जी हां, मुझे मिली है हिन्दी बोलने की सज़ा। रवीश कुमार जी की पोस्ट पढ़ी जिसमे टॉयलेट में लगाए जा रहे अखबारों का जिक्र किया गया था। जब उनकी पोस्ट पर कमेंट कर रहा था तो मैंने टॉयलेट के बजाए एक दूसरा शब्द टाइप किया। लेकिन जैसे ही ये लिखा, कुछ पुरानी स्मृतियां उभर आईं। फिर क्या था, मैंने तुरंत यह शब्द डिलीट किया और टॉयलेट शब्द ही इस्तेमाल किया। दरअसल इस शब्द के साथ अनुभव ही ऐसा जुड़ा है कि आज भी डर लगता है लेकिन हास्यास्पद भी है।
मामला तब का है जब मैं दशम कक्षा में था। सामाजिक विज्ञान की क्लास थी। मेरी क्लास का एक छात्र रिेसेस में खेलते हुए गिर गया था जिससे उससे सिर पर गंभीर चोट आई थी। ऐसे में हमने उसे मरहम-पट्टी करवा घर भेज दिया था। अध्यापिका जी हाजिरी लगाते वक्त पूछा कि अमुक छात्र कहां है? मैं क्लास मॉनिटर हुआ करता था, सो मैंने घटना का ज़िक्र किया और बताया कि ऐसे-ऐसे वह घर चला गया है। अध्यापिका जी पूछती हैं वह कहां गिर गया...? इस पर मैंने जवाब दिया, ""जी जहां पर नया मूत्रालय बन रहा है, वहीं पर खेल रहा था। भागते वक्त वो गिरा और सिर सरिये से टकरा गया"। मेरा ये कहना था कि अध्यापिका महोदया के चेहरे के हाव-भाव बदल गए। उन्होंने गुस्से में तिलमिलाते हुए मुझसे कहा, "बदतमीज! तुम्हें शर्म नहीं आती....."ये कहते हुए उन्होंने छड़ी उठाई और मेरे पास आते हुए मुझपर दनादन प्रहार करना शुरु कर दिया। मैं कुछ समझ पाता इससे पहले उन्होंने मेरा कान मरोड़ते हुए मुझे क्लास से बाहर निकाल दिया। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैंने क्या कर दिया था। थोड़ी देर बाद मैडम को न जाने क्या लहर आई कि उन्होंने फिर से मेरी धुनाई शुरु कर दी। कहने लगी बदतमीज़.. तुमने कैसे कह दिया ये शब्द....। मैंने पूछा कौन सा शब्द....? उन्होंने कुछ जवाब नहीं दिया। क्लास छोड़ कर चली गईं और जाते वक्त बोलीं कि अभी तुम्हारे पिता जी से शिकायत करती हूं। मुझे समझ नहीं आया...।
मैं परेशान चल रहा था। सामाजिक विज्ञान की क्लास खत्म हो गई। अगली क्लास हिन्दी की थी। हिन्दी वाली मैडम मुस्कुराते हुए आईं और बोली क्या हुआ आदर्श? उन्होंने मेरी हालत देख ली थी। मुझे देखते ही ठहाका लगाकर हंस पड़ीं। उन्होंने कहा कि अरे घबराने की कोई ज़रूरत नहीं। मैंने पूरी घटना कह सुनाई...। उन्होंने कहा कि हां मुझे पता हैं, उन मैडम ने पूरे स्टाफ रूम में ये बात कही है। मैंने पूछा कि मैडम मेरी गलती क्या है? तो उन्होंने कहा कि तुम्हारी कोई गलती नहीं, दरअसल अनिता मैडम (परिवर्तित नाम) ने "मूत्रालय" शब्द को गलत समझ लिया है....। उन्होंने कहा "तुम चिन्ता मत करो, भरे स्टाफ रूम में उन्होंने ये बात बताई तो खुद मज़ाक का विषय बन गईं। आजकल ऐसे लोग अध्यापक बन गए हैं जिन्हें कुछ मालूम नहीं"।
उनकी बात सुनकर मेरी जान में जान आई और आंखों से दो आंसू ढुलक पड़े।
