महारानी बाग से नोएडा के लिए बस का इंतज़ार कर रहा था। आज इतवार होने की वजह से समस्या आ रही थी। इतने में डीटीसी की बस में ही सवार हो गया। डीटीसी बस का नोएडा तक का किराया बारह रुपये है जबकि ब्लू लाइन में इसका किराया दस रुपये है। मैंने कंडक्टर को 15 रुपये दिए... । कंडक्टर ने 12 रुपये के टिकट और दो रुपये का एक सिक्का थमाया और कहा कि एक रुपया आगे ले लेना, अभी खुल्ले नहीं हैं। मै टिकट लेकर अपनी सीट पर बैठ गया। मैंने देखा कि 5-6 और लोगों के साथ भी उसने ऐसा ही किय। कह रहा था कि एक रुपया खुल्ला दो और दो रुपये का सिक्का ले लो। एक दो लोगों ने वैसा ही किया। ज़ाहिर है ऐसे में उसके पास कम से कम दो-तीन एक रुपये के सिक्के आ ही गए होंगे। कई लोग बिना अपना एक रुपया लेकर अपने स्टॉप पर उतर गए। मेरा स्टॉप आने वाला था.... मैं सीट से उठा और कंडक्टर के पास जाकर अपना एक रुपया मांगा, कंडक्टर ने कहा कि एक रुपया दो और ये लो दो का सिक्का। मैंने कहा मेरे पास है नहीं ( मुझे उसकी बैग में एक रुपये के कई सिक्के दिख रहे थे)। मैंने कहा कि आप मुझे दो का सिक्का ही दे दीजिए.......। वो बोला क्यों? मैंने कहा क्यों का क्या मतलब, जब आप मेरा एक रुपया रखने को तैयार हैं तो क्या मुझे एक रुपया ज्यादा नहीं दे सकते?
"हमें हिसाब देना होता है"
मैंने कहा कम पैसों का तो हिसाब देना पड़ता आपको, और ज्यादा पैसों का हिसाब नहीं देते?
कंडक्टर बोला, एक रुपये की बात है और दिमाग खाए जा रहा है, ये ले एक रुपया ( ये कहते हुए उसने मेरे हाथ में एक रुपये का एक सिक्का थमा दिया)।
मैंने फिर कहा अभी तक तो आपके पास एक रुपया नहीं था, अभी कहां से आया,
इसके बाद कंडक्टर कुछ बुदबुदाता हुआ बाहर देखने लगा, बस रुकी और मैं उतर गया।
कुछ कंडक्टर सवारियों के एक एक रुपये लेकर दिन भर में जाने कितनी की कमाई कर लेते हैं।
ज़रा सोचिए, आपका एक एक रुपया जिसे आप यूं ही बेकार समझकर कभी कंडक्टर या कहीं और यूं ही बेपररवाही से छोड़ देते हैं, एक महीने में 30 रुपये बन जाते हैं। तीस रुपये में आप कम से कम एक समय का खाना तो खा ही सकते हैं.........।
"हमें हिसाब देना होता है"
मैंने कहा कम पैसों का तो हिसाब देना पड़ता आपको, और ज्यादा पैसों का हिसाब नहीं देते?
कंडक्टर बोला, एक रुपये की बात है और दिमाग खाए जा रहा है, ये ले एक रुपया ( ये कहते हुए उसने मेरे हाथ में एक रुपये का एक सिक्का थमा दिया)।
मैंने फिर कहा अभी तक तो आपके पास एक रुपया नहीं था, अभी कहां से आया,
इसके बाद कंडक्टर कुछ बुदबुदाता हुआ बाहर देखने लगा, बस रुकी और मैं उतर गया।
कुछ कंडक्टर सवारियों के एक एक रुपये लेकर दिन भर में जाने कितनी की कमाई कर लेते हैं।
ज़रा सोचिए, आपका एक एक रुपया जिसे आप यूं ही बेकार समझकर कभी कंडक्टर या कहीं और यूं ही बेपररवाही से छोड़ देते हैं, एक महीने में 30 रुपये बन जाते हैं। तीस रुपये में आप कम से कम एक समय का खाना तो खा ही सकते हैं.........।
अरे क्यूँ छोड़ दे १ रूपया भी... मेहनत की कमाई है...
