देर रात ऑफिस से घर लौटा। बगल वाले कमरे की लाइट अब भी जल रही थी। वैसे जब तक मैं ऑफिस से वापस आता था तब तक पेइंग गेस्ट में सभी सो चुके होते थे।( मैं एक पेइंग गेस्ट में रहता हूं)। अपने कमरे में जाने ही वाला था कि साथ वाला दरवाज़ा खुला....
आदर्श भाई आ गए...
अमित, सोए नहीं अभी तक...............
बस अभी-अभी रब ने बना दी जोड़ी देख कर आ रहा हूं.
कैसी लगी?
बढ़िया है.....। लेकिन वो बात नहीं......
बस ऐसे ही इस फिल्म पर चर्चा होने लगी। एक दिन पहले मैं भी इस फिल्म को देख चुका था। फिल्म की कहानी बेहद साधारण और बचकानी सी लगी थी। जाने मुझे क्यों लगा कि इस कहानी पर फिल्म बननी ही नहीं चाहिए थी। लेकिन फिर भी इस फालतू कहानी पर बेहतरीन फिल्म बनी। इस फिल्म में कहानी के अलावा सभी कुछ बेहतरीन था। उम्दा फिल्मांकन, बेहतरीन निर्देशन और ऊपर से बेहतरीन अभिनय। कोई कह नहीं सकता कि अभिनेत्री अनुष्का की ये पहली फिल्म है। खैर मैंने नोटिस किया कि अपनी आदत के ठीक वीपरीत अमित आज उदास था। पूछने पर पहले तो टरकाता रहा लेकिन थोड़ा ज़ोर डालने पर उसने उदासी का कारण बता ही दिया ....
भैया..... आज प्रियंका से झगड़ा हो गया!!!! (अमित की प्रेयसी)
अरे कोई बात नहीं इस तरह के छोटे-मोटे झगड़े तो होते रहते हैं। आराम से बात कर लेना, सुबह तक सब ठीक हो जाएगा?
अरे उसने कुछ ऐसी बात कह दी मुझे बहुत गुस्सा आया।
बात क्या हुई?
इसके बाद अमित ने घटना बताई तो मुझे बहुत ज़ोर से हंसी आई। लेकिन साथ में एक सवाल भी उठ खड़ा हुआ। सारा मामला इस फिल्म और फिल्म के संवाद से ही उठ खड़ा हुआ था. फिल्म में नायक नायिका से पूछता है कि आखिर एक लड़की क्या चाहती है? नायक क्या पूछना चाह रहा था ये ही समझ में नहीं आया। लड़की हो या लड़का, सबकी अपेक्षाएं समान होती हैं। इस तरह का सवाल पूछना अटपटा सा लगता है। और फिर इस पर नायिका का ये जवाब कि "एक लड़की चाहती है कि कोई उससे इतना प्यार करे कि जितना किसी ने कभी किसी से न किया हो"।
प्रियंका के मन में भी यही भूत सवार हो गया। वो अपने अमित में मज़ाकिया लहज़े में शिकायत करने लगी कि तुम तो मुझे ऐसा प्यार नहीं करते। भले ही उन्होंने ये बात मज़ाक में कही हो लेकिन अमित को ये बात चुभ गई। और चुभेगी ही....। क्या प्यार वही होता है जिस तरीके से फिल्मों में दिखाया जाता है? और दूसरा ये कि अगर लड़कियां ये चाहती हैं कि उन्हें बहुत ज्यादा प्यार करने वाला मिले, तो लड़के ऐसा नहीं चाहते क्या? दरअसल समस्या ये है कि जिंदगी की प्रेम कहानी में भी लड़कियां मुख्य भूमिका में रहती हैं। बेशक प्यार दोनों को होता है लेकिन लड़के ही प्रेम का इज़हार करते हैं और लड़कियां अपने हिसाब से उस प्रस्ताव को स्वीकार या अस्वीकार करती हैं। यानि ज्यादातर मामलों मे देखा जाए तो अंतिम चुनाव का अधिकार लड़कियों के पास रहता है। ऐसे में बाद में किसी तरह के दोष के लिए लड़कों को क्यों दोषी ठहराया जाता है?
