"भाई साहब बचपन के दिन याद दिला दिए, मैं भी यही पैन इस्तेमाल करता था। बुरा न मानें तो मैं इससे कुछ लिख सकता हूं ?"
ऑफिस से घर आते वक्त जब मैं पिक अप भर रहा था तो वहां बैठे एक शख्स ने मुझसे ये बात कही। मैंने एक निगाह अपने हाथ में लिए पेन पर डाली और दूसरी उस शख्स पर। उस व्यक्ति ने मूछें डुलाते हुए हाथ आगे बढ़ाया... मैंने भी हल्की मुस्कुराहट से पेन उसकी ओर बढ़ा दिया। उसने पेन को उलट-पलट कर देखा और बगल में पड़े अखबार पर कुछ लिखने लग गया। उसके आदमी के चेहरे पर मुझे उसी खुशी का अक्स दिखा जो मुझे उस वक्त हुई थी जब पहली बार मेरे पापा ने मुझे चाइनीज़ पेन लाकर दिया था। पास ही खड़े दो लोग भी बड़े कौतूहल से उस पेन को देखने लगे। वो भी बताने लगे कि किस तरह वो स्कूल में इस पेन का इस्तेमाल किया करते थे।
ये घटना पहली बार नहीं हुई। जो भी मेरे पास इस पेन को देखता है, या तो वो इससे कुछ लिखकर या अपने हस्ताक्षर करता है या बड़े अचरज से मेरी ओर देखता है। लेकिन हर कोई इस पेन को एक बार छूकर ज़रूर देखना चाहता है। ऐसा नहीं है कि मेरा पेन कोई खास हीरे जड़ा पेन है, ये मात्र 35 रुपये का आम पेन है। लेकिन इसकी खासियत यह है कि सभी ने बचपन या स्कूल के दिनों में इस तरह के पैन का इस्तेमाल किया होता है। आज तो कोई इन्हें इस्तेमाल नहीं करता, सो मेरी पॉकेट में ये पेन देखकर सभी को पुराने दिन याद आ जाते हैं। सब कहते हैं कि चाइनीज़ पेन को इस्तेमाल करने की बात ही कुछ और थी।
मेरा शुरुआत से चाइनीज़ पेन से जुड़ाव रहा है। मैं कक्षा 4 में था जब मेरे पापा ने पहली बार मुझे चाइनीज़ पेन लाकर दिया था। उस वक्त मेरी क्लास में इक्का-दुक्का लोगों के पास ही चाइनीज़ पेन रहे होंगे। बाकि लोग चपटी निब वाला पेन इस्तेमाल करते थे। वजह शायद चाइनीज़ पेन का महंगा होना ही रहा होगा। खैर, उसके बाद से मैंने हमेशा फाउंटेन पेन का ही इस्तेमाल किया। इसकी वजह शायद यह भी रही कि मेरे पापा खुद यही पेन इस्तेमाल करते हैं इसलिए मैं उनसे प्रेरित रहा।
आज जो देखो सामने वाले से पेन मांगता है। ख़ासकर ऑफिसों में तो पेन को लेकर खासी मारामारी रहती है। पता ही नहीं चलता कि पेन गायब कहां हो जाते हैं। ऐसे में मेरी सलाह है कि आप भी चाइनीज़ या फाउंटेन पेन ही इस्तेमाल करें। जो-जो इस पेन की खामियां हैं वही इसके चोरी न होने की वजहों में शुमार हो जाएगी। मेरा खुद का अनुभव है, रोजाना कई लोग मुझसे पेन मांगकर चले जाते हैं और फिर वापस लौटा जाते हैं। अगर यहीं बॉलपेन रहती तो शायद कभी वापिस नहीं आती। सब बार-बार स्याही भरने और इसके भारी होने की वजह से डरते हैं।
आज तो कंप्यूटर का ज़माना है। भला लोग बॉल प्वाइंट पेन का इस्तेमाल करना छोड़ रहे हैं तो फाउंटेन पेन का क्यों करेंगे? मुझे गर्व होता है इस पैन को अपने पास रखने से। हर वक्त मेरा पेन मेरे सीने वाली जेब में तमगे सा चमकता है। भले ही आज चाइनीज़ पेन अपनी पहचान खोता जा रहा है लेकिन मेरा चाइनीज़ पेन मेरी पहचान बन चुका है।
