Aadarsh Rathore
संभलकर चलना तो फ़ितरत में था शुमार
वो तस्वीर क्या देखी कि लड़खड़ाए रहे हैं

ज़ुल्फ़ें पसरी हैं उनकी सिरहाने की तरह
वो जगाकर लाखों अरमान ख़ुद ढहे जा रहे हैं

शायर बन बैठी है रुख़सार पर बिखरी हथेली
ख़ुद पर ही वो कई अशआर कहे जा रहे हैं

नाज़ुक उंगलियों में वो नन्हे से नाख़ून
दिल की गहराइयों में कहीं गड़े जा रहे हैं

इक कोने से झलकी है मासूम सी मुस्कान
लबों के छोर से कुछ मोती झरे जा रहे हैं

बंद आंख दिखाती जा रही है कई ख़्वाब
ख़ुद हर अज़ाब को चुपचाप सहे जा रहे हैं

तिल पर ठहरी नज़र तो कौंधी हिदायत- आदर्श
ज़रा थामिए अपनी निगाह, कहां बहे जा रहे हैं
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