अभी-अभी नाइट शिफ्ट से लौटा हूं। मारे नींद के पलकों में तिनके से चुभ रहे हैं... लेकिन उससे भी तेज़ चुभन सीने में हो रही है। सोना चाह रहा हूं लेकिन सोने से पहले मन में उठे गुस्से को शब्दावली में पिरोकर व्यक्त कर देना चाहता हूं। मारे गुस्से के भंवे तनी हुई हैं। उंगलियां की बोर्ड पर ताण्डव कर रही हैं। दरअसल ऑफिस से आते वक्त रास्ते में एक ऐसी घटना हुई जिसने मुझे विचलित कर दिया है। ऑफिस से आ रहा था। महारानी बाग पहुंचे तो देखा एंबुलेंस का सायरन सुनाई दिया। पीछे देखा तो कैलाश अस्पताल नोएडा की एक एंबुलेंस आ रही थी। मेरी कैब के ड्राइवर ने तुरंत कार को लेफ्ट में लिया और एंबुलेंस को पास दे दिया....। इसके बाद क्या देखता हूं कि कोई भी गाड़ी एंबुलेंस को रास्ता नहीं दे रही। अजब हाल है.... लम्बी-लम्बी एसी लगी गाड़ियों में चश्मा लगाए बैठे लोग जान बूझकर रास्ता नहीं दे रहे थे। शायद ज्यादा ही पढ़े-लिखे और सभ्य जो हैं। ऐसी भी क्या भागादौड़ी और होड़ जो किसी की ज़िंदगी से बढ़कर हो...। जब तक हमारी कैब लाजपत नगर फ्लाईओवर के नीचे से लेफ्ट नहीं मुड़ गई तब तक उस एंबुलेंस को किसी ने रास्ता नहीं दिया था। ऐसा नहीं था कि भारी जाम था लेकिन हर को एक-दूसरे को ओवरटेक करने में इस तरह लगा था जैसे पिता की बारात में जा रहा हो। उन लोगों को इतना भी खयाल नहीं आया कि कल को उस एंबुलेंस में वो खुद या उनका कोई करीबी हो सकता है। लोग संवैधानिक दायित्वों से अलग नैतिक दायित्वों को निभाना भी भूल गए हैं लोग। मानवता आचरण से निकलकर लेखन के दायरे में सिमट कर रह गई है। लोग अपने अधिकारों को भुनाने के लिए ज़मीन-आसमान एक कर देते हैं लेकिन जहां कर्तव्य पालन की बात आ जाती है वहां सभी अंधे और बहरे हो जाते हैं। एक फिल्म देखी थी दक्षिण भारत मे बनी हुई, अपरिचित.... काश कोई वैसा ही अपरिचित आता जो इन को सबस सिखाता...
दुख तब होता है जब आप अपने स्तर पर हमेशा सही आचरण करने की कोशिश करते हैं लेकिन कोई दूसरा कोई गलत काम कर दे। ये चीज़ सहन नहीं होती। गु्स्सा भी आता है और रोना भी...
दुख तब होता है जब आप अपने स्तर पर हमेशा सही आचरण करने की कोशिश करते हैं लेकिन कोई दूसरा कोई गलत काम कर दे। ये चीज़ सहन नहीं होती। गु्स्सा भी आता है और रोना भी...
लोग संवेदहीन हो गए हैं, अच्छी पोस्ट
मेरे चिट्ठे पर भी पधारें...
http://1kalpna.blogspot.com
aaj logon ke seene mein dil kahan hain jo soch sakein,sabhi samvedanheen ho gaye hain.
ye vayvhar to unhein tab yaad aata hai jab khud par gujarti hai.
किसको फुर्सत देखते अब लोगों का हाल।
सम्वेदन के भाव में प्रायः सब कंगाल।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
यही भारतीय वयवस्था है..!सभी इसका हिस्सा बने हुए है..लेकिन कोई इसे बदलना नहीं चाहता ..अकाल तभी आती है जब कोई अपना शिकार होता है...
aapne sahi kaha ...ab logon ko kisi ki parvaah nahi rahi ...bhagdaud ki zindgi mein ...sab bhool gaye hain
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
अब कोई किसी के बारे में नहीं सोचता
अपने बारे में सोचने से फुर्सत नहीं बची
समाज में संवेदनहीनता का जो नमूना आपने देखा है....बस एक बानगी भर है...आज समाज में बहुसंख्य लोग इतने खुदगर्ज़ हो गए हैं कि मैं बयान नहीं कर सकता.....मैंने कई बार लोगों को रोड एक्सीडेंट में तड़पते देखा है...उसे अस्पताल पहुंचाने की हिमाकत की है...लेकिन बहुसंख्य लोग नहीं करते ...अब शायद मैं भी नहीं क्योंकि एक मामले में मेरे भी हाथ जले हैं....पर साईड देने में किसी का कुछ नहीं जाता.......
लग्जरी सवारी में बैठ कर मठाधीशी दिखाने वाले हजारों मिलते हैं। ये लोगों को समाज में ऐसा दिखाते हैं जैसे उनसे बड़ा समाज का ठेकेदार और कोई नहीं। ये कलयुग है मेरे भाई जो जिसको रस्ता दिखाता है वो उसे कुचल कर चला जाता है।