ऑफिस से घर आते वक्त जब मैं पिक अप भर रहा था तो वहां बैठे एक शख्स ने मुझसे ये बात कही। मैंने एक निगाह अपने हाथ में लिए पेन पर डाली और दूसरी उस शख्स पर। उस व्यक्ति ने मूछें डुलाते हुए हाथ आगे बढ़ाया... मैंने भी हल्की मुस्कुराहट से पेन उसकी ओर बढ़ा दिया। उसने पेन को उलट-पलट कर देखा और बगल में पड़े अखबार पर कुछ लिखने लग गया। उसके आदमी के चेहरे पर मुझे उसी खुशी का अक्स दिखा जो मुझे उस वक्त हुई थी जब पहली बार मेरे पापा ने मुझे चाइनीज़ पेन लाकर दिया था। पास ही खड़े दो लोग भी बड़े कौतूहल से उस पेन को देखने लगे। वो भी बताने लगे कि किस तरह वो स्कूल में इस पेन का इस्तेमाल किया करते थे।
ये घटना पहली बार नहीं हुई। जो भी मेरे पास इस पेन को देखता है, या तो वो इससे कुछ लिखकर या अपने हस्ताक्षर करता है या बड़े अचरज से मेरी ओर देखता है। लेकिन हर कोई इस पेन को एक बार छूकर ज़रूर देखना चाहता है। ऐसा नहीं है कि मेरा पेन कोई खास हीरे जड़ा पेन है, ये मात्र 35 रुपये का आम पेन है। लेकिन इसकी खासियत यह है कि सभी ने बचपन या स्कूल के दिनों में इस तरह के पैन का इस्तेमाल किया होता है। आज तो कोई इन्हें इस्तेमाल नहीं करता, सो मेरी पॉकेट में ये पेन देखकर सभी को पुराने दिन याद आ जाते हैं। सब कहते हैं कि चाइनीज़ पेन को इस्तेमाल करने की बात ही कुछ और थी।
मेरा शुरुआत से चाइनीज़ पेन से जुड़ाव रहा है। मैं कक्षा 4 में था जब मेरे पापा ने पहली बार मुझे चाइनीज़ पेन लाकर दिया था। उस वक्त मेरी क्लास में इक्का-दुक्का लोगों के पास ही चाइनीज़ पेन रहे होंगे। बाकि लोग चपटी निब वाला पेन इस्तेमाल करते थे। वजह शायद चाइनीज़ पेन का महंगा होना ही रहा होगा। खैर, उसके बाद से मैंने हमेशा फाउंटेन पेन का ही इस्तेमाल किया। इसकी वजह शायद यह भी रही कि मेरे पापा खुद यही पेन इस्तेमाल करते हैं इसलिए मैं उनसे प्रेरित रहा।
आज जो देखो सामने वाले से पेन मांगता है। ख़ासकर ऑफिसों में तो पेन को लेकर खासी मारामारी रहती है। पता ही नहीं चलता कि पेन गायब कहां हो जाते हैं। ऐसे में मेरी सलाह है कि आप भी चाइनीज़ या फाउंटेन पेन ही इस्तेमाल करें। जो-जो इस पेन की खामियां हैं वही इसके चोरी न होने की वजहों में शुमार हो जाएगी। मेरा खुद का अनुभव है, रोजाना कई लोग मुझसे पेन मांगकर चले जाते हैं और फिर वापस लौटा जाते हैं। अगर यहीं बॉलपेन रहती तो शायद कभी वापिस नहीं आती। सब बार-बार स्याही भरने और इसके भारी होने की वजह से डरते हैं।
आज तो कंप्यूटर का ज़माना है। भला लोग बॉल प्वाइंट पेन का इस्तेमाल करना छोड़ रहे हैं तो फाउंटेन पेन का क्यों करेंगे? मुझे गर्व होता है इस पैन को अपने पास रखने से। हर वक्त मेरा पेन मेरे सीने वाली जेब में तमगे सा चमकता है। भले ही आज चाइनीज़ पेन अपनी पहचान खोता जा रहा है लेकिन मेरा चाइनीज़ पेन मेरी पहचान बन चुका है।
पुरानी यादों को ताजा करने वाली रोचक पोस्ट।
वाह जनाब, बहुत दिनों बाद कोई मिला जो मेरी तरह ही फाउण्टेन पेन इस्तमाल करता हो।
वैसे जब 4-5 लोगों के बीच कोई अचानक बोलता है कि 'वाह भाई, आप अभी भी यह पेन ठस्तमाल करते हैं' तो जमीन से एकाध इंच उपर तो उठ ही जाते हैं हम।
बहुत खुब,
धन्यवाद
lol,so nice