इस बार के लोगकभा चुनावों में मैं पहली बार मतदान कर सकूंगा। मैं बार इसके योग्य हूं। लेकिन मैं दुविधा में हूं कि वोट दूं या न दूं। ऐसे देश में जहां बाहर से आए लोगों के वोटर आईडी कार्ड बना दिए जाते हैं, ऐसे में मुझ जैसे नागरिक के लिए मेरा ये अधिकार कितना मायने रखता है। दूसरा ये कि मुंबई के पूरे घटनाक्रम से मैं बेहद क्षुब्ध हूं। अब हद हो चुकी है। मैं और ज्यादा खामोश नहीं बैठ सकता। हर बार हम ठग लिए जाते रहे हैं। वक्त आ गया है जब हमें कड़े कदम उठा लेने चाहिए। देश में मौजूद हर राजनैतिक पार्टी धर्म, सम्प्रदाय और जाति के नाम पर खेल खेलकर वोट बैंक के लिए तिकड़म करती है। ऐसे में हमारे पास कोई विकल्प नहीं होता। जिस भी पार्टी को हम वोट देते हैं वो उसी तरह का रवैया अपनाती है। जब तक इस तरह की तुच्छ राजनीति जारी रहेगी, तब तक आतंकवाद जैसी समस्याओं का हल नहीं निकलेगा।
हर बार मैं सवाल खड़ा किया करता था लेकिन आज अपना फैसला बता रहा हूं। मेरा विचार है कि इन राजनेताओं को सबक सिखाने के लिए हमें विस्तृत रूप से चुनावों का बहिष्कार करना चाहिए। और तब तक करना चाहिए जब तक कोई दल ये सौगन्ध न ले ले कि वह पूर्ण ईमानदारी से काम करेगा। और अगर वह ऐसा नहीं करता है तो वोट नहीं देने चाहिए।
अपना कर्तव्य निभाने के नाते हम फिरकापरस्त और तुष्टिकारक लोगों को सत्ता नहीं सौंप सकते। ज़ाहिर है हमारे-आपके वोट न देने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। लोग फिर भी चुने जाएंगे.... लेकिन दोस्तो! सबसे बड़ी बात यह होगी कि अगर हम वोट नहीं देते हैं तो हम गर्व से कह सकते हैं कि हमने इस तरह की सरकार को वोट नहीं दिया है जो हर मोर्चे पर नाकाम है। और ये बहिष्कार तब तक जारी रहेगा जब तक देश में संविधान का पुनर्गठन नहीं हो जाता। नई प्रणाली के तहत राजनैतिक दलों को पुनर्स्थापित नहीं कर दिया जाता।
दोस्तों वोट देने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए बेशक करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं लेकिन ज़रा सोचिए उस तरह का वोट देने का क्या मतलब जब आपका वोट उस सरकार के गठन में मदद करे जो आप ही कि सुरक्षा करने में नाकाम रहे। कल को अगर किसी आतंकी वारदात में आप मारे जाते हैं तो आपको ये मलाल न रहे कि आपकी चुनी सरकार ही आपकी हिफाज़त नहीं कर पाई।
अब पता नहीं आपको क्या लगता है। कुछ लोग कहेंगे कि मेरी मति मारी गई है, कुछ लोग लोकतंत्र से उठ रही इस आस्था पर सवाल उठाएंगे। लेकिन मैं चाहता भी यही हूं कि आप आएं। या तो मुझे समझाएं या कोई तर्क दें कि मुझे अपना वोट क्यों देना चाहिए।
हर बार मैं सवाल खड़ा किया करता था लेकिन आज अपना फैसला बता रहा हूं। मेरा विचार है कि इन राजनेताओं को सबक सिखाने के लिए हमें विस्तृत रूप से चुनावों का बहिष्कार करना चाहिए। और तब तक करना चाहिए जब तक कोई दल ये सौगन्ध न ले ले कि वह पूर्ण ईमानदारी से काम करेगा। और अगर वह ऐसा नहीं करता है तो वोट नहीं देने चाहिए।