दूसरा वाकया है एक चाट वाले के पास का। कल चाट वाले के पास खड़ा गोलगप्पे खा रहा था। दो बालाएं वार्तालाप कर रही थीं, बातचीत इसी फिल्म के ऊपर थी। और सवाल वही कि लड़के क्या चाहते हैं, दूसरी बाला ने इस सवाल का जो जवाब दिया उसे सुनकर मेरे गोवगप्पा हाथ में ही टूट गया। हमारे समाज में एक बात का प्रचलित है कि लड़कियां भावनात्मक आधार पर प्यार करती हैं और अपने प्रेमी से भावनात्मक समर्थन चाहती हैं जबकि लड़के सिर्फ यौन आकर्षण से बंधे होते हैं। लड़कों पर अक्सर इल्ज़ाम लगा दिया जाता है कि वो लड़कियों को इस्तेमाल करते हैं। हैरानी की बात है कि हर कोई इस धारणा का समर्थन करता नज़र आता है। जब कोई किसी की सहमति के बिना किसी के साथ बात नहीं कर सकता तो भला किसी का इस्तेमाल कैसे करेगा? और क्या ये बात लड़कियों पर लागू नहीं होतीं? खैर ये सब तो लम्बी बहस का हिस्सा है और इस पर आम राय कभी बन भी नहीं पाएगी। जिसका जैसा अनुभव, वैसी उसकी धारणा। क्या कभी लड़कियों ने किसी लड़के के भावनात्मक पहलू को जानने की कोशिश की है कि वो क्या चाहता है? बाहों में बाहें डालना, साथ में मूवी देखने जाना (पीवीआर से कम नहीं), किसी पार्क में जाकर "बातचीत" करना सभी को नहीं भाता..। एक लड़का चाहता है एक ऐसी प्रेयसी जो उसे समझे।
कई बार ऐसा होता है कि कुछ बातें आपको बहुत परेशान करती हैं। अगर आप उन बातों को अपने किसी मित्र के साथ बांटे तो शायद वो हल्के में ले ले। और अगर आपको वो किसी बात को समझाएं तो भी आप न समझें। लेकिन जब आप इसी बात को अपनी गर्ल फ्रेंड से कहेंगे तो आपको एक अलग सा सुख होगा। वो आपकी समस्या को पूरी संजीदगी से सुनेगी और आपको समझाएगी भी। और ज्यादा संभावनाएं हैं कि उसकी सलाह से आप समझ भी जाएं। ये बात ठीक उस तरह से है जैसे आप अपनी मां के समझाने पर समझ जाते हैं। इसके अलावा लड़के प्राकृतिक रूप से चंचल और चपल होते हैं, अपनी गर्लफ्रेंड के रूप में उन्हें एक ऐसे साथी की ज़रूरत होती है जो उन्हें संभाल सके।
बल्कि कुल मिलाकर मेरा मानना तो ये है कि इस स्तर पर लड़का क्या चाहता है या लड़की क्या चाहती है का विभेद करना ही गलत है। दोनों मनुष्य हैं और दोनों की शारीरिक और भावनात्मक ज़रूरतें एक हैं।
फिर भी सब समझने के बावजूद इस सवाल का जवाब देने के लिए शब्द कम पड़ रहे हैं>
आपको क्या लगता है कि आखिर एक लड़का क्या चाहता है?
( आप अपनी निजी राय व्यक्त करें)
आदर्श भाई आ गए...
अमित, सोए नहीं अभी तक...............
बस अभी-अभी रब ने बना दी जोड़ी देख कर आ रहा हूं.
कैसी लगी?
बढ़िया है.....। लेकिन वो बात नहीं......
बस ऐसे ही इस फिल्म पर चर्चा होने लगी। एक दिन पहले मैं भी इस फिल्म को देख चुका था। फिल्म की कहानी बेहद साधारण और बचकानी सी लगी थी। जाने मुझे क्यों लगा कि इस कहानी पर फिल्म बननी ही नहीं चाहिए थी। लेकिन फिर भी इस फालतू कहानी पर बेहतरीन फिल्म बनी। इस फिल्म में कहानी के अलावा सभी कुछ बेहतरीन था। उम्दा फिल्मांकन, बेहतरीन निर्देशन और ऊपर से बेहतरीन अभिनय। कोई कह नहीं सकता कि अभिनेत्री अनुष्का की ये पहली फिल्म है। खैर मैंने नोटिस किया कि अपनी आदत के ठीक वीपरीत अमित आज उदास था। पूछने पर पहले तो टरकाता रहा लेकिन थोड़ा ज़ोर डालने पर उसने उदासी का कारण बता ही दिया ....
