नंगे तन, भूखे पेट रहकर
दिन भर इधर-उधर घूमा करते हैं हम
हर किसी आने जाने से वाले के सामने
तानते हैं अपनी हथेली,
रहती है एक उम्मीद
कि कोई तो पढ़ेगा इसकी लकीरों को
और बताएगा हमें
कि कब तक जीना पड़ेगा इस तरह...
लेकिन लोग बहुत चालाक हैं
हमारे सवालों के जवाब नहीं देते,
देते हैं तो एक सिक्का..
थमा देते हैं हथेली में
रिश्वत के तौर पर
ताकि हम खामोश रहें...।
(ऊपर वाली तस्वीर अभी-अभी ऑफिस से घर आते वक्त खींची है, लाजपत नगर फ्लाई ओवर के नीचे चौराहे पर एक लड़का चिलचिलाती धूप में एक नन्हे से बच्चे को उठाए गाडियों के बीच घूम रहा था)
दिन भर इधर-उधर घूमा करते हैं हम
हर किसी आने जाने से वाले के सामने
तानते हैं अपनी हथेली,
रहती है एक उम्मीद
कि कोई तो पढ़ेगा इसकी लकीरों को
और बताएगा हमें
कि कब तक जीना पड़ेगा इस तरह...
लेकिन लोग बहुत चालाक हैं
हमारे सवालों के जवाब नहीं देते,
देते हैं तो एक सिक्का..
थमा देते हैं हथेली में
रिश्वत के तौर पर
ताकि हम खामोश रहें...।
(ऊपर वाली तस्वीर अभी-अभी ऑफिस से घर आते वक्त खींची है, लाजपत नगर फ्लाई ओवर के नीचे चौराहे पर एक लड़का चिलचिलाती धूप में एक नन्हे से बच्चे को उठाए गाडियों के बीच घूम रहा था)
लोग बहुत चालाक हैं
हमारे सवालों के जवाब नहीं देते,
देते हैं तो एक सिक्का..
थमा देते हैं हथेली में
रिश्वत के तौर पर
ताकि हम खामोश रहें...।
bahut sundar rachna...
हृदयस्पर्शी रचना!!
बहुत मार्मिक ..
अच्छी रचना...थोड़ा और बढ़ा सकते थे...भावनाओं को व्यक्त करने में कैसी कंजूसी
rathod sahab॥ panktiya दिल को choo gayin।
शुभकामनाये॥
लेकिन हकीकत कुछ इतर है इससे। असल में होता ये है की वो बच्चा २० रस में किराये पर laya गया होता है। पत्रकार है तो क्यों नही इस स्टोरी को jutkar अंजाम देते। मोटे असामी भी जुड़े हैं इस धंधे में।। जरुरी सुचनाये मैं उपलब्ध करता हू आपको। मेरा संपादक तो तज खड़े कर चुका शायद आपका मन जाए पर मुझे आशा नही क्यूकि आपके मालिक तो हमारे शहर से ही हैं।
nice & immotional poem