... किसी लाचार को दो तो कम से कम दिल को तसल्ली तो होगी.
बहुत ही सटीक बात.....और बिलकुल गौर करने वाली ...जल्दबाजी में अक्सर लोग ऐसा कर जाते हैं...अच्छी पोस्ट.
बिल्कुल सही बात है हम क्यों एक रुपया छोड़ें जब वह एक रुपया नहीं छोड़ सकता।
Bat to badi fayde ki kahi apne. कभी मेरे ब्लॉग पर भी पधारें !!
बिल्कुल पते की बात की है, वाह जी!
ya phir khila sakte hain kisi gareeb ko. Abhar.
Mamooli si ghatna itna bada sawal utha raha hai ki bat ek rupaye ki nahi rah gayee balki ek prabritti ki ho gayee.
bahut achchha laga
bahut badiyaa kiyaa aadarsh jee is maamale me mai bhee aap jaisee hee hoon aur caahatee hoon ki sab log agar aisa karem to bhrashTaacaar rokane me ek rupaye jitanaa yog dan to Daal hee sakate hain aabhaar
आदर्श भाई हमारे यहां तो हम लोग एक एक पेसे का भी हिसाब रखते है, अगर हम खरीदरी करे तो दुकान दार एक पेसा भी वापिस करते है, ओर अगर आप समय के अभाव मै बिल ले कर निकल जाये तो बाकी पेसे ले कर दुकानदार आप के पीछे बाहर तक आयेगा, चाहे दस अन्य ग्राहको को इन्तजार करना पडे,
बस यही बाते है जो हमे सीखनी है, यही बाते है हमे माड्रन बना सकती है, फ़ादर डे, मदर डॆ नही, ओर ना ही यह गुलाबी चड्डी.
आप ने बहुत अच्छा लिखा, काश सभी लोग आप की तरह सोचे.
धन्यवाद
मुझे शिकायत है
पराया देश
छोटी छोटी बातें
नन्हे मुन्हे
भाई साहब अब तो एक रुपये की जगह टॉफी भी थमा देते हैं.....
बिल्कुल सटीक बात लिखी है. गौरतलब!
बढ़िया
कई बरसो से ये एक रूपया अपनी उसी जगह पे कायम है भाई....
आदर्श जी जब कमाते है तो पता चलता है कि एक रुपये की कीमत क्या होती है....
achhi baat !
कई बार एक रूपया भी बहुत मायने रखता है... अपने बेरोजगारी के दिनों में सिर्फ एक रुपये के चलते मुझे 100 रुपये उधार लेने पड़े थे... बात यूँ थी कि मुझे form भरने के लिए कुल 350 रुपयों कि आवश्यकता थी और मेरे पास २५० रुपये थे तथा मेरे बैंक अकाउंट में सिर्फ ९९ रुपये. अगर मेरे अकाउंट में एक रुपया और होता तो मैं ATM में से १०० रुपये निकाल सकता था. पर मुझे १०० रुपये अपने दोस्त से कर्ज लेने पड़े.
उस दिन और एक रुपये को हमेशा याद करता हूँ. इस लिए अब रोज जितने भी खुल्ले पैसे होते है उन्हें मैं अपने wardeob में जमा कर लेता हूँ. महीने के अंत में यही खुल्ले पैसे अछि-खासी रकम में बदल जाते है.
ये एक रुपया भी ख़ून-पसीने से आता है। शानदार लेख लिखा है। आज की हक़ीकत है। मुझे तो इस हालात से रोज़ ही रूबरू होना पड़ता है।