Aadarsh Rathore
पैसे लेकर खबर छापने वाले मुद्दे पर तो खूब चर्चा होती है लेकिन अभी भी कई ऐसे मुद्दे हैं जो पीछे छूट गए हैं। ये मुद्दे ऐसे हैं जो पैसे लेकर खबर छापने वाली बात से भी कहीं ज्यादा महत्वूपर्ण हैं। वैसा ही एक मुद्दा है "खबर न छापने के लिए पैसा लेना यानि ब्लैकमेलिंग"
हमारे बीच कुछ लोग ऐसे हैं जिनके पत्रकारिता मात्र एक धंधा है, एक चोखा बिज़नेस। PRESS कार्ड की मूक शक्ति को आधार बनाकर ये गिद्ध पत्रकार हर वह काला काम करते हैं जिसके खिलाफ आवाज़ उठाना एक पत्रकार की नैतिक ज़िम्मेदारी है। जी हां,

एक छोटे अखबार, लोकल टीवी चैनल से लेकर बड़े-बड़े मीडिया हाउसेज़ के पत्रकार इस गोरखधंधे में लिप्त हैं। आज अगर पत्रकारिता को ख़तरा है तो सिर्फ इन्ही 'गिद्ध' पत्रकारों से है जिनके लिए पत्रकारिता के आदर्श और मूल्य ज़रा भी मायने नहीं रखते। हिन्दुस्तान के हर शहर औप गली-मोहल्लों में आपको ऐसे लोग मिल जाएंगे जिन्होंने पत्रकारिता तो नोट छापने का धंधा बना रखा है।

पैसा लेकर खबर छापना अगर ग़लत है और इस मुद्दे पर इतना कोहराम मच सकता है तो पैसा लेकर खबर न छापने वाले लोगों का आप क्या करेंगे। खबर न छापने के एवज में पैसे की दरकार रखने वाले ये लोग दो तरह से अपने कारनामों को अंजाम देते हैं। एक तो ये ग़ैरकानूनी या असामाजिक काम करने वालों को ब्लैकमेल किया करते हैं। वो ये शर्त रखते हैं कि अगर उन्होंने पैसे नहीं दिए तो खबर छपवा देंगे या चैनल पर दिखा देंगे। इनका दूसरा तरीका होता है कि ईमानदार, रसूखदार और धनवान आदमी को षड्यंत्र में फंसाना। वो ऐसे लोगों के खिलाफ षड्यंत्र रचकर झूठी खबरें लगाते हैं। अपनी इज्जत को बचाने के लिए लोगों को गिद्ध पत्रकार का मुंह पैसे से बंद करना ही पड़ता है। भई मीडिया की शक्ति के आगे हर कोई बेबस है। आपके खिलाफ अगर मास मीडिया में कोई खबर आ गई तो आपकी इज़्ज़त की धज्जियां उड़ जाती हैं। कोर्ट में केस हो जाए और खबर ग़लत साबित हो जाए या अख़बार पूरे पेज पर माफीनामा क्यों न छाप दे.. गई इज्जत आसान से वापिस नहीं आती। इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने वाले पत्रकार अपराधी नहीं तो क्या हैं? जो समाज से सरोकार रखने वाली खबरों को दबाकर अपने ईमान का सौदा करते हैं और पत्रकारिता को नीलाम करते हैं....। इन पत्रकारों में कुछेक उसी तरह के दसटकिया पत्रकार भी होते हैं । ब्लैकमेलिंक के इस धंधे में बड़े मीडिया हाउसेज़ के लोग भी संलिप्त हैं। ये लोग बड़ी मच्छलियो को फांसते हैं।

आज भी कई लोग हैं जो अभावों में रहते हुए भी पत्रकारिता के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे हैं। लेकिन उन्हीं लोगों के बीच कई धनलोलुप ऐसे भी हैं जिनके लिए सिर्फ पैसे की ही अहमियत है। मै जानता हूं कि बिना पैसे से घर नहीं चलता। अगर पत्रकारिता करने से मिल रहे पैसे से घर नहीं चल रहा तो भाई ये लाइन छोड़ दो। और भी बहुत काम हैं दुनिया में...। लेकिन नहीं, वो क्यों ऐसा करेंगे? प्रेस कार्ड तो एटीएम कार्ड से भी शक्तिशाली है। हर गैरकानूनी काम प्रेस कार्ड और प्रेस के स्टिकर की आड़ में आसानी से किया जा सकता है। फिर भला क्यों कोई छोड़ इस फील्ड को?

इसके अलावा दिल्ली और एनसीआर में अल्पसंख्यकों और बहुसंख्यकों के हितैषी कई ऐसे अखबार चल रहे हैं जो जागृति के नाम पर विभ्रम और धार्मिक विद्वेष फैला रहे हैं। इन अखबारों का एक पन्ना पढ़ लो आप कितने भी धर्म निरपेक्ष हों, कट्टरवादी हो जाओगे। क्यों नहीं ऐसे प्रकाशनों के खिलाफ कोई आवाज़ उठाता है?

आज अगर पत्रकारिता को ख़तरा है तो सिर्फ 'गिद्ध' पत्रकारों से, उन लोगों से जिनके लिए पत्रकारिता के आदर्श और मूल्य ज़रा भी मायने नहीं रखते। ऐसे लोग जिनके लिए सिर्फ गुलाबी नोट मायने रखते हैं। आजकल पत्रकार ज्यादा हो गए हैं और श्रोता कम। हर-गली मोहल्ले में चौथा आदमी छाती पर प्रेस कार्ड टांगे फिरता है और हर दसवीं गाड़ी पर PRESS चस्पा रहता है। यही लोग पत्रकारिता के लिए खतरा हैं।

मैं समझता हूं पैसा लेकर खबर छापना/दिखाना गलत है या नहीं, इस विषय से पहले इस समस्या का इलाज किया जाना बेहद ज़रूरी है कि खबरों को पैसा लेकर दबाया न जाए। लेकिन इस ओर कौन ध्यान देगा? ये भी तो कमाई का एक ज़रिया है ही.... एक जाल है जो नीचे से लेकर ऊपर तक फैला हुआ है.....
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3 Responses
  1. प्रिय आदर्श जी..दरअसल समस्या एक दुसरे से जुडी हुई है..जितना गलत पैसे लेकर दिखाना है उतना ही पैसे लेकर खबर दबाना भी है.....और भी बहुत सी हैं जैसा की आपने खुद ही जिक्र किया है..अब पत्रकारिता वो मिशन वाली बात जैसी नहीं रही ...और पतन का रास्ता ढलान वाला है..सभी फिसलते जा रहे हैं...सामयिक विषय पर अच्छा आलेख .


  2. क्या आदर्श जी आप भी शुरु हो गये मीडिया को छुपे सच को उजागर करने में होता तो पहले से आया है अब बदलिये पहल करिया आवाज उठाइये


  3. आदर्श जी अब क्या कहे....