भइया प्याले पर इन दिनों चर्चा गर्म है शराब और धर्म के मेलजोल को लेकर। शराबियों को धर्म नहीं पसंद और धर्म को शराब। इसी वजह से हो रही है बहस बेहिसाब... मै कहना चाहुंगा कि उन लोगों से जो ये कह रहे हैं कि इस मुद्दे पर चर्चा कर रहे हैं उन लोगों को बता दूं कि प्याले पर मदिरा की चर्चा न हो तो कहां हो। मयखानों में शराब न हो तो मयखाना किसे कह पायेंगे। रही बात धर्म की तो बेकार की चर्चा है यार। धर्म तो बहुत कुछ कहता है कहां तक उसका पालन हर कोई करता है। धर्म की शुरुआत हुए लाखों साल माफ करियेगा हजारो साल अरे माफ करिये कुछ सैकडों साल ही हुए हैं तो उस पर बहस क्या करनी यार। शराब पर चर्चा करना सही है धर्म पर चर्चा करना गलत भी नहीं पर कम से कम दोनों की चर्चा एक साथ मत करो यार। क्योंकि किसी भी शराब पीने वाले से पूछ लो वो यहीं कहेगा कि पीते वक्त टेंशन मत लो बस पीयो क्योंकि कोई ग़म भुलाने को पीता है कोई खुशी मनाने को पीता है। खुशी और ग़म धर्म से थोड़े ही आते है यार। मस्त रहो धर्म भूलो और मौज लो। जंगलों में रहते थे दिक्कत हुई पेड़ काटकर घर बना लिये धर्म ने कहा था क्या। जनसंख्या बढ़ाते जा रहे हैं धर्म में लिखा है क्या। चुपके से रात मे टीवी पर मल्लिका के गाने देखते है पर सुबह बच्चों के सामने चैनल बदलते हैं औऱ समझाते भी हैं कि बेटा धर्म कहता है कि पराई स्त्री को मत देखो उसमे मां, बहन या पुत्री का रुप देखों। किसने कहा शिक्षा देने को । ये सब बातें सुनकर कई लोगों को मिर्ची तो ज़रुर लगी होगी। अब भईया धर्म तो बहुत कुछ कहता है कहां तक निभाते है लोग। जो निभाते है उनसे कोई नहीं निभाता।
तत् त्वं असि / बलराम अग्रवाल
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दरवाजा खुलवाने को घंटी बजी। अन्दर से आवाज आयी—“कौन?”
“दरवाजा खोलके देख!”
“भाई, तू है कौन? यह जाने बिना मैं दरवाजा नहीं खोल सकता!”
“ दरवाजा खोले बिना ...
3 months ago
बिंदास बोल....।
क्या बात है मित्र, अब धर्म की बातें भी बंद कराओगे अपनी कलम चलाकर कलमबंद
ये दोनों मस्जिद औ बादाख़ाना,
हैं दोस्त और दोस्त ही रहेंगे !
तो फिर बहस पर बहस है कैसी ?
दोआब हैं, साथ ही बहेंगे !!
---बवाल
nice
मुसलमान और हिंदू हैं दो एक मगर उनका प्याला
एक मगर उनकी मदिरालया, एक मगर उनकी हाला
दो रहते एक ना जब तक मंदिर मस्जिद मे जाते
मंदिर मस्जिद बैर करते, मेल कराती मधुशाला...
संभवता हरी वंश राय बच्चन जी की इन पंक्तियों को पढ़ने के बाद धर्म बनाम शराब को बहस पर अल्पविराम लग जाए.
शशांक जी बड़ा ही तार्किक लिख प्रकाशित किया है आपने,,,.प्रसन्नता हूयी......
बहुत अच्छा लिखा है शशांक आपने। मज़ा आ गया। गोपाल जी आपने बच्चन जी की पंक्तियों को रखा बहुत अच्छा लगा। पूरी चर्चा के दौरान ये महत्वपूर्ण पंक्तियां छूट रही थीं
Guru..bat to thik kh rhe ho,aap.