Aadarsh Rathore
ज़रा गौर से देखिए इन तस्वीरों को... ये नजारा है 15 जुलाई की रात का जब रीता बहुगुणा जोशी के घर को आग के हवाले कर दिया।
ये तस्वीरें बयान कर रही है 15 जुलाई की रात की हकीकत...। बता रही है कि आखिर क्या हुआ था उस रात...।  इन पुलिसवालों ने वर्दी पर लगाया है कभी न धुलने वाला दाग...। जी हां, यही हैं वो पुलिसवाले जिन्होंने रीता बहुगुणा जोशी के घर में आग लगाने वाले बदमाशों का साथ दिया है। गौर से देखिए इस तस्वीर को... किस तरह ये नकाबपोश पेट्रोल भर-भर कर ला रहे हैं...
और अब देखिए ये तस्वीर... पुलिस अधिकारी नकाबपोश गुंडे के साथ...।
इन दोनों तस्वीरों में गौर करने वाली है पीछे खड़ी गाड़ी...। यानि साफ है कि दोनों तस्वीरें एक ही वक्त ली गई हैं। इन तस्वीरों से साफ जाहिर होता है कि जिस वक्त रीता बहुगुणा जोशी के घर को जलाने के लिए तैयारी की जा रही थी...पुलिस वहीं मौजूद थी। यही नहीं... रोकने की कोशिश तो दूर एसपी साहब खुद इन गुंडों की सुरक्षा के लिए निगरानी करते दिख रहे हैं।
जिस वक्त इस घटना को अंजाम दिया जा रहा था उस वक्त कई पुलिस अधिकारी वहां मौजूद थे। इस पूरे घटनाक्रम से पहले ही पुलिस रीता के घर में मौजूद हर शख्स को अपने साथ ले गई थी। और इसके बाद जो कुछ हुआ...उससे आप वाकिफ ही हैं...।
इसी बीच मीडिया को देख कर ये पुलिस अफसर अपराधियों की तरह रफूचक्कर हो गए जबकि गुंडे बेखौफ होकर अपने मंसूबों को अंजाम देते रहे..। जब नकाबपोश गुंडे अपना काम करके भाग गए तो यही वर्दीधारी दोबारा मौके पर पहुंचे। मौके पर पहुंचे आईजी का गला भी मीडिया के सवालों सूखता नज़र आया...। जनाब ने पहले बयान दिया था कि मैं यहां आया ही नहीं...। मीडियाकर्मी ने सवालों में उलाझाय तो कहा कि मैंने आग लगती हुई नहीं देखी। यानि आईजी साहब स्वीकार करते हैं कि वो यहां आए थे। बहरहाल इस पूरे मामले में पुलिस की भूमिका बेहद संदेहास्पद नज़र आ रही है। तस्वीरों से साफ है कि जिस वक्त रीता बहुगुणा जोशी का घर जलाया जा रहा था, उस वक्त पुलिस वहां मौजूद थी। फिर पुलिस ने दंगाइयों को रोकने की कोशिश क्यों नहीं की? इस पूरे खेल में कहीं न कहीं कोई गहरा पेंच ज़रूर है। मेरा मानना है कि लखनऊ में पंद्रह जुलाई की रात प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के घर को जलाने में पुलिस भी शामिल थी। क्योंकि अगर वहां पुलिस मौजूद थी और पुलिस ने कुछ भी नहीं किया .इसका मतलब साफ है कि पुलिस वहां बदमाशों का साथ दे रही थी। क्योंकि पुलिस का काम है असामाजिक तत्वों को अपराध करने से रोकना। अगर वह खुद मूकदर्शक बनी रहे तो फिर क्या कहना...। ये तस्वीरें उत्तर प्रदेश में कानून-व्यवस्था की पोल खोल रही हैं। भगवान बचाए इस देश को... रक्षक ही भक्षक बन गए हैं....। चलिए मान लिया जाए कि पुलिस इन बदमाशों को रोकने की कोशिश कर रही थी। उसके पास फोर्स और हथियार नहीं थे कि इन बदमाशों का सामना कर सके। बावजूद इसके कई सवाल उठते हैं। मसलन पुलिस अधिकारियों ने झूठ क्यों कहा कि घटना के वक्त वो मौजूद नहीं थे। दूसरा वीआईपी एरिया की सुरक्षा का ये हाल है? और सबसे अहम सवाल ये कि अगर आतंकी हमला हुआ होता तो आखिर पुलिस उसका सामना कैसे करती?
4 Responses
  1. अभी कुछ देर पहले ही हमने ये फ़ोटो और इस पर एक रिपोर्ट किसी न्यूज चैनल पर देखी थी।


  2. varsha Says:

    dukhad.........


  3. कोई नहीं है हीरो इनमें

    रहे तीनों हमेशा विलेन

    माननीय नेता...

    इनके गुण्डे और इन्हीं की पुलिस

    ये हिन्दोस्ताँ है...यहाँ कुछ भी हो सकता है...


  4. यही लोकतंत्र है जनाब जहां पुलिस अपराध को रोकती नहीं बल्कि अपराध करने में अपराधियों का साथ देती है...