इस दुनिया के दो पहलु हैं। एक सुखद और एक दुखद। अक्सर हम उस दुख भरे चेहरे को नज़रअंदाज कर देते हैं। लेकिन बार-बार वो चेहरा आप के सामने आ ही जाता है। आज मेरा साप्ताहिक अवकाश था। सोचा कुछ सदुपयोग करूं। पहले प्रगति मैदान में चल रहे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले में जाने का विचार मन मे आया। फिर ध्यान में आया कि एमए में एडमिशन लेना है। फिर मैंने प्रोग्राम में बदलाव किया और एडमिशन कराने के बाद सरोजिनी नगर मार्केट जाने का निश्चय किया। एडमिशन लेने के बाद मैं मार्केट पहुंचा और एक आध घंटा वहां टहला। खरीददारी तो मैं करता नहीं। हर बार ठग लिया जाता रहा हू। हर बार मम्मी ही मेरे लिए कपड़े इत्यादि खरीदती थीं। लेकिन अब घर से दूर हूं तो नए कपड़े खरीदना मेरे लिए चुनौती का काम हो जाता है। इसलिए आज भी बस टहला और यूं ही वापस आ गया। इस दौरान मैंने कुछ फोटोग्राफ्स लिए जो इस तरह से हैं। जिसमें एक तरफ तो समृद्धि है, वहीं दूसरी तरफ़ दरिद्रता है।
पहले तो जैसे ही मार्केट पहुंचा दुकानें बंद मिलीं। आज बाज़ार बंद था
बेशक बाज़ार बंद था लेकिन कुछ दुकानें खुली थीं। और एक हिस्से पर काफी भीड़ थी। लेकिन पूरी मार्केट के आसपास मुझे एक भी पीसीआर और वर्दीधारी नहीं दिखा। किसी तरह का बेरिकेट, मेटल डिटेक्टर नहीं था लेकिन एक टॉमी पूरी सावधान मुद्रा में तैनात दिखा जो मेन मार्केट में किसी भी वाहन को घुसने नहीं दे रहा था।
घर की साजसज्जा और नारी श्रृंगार आदि की ही दुकानें खुली थीं। स्वेटर आदि की दुकानों पर खासी भीड़ थी। फुटपाथ में सामान बेचने वालों की चांदी रही।
आम दिनों में यूं तो महिलाओं और बालिकाओं की भीड़ रहती है, लेकिन आज पुरुष ज्यादा खरीददारी करते हुए दिखे।
बाज़ार में आधुनिक परिधानों की धूम है। लोगों को आकर्षित करने के लिए लगे पुतले
लेकिन एक दुखद पहलू ये भी रहा, कड़कती सर्दी में ये मजबूर बूढ़ी मां ज़मीन पर बैठे लोगों के सामने हाथ जोड़कर पैसे मांग रही थी। इस दृश्य ने मुझे विचलित कर दिया।
शायद बचपन से ही इनके इस तरह के भविष्य की बुनियाद पड़ जाती है। कुछ बच्चे जो दिन भर कूड़ा बीनते हैं, एक पेड़ के नीचे बैठ फर्श पर रखकर कुछ खा रहे थे। यही जगह उनका आशियाना है
मैंने उनका फोटो लेना चाहा तो उनके चेहरे पर दिखी वो मासूम मुस्कान जो पल भर के लिए ही ठहरती है। मैं उस मुस्कुराहट को कैद करने में कामयाब रहा। शायद ये मासूम तो ढंग से सपने भी नहीं देख पाते हैं।
पहले तो जैसे ही मार्केट पहुंचा दुकानें बंद मिलीं। आज बाज़ार बंद था
बेशक बाज़ार बंद था लेकिन कुछ दुकानें खुली थीं। और एक हिस्से पर काफी भीड़ थी। लेकिन पूरी मार्केट के आसपास मुझे एक भी पीसीआर और वर्दीधारी नहीं दिखा। किसी तरह का बेरिकेट, मेटल डिटेक्टर नहीं था लेकिन एक टॉमी पूरी सावधान मुद्रा में तैनात दिखा जो मेन मार्केट में किसी भी वाहन को घुसने नहीं दे रहा था।
घर की साजसज्जा और नारी श्रृंगार आदि की ही दुकानें खुली थीं। स्वेटर आदि की दुकानों पर खासी भीड़ थी। फुटपाथ में सामान बेचने वालों की चांदी रही।
आम दिनों में यूं तो महिलाओं और बालिकाओं की भीड़ रहती है, लेकिन आज पुरुष ज्यादा खरीददारी करते हुए दिखे।
बाज़ार में आधुनिक परिधानों की धूम है। लोगों को आकर्षित करने के लिए लगे पुतले
लेकिन एक दुखद पहलू ये भी रहा, कड़कती सर्दी में ये मजबूर बूढ़ी मां ज़मीन पर बैठे लोगों के सामने हाथ जोड़कर पैसे मांग रही थी। इस दृश्य ने मुझे विचलित कर दिया।
शायद बचपन से ही इनके इस तरह के भविष्य की बुनियाद पड़ जाती है। कुछ बच्चे जो दिन भर कूड़ा बीनते हैं, एक पेड़ के नीचे बैठ फर्श पर रखकर कुछ खा रहे थे। यही जगह उनका आशियाना है
मैंने उनका फोटो लेना चाहा तो उनके चेहरे पर दिखी वो मासूम मुस्कान जो पल भर के लिए ही ठहरती है। मैं उस मुस्कुराहट को कैद करने में कामयाब रहा। शायद ये मासूम तो ढंग से सपने भी नहीं देख पाते हैं।
अब क्या कहै आप ने चित्रो ने बहुत कुच सोचने पर मजबुर कर दिया है.
धन्यवाद
प्याले में कुछ ज़िंदगी भर रहे हैं आप
अजब और गज़ब की छोड़ दी है छाप
I like your blog