अपना कर्तव्य निभाने के नाते हम फिरकापरस्त और तुष्टिकारक लोगों को सत्ता नहीं सौंप सकते। ज़ाहिर है हमारे-आपके वोट न देने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। लोग फिर भी चुने जाएंगे.... लेकिन दोस्तो! सबसे बड़ी बात यह होगी कि अगर हम वोट नहीं देते हैं तो हम गर्व से कह सकते हैं कि हमने इस तरह की सरकार को वोट नहीं दिया है जो हर मोर्चे पर नाकाम है। और ये बहिष्कार तब तक जारी रहेगा जब तक देश में संविधान का पुनर्गठन नहीं हो जाता। नई प्रणाली के तहत राजनैतिक दलों को पुनर्स्थापित नहीं कर दिया जाता।
दोस्तों वोट देने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए बेशक करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं लेकिन ज़रा सोचिए उस तरह का वोट देने का क्या मतलब जब आपका वोट उस सरकार के गठन में मदद करे जो आप ही कि सुरक्षा करने में नाकाम रहे। कल को अगर किसी आतंकी वारदात में आप मारे जाते हैं तो आपको ये मलाल न रहे कि आपकी चुनी सरकार ही आपकी हिफाज़त नहीं कर पाई।
अब पता नहीं आपको क्या लगता है। कुछ लोग कहेंगे कि मेरी मति मारी गई है, कुछ लोग लोकतंत्र से उठ रही इस आस्था पर सवाल उठाएंगे। लेकिन मैं चाहता भी यही हूं कि आप आएं। या तो मुझे समझाएं या कोई तर्क दें कि मुझे अपना वोट क्यों देना चाहिए।
आप जो सोच रहे हैं वह बहुत स्वाभाविक है । स्वाभाविक है परन्तु सही नहीं है । क्या आप जानते हैं कि राजनैतिक दल हमारे जैसे लोगों के विचारों पर ध्यान क्यों नहीं देते ? कारण यही है कि हम वोट नहीं देते । बड़ी संख्या में वे लोग वोट देते हैं जो जाति, धर्म आदि के मुद्दे सामने लाने से शेष सब भूल जाते हैं । यदि हम भी वोट दें तो उन्हें हमारी बात भी सुननी होगी । किसी भी तरह का मुद्दा जो हमारे विकास या सुरक्षा से सम्बन्धित नहीं होता वह उठा लिया जाता है और हम बँट जाते हैं । राजनीति में बुरे लोग हो सकते हैं परन्तु राजनीति बुरी नहीं है । जब अच्छे लोग आगे आएँगे तो यह भी साफ हो जाएगी । सबसे पहला कदम वोट देकर उठाना है । यह हमारा अधिकार है, कर्त्तव्य भी । इससे भागो मत । यदि हो सके तो http://ghughutibasuti.blogspot.com/2008/11/blog-post_22.html भी पढ़िए ।
घुघूती बासूती
वोट का बहिष्कार कर, आप उन्हीं की सहायता करेंगे, जिन्हें सबक सिखाना चाहते हैं
इधर उधर पता कीजिए, आपको मालूम पड़ेगा कि वोटिंग प्रतिशत का ज्यादा होना इनके सभी अंगों में पसीना ला देता है।
वोट का बहिस्कार करने की जगह विवेक पूर्ण वोटिंग ज्यादा अच्छा समाधान होगा
विचार का प्याला भरा,है आदर्श नवीन.
वोट-तन्त्र का बहिष्कार,करे रठौङ प्रवीण.
है रठौङ प्रवीण,घुघूती बासूती सुनले.
बेहतर है कि राठौङ की बात को ध्यान से गुनले.
यह साधक इस दुष्ट-तन्त्र से गले तलक भरा.
है आदर्श नवीन, विचार का प्याला भरा.
