Aadarsh Rathore
एक वक़्त था
जब हम साथ रहते थे हमेशा
घर में
स्कूल में
मैदान की धूल में।
लेकिन आज
चाह कर भी मिल नही पाते।
ना जाने तुम कहाँ हो...
पर मुझे ख़ुद की भी तो ख़बर नहीं .....
जाने क्या हुआ है
ख़ुद को खो चुका हू
ऐसे में कैसे ढूंढूं तुम्हें
कहां ढूंढूं तुम्हें ?
सोचता था पहले
की तुम बदल गये हो
या फिर मैं ख़ुद बदल गया हू
लेकिन आज
दफ़्तर से आकर एहसास हुआ
कि ग़लती हमारी नही
जीने के लिए पैसा चाहिए
सिर्फ़ दोस्ती और भावनाएँ नही
और मजबूरी में सभी बंधे हैं
आप भी और मैं भी।
जिम्मेदारियों के बहाने
हम खुद तक सिमट जाते हैं,
फिर भी खुद को दोष न दें
आओ इसके लिए वक़्त को ज़िम्मेदार कहें
3 Responses
  1. बात वक्त की है नहीं खुद हैं जिम्मेवार।
    पैसे का भी मोल हो क्षमाशील व्यवहार।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com


  2. सही कहा आपने अब न अपनो के लिए वक्त है न अपने लिए ज किसी प्रिय की याद आती है तो टिस उठती है....


  3. सच ही तो हैं,
    सब कुछ किया है हमने लेकिन, था वो भी एक दौर जहाँ का
    अब बदला है वक़्त तो पूछे कौन है वो और तू है कहाँ का
    हम सही थे, अब नहीं हैं, इसको समय की मार कहें
    "आओ इसके लिए वक़्त को ज़िम्मेदार कहें"


    बेहतरीन प्रभु