Aadarsh Rathore
जो व्यक्ति बिना वेतन के काम करता है उसे क्या कहते हैं? हर भाषा में उसके लिए अलग शब्द निर्दिष्ट है लेकिन वो शब्द सटीक नहीं। इस बात को वही समझ सकता है जो बिना वेतन के काम कर रहा हो। बहरहाल एक वाकया सुनिए।

हिन्दी की कक्षा चल रही थी। मास्टर जी ने पिछले दिन विद्यार्थियों को एक शब्द बनाना सिखाया था। दूसरे दिन क्या हुआ, पेश है वाकया:
शिक्षक: बच्चों मैंने जो होमवर्क दिया था वो पूरा करके आए हो न? चलो मैं सभी से बारी-बारी एक वाक्य पूछूंगा और तुम उसके लिए एक शब्द बताओगे...
चलो राम तुम बताओ, जो साल में एक बार हो उसे क्या कहते हैं

राम: वार्षिक

शिक्षक: बहुत बढ़िया, राहुल तुम बताओ.... जो पहले कभी न हुआ हो?

राहुल: मास्टर जी! अभूतपूर्व

शिक्षक: बहुत खूब, लगता है खूब पढ़ाई करके आए हो सब लोग। चलो पिंकी.. अब तुम्हारी बारी...। जो बिना वेतन के काम करे..?

पिंकी: मास्टर जी बेवकूफ....।


(नोट: मेरा छोटा भाई बहुत हाजिर जवाब है, जब वह कक्षा 7 में था तो उसने अपनी टीचर के सवाल पर इसी तरह से जवाब दिया था। बहरहाल जो बिना वेतन के काम करे न तो वह अवैतनिक होता है और न ही बेवकूफ होता है। वह बेचारा तो किस्मत का मारा होता है, मजबूर होता है।)
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11 Responses
  1. हाहाहाहाहाहा सही व्यंग कहा लेकिन इसके बाद भी पता नहीं वेतन मिलेगा या नहीं ये पता नहीं। बढ़िया लिखा है। बच्चे ने सही और मज़ेदार उत्तर दिया लेकिन आपका जवाब सही मायने से आज का सच है


  2. skyenews Says:

    भाई साहब आजकल के हालत तो सभी को पता है…..मुझे भी 3 महीने से सेलरी नहीं मिली…..किसी दूसरी नौकरी का विकल्प भी नहीं है…..लेकिन फिर भी सेलरी को लेकर उम्मीद है और अगर इस आशावादी राष्ट्र मे आशा करना बेवकूफी है तो, दुनिया के सबसे ज़्यादा बेवकूफ़ हमारे देश मे हैं.


  3. विडंबना है भाई देश की। क्या बात है इन दिनों बहुत मार्मिक रचनाएं पेश कर रहे हैं सभी?


  4. Unknown Says:

    My Thought "Money is not God but not less then God"...


  5. आदर्श जी आपने कुछ दिनो पहले एक मुस्कुराते हुए मूर्ख पर लिखा था... 'ये मूर्ख क्यूं मुस्कुरा रहा है' आज उसी इंसान सी हालत बिना सैलरी के काम कर रहे कर्मचारियों की हो गई है.. जो भी अपनी मूर्खता पर मुस्कुराते हुए काम करने को मजबूर है...


  6. एक गीत याद आता है आदर्श भाई “ ये पैसा बोलता है”
    बचपन मे जब इसे सुनता था तो बड़ा विचित्र सा लगता था…..लेकिन आज इसकी सार्थकता का आभास हो रहा है…..कुछ समय से पैसे की आवाज़ खामोश है और पूरी दुनिया त्राहिमाम त्राहिमाम कर रही है

    बाड़िया वाक़या पेश किया आपने


  7. Unknown Says:

    “मत पूछ की क्या हाल है मेरे तेरे पीछे
    तू देख की क्या रंग है तेरा मेरे आगे”

    ग़ालिब साहब की ये शेर बड़ा ही सटीक बैठता है आज के दौर पर. मानो पैसा इंसान को चिढ़ाकर उससे ये शेर कह रहा हो.


  8. Yachna Says:

    मज़ेदार किन्तुर मार्मिक वाक्या। दो भाव निहित हैं इसमें


  9. patrakaro par sahi baithti hai ye rachna.
    article ko bhadaas par chhaapo
    jyada reader milenge


  10. आर्दश जी क्या करे मूर्ख बनने के सिवा कोई दूसरा चारा भी नहीं है....