लोगों से भरे इस शहर में
जहां एकांत ढूंढकर भी नहीं मिल पाता,
ऐसे माहौल में भी
क्यों अकेला महसूस करता हूं मैं?
जिंदगी के सफर में
मिला हूं असंख्य लोगों से
और रोज़ाना मिलता हूं कईयों से
करता हूं बातें हज़ार
बावजूद इस सब के
क्यों अकेला महसूस करता हूं मैं?
इस अकेलेपन में
जाने क्या हो जाता है
दर्द गुस्से में
और गुस्सा दर्द में बदल जाता है,
समझ नहीं आ रहा है मुझे
क्यों अकेला महसूस करता हूं मैं?
* * * * * * * * *
(कुछ हिस्सा छोड़ रहा हूं जिसे बाद में प्रकाशित करूंगा)
घर से दूर इस जगह पर
कोई नहीं है मेरे साथ
जो मुझे दुख में संभाले मुझे
और मुझे खुश होता देख सके
शायद यही वजह है
इसीलिए अकेला महसूस करता हूं मैं
कोई नहीं थामता मेरा हाथ
जब लड़खड़ाते हैं मेरे कदम
कोई कंधा नहीं होता
जो सोख सके मेरे आंसुओं को
शायद इसीलिए अकेला महसूस करता हूं मैं......
जहां एकांत ढूंढकर भी नहीं मिल पाता,
ऐसे माहौल में भी
क्यों अकेला महसूस करता हूं मैं?
जिंदगी के सफर में
मिला हूं असंख्य लोगों से
और रोज़ाना मिलता हूं कईयों से
करता हूं बातें हज़ार
बावजूद इस सब के
क्यों अकेला महसूस करता हूं मैं?
इस अकेलेपन में
जाने क्या हो जाता है
दर्द गुस्से में
और गुस्सा दर्द में बदल जाता है,
समझ नहीं आ रहा है मुझे
क्यों अकेला महसूस करता हूं मैं?
* * * * * * * * *
(कुछ हिस्सा छोड़ रहा हूं जिसे बाद में प्रकाशित करूंगा)
घर से दूर इस जगह पर
कोई नहीं है मेरे साथ
जो मुझे दुख में संभाले मुझे
और मुझे खुश होता देख सके
शायद यही वजह है
इसीलिए अकेला महसूस करता हूं मैं
कोई नहीं थामता मेरा हाथ
जब लड़खड़ाते हैं मेरे कदम
कोई कंधा नहीं होता
जो सोख सके मेरे आंसुओं को
शायद इसीलिए अकेला महसूस करता हूं मैं......
बेहद शानदार लाइनें हैं दोस्त। वैसे भी ज़िंदगी हमें चलना और सिर्फ़ चलना सिखाती है।
बढ़िया ! मुझे तो इस दर्द का एक ही इलाज दिखता है, किसी को रोने को अपना कंधा दे दो, किसी को गिरने, लड़खड़ाने पर सहारा। शायद दस को दोगे तो एक तो अपना सहारा भी बन ही जाएगा।
घुघूती बासूती
वाह ! भीड़ है क़यामत की और हम अकेले हैं।
हम जेसे बहुत है इस भीड मै... कभी ना कभी कोई मिल ही जाता है... लेकिन अगर हम पहचान पाये तब... वरना चल अकेला चल अकेला तेरा मेला...
धन्यवाद
"जाने क्या बात थी आबाद इस बस्ती की
के हर जिस्म में अनेको तन्हाईया भी रही "
akelepan se bahut sahi rubaru kia hai,bahut sundar
kitna akela hai aadarsh... koi to jodidar milna hi chahiye...
आदमी शुरू से ही रिश्तों के आवरण में रहता है, प्यार दुलार और फटकार साथ-साथ चलती है। समझ सकता हूं अब वो चीज नही मिल पा रही है अब उन ख्यालों से ही काम चलाओं जिनको अपने चांद वाली कविता में सजाया है।
हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी
फिर भी तनहाईयों का शिकार आदमी।।
bheed me gum ho gaye hain we sparsh
gum ho gayi hai aatmiyataa
gum hai har apnapan
bas waqt sitiyaan bajata bhag raha hai........
haan isiliye akela mahsus hota hai !
आपकी लाइनें बेहतरीन....
मेरा सुझाव...
तू जिन्दगी का साथ निभाता चला जा...
हर फिकर को धुएँ में उडाता चला जा...
तेरी ही चाहत के सपनो में खोये मोहब्बत के रस्ते पर हम चाल पड़े थे,
ज़रा दूर चलके जो आँखें खुली तो कड़ी धूप में हम अकेले खड़े थे.
बहुत उम्दा लिखा है आपने.
आपका दोस्त राजीव
where you come from!