इतना बातूनी मैं,
जिसकी बेसिर-पैर बातों से
तंग रहते हैं सभी,
तुम्हारे आते ही
क्यों खामोश हो जाता हूं?
कभी तो समझ ओ बेखबर..............
सबके पास जा जाकर
करता हूं बातें
लगातार सौ, हज़ार
लेकिन तुम्हारे आते ही
क्यों उठकर चला जाता हूं कहीं?
कभी तो समझ ओ बेखबर..............
करता हूं संबोधित
सबको उनके नाम से
किसी को दूर से
तो किसी को पास से पुकारता हूं
फिर क्यों नहीं लिया आज तक
बस तुम्हारा ही नाम
क्या मुझे इसकी ज़रूरत नहीं पड़ी होगी कभी?
कभी तो समझ ओ बेखबर..............
मैं तुमसे नज़रें क्यों नहीं मिलाता
मिल भी जाएं अगर
तो चुराता क्यों हूं,
जिस आत्मविश्वास का
दंभ भरता था मैं अक्सर
क्यों गुम हो जाता है वो
पल भर में ही कहीं?
कभी तो समझ ओ बेखबर..............
इंकार का डर नहीं है मुझे
डर है तो बस इस बात का
कि किसी और की न हो तुम
दिल में तुम्हारे
कोई और न हो..
ऐसे में कैसे करूं इज़हार?
कभी तो समझ ओ बेखबर..............
(लेखन शैली को गोली मारना, बस भावनाओं को समझना... )
जिसकी बेसिर-पैर बातों से
तंग रहते हैं सभी,
तुम्हारे आते ही
क्यों खामोश हो जाता हूं?
कभी तो समझ ओ बेखबर..............
सबके पास जा जाकर
करता हूं बातें
लगातार सौ, हज़ार
लेकिन तुम्हारे आते ही
क्यों उठकर चला जाता हूं कहीं?
कभी तो समझ ओ बेखबर..............
करता हूं संबोधित
सबको उनके नाम से
किसी को दूर से
तो किसी को पास से पुकारता हूं
फिर क्यों नहीं लिया आज तक
बस तुम्हारा ही नाम
क्या मुझे इसकी ज़रूरत नहीं पड़ी होगी कभी?
कभी तो समझ ओ बेखबर..............
मैं तुमसे नज़रें क्यों नहीं मिलाता
मिल भी जाएं अगर
तो चुराता क्यों हूं,
जिस आत्मविश्वास का
दंभ भरता था मैं अक्सर
क्यों गुम हो जाता है वो
पल भर में ही कहीं?
कभी तो समझ ओ बेखबर..............
इंकार का डर नहीं है मुझे
डर है तो बस इस बात का
कि किसी और की न हो तुम
दिल में तुम्हारे
कोई और न हो..
ऐसे में कैसे करूं इज़हार?
कभी तो समझ ओ बेखबर..............
(लेखन शैली को गोली मारना, बस भावनाओं को समझना... )
बहुत सुन्दर एहसास।बहुत ही भावभीनी रचना है।अपने मनोभावों को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं।
आप की लेखन शैली भी अच्छी है।
कारज धीरे होत हैं काहे होत अधीर
रितु आए प्रेम होएगा, केतक लिखों कवित्त।
पढ़कर ऐसे ही भाव आते हैं जैसे वो गज़ल... "कभी तो नज़र मिलाओ, कभी तो क़रीब आओ....जो नहीं कहा है कभी तो समझ भी जाओ"" को सुनकर आते हैं। मैं तो बस यही कहूंगा......
दिल का हाल सुने दिलवाला...
सीधी सी बात ना मिर्च मशाला
कह के रहेगा कहने वाला..
दिल का हाल सुने दिलवाला
दोस्त ये सब ज़िंदगी के रंग है।
इन एहसासों को जिए जाओ, खुशी हो या गम...पिए जाओ....
इससे ज़्यादा कविता तो मुझे आती नहीं....
पशुपति जी से पूरी तरह सहमत...
हौले...हौले...
बढिया लिखा आपने. हां एक बात याद आ रही है कि भाटिया जी ठीक कह रहे थे आपकी "उसे छिपकर देखने की कोशिश करता हूं...." वाली पोस्ट में.
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राज भाटिय़ा said... बच्चू गया काम से.... कोई अंतिम इच्छा हो तो अभी बता दो. थोडे दिनो मै तुम्हारी उदास कविताये आयेगी, फ़िर शेरो शायरी भी हम सब को झेलनी होगी...
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हा हा हा
ऐसा लग रहा है जैसे आपने अपनी वो वाली पोस्ट को कविता के रूप में ढाल दिया है. बहुत बहुत बढिया. लगे रहिये.
पशु पति साहब की बात भी बहुत उचित है...
लेकिन इस से उम्मीद बहुत है... तब तक गीत गा सकते हो ... मन रे तु कहए ना धीर धरे....
धन्यवाद
phir kyun nahi liya aj tak
bas tunhara hi naam...
mahobhav behad hi sunder hai...
likhte rahiya....keep it up.... meri badhai.....
आदर्श भैया! आपसे कुछ बात करनी है क्या आप अपना ईमेल पता दे सकते हैं. मेरा ईमेल पता है
ankur_gupta555(@)yahoo.com
आपने बहुत अच्छा लिखा है.
कभी तो समझ ओ बेखबर....
where you come from!
lagta hai nai post IPL season ke khatm hone se pehle nahi aane waali hai!!