जी हां, इस देश में चर्चा के लिए महज एक ही मुद्दा बचा है, वो है धर्म और धर्म जनित समस्याएं। समाचार माध्यमों से लेकर संसद और गली-चौपाल से लेकर ब्लॉग्स तक यही मुद्दा छाया हुआ है। जहां देखो इसी पर चर्चा हो रही है। कोई हिंदू आतंकवाद की रट लगाए बैठा है तो कोई मुस्लिम आतंक के पीछे हाथ धोकर पड़ा है। किसी को इस्लाम में बुराईयां दिखती हैं तो किसी को हिंदू धर्म में। पहले-पहल तो इस्लामिक आतंकवाद पर इतनी चर्चा हुई कि सारे रिकॉर्ड टूट गए। लेकिन जब से साध्वी प्रज्ञा का हाथ मालेगंव धमाकों में पाया गया है, चर्चा ने एक अलग रुख अपनाया है। हिंदू धर्म से संबंध रखने वाले कुछ लोग बढ़-चढ़ कर मुस्लिम भाइयों के पक्ष में उतर आए हैं। वो सदियों से उनके साथ होते आ रहे 'शोषण' का हवाला देते हुए बता रहे हैं कि आज सही रूप में हिंदुओं का असली चेहरा सामने आया है। अपने देश में एक वर्ग वो भी है जो साध्वी का समर्थन ये कह के कर रहा है कि साध्वी ने तो हिंदुओं पर हुए मुस्लिम आतंक के आघात का बदला लिया है। एक वर्ग ऐसा भी है जो खामोश है।
लेकिन मै ब्लॉग जगत पर दिनों-दिन बढ़ रहे नए चलन को लेकर परेशान हूं। मुझे उन लोगों से कोई आपत्ति नहीं है जो हिंदू धर्म की गलतियों को कमियों को उजागर कर उनकी भर्त्सना कर रहे हैं। मुझे आपत्ति उन लोगों से हैं जो असंतुलित होकर चर्चा को इस्लाम बनाम हिंदुत्व बनाए हुए हैं।
हिंदी के बड़े-बड़े महारथी समझे जाने वाले ब्लॉगर्स तक इसी श्रेणी में आते हैं। उन्हें देश में और कोई मुद्दा नहीं दिखता। हर बार लग जाते हैं धर्म की बात करने। हालांकि कुछ लोगों ने बेहतरीन लिखा है। साध्वी प्रकरण के बाद अगर सबसे संतुलित चर्चा किसी ने की है तो वो ज्यादातर मुस्लिम ब्लॉगर ही हैं। उन्होंने बहुत ही अच्छे ढंग से इस पर प्रतिक्रिया दी है। लेकिन हिंदू धर्म से संबंध रखने वाले लेखक कुछ सकपकाए से लग रहे हैं और बदहवास से ऊटपटांग लिख रहे हैं। उनका ओवर रिेएक्शन दिखा रहा है कि अंदर से वो कितने हिले हुए हैं। इसके अलावा ये है ही इतना संवेदनशील मुद्दा की हर किसी का ध्यान इस तरफ़ खिंचता है। इल लोगों का इन विषयों पर चर्चा करने का उद्देश्य किसी समस्या का हल करने या किसी नतीजे पर पहुंचने का नहीं होता। बल्कि वो अपनी टीआरपी टाइप का कुछ बटोरना चाहते हैं। इससे सस्ता और आसान माध्यम कोई नहीं है पाठकों को अपने ब्लॉग की तरफ़ खींचने का। इसका अनुभव मैंने खुद किया है। मेरी जिन-जिन पोस्ट्स के शीर्षक में बटला हाउस, मुस्लिम, आतंकवाद, साध्वी आदि शब्दों की उपस्थिती थी उन्हें पढ़ने आने वाले लोगों की तादाद आम पोस्ट्स से कहीं ज्यादा थी( ब्लॉगवाणी और चिट्ठाजगत से देखा)। शायद इस बार भी आप इस पोस्ट के टाइटल में कुछ ऐसा देख कर ही आए हों।
मेरा आग्रह है समस्त ब्लॉगर्स से कि अब इन मुद्दों पर व्यर्थ चर्चा न करें। आप के इस व्यवहार से कुछ भला नहीं होने वाला। यदि लिखना ही है तो कुछ ऐसा लिखो जिसमें समस्या का हल हो, कोई निष्कर्ष हो। हिंदू या इस्लाम को गलत-सही ठहराना बंद करो। आप लाख चाह लें इस तरह लिखने से तो कम से कम हालातों को और गंभीर बना रहे हो। धर्म और राजनीति पर चर्चा का कभी हल नहीं लिखता। अगर इसी तरह इन संवेदनशील विषयों पर लिखते रहोगे तो कई कट्टर लोग आपको तरह-तरह की कट्टर प्रतिक्रियाएं देंगे। और जितना कट्टर लोगों के साथ रहोगे, पढ़ोगे खुद कट्टर हो जाओगे। देश में और भी मुद्दे बचे हैं। बार-बार इन मुद्दों पर पोस्ट करना बताता है कि भले ही आपने इन मुद्दों पर अपनी निरपेक्ष सोच को दर्शाया है, लेकिन अंदर से आप कट्टर और धर्म के नशे के आदी होते जा रहे हैं।
आग्रह है कि अपने ब्लॉग पर या तो अपने मौलिक विचार रखें या अन्य मुद्दे रखें। बस! अब बहुत हो चुका...