अगले दिन वो मैडम क्लास में आईं तो मुझसे नज़रें नहीं मिला रही थी। मैं भी उनसे नज़र नहीं मिलाना चाह रहा था। कल की पिटाई की टीस अब भी हथेलियों पर महसूस हो रही थी।
मेरे साथ ऐसे एक नहीं कई वाकये हुए हैं। ऐसा ही मामला उस वक्त का है जब कॉलेज में नया-नया गया था। इंट्रोडक्शन लेने आई एक सीनियर छात्रा ने मुझसे कुछ पूछा तो मैंने जो वाक्य कहा उसमें वरिष्ठ और कनिष्ठ (senior and junior) शब्द शामिल थे। अब वह इन शब्दों का अर्थ समझ नहीं पाईं और उन्होंने समझा कि मैंने उन्हें कोई गाली दी है। सच में, मैं मज़ाक नहीं कर रहा। इसके बाद उन्होंने अपने सारे मित्रो को बुला लिया। सभी मेरी पिटाई करने को उद्यत हो गए। मैंने उन्हें समझाया कि मैंने क्या कहा है... और इन शब्दों का अर्थ क्या है...। तब जाकर वो शान्त हुए और चले गए।
आज जब-जब इन घटनाओं की याद आती है तो चेहरे पर हल्की मुस्कान छा जाती है...
मामला तब का है जब मैं दशम कक्षा में था। सामाजिक विज्ञान की क्लास थी। मेरी क्लास का एक छात्र रिेसेस में खेलते हुए गिर गया था जिससे उससे सिर पर गंभीर चोट आई थी। ऐसे में हमने उसे मरहम-पट्टी करवा घर भेज दिया था। अध्यापिका जी हाजिरी लगाते वक्त पूछा कि अमुक छात्र कहां है? मैं क्लास मॉनिटर हुआ करता था, सो मैंने घटना का ज़िक्र किया और बताया कि ऐसे-ऐसे वह घर चला गया है। अध्यापिका जी पूछती हैं वह कहां गिर गया...? इस पर मैंने जवाब दिया, ""जी जहां पर नया मूत्रालय बन रहा है, वहीं पर खेल रहा था। भागते वक्त वो गिरा और सिर सरिये से टकरा गया"। मेरा ये कहना था कि अध्यापिका महोदया के चेहरे के हाव-भाव बदल गए। उन्होंने गुस्से में तिलमिलाते हुए मुझसे कहा, "बदतमीज! तुम्हें शर्म नहीं आती....."ये कहते हुए उन्होंने छड़ी उठाई और मेरे पास आते हुए मुझपर दनादन प्रहार करना शुरु कर दिया। मैं कुछ समझ पाता इससे पहले उन्होंने मेरा कान मरोड़ते हुए मुझे क्लास से बाहर निकाल दिया। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैंने क्या कर दिया था। थोड़ी देर बाद मैडम को न जाने क्या लहर आई कि उन्होंने फिर से मेरी धुनाई शुरु कर दी। कहने लगी बदतमीज़.. तुमने कैसे कह दिया ये शब्द....। मैंने पूछा कौन सा शब्द....? उन्होंने कुछ जवाब नहीं दिया। क्लास छोड़ कर चली गईं और जाते वक्त बोलीं कि अभी तुम्हारे पिता जी से शिकायत करती हूं। मुझे समझ नहीं आया...।
मैं परेशान चल रहा था। सामाजिक विज्ञान की क्लास खत्म हो गई। अगली क्लास हिन्दी की थी। हिन्दी वाली मैडम मुस्कुराते हुए आईं और बोली क्या हुआ आदर्श? उन्होंने मेरी हालत देख ली थी। मुझे देखते ही ठहाका लगाकर हंस पड़ीं। उन्होंने कहा कि अरे घबराने की कोई ज़रूरत नहीं। मैंने पूरी घटना कह सुनाई...। उन्होंने कहा कि हां मुझे पता हैं, उन मैडम ने पूरे स्टाफ रूम में ये बात कही है। मैंने पूछा कि मैडम मेरी गलती क्या है? तो उन्होंने कहा कि तुम्हारी कोई गलती नहीं, दरअसल अनिता मैडम (परिवर्तित नाम) ने "मूत्रालय" शब्द को गलत समझ लिया है....। उन्होंने कहा "तुम चिन्ता मत करो, भरे स्टाफ रूम में उन्होंने ये बात बताई तो खुद मज़ाक का विषय बन गईं। आजकल ऐसे लोग अध्यापक बन गए हैं जिन्हें कुछ मालूम नहीं"।
