उत्तर प्रदेश में सरकारी धन से मायावती की प्रतिमाएं बनाने में देशभर में हाहाकार मचा है। मायावती को अपनी प्रतिमाएं बनाने से रोकने के मामले में अब ऑनलाइन देशव्यापी अभियान भी शुरू किया गया है। इस अभियान को लोग समर्थन भी दे रहे हैं। www.ipetitions.com/petition/mayawaticase वेबसाइट पर लोग इस मामले पर अपने विचार रख रहे हैं। ये वेबसाइट एक ऑनलाइन याचिका है। मायावती लगभग 2500 करोड़ रुपये के सरकारी धन से इन पार्कों का निर्माण कर रही है।
अगर जनता के धन के बात न होती मैं तो मायावती के मूर्तियां लगवाने के कदम का समर्थन करता। इसकी एक वजह है। मूर्तियां लगवाने के पीछे सुश्री मायावती तर्क देती हैं कि स्वर्गीय कांशीराम जी ने ही उन्हें कहा था कि मूर्ति बनवाएं। 'मनुवादी' विचारधारा के लोग मायावती की इस बात पर यकीन नहीं कर रहे। मायावती बेचारी सही ही तो कर रही है। एक नेता की आखिरी इच्छा का वो सम्मान कर रही हैं और आप उन्हें रोक रहे हैं? हा हा हा हा हा हा....।
जी नहीं, वजह ये नहीं कुछ और है, इस वजह का खुलासा बाद में करता हूं पहले मायावती की बात कर लूं। दरअसल कांशीराम जी ने मायावती से कहा होगा- मैं चाहता हूं कि देश भर में तुम्हारी मूर्तियां लगे, लोग तुम्हें देवी की तरह पूजें। जी हां, मायावती भी यही कहती फिरती हैं कि कांशीराम जी ने उन्हें ऐसा कहा था। लेकिन मायावती ने इसे कुछ और ही समझ लिया। दरअसल कांशीराम जी के उपरोक्त कथन का अर्थ था कि तुम दलितों के उद्धार और विकास के लिए इतना करो कि उन्होंने समाम में अच्छी स्थिती में लाकर खड़ा कर दे। तुम्हें लोग आदर्श मानें, देवी स्वरूप मानें... जगह-जगह तुम्हारी मूर्तियां लगाएं और तुम्हारी पूजा की जाए। अरे भई! कहावत है कि जितनी बुद्धि उतनी बात। मायावती जी ने इसे कुछ और ही समझ लिया और लग गई खुद की ही मूर्तियां बनवाने। ये सरासर बेवकूफी नहीं तो क्या है? मैं उत्तर प्रदेश में प्रसारित होने वाले एक समाचार चैनल में कार्यरत हूं। यूपी की दशा और दिशा से भली भांति अवगत हूं। अरे कई इलाके तो ऐसे हैं मेरे दोस्तो जहां दलित लोगों के पास रहने को घर, पहनने को कपड़े औऱ खाने को रोटी नहीं। यकीन मानिए लोग चूहे खाने को विवश हैं। इस वजह से वो कई बीमारियों सें ग्रस्त हैं। 2500 करोड़ रुपये से उनके के लिए क्या-क्या किया जा सकता था। लेकिन देखो क्या किया जा रहा है? ये धन की बर्बादी नहीं तो क्या है? मायावती राहुल गांधी और यहां तक महात्मा गांधी को भी नाटकबाज़ बताती हैं। कहती हैं कि दलितों के घर रहने और खाने से कुछ नहीं होता। ये सब नाटक है, अरे भैया तो फिर मूर्ति लगवाने से होता है क्या? मायावती ने ऐसा कौन सा काम कर दिया कि उसकी मूर्ति लगवाई जाए। मायावती को जिस तबके ने सत्ता सुख दिया है कल वही उसकी दुर्गति भी करेगा। सद्दाम हुसैन ने भी अपनी बड़ी-बड़ी मूर्तियां लगवाई थी, तख्त बदला था तो जनता ने उन बुत्तों पर जूतों की बरसात की थी। अब जब मूर्तियां बन गई हैं, धन फुंक गया है तो इन मूर्तियों को हटाओ मत। लगे रहने दो वैसे ही.. जिनके नाम की राजनीति कर मायावती ये ओछी हरकतें कर रही है कल वही लोग इन मूर्तियों की खातिरदारी करेंगे। साथ में आने वाली पीढ़ियां भी याद रखेंगी कि भारतवर्ष में एक ऐसा "महान" नेता भी हुआ है जो खुद अपनी मूर्ति लगवा गया...