भैया..... आज प्रियंका से झगड़ा हो गया!!!! (अमित की प्रेयसी)
अरे कोई बात नहीं इस तरह के छोटे-मोटे झगड़े तो होते रहते हैं। आराम से बात कर लेना, सुबह तक सब ठीक हो जाएगा?
अरे उसने कुछ ऐसी बात कह दी मुझे बहुत गुस्सा आया।
बात क्या हुई?
इसके बाद अमित ने घटना बताई तो मुझे बहुत ज़ोर से हंसी आई। लेकिन साथ में एक सवाल भी उठ खड़ा हुआ। सारा मामला इस फिल्म और फिल्म के संवाद से ही उठ खड़ा हुआ था. फिल्म में नायक नायिका से पूछता है कि आखिर एक लड़की क्या चाहती है? नायक क्या पूछना चाह रहा था ये ही समझ में नहीं आया। लड़की हो या लड़का, सबकी अपेक्षाएं समान होती हैं। इस तरह का सवाल पूछना अटपटा सा लगता है। और फिर इस पर नायिका का ये जवाब कि "एक लड़की चाहती है कि कोई उससे इतना प्यार करे कि जितना किसी ने कभी किसी से न किया हो"।
प्रियंका के मन में भी यही भूत सवार हो गया। वो अपने अमित में मज़ाकिया लहज़े में शिकायत करने लगी कि तुम तो मुझे ऐसा प्यार नहीं करते। भले ही उन्होंने ये बात मज़ाक में कही हो लेकिन अमित को ये बात चुभ गई। और चुभेगी ही....। क्या प्यार वही होता है जिस तरीके से फिल्मों में दिखाया जाता है? और दूसरा ये कि अगर लड़कियां ये चाहती हैं कि उन्हें बहुत ज्यादा प्यार करने वाला मिले, तो लड़के ऐसा नहीं चाहते क्या? दरअसल समस्या ये है कि जिंदगी की प्रेम कहानी में भी लड़कियां मुख्य भूमिका में रहती हैं। बेशक प्यार दोनों को होता है लेकिन लड़के ही प्रेम का इज़हार करते हैं और लड़कियां अपने हिसाब से उस प्रस्ताव को स्वीकार या अस्वीकार करती हैं। यानि ज्यादातर मामलों मे देखा जाए तो अंतिम चुनाव का अधिकार लड़कियों के पास रहता है। ऐसे में बाद में किसी तरह के दोष के लिए लड़कों को क्यों दोषी ठहराया जाता है?
दूसरा वाकया है एक चाट वाले के पास का। कल चाट वाले के पास खड़ा गोलगप्पे खा रहा था। दो बालाएं वार्तालाप कर रही थीं, बातचीत इसी फिल्म के ऊपर थी। और सवाल वही कि लड़के क्या चाहते हैं, दूसरी बाला ने इस सवाल का जो जवाब दिया उसे सुनकर मेरे गोवगप्पा हाथ में ही टूट गया। हमारे समाज में एक बात का प्रचलित है कि लड़कियां भावनात्मक आधार पर प्यार करती हैं और अपने प्रेमी से भावनात्मक समर्थन चाहती हैं जबकि लड़के सिर्फ यौन आकर्षण से बंधे होते हैं। लड़कों पर अक्सर इल्ज़ाम लगा दिया जाता है कि वो लड़कियों को इस्तेमाल करते हैं। हैरानी की बात है कि हर कोई इस धारणा का समर्थन करता नज़र आता है। जब कोई किसी की सहमति के बिना किसी के साथ बात नहीं कर सकता तो भला किसी का इस्तेमाल कैसे करेगा? और क्या ये बात लड़कियों पर लागू नहीं होतीं? खैर ये सब तो लम्बी बहस का हिस्सा है और इस पर आम राय कभी बन भी नहीं पाएगी। जिसका जैसा अनुभव, वैसी उसकी धारणा। क्या कभी लड़कियों ने किसी लड़के के भावनात्मक पहलू को जानने की कोशिश की है कि वो क्या चाहता है? बाहों में बाहें डालना, साथ में मूवी देखने जाना (पीवीआर से कम नहीं), किसी पार्क में जाकर "बातचीत" करना सभी को नहीं भाता..। एक लड़का चाहता है एक ऐसी प्रेयसी जो उसे समझे।
