देखो आज फिर वह मूर्ख
दमभर नाच रहा है,
दीवाली आने में देर है
फिर भी पटाखे छोड़ रहा है,
होली तो हाल ही में बीती है
पर गुलाल उड़ा रहा है,
ईद भी आसपास नहीं
फिर भी गले मिल रहा है।
नाचता है हर साल
चुनाव परिणाम घोषित होने पर
खुश होता है इसी तरह
अपने नेता के जीतने पर।

पीढ़ियों से वह नाच रहा है
परंपरा को निभा रहा है,
पिता से मिली विरासत को
अपने बेटे को सिखा रहा है।
आंखों का पानी सूख चुका है
पर फाड़कर होंठ मुस्का रहा है
भूखे पेट, चिथड़ों में लिपटा हुआ
देखो वह मूर्ख फिर नाच रहा है।
दमभर नाच रहा है,
दीवाली आने में देर है
फिर भी पटाखे छोड़ रहा है,
होली तो हाल ही में बीती है
पर गुलाल उड़ा रहा है,
ईद भी आसपास नहीं
फिर भी गले मिल रहा है।
नाचता है हर साल
चुनाव परिणाम घोषित होने पर
खुश होता है इसी तरह
अपने नेता के जीतने पर।

पीढ़ियों से वह नाच रहा है
परंपरा को निभा रहा है,
पिता से मिली विरासत को
अपने बेटे को सिखा रहा है।
आंखों का पानी सूख चुका है
पर फाड़कर होंठ मुस्का रहा है
भूखे पेट, चिथड़ों में लिपटा हुआ
देखो वह मूर्ख फिर नाच रहा है।
अब कया कहे.... इस मुर्ख के बारे, क्या करे ? शायद इस के बेटे सयाने होगे तो कुछ अलग करे,
बहुत सुंदर
धन्य्वाद
यह अज्ञानता ही तो इस देश का दुर्भाग्य है।
नाचता है हर साल
चुनाव परिणाम घोषित होने पर
खुश होता है इसी तरह
अपने नेता के जीतने पर
आदर्श जी बहोत अच्छी रचना...!
पर ये कविता के बीच इतनी गैप क्यों....?
और अगर ये अन्दर लगी तस्वीर आपकी ही है तो कृपया इसे बाहर लगायें ...इससे टिप्पणीकारों को सुविधा होती है....!!
अरे वाह आदर्श... यही है प्याला..
असली प्याला, असली ज़ायका....
Good Post
Keep writing
अच्छी रचना आदर्श...इसी को आदर्श मानकर अर्ज़ किया है......
नाच रहा है या फिर नचाया जा रहा है ??
खुद बन रहा है या बनाया जा रहा है ??
उसकी कोई मजबूरी तो नहीं ??
हर नाचने वाला मूर्ख हो, ज़रूरी तो नहीं ??
कहीं उम्मीदें, तो कहीं लाचारी.....
किसी को बेगारी, तो कभी बेकारी...
अशिक्षा......अज्ञानता
किंकर्तव्यविमूढ़ मानसिकता
काम न मिल पाने की चिंता
अच्छे-अच्छों को नचाती है,
रैलियों की भीड़ बढ़ाती है,
जोर-जोर से नारे लगवाती है,
तारीख कोई भी हो, अप्रैल फूल बना जाती है।