अगर जनता के धन के बात न होती मैं तो मायावती के मूर्तियां लगवाने के कदम का समर्थन करता। इसकी एक वजह है। मूर्तियां लगवाने के पीछे सुश्री मायावती तर्क देती हैं कि स्वर्गीय कांशीराम जी ने ही उन्हें कहा था कि मूर्ति बनवाएं। 'मनुवादी' विचारधारा के लोग मायावती की इस बात पर यकीन नहीं कर रहे। मायावती बेचारी सही ही तो कर रही है। एक नेता की आखिरी इच्छा का वो सम्मान कर रही हैं और आप उन्हें रोक रहे हैं? हा हा हा हा हा हा....।
जी नहीं, वजह ये नहीं कुछ और है, इस वजह का खुलासा बाद में करता हूं पहले मायावती की बात कर लूं। दरअसल कांशीराम जी ने मायावती से कहा होगा- मैं चाहता हूं कि देश भर में तुम्हारी मूर्तियां लगे, लोग तुम्हें देवी की तरह पूजें। जी हां, मायावती भी यही कहती फिरती हैं कि कांशीराम जी ने उन्हें ऐसा कहा था। लेकिन मायावती ने इसे कुछ और ही समझ लिया। दरअसल कांशीराम जी के उपरोक्त कथन का अर्थ था कि तुम दलितों के उद्धार और विकास के लिए इतना करो कि उन्होंने समाम में अच्छी स्थिती में लाकर खड़ा कर दे। तुम्हें लोग आदर्श मानें, देवी स्वरूप मानें... जगह-जगह तुम्हारी मूर्तियां लगाएं और तुम्हारी पूजा की जाए। अरे भई! कहावत है कि जितनी बुद्धि उतनी बात। मायावती जी ने इसे कुछ और ही समझ लिया और लग गई खुद की ही मूर्तियां बनवाने। ये सरासर बेवकूफी नहीं तो क्या है? मैं उत्तर प्रदेश में प्रसारित होने वाले एक समाचार चैनल में कार्यरत हूं। यूपी की दशा और दिशा से भली भांति अवगत हूं। अरे कई इलाके तो ऐसे हैं मेरे दोस्तो जहां दलित लोगों के पास रहने को घर, पहनने को कपड़े औऱ खाने को रोटी नहीं। यकीन मानिए लोग चूहे खाने को विवश हैं। इस वजह से वो कई बीमारियों सें ग्रस्त हैं। 2500 करोड़ रुपये से उनके के लिए क्या-क्या किया जा सकता था। लेकिन देखो क्या किया जा रहा है? ये धन की बर्बादी नहीं तो क्या है? मायावती राहुल गांधी और यहां तक महात्मा गांधी को भी नाटकबाज़ बताती हैं। कहती हैं कि दलितों के घर रहने और खाने से कुछ नहीं होता। ये सब नाटक है, अरे भैया तो फिर मूर्ति लगवाने से होता है क्या? मायावती ने ऐसा कौन सा काम कर दिया कि उसकी मूर्ति लगवाई जाए। मायावती को जिस तबके ने सत्ता सुख दिया है कल वही उसकी दुर्गति भी करेगा। सद्दाम हुसैन ने भी अपनी बड़ी-बड़ी मूर्तियां लगवाई थी, तख्त बदला था तो जनता ने उन बुत्तों पर जूतों की बरसात की थी। अब जब मूर्तियां बन गई हैं, धन फुंक गया है तो इन मूर्तियों को हटाओ मत। लगे रहने दो वैसे ही.. जिनके नाम की राजनीति कर मायावती ये ओछी हरकतें कर रही है कल वही लोग इन मूर्तियों की खातिरदारी करेंगे। साथ में आने वाली पीढ़ियां भी याद रखेंगी कि भारतवर्ष में एक ऐसा "महान" नेता भी हुआ है जो खुद अपनी मूर्ति लगवा गया...
