हादसा होने की गुंजाइश कम ही होती है। दूसरा अगर इतनी ही लापरवाही अगर मैट्रोकर्मी बरतते हैं तो हादसों की बाढ़ सी आई रहती। लोग कहते हैं कि अगर ये हादसा मानवीय भूलवश हुआ होता तो एक बार ही हुआ होता। दूसरी बार जब मैट्रो कर्मचारी पूरी सावधानी से काम कर रहे थे तो दोबारा हादसा हो गया। और ये दोबारा हादसा होना साबित करता है कि ये कोई सामान्य घटना नहीं थी। हालांकि ज्यादातर लोग इसे बकवास और अंधविश्वास करार देंगे लेकिन ऐसे कई लोग मुझे मिले जो इस बात का दबी जबान से ही सही लेकिन समर्थन कर रहे थे। अब हकीकत क्या है किसे पता? अलौकिक शक्तियों पर विश्वास करने वाले इस बात को सच मानेंगे और विश्वास न करने वाले वैज्ञानिक गणित भिड़ाकर जांच करते रहेंगे और संभावित कारण तलाशेंगे!!! अक्सर अलौकिक शक्तियों को झूठ मानने वाले लोग जो वैज्ञानिक तर्क देते हैं, वो तर्क प्रमाण से ज्यादा संभावनाओं पर आधारित रहते हैं। यानि मान्यताओं पर यकीन करने वाले और वैज्ञानिक सोच रखने वाले दोनों वर्गों के लोग संभावनाओं के आधार पर ही बात करते हैं। इसलिए दोनों में कोई खास फर्क नहीं है। सच तो ईश्वर जानता है...
क्या राय दूं .. वही होगा जो आप सोंच रहे हैं .. अलौकिक शक्तियों पर विश्वास करने वाले इस घटना को समझेंगे और विश्वास न करने वाले वैज्ञानिक गणित भिड़ाकर जांच करते रहेंगे !!
बिलकुल सही बात कही. मानो तो सब कुछ है और न मानो तो तर्क हैं न
Sach to upar wala hi jaanta hai
सब झूठ है। ऐसा नहीं हुआ। जितने मुंह उतनी बातें। अंधविश्वास है सब। सरासर लापरवाही है सब
कॉमन वैल्थ खेलों के चक्कर में कार्यों को शीघ्र अतिशीघ्र निबटाने का दबाव मैट्रो पर भी है...इसी कारण लापरवाही हुई होगी...लेकिन ये भी सच है कि कोई ना कोई ऐसी शक्ति ज़रूर है जो हम सबको तथा हमारे द्वारा किए जाने वाले कार्यों को नियंत्रित करती है।
kuch bhi ho sakta hae
कुछ मानो या न मानो
पर मन की आवश्य मानो
मानने और न मानने से
अपनाने से गर होता है
सब सच्चा नहीं होता
नुकसान तो मान
अवश्य मान।
मान को मानने में
कोई बुराई नहीं।
कोई शक्ति तो ज़रूर है जो सब कुछ नियंत्रित करती है
भारत - विश्व में धर्म का एकमात्र स्तम्भ. देवता भी यहाँ जन्म लेने को तरसते हैं.
और भारत ही हर मामले में पीछे, अविकसित, अराजकता ग्रसित.
हर मामले में लोग अपनी दकियानूसी सोच क्यों घुसेड़ देते हैं!?
इस तरह सोचेंगे तो कभी कुछ नहीं कर पाएंगे.
यहाँ तो हर मास्टर प्लान फेल हो जायेगा.
मंदिरों-मस्जिदों और मधियाओं की कोई कमी थोड़े ही है.
सबको पता है रातों-रात कैसे बजरंग बलि और साईं बाबा का प्राचीन मंदिर बन जाता है.
सही कहा आपने, आस्था और विक्षान की लड़ाई चलची रहेगी
सर्वशक्तिमान के अस्तित्व को नकार कर, किसी योजना को आकार देने के स्वप्न को, साकार करने के विषय मे सोचना बेकार है…..
मेरी समझ मे नहीं आता की ये ठेकेदार लोग काम शुरू करने से पहले आपना इतिहास क्यों नहीं पढ़ते हैं.......अरे मूर्खो .......अब क्या कहूँ.....बस मैं इतना मानता हून को 'वो' सबकुछ है....सबकुछ....
बाप रे डराने वाली जानकारी है... कहीं इस जानकारी को रजत शर्मा जी तक मत पहुंचा दीजियेगा... वरना तो... विशेष बनेगा इस पर प्रोमो के साथ...
हो सकता है विदेशी हाथ हो मेट्रो हादसे में...
www.nayikalam.blogspot.com
आपने जो बातें कही उनको अगर झूठ कहूं तो ये
गलत होगा पर इसे सच कहकर भी मै इसको बढ़ावा नहीं देना चाहता हूं। मै ये बात तो समझ सकता हूं कि दैवीय प्रकोप और दैवीय शक्ति जैसी बातों में भी सच्चाई होती है। सिर्फ यही एक जगह नहीं हैं कई और भी जगह हो सकती हैं लेकिन इस घटना में कुछ तो लोग कहेंगे। लोगों का काम कहना। अब बात क्या है ये तो वो ही जाने जिसके प्रकोप से ये हुआ है। या तो भगवान और या फिर वो आदमी जिसकी गलती से ये हुआ हो। सच तो वहीं जानता है।
भैये, एक ही सवाल , ये भूत, प्रेत, जिन्न, वगैरहो ने इन सभी तरह की दूर्घटनाओ का ठेका भारत मे ही ले रखा है क्या ? चलो दैवीय प्रकोप को भी जोड़ देते है इसमे ?
भारत के बाहर ये दूर्घटनाये किस कारण से होती है ? क्या बकवास है ये !