Aadarsh Rathore
सरकारी कैलेंडर के ठीक बीचों-बीच लगी एक तस्वीर, जिस पर एक हरे रंग की हिमाचली टोपी पहने व्यक्ति का फोटोग्राफ है जो एक बेहद शालीन मुस्कान बिखेर रहा है। इस कैलेंडर को बचपन से देखता आया हूं। वीरभद्र सिंह का नाम सुनकर अब मन में सबसे पहले वही छवि उभर कर सामने आती है। इस कैलेंडर को बचपन से देखता आया हूं क्योंकि ज्यादातर बार वीरभद्र सिंह ही मुख्यमंत्री रहे और उनके वक्त छपने वाले सरकारी कैलेंडर्स में उनकी ही छवि रहती है। बीच मे एक बार शांता कुमार और एक बार धूमल साहब का फोटो भी सजा था। इन दिनों तो धूमल साहब ही लाल रंग की हिमाचली टोपी पहने हर कैलेंडर पर शोभायमान हैं।

5 बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे और इस बार लोकसभा के लिए चुने गए वीरभद्र सिंह कल मनमोहन सरकार के मंत्री पद की शपथ लेंगे। राजा साहब के नाम से लोकप्रिय वीरभद्र सिंह का हिमाचल की राजनीति में एक अलग स्थान है। वह कांग्रेस के वरिष्ठतम नेता हैं। कई लोगों ने राजा साहब को पछाड़ने की कोशिश की। विद्या स्टोक्स और कई दूसरे लोगों ने राजा साहब को पार्टी नेतृत्व से हटाना चाहा, लेकिन ये उनकी योग्यता और राजनीतिक सूझबूझ ही थी कि वह न केवल आज भी पार्टी में सम्मानित पद पर हैं बल्कि उनके विरोधी खुद आज अपनी ज़मीन तलाश रहे हैं।

वीरभद्र सिंह ने सन् 1962 में अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की ती। तब से लेकर उन्होंने आज कर कई बार चुनाव लड़े और हर बार जीत हासिल की। राजा साहब सात बार विधायक रहे, पांच बार प्रदेश के मुख्यमंत्री और इस बार लोकसभा में बतौर सांसद चुनकर आए हैं। वह लोकसभा में पांचवीं बार चुनकर आए हैं। पिछले 47 सालों से वीरभद्र सिंह लगातार राजनीति में हैं। उन्होंने इस बार अपनी पत्नी प्रतिभा सिंह की जगह मंडी सीट से चुनाव लड़ा था। इस बार हिमाचल में बीजेपी की सरकार है और मंडी लोकसभा सीट में ज्यादातर बीजेपी के ही विधायक हैं। ऐसे में वीरभद्र की हार तय मानी जा रही थी। लेकिन उन्होंने न केवल अपने प्रतिद्वंदी को 13,000 से ज्यादा मतों से हराया बल्कि वह पूरे प्रदेश से अकेले कांग्रेसी सांसद है। राजा साहब के नाम से लोकप्रिय वीरभद्र सिंह ने इस बार 29 साल बाद लोकसभा चुनाव लड़ा था। इस बार मंडी लोकसभा सीट से बीजेपी के महेश्वर सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ते हुए उन्होंने जबर्दस्त करिश्मा दिखाया। राजा साहब ने सात बार विधायक पद का चुनाव भी लड़ा और हर बात जय हासिल की। वीरभद्र सिंह 1962, 1967, 1972, 1980 में भी लोकसभा सदस्य रहे हैं। इसके अलावा वे 1983, 1985, 1990, 1993, 1998, 2003 तथा 2007 में विधायक रहे। इनमें से सन् 1983,1985, 1993, 1998 और 2003 में वो मुख्यमंत्री के पद पर काबिज रहे। पार्टी में वरिष्ठता के क्रम और हिमाचल प्रदेश के अकेले सांसद होने के कारण उन्हें कैबिनेट में जगह मिल रही है। इससे पहले भी वीरभद्र सिंह 1976 से 1977 तक केंद्र में क्रमश: नागरिक उड्डयन तथा पर्यटन राज्यमंत्री और 1982 से 1983 तक केंद्र में उद्योग राज्यमंत्री रहे हैं।

वीरभद्र सिंह को कैबिनेट में जगह मिलना वाकई सम्मान की बात है। वीरभद्र सिंह के केंद्रीय राजनीति में चले आने से उनकी पार्टी में उनके विरोधी काफी खुश नज़र आ रहे हैं। क्योंकि जब तक वीरभद्र हिमाचल में हैं, कांग्रेस का उनसे अलग कोई वजूद नज़र नहीं आता। लेकिन सही है कि वह केंद्रीय राजनीति में आ गए। एक तो उनके अनुभव से देश को फायदा होगा वहीं प्रदेश में नई पीढ़ी के लोगों को भी आगे बढ़ने का मौका मिलेगा।

चलिए, कैबिनेट पद तो मिला। इसस बहाने प्रदेश का भला तो होगा। वरन् राज्य में है बीजेपी की सरकार और केद्र में कांग्रेस की। विकास के लिए मिलने वालें फंड्स में भेदभाव और तमाम दूसरे आरोप लगते। अब कम से कम सूबे के विकास के लिए और जनता का नेतृत्व करने के लिए कोई तो मौजूद है। समस्त हिमाचल वासियों को बधाई, भले ही वह किसी भी पार्टी से ताल्लुक रखते हों।
2 Responses
  1. बहुत सुंदर लगा आप का यह लेख, लेकिन यह सिर्फ़ भारत मै ही भेदभाव है केन्दर की सरकार ओर राज्य की सरकार, ओर सजा भुगती है जनता


  2. भाई,
    हिमाचल के राजा साहब की बात ही कुछ और है। ये सही है कि राजतंत्र अब नहीं रहा, लेकिन उनकी जीत इस बात का सुबूत है कि वो हिमाचलियों के दिल पर अब भी राज करते हैं। आपने बिल्कुल सटीक और तथ्यपरक लिखा है।