भारत में गंगा नदी के मैदानी भाग में ही उत्कृष्ट सभ्यता पनपी थी. बिहार में नालंदा जैसे विश्व विद्यालय थे. इन दोनों राज्यों की जनता को अब क्या हो गया है. क्यों चुनते हैं ऐसे बेवकूफों को. एक और व्यथा. क्या दलित की बुद्धि दलित ही बनी रहेगी?
ऊपर वाले भाई साहब ने इतनी बड़ी बात कैसे कह दी...
दलित बुद्धि से क्या मतलब है आपका...
सही कहा, भइया सही कर रही हैं। कौवा-कबूतरों को अराम हो जावेगा।
मंदी ने ऐसा मारा कि मिडिल वर्ग मर जाय,
“माया” को इससे क्या लेना वो स्टेच्यू रही बनवाय।
अरबों रुपया देश का स्टेच्यू में दिया बहाय,
भारत देश कहीं से फिर न गुलाम हो जाय।
पता करते है कही ये पिटिशन भी तो सरकारी खर्चे पर नहीं है?
आदर्श जी अपने बहुत ही अच्छा जाम प्याला मे पेश किया……इस विषय मे मैं मात्र इतना ही कहना चाहूँगा की मायावती संभवता उच्च शिक्षिता नहीं हैं अतः उन्हे इस तथ्य का ज्ञान नहीं है की प्रतिमाएँ लगवाने से कोई बड़ा नहीं बनता अपितु बड़ा बनने के बाद उसकी प्रतिमाए लगती हैं…..और मेडम आप तो इतनी भी बड़ी नहीं की देश के एक बड़े राज्य मे अच्छी राजनीति कर सको…संभवता.आपके शब्दकोष मे अच्छा के स्थान पर ओछा शब्द है
बेहरतीन आदर्श जी
बेवकुफ़ ओर जाहिल लोगो को ओर क्या सुझेगा, कही खाने के लाले पडे होते थे, ओर कहां लोगो ने उसे सिंहासन पर बिठा दिया.तो दिमाग तो खराब होना ही था,
मायावती को इतना पता है कि उन्हें उनके काम से तो कोई नहीं पहचान पायेगा उनके मरने के बाद, इसलिए वो अभी से मूर्तियां बनवाने लगी है ताकि लोग कम से कम मूर्तियां देखकर याद करें लेकिन उन्हे पता नहीं है कि मूर्तियां देखकर लोग गालियों के अलावा कुछ नहीं देंगे
शायद उन्हें आभास नहीं रहा होगा कि मूर्तियों के गले में जूतों की मालाएँ भी पड़ सकती हैं शायद इसीलिए उन्होंने गरीब दलितों के हितों को ताक पर रख कर उनके हक़ का धन इस ओछे काम में लगाया .
अरे भाई ये पब्लिक है ये सब जानती है इसका पता भी आपको प्रदेश के विधानसभा चुनावों में लग जाएगा....
perfect post ...as always...and comment as well..but u know what..as she is not a good one so why pwople elect her...? GOD knows ...200 saalon tak angrezon k gulaam rahe logon ki pidhiyon ko ab tak gulaami ki aadat padi hui h...
aaj ke times of india mei ek khabar aai hai ki lucknow ke chaar chhaatro ko maayavati ke poster par kaalikh lagaane ke aarop mei arrest kar liya gaya hai....samajh mei nahi aata unhe areest kyu kiya gaya hai unhe to puruskrit kiya jaana chaahiye.