हार्दिक श्रद्धांजली मेरे उन शहीद भाईयो के लिये जो हमारी ओर हमारे देश की आबरु की रक्षा करते शहीद हो गये।लेकिन मन मै नफ़रत ओर गुस्सा अपनी निकाम्मी सरकार के लिये
वोट ना देकर आप अपने पाव पर कुलहाडी मारेगे, फ़िर से बेबस हो जाओगे, बल्कि कहो आओ हम सब मिल कर अपने वोट का सही इस्तेमाल करे साथ मे अपने साथियो को भी उक्साओ वोट डालने के लिये, कोई बात नही अगर एक बार फ़िर से गलत को ही चुनना पडे, लेकिन इन कमीनो को पता तो चले की अब आम भारतीया जाग गया है, ओर यह जिन वोटो के पीछे हमे मरवाते है, बार बार हमे अपने ही देश मै अपमानित होना पडता हे, फ़िर वो सब नही होगा, जागो ओर आओ सब मिल कर अपना अपना वोट डाले , जो वोट ना डाले उसे उकसाये वोट डालने के लिये.
मैं आपसे सहमत हूं. मैं वोट दूंगा जरूर पर अगर निगेटिव वोटिंग की सुविधा हो.
मैंने तो एक नये सिस्टम के बारे में सोचा है जिसे लोकतंत्र के स्थान पर लगाया जा सकता है. हलांकि इसमें भी जनता ही शासन करेगी पर इस सिस्टम के हिसाब से कभी भी कोई गुंडा बदमाश संसद में नही पहुंचेगा. आपके मेरे विचार काफ़ी मिलते जुलते लग रहे हैं आप मुझसे संपर्क कर सकते हैं.
पहला कानून तो यही होना चाहिये कि किसी भी प्रकार का राजनीतिक दल को कि जाति अथवा धर्म के आधार पर किसी भी प्रकार की बात करता है उसे तुरंत अवैध घोषित कर देना चाहिये.
ankurgupta555(**(at)**)gmail.com
बहिष्कार कर, आप उन्हीं की सहायता करेंगे,
विवेक पूर्ण वोटिंग ज्यादा अच्छा समाधान होगा
now you think over once angain
take care
मैने नेट बस एक दिन के लीये लगाया है जो आज ही बंद हो जाएगा। मै मोबाईल से पीसी मे नेट चलाता हूं और rs. 25 perday लगता है। और gprs activate deactivate करने मे बहुत टाईम लगता है ईसलीये अब अगली बार नेट नही एक्टीवेट करूंगा। या कभी एक दो महीने में।
ईसलीये पोस्टींग भी बंद कर दिया हूं। एक दिन मे पोस्टींग करने से बस नाम वाला ही पोस्ट रहेगा और ब्लागर समझेंगे की मै वापस आगया हूं। गलतफहमी रहेगा :)
आपका लेख पढ के मूझे जोश आ गया। सोच रहा हूं क्यो ना खूद ही नेता बन जाएं। एक आम आदमी जब नेता बनेगा तब ही कूछ होगा। और तर्की के पीछे नही भागने से आम आदमी आम नेता बना रहेगा। यानी कोई लालची नेता नही बनेगा।
मतदान का भहिष्कार करने से क्या फायदा? वो तो खूद ही एसे ही दिन भर कहते रहते हैं की मेरे जैसा ईमानदार कोई नही।
सबसे बढीया तरीका आप ही नेता बन जाईये। एसी सोच अगर हर आम आदमी करने लगे तो कल पूरे देस का हर नेता एक आम गरीब आदमी नेता रहेगा।
वैसे मैने गूगल पर सर्च कीया की नेता कैसे बनते हैं(english मे) तो मीला कि नेता मत बनो। हर जगह यही था। नेता मत बनो वो बहुत गंदे होते हैं।
फीर सोचा सब थोडी ना होंगे।
मेरे फेवरेट नेता हैं "अटल बिहारी वाजपेयी" ईनके अलावा कोई नही। क्यो की मैने देखा है की सिर्फ यही हैं जो अपने विरोधीयों के ईलजामो को भी बडे प्यार से ज्वाब देते हैं। और ये भी नही की किसी का हसी उडा के ज्वाब देते हैं।
और भी बहुत सी क्वालिटी हैं। काश सभी नेटा "अट्ल जी" की तरह होते?
वैसो आप मेरी बात पर धयान से सोचना। आप हि नेते बनने की सोचें हो सकता है 100% कामयाब हो जाएं।
i think the archive you wirte is very good, but i think it will be better if you can say more..hehe,love your blog,,,