उनकी बात सुनकर मेरी जान में जान आई और आंखों से दो आंसू ढुलक पड़े।
अगले दिन वो मैडम क्लास में आईं तो मुझसे नज़रें नहीं मिला रही थी। मैं भी उनसे नज़र नहीं मिलाना चाह रहा था। कल की पिटाई की टीस अब भी हथेलियों पर महसूस हो रही थी।
मेरे साथ ऐसे एक नहीं कई वाकये हुए हैं। ऐसा ही मामला उस वक्त का है जब कॉलेज में नया-नया गया था। इंट्रोडक्शन लेने आई एक सीनियर छात्रा ने मुझसे कुछ पूछा तो मैंने जो वाक्य कहा उसमें वरिष्ठ और कनिष्ठ (senior and junior) शब्द शामिल थे। अब वह इन शब्दों का अर्थ समझ नहीं पाईं और उन्होंने समझा कि मैंने उन्हें कोई गाली दी है। सच में, मैं मज़ाक नहीं कर रहा। इसके बाद उन्होंने अपने सारे मित्रो को बुला लिया। सभी मेरी पिटाई करने को उद्यत हो गए। मैंने उन्हें समझाया कि मैंने क्या कहा है... और इन शब्दों का अर्थ क्या है...। तब जाकर वो शान्त हुए और चले गए।
आज जब-जब इन घटनाओं की याद आती है तो चेहरे पर हल्की मुस्कान छा जाती है...
हा हा हा
ha ha ha ha ha ha ha ha
Very funny.................
ऐसी हिन्दी बोलने का भी क्या फायदा जो किसी को समझ न आये
वाकई मज़ेदार घटना है
kisi bhi language me lough words use nai hone chahiye. lekin jin words ke baare me apne bataya hai wo utne mushkil to nai hai
क्या आदर्श बाबू
गप्पें मारने में तो आप उस्ताद हैं हा हा हा हा
हमको मिली जसकी सजा़.. हम वे खता कर न सके...
मजेदार..
Adarsh ji aap sahi kah rahe hai pr ab to hindi divas ko bhi hindi day likah jata hai
क्याकरे आर्दश जी अंग्रेज तो चले गए लेकिन अंग्रेजी छोड़ गए जिसके हम आज भी गुलाम बने हुए है...इसका सीधा असर पड़ रहा है हमारी मातृभाषा पर....जिसे बोलने पर हम आजकल शर्म महसूस करते है...
मजा आ गया. आपतो स्कूल और कॉलेज की बात करते हो. हम तो हमसे बड़े अधिकारीयों से भी हिंदी में ही बोलते थे और वह भी जान बूझ कर. हमारे पास तो तुरुप का पत्ता था. एक मद्रासी हिंदी में बोल रहा है. उनको सुनना ही पड़ेगा.हमें ख़ुशी है कि इस से हमारी प्रतिष्ठा बढ़ ही गयी थी.
रोचक संस्मरण!
आदर्श भाई सही कह रहे हो, ओर मुझे बहुत दिक्कत होती है, जब मेरे सामने कोई भारतीया अग्रेजी बोलता है, क्यो कि हिन्दी हमारी पहचान है,ओर अंग्रेजी गुलामी की पहचान है, हम अग्रेजी बोल कर अपने आप को पढा लिखा दिखाना चाहते है, यही वो लोग है जो अपने बाप को तो घर से निकालते है, ओर गोरो को अपना बाप कहते हुये इतराते है.
हाहाहाहा यार पहले नहीं बताया आपने कभी वैसे अक्सर ऐसी होता है। हिंन्दी का अल्प ज्ञान देश को गर्त में ले जा रहा है और साथ ही साथ हिन्दी भाषा को जोकि हमारी राष्ट्र भाषा भी है
haa ha haa hah a aha hah ahahaaaaaaaaaaahhaaaaaaaa