कई बार ऐसा होता है कि कुछ बातें आपको बहुत परेशान करती हैं। अगर आप उन बातों को अपने किसी मित्र के साथ बांटे तो शायद वो हल्के में ले ले। और अगर आपको वो किसी बात को समझाएं तो भी आप न समझें। लेकिन जब आप इसी बात को अपनी गर्ल फ्रेंड से कहेंगे तो आपको एक अलग सा सुख होगा। वो आपकी समस्या को पूरी संजीदगी से सुनेगी और आपको समझाएगी भी। और ज्यादा संभावनाएं हैं कि उसकी सलाह से आप समझ भी जाएं। ये बात ठीक उस तरह से है जैसे आप अपनी मां के समझाने पर समझ जाते हैं। इसके अलावा लड़के प्राकृतिक रूप से चंचल और चपल होते हैं, अपनी गर्लफ्रेंड के रूप में उन्हें एक ऐसे साथी की ज़रूरत होती है जो उन्हें संभाल सके।
बल्कि कुल मिलाकर मेरा मानना तो ये है कि इस स्तर पर लड़का क्या चाहता है या लड़की क्या चाहती है का विभेद करना ही गलत है। दोनों मनुष्य हैं और दोनों की शारीरिक और भावनात्मक ज़रूरतें एक हैं।
फिर भी सब समझने के बावजूद इस सवाल का जवाब देने के लिए शब्द कम पड़ रहे हैं>
आपको क्या लगता है कि आखिर एक लड़का क्या चाहता है?
( आप अपनी निजी राय व्यक्त करें)
अच्छा पॉइंट उठाया है आपने। बात को पेश भी बहुत सलीके से किया है।
सही है आदर्श, इंसान की जरूरतें एक सी है... प्यार करने वाला हर परिंदा ही यही चाहता है कि उनके जैसा प्यार किसी और के बीच में न हो... प्रेमी प्रेमिका से ये चाहती है और प्रेमिका प्रेमी से...
फिल्म के इस संवाद को लेकर प्यारी और तीखी नोंक-झोंक तक तो बात चल जाएगी, लेकिन अगर गोलगप्पे खाते हुए लड़कियां इसमें तड़का लगाएं या फिर सिगरेट के छल्ले उड़ाते लड़के इसके कुछ और मायने निकालें तो ये वाकई गलत होगा...
संजीदा सवाल है... जवाब भी उतना ही संजीदा होना चाहिए...
बाकी रही फिल्म की बात तो उस पर फिल्म देखने के बाद ही चर्चा होगी... हौले-हौले...
बहुत कम और सधे शब्दों में एक संजीदा सवाल...
और इसका जवाब भी होना चाहिए, पर क्या जवाब देना इतना आसान है
शायद नही...
बहुत अच्छा िलखा है आपने । िजंदगी और समाज के सच को बडी मािमॆकता से अभिव्यक्त किया है । मैने अपने ब्लाग पर एक लेख िलखा है-आत्मिवश्वास के सहारे जीतें िजंदगी की जंग-समय हो तो पढें और अपनी राय भी दें-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
बहुत अच्छा लेख लिखा आप ने इस लेख के लिये आप का धन्यवाद
ये पता चल जाये तो सारे झगडे़ न खत्म हो जाये?
बढिया लेख है.
bahut badia likha
koi ladki hi bata sakti hai ki ladke kaya chate hain :)
प्यार में कोई शर्त नही होती ......
cool blog
वैसे गोलगप्पा क्यों टूटा?
आपके सवालों कों जवाब मेरे पास तो नहीं है, फिर भी मैं आपके लेख की हर बात से सहमत हूँ।
फिल्म में वाकई कहानी नहीं थी। और लड़के-लड़की में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं करना चाहिए।
shaayad dr. anurag theoratical zindagi ji rhe hain
shaayad dr. anurag theoratical zindagi ji rhe hain