सबसे पहले तो होली की शुभकामनाएं...। कल होली खेलने में इतना मशगूल रहा कि ब्लॉग को समय ही नहीं दे पाया। लेकिन मैंने एक दिन पहले ही प्याले में रंग भर दिए थे। कल पूरा दिन होली खेलता रहा। रंगों के इस त्यौहार का बड़ी बेसब्री से इंतज़ार करता हूं। पिछली बार मैं होली के अवसर पर अपने घर (हिमाचल) में था। इस बार दिल्ली में होली मनाई। घर की होली की याद तो आ रही थी लेकिन मैंने तय कर लिया था कि होली को खूब धूम के साथ मनाऊंगा ताकि घर की होली कि कमी न खले। सुबह 6 बजे उठा, कपड़े बदले, श्वेत शर्ट पहनी ताकि उसमें रंग गिरकर और उभर कर आएं। उसके बाद अपने सोते हुए मित्रो को जगाने का और विश करने का काम शुरु किया। सभी का चेतावनी दे देता था कि 10 गिनने से पहले बिस्तर छोड़कर उठ जाओ नहीं वहीं पर रंग लगा दूंगा। फिर क्या था, सभी को होली लगाईष किसी ने आनाकानी की तो उसे वहीं पर रंग दिया। मेरे पीजी में विभिन्न धर्मों का अनुसरण करने वाले लड़के रहते हैं। सभी के साथ होली खेली और सभी ने मस्ती से खेली। उसके बाद किया ब्रेकफास्ट, पन्नू अंकल (पीजी चलाने वाले) ने बढ़िया खाना बनाया था। उसके बाद हमनें तय किया बाहर चला जाए। सभी लोग टोली बनाकर चल दिए। एक ढोल वाला पकड़ा और उसके साथ संत नगर, प्रकाश मोहल्ला और अमर कॉलोनी (लाजपत नगर) घूमने निकल दिए। इस मौके पर बच्चों की मिसाइलनुमा पिचकारियों और बम रूपी गुब्बारों के प्रहार से भी बचते रहे। काफी कोशिश की लेकिन आखिर में भीग ही गए। हम में से सभी की कोशिश यही रहती कि किसी मोहक बाला के हाथों से फैंका गया एक गुब्बारा हमें गिर जाए। जिसके ऊपर ये गुब्बारा गिरता वह धन्य हो जाता। दुरर्भाग्य से ऐसे एक भी गुब्बारे का स्पर्श मुझसे नहीं हुआ। मैं तो हतोत्साहित ही हो गया, कि क्या लड़कियां मुझपर एख गुब्बार भी वेस्ट नहीं करना चाहतीं। खैर ये अकाल उस वक्त टूटा जब मेरे मित्र अभिषेक की तरफ फेंका गया गुब्बारा गलती से मुझे लग गया(लम्बे-चौड़े शरीर का कुछ तो फायदा हुआ)। इसके बाद थकहार कर हम पीजी लौट आए। खाना खाया और आराम किया। शाम होते ही बाहर निकले और मिष्ठान्न खाया। कुल मिलाकर ये यादगार होली रही। हालांकि हिमातल में तो हम होली की टोली के साथ गांवभर में घूमते हैं। उसका आनन्द यहां नहीं मिल पाएगा। अहसास हुआ, आदमी पैसे से महंगे रंग, पिचकारी आदि खरीद सकता है लेकिन आन्नद नहीं। पैसे से सब कुछ नहीं खरीदा जा सकता। आपकी होली कैसी रही। एक दो पंक्तियों में ही अनुभव बांटें।
लघुकथा की भाषिक संरचना / बलराम अग्रवाल
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यह लेख मार्च 2024 में प्रकाशित मेरी आलोचनात्मक पुस्तक 'लघुकथा का साहित्य
दर्शन' में संग्रहीत लेख 'लघुकथा की भाषिक संरचना' का उत्तरांश है। पूर्वांश
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2 weeks ago
आपकी होली तो लाजवाब रही...होली के पावन पर्व पर मंगलकामनाएँ....हमारी होली कुछ इस तरह रही...सुबह सुबह सूरज ने अपनी सुनहरी किरणों से रंग दिया...फिर देश के अलग अलग हिस्सों मे जाकर होली मनाई (टीवी न्यूज़ चैनल देखकर) शाम के ढलते सूरज ने भी लाल रंग डाल दिया..फिर कुछ फोन और सन्देशों की मिठास से मुँह मीठा कर लिया :) हुई न हमारी होली भी यादगार !!
जी बिल्कुल। बधाई आपको ..... टीवी पर होली देखने का भी अलग ही आनन्द है। लोग आजकल घरों से बाहर भी नहीं निकल रहे। इस बार जाने क्यों होली कुछ फीकी सी नज़र आई। पिछली से पिछली होली दिल्ली में ही मनाई थी लेकिन उसमें बहुत जोश था। इस बार मंदी वजह रही या कुछ और लेकिन वह जोश देखने को नहीं मिला।
होली मुबारक हो आपको..... आपने सही कहा कि होली में इस बार कुछ मज़ा नहीं आया
HAPPY HOLI...
भाई मैं भी खूब होली खेला
मजा आ गया है, फोटो भी खींचा हूं, आओगे तो दिखाउंगा
भाई होली हो तो ऐसी... होली की शुभकामनायें...
भैया हम तो ना होली में रंग खेलते हैं ना दिवाली में पटाखे फ़ोड़ते हैं. इस मामले में थोड़ा न्यूट्रल टाइप के आदमी हैं.
happy holi!!!