लेकिन मै ब्लॉग जगत पर दिनों-दिन बढ़ रहे नए चलन को लेकर परेशान हूं। मुझे उन लोगों से कोई आपत्ति नहीं है जो हिंदू धर्म की गलतियों को कमियों को उजागर कर उनकी भर्त्सना कर रहे हैं। मुझे आपत्ति उन लोगों से हैं जो असंतुलित होकर चर्चा को इस्लाम बनाम हिंदुत्व बनाए हुए हैं।
हिंदी के बड़े-बड़े महारथी समझे जाने वाले ब्लॉगर्स तक इसी श्रेणी में आते हैं। उन्हें देश में और कोई मुद्दा नहीं दिखता। हर बार लग जाते हैं धर्म की बात करने। हालांकि कुछ लोगों ने बेहतरीन लिखा है। साध्वी प्रकरण के बाद अगर सबसे संतुलित चर्चा किसी ने की है तो वो ज्यादातर मुस्लिम ब्लॉगर ही हैं। उन्होंने बहुत ही अच्छे ढंग से इस पर प्रतिक्रिया दी है। लेकिन हिंदू धर्म से संबंध रखने वाले लेखक कुछ सकपकाए से लग रहे हैं और बदहवास से ऊटपटांग लिख रहे हैं। उनका ओवर रिेएक्शन दिखा रहा है कि अंदर से वो कितने हिले हुए हैं। इसके अलावा ये है ही इतना संवेदनशील मुद्दा की हर किसी का ध्यान इस तरफ़ खिंचता है। इल लोगों का इन विषयों पर चर्चा करने का उद्देश्य किसी समस्या का हल करने या किसी नतीजे पर पहुंचने का नहीं होता। बल्कि वो अपनी टीआरपी टाइप का कुछ बटोरना चाहते हैं। इससे सस्ता और आसान माध्यम कोई नहीं है पाठकों को अपने ब्लॉग की तरफ़ खींचने का। इसका अनुभव मैंने खुद किया है। मेरी जिन-जिन पोस्ट्स के शीर्षक में बटला हाउस, मुस्लिम, आतंकवाद, साध्वी आदि शब्दों की उपस्थिती थी उन्हें पढ़ने आने वाले लोगों की तादाद आम पोस्ट्स से कहीं ज्यादा थी( ब्लॉगवाणी और चिट्ठाजगत से देखा)। शायद इस बार भी आप इस पोस्ट के टाइटल में कुछ ऐसा देख कर ही आए हों।
मेरा आग्रह है समस्त ब्लॉगर्स से कि अब इन मुद्दों पर व्यर्थ चर्चा न करें। आप के इस व्यवहार से कुछ भला नहीं होने वाला। यदि लिखना ही है तो कुछ ऐसा लिखो जिसमें समस्या का हल हो, कोई निष्कर्ष हो। हिंदू या इस्लाम को गलत-सही ठहराना बंद करो। आप लाख चाह लें इस तरह लिखने से तो कम से कम हालातों को और गंभीर बना रहे हो। धर्म और राजनीति पर चर्चा का कभी हल नहीं लिखता। अगर इसी तरह इन संवेदनशील विषयों पर लिखते रहोगे तो कई कट्टर लोग आपको तरह-तरह की कट्टर प्रतिक्रियाएं देंगे। और जितना कट्टर लोगों के साथ रहोगे, पढ़ोगे खुद कट्टर हो जाओगे। देश में और भी मुद्दे बचे हैं। बार-बार इन मुद्दों पर पोस्ट करना बताता है कि भले ही आपने इन मुद्दों पर अपनी निरपेक्ष सोच को दर्शाया है, लेकिन अंदर से आप कट्टर और धर्म के नशे के आदी होते जा रहे हैं।
आग्रह है कि अपने ब्लॉग पर या तो अपने मौलिक विचार रखें या अन्य मुद्दे रखें। बस! अब बहुत हो चुका...
इससे कोई फेमस तो क्या होगा, जब आपके चारों तरफ ऐसी ही बातें हो रही हों तो आप लिखेंगे भी ऐसे ही मुद्दों पर।
हम भी चाहते हैं कि गीत-संगीत पर लिखें, हास्य-व्यंग्य पर लिखें, लेकिन… इस लेकिन में बहुत सी बातें हैं, बहुत से मुद्दे हैं, देशहित की बातें भी हैