राहुल गोयल
इन दिनों एक तरह से भारत का तालिबानीकरण करने की कोशिश चल रही है। संस्कृति के झंडाबरदारों को भारतीय संस्कृति के नष्ट होने की ऐसी चिंता खाए जे रही है जैसी आज से पहले कभी नहीं थी। इस पर पाबन्दी लगा दो, उसे बंद कर दो, ये पहनने की इजाज़त मत दो, ये अश्लील है, वो भोडा है.....। और आजकल संस्कृति के पहरेदार निशाना बना रहे हैं..टीवी पर आने वाले रियलटी शोज़ और सीरियल्स को...। एक अमेरिकी टीवी शो मूमेंट ऑफ़ ट्रुथ के भारतीय संस्करण 'सच का सामना' पर विवाद तो ऐसा गर्माया है जैसे उस टेलिविज़न चैनल ने किसी बी ग्रेड फिल्म का प्रसारण कर दिया हो। भाई सच बोलना तो हमारी संस्कृति का हिस्सा रहा है न? तो इस पर क्या परेशानी है? झूठ की बुनियाद पर ज़िन्दगी जीने वालों को सच की गोली हजम क्यों नहीं हो रही है? अगर कोई अपनी ज़िन्दगी के ऐसे खुलासे कर रहा है जिसके उसकी ज़िन्दगी तबाह हो सकती है तो भी ये उसका खुद का फैसला है। इस पर आपत्ति क्यों? इस कार्यक्रम के ज़रिये न सही लेकिन कभी न कभी तो सच सामने आता ही...। तो फिर इसे व्यवसायिक रूप देने में क्या दिक्कत है? दुनिया के दूसरे देशों में भी ये शो चल रहा है लेकिन सिर्फ हमारे यहीं इस पर इतना हंगामा उठ रहा है...।

लोगों का आरोप है कि इसमें पूछे जाने वाले सवाल अश्लील और भोंडे होते है। अगर किसी का पति शो पर ये कहता है की अगर उसकी पत्नी को पता न चले तो वो किसी दूसरी औरत के साथ हमबिस्तर हो जाएगा तो ये कैसे संस्कृति के खिलाफ हो गया? अगर वो असल में ऐसा करता और किसी को पता न चलता तो क्या इसमें कुछ भी गलत नहीं था? परदे की अहमियत तभी तक है जब तक पर्दा करने वाला ये समझता है कि ये उसके लिए जरुरी है। इस तरह की बातों पर हंगामा बरपाने वाले लोगों को अपने गिरेबान में झांककर देखना चाहिए। वो भारत की संस्कृति और सभ्यता को इतना कमज़ोर क्यों समझते हैं कि पश्चिम से आने वाली हवाओं से उन्हें डल लगता है। और वैसे भी किसी देश के लोग ही देश की सभ्यता को तय करते है न की सभ्यता ये तय करेगी की उसमे किस तरह के लोग रहेंगे...।

हंगामा सिर्फ इस शो पर ही नहीं है कई दूसरे शोज़ पर भी अश्लीलता फैलाने के आरोप लग रहे है। इन आरोप लगाने वालों से कोई ये पूछें की जब लोग देख रहे हो तो इन्हें क्या दिक्कत है। इन नए तालिबानियों के पास तर्क है की जिस तरह के दृश्य इन कर्यक्रमों में दिखाए जाते है वो संस्कृति के माकूल नहीं है। तो यार रिमोट तो आपके ही हाथों में है बदल दो न? और वैसे भी केबल के जरिये जिस तबके तक ये कार्यक्रम पहुँच रहे है वो कोई ऐसा अनपढ़ तबका नहीं है जिसे अपने अच्छे-बुरे की समझ नहीं। इन सीरियल्स के दर्शक भली-भांति समझते हैं कि उन्हें क्या देखना है और क्या नहीं। हंगामा करने वाले सिर्फ छपास की बीमारी से ग्रस्त है और कुछ नहीं। देश है कोई गाय भैसों का झुंड नहीं है जिसे आप अपनी लाठी से हांकने की कोशिश करते रहेंगे। ऐसा न हो कि आपसे आजिज़ आकर किसी दिन लोग सबसे पहले आपको ही लठिया दे। सो परिपक्व जनता को परिपक्व देश बनाने दें इसमें रोड़े न अटकाए...
21 Responses
  1. राहुल आप किस परिपक्वता की बात कर रहे हैं? और ये नैतिक और सामाजिक मूल्यों के मामले में हम भारतीय सबसे ज्यादा असमंजस के हालात में हैं। जैसे कि मैं खुद ये तय नहीं कर पा रहा कि इस मामले में मुझे क्या रुख तय करना चाहिए। एक तरफ मुझे वो सीरियल देखने में अच्छे भी लगते हैं और वहीं सोचता हूं लगता कि अपनी संस्कृति जिसमें हम जीते आए हैं, उसके लिहाज से गलत है। कई विभ्रम हैं मित्र....


  2. जो परंपरा और नैतिक होता है उसके सामने कभी कभी उसकी चाह उसे भ्रष्ट बनाने की कोशिश करती है. और जिसको इसका बोध होता है वो सही रास्ता चुनता है. इसी से मानवता आगे बढती है.
    http://parshuram27.blogspot.com/2009/07/blog-post_26.html


  3. दुनिया में और भी सच है बिस्तर के सिवा, तो क्यों नहीं उस तरह के सवाल दागे जाते है। क्या ये जानना ज्यादा ज़रुरी है कि किसका पति और किसकी पत्नी एक दूसरे के अलावा ज्यादा ज़रुरी है,अगर इस तरह के सच एक दूसरे से बताने से ज्यादा अच्छा पूरे समाज को बताना तो इस तरह के प्रोगाम बढ़िया है, सच किसको बताया जा रहा है अपने परिवार को या पूरी दुनिया को, क्यों सच को अश्लील बनाने जुटे हुए हो भाई,जिस तरह के सच बोल कर प्रोग्राम अपनी टीआरपी बढ़ा रहा अगर उसे पति पत्नी एक दूसरे को बताये तो बेहतर होगा


  4. raahul भाई jara bloging के jariye अपना सच भी तो bataao दुनिया को...........अपने ap को भी nangaa करो सब के saamne........... maafi चाहता हूँ ऐसा लिखने के लिए................ पर क्या जो saanskriti hazaaron varshon से चल रही है उसको jhuthlana ठीक है............ मैं galat cheezon की बात नहीं कर रहा उनको तो badalna ही chaahiye......मैं ऐसे bhondi paashchaaty chezon की बात कह रहा हूँ.............


  5. सही है कि किसी पर अपनी सोच नहीं थोपी जानी चाहिए, लेकिन यार सरेआम इस तरह की अश्लीलता परोसना भी तो ग़लत है न?


  6. इसमें तालिबानी करण कहा से आ गया. जानबूझकर गंदगी दिखाई जा रही है। ऐसे मे विरोध नही तो समर्थन किया जाएगा. इत्मिनान से सोचें और फिर दोबारा लिखें कि सही क्या और क्या गल्त है


  7. lsts dont talk about culture and social values. But these kind of shows has to be banned. They are selling just sex, we dont want this type of unhealthy entertainment...


  8. हम अपनी अनैतिकता पर चादर चढ़ी रखना चाहते हैं, जिस से हम भले बने रहें।


  9. Unknown Says:

    1) कुछ देशों में यह बैन कर दिया गया है, अमेरिकियों की बात छोड़ो, उनके यहाँ "परिवार" नामक संस्था है ही नहीं…
    2) ये लोग सच सिर्फ़ इसलिये बोल रहे हैं, क्योंकि इसके लिये पैसा मिल रहा है वरना ये लोग सच कभी ना बोलते…
    3) क्या सच सिर्फ़ बिस्तर और यौन सम्बन्ध हैं (महेश भट्ट जैसों के लिये हाँ), इस कार्यक्रम में एक-दो IAS अधिकारियों को बुलाकर पूछिये ना कि आपने ग्रामीण रोजगार गारंटी में कितना पैसा खाया है? एक-दो नेता को बुलाकर पूछिये कि उन्होंने कितनी बूथ कैप्चरिंग करवाई या अपने कितने विरोधियों की हत्या करवाई? है हिम्मत स्टार प्लस में? उन्हें सिर्फ़ "सेक्स" बेचना है, ये लोग "सोफ़िस्टिकेटेड दल्ले" हैं।
    4) "लोग चाहते हैं"??? कौन लोग चाहते हैं… यदि लोग चाहें कि उन्हें सड़क पर खुलेआम सेक्स करने दिया जाये तो आप करने देंगे?
    5) मीडिया ने कभी रिलायंस की अनियमितताओं के बारे में "सच का सामना" किया है? जो संवाददाता ऐसा करेगा, अगले दिन उसकी नौकरी जायेगी, कोई चैनल मालिक अम्बानी के खिलाफ़ कुछ करेगा तो उसका चैनल बन्द हो जायेगा… हो किस मुगालते में भाई… मीडिया के पास ले-देकर बचा क्या है "सेक्स", बस उसे परोसो…
    6) "…अगर कोई अपनी ज़िन्दगी के ऐसे खुलासे कर रहा है जिसके उसकी ज़िन्दगी तबाह हो सकती है तो भी ये उसका खुद का फैसला है। इस पर आपत्ति क्यों?…" इस तर्क से देखा जाये तो शेयर बाज़ार में पैसा गँवाने की गलती है निवेशक की है कि वह उधर गया ही क्यों? हर्षद मेहता/केतन पारेख को छोड़ देना चाहिये।

    भाई आप पत्रकार हैं (शायद), हर मामले को सभी पहलुओं से देखना सीखिये ना…


  10. मैं सुरेश जी से काफी हद तक सहमत हूं। लेकिन आपके तर्क मुझे समझ नहीं आ रहे फसादी जी। हमें कार्यकर्म से आपत्ति नहीं है, उसकी विषयवस्तु से आपत्ति है।


  11. Yachna Says:

    आधुनिकता के नाम पर सेक्स का प्रदर्शन उचित नहीं


  12. Anonymous Says:

    AAPSE UMMEED BHI KYA KI JA SAKTI HAI. FASAADI JO THETHRE. DESH KE LIYE ACHA NAHI SOCH SAKTE TO KAM SE KAM APNA NAME TO ACHA SOCH LETE


  13. श्रीमान जी, सत्य तो यह भी है कि स्त्री ही बता सकती है कि उसके बच्चे का बाप कौन है. लड़की की शादी करने के बाद घर वापस आने पर कम से कम भारतीय बाप तो यह नहीं कहता कि सुहागरात कैसी रही?? लिहाजा इस सीरियल में कुछ चीजों से पल्ला झाड़ा जा सकता था भारतीय परिवेश के चलते.


  14. लेकिन राहुल मै आपकी बात से बिल्कुल सहमत नहीं हूं क्योंकि आज अगर मूमेंट ऑफ ट्रूथ का हिंदी संस्करण आया है कल बेवॉच और सेक्स इन द सिटी का आएगा....अगर इस पर रोक नहीं लगी तो...


  15. ये एक लंबी बहस है, क्या हमें अपने विचार दूसरों पर थोपने का हक़ है या नहीं , वहीं दूसरी ओर संस्कृति और तहजीब का मसला खड़ा हो जाता है


  16. Unknown Says:

    जनाब हमारी अवाम अगर इतनी काबिल होती की वो सही और ग़लत मे फ़र्क कर सके तो आज छोटे पर्दे पर इस तरह से वाहियात चीज़े नहीं परोसी जाती…..और ना ही घर का हर एक शख़्स छुप कर उसका लुत्फ़ उठता…. इस मुद्दे पर बजाय बहस के एक मुकम्मल करवाई की ज़रूरत है…


  17. इस शो को चलते रहने देना चाहिये पर थोड़ा थीम बदलना चाहिये. जैसे कि सुरेश जी ने कहा कि:

    इस कार्यक्रम में एक-दो IAS अधिकारियों को बुलाकर पूछिये ना कि आपने ग्रामीण रोजगार गारंटी में कितना पैसा खाया है? एक-दो नेता को बुलाकर पूछिये कि उन्होंने कितनी बूथ कैप्चरिंग करवाई या अपने कितने विरोधियों की हत्या करवाई? है

    अगर शो यह सब दिखाने लगे तो देश का भला हो जाये. पर स्टार प्लस में हिम्मत ही नही है.
    अभी की थीम पर तो शो का नाम होना चाहिये "आपके सेक्सुअल सच का सामना" ना कि
    "सच का सामना".


  18. Anonymous Says:

    सतही लेख, सतही बहस, सतही टिप्पणियां। बुद्धिजीविता का कीड़ा काटे कुछ लोग। जो सलाह देते देते हैं काबकों में बैठकर, लोगों को बताते हैं नियम, कायदे-कानून। गंभीर मुद्दों पर छिछली बहस करके के स्वनामधन्य विचारक बनने की असफल कोशिश। जिनका हर जुमला काट खाने को आता है। जिनकी सोच में गहराई नज़र नहीं आती। नए आयाम और रोचकता नहीं है। निरा नीरस। कुछ सोच ऐसी लिखो, जो गहरी हो, कुछ ऐसे शब्द जो रस की चाशनी में डूबे हो। ब्लॉग की तारीफ सजावट के लिए की जा सकती है। अब तक जितनी भी बार आया हूं लेखन में कबाड़ा ही पढ़ने को मिला है। मुद्दे उठाते हो कटाक्ष करना नहीं जानते। उसी तरह ट्रीट करते हो जैसे नुक्कड़ पर बैठे बीड़ीबाज़ अखाड़िए। हट्ट।


  19. ANONYMOUS ji
    आपकी टिप्पणी तो बहुत गहरी है मित्र...
    एनोनिमस कमेंट करके आपने अपनी बात की महत्ता ही गिरा दी। खैर आप जैसे क्षेत्र विशेष के लोगों की मानसिकता ही ऐसी है। इसमें आपका कोई दोष नहीं...। आपने बेवकूफी की जो बार-बार इस ब्लॉग पर आ गए। आपको एक बार पढ़कर ही फैसला करना चाहिए था कि इश ब्लॉग पर नहीं आना है। लेकिन फिर भी आप आए और अनाम टिप्पणी कर के चले गए। आप तो और भी छिछले हैं जो अपने नाम से टिप्पणी नहीं कर सकते।


  20. हम जो कहते है कम कम सामने आकर तो कहते है बेनामी जी... भईया बाकी आप की तरह ज्ञानी न सही कम से कम स्वाभीमानी तो है अगर आप के पास ज्ञान की पिटीरा है या कुछ कहना चाहते है तो आप अपने नाम के साथ कहिये और अगर खुद किसी अपराधबोध से ग्रस्त है तो भगवान आपकी रक्षा करें ...


  21. sach ka sammana suchmuch ek acha programe hai jo kuch chipa hota hai kya vahi sach hota hai ,Ankur ji ne sahi kaha hai ias officers ko aur leaders ko bhi es may bulana chahiay Adarsh ji maney abhi tak jitney bhi blog pade sase best apka hai ,i am new in bloging...all the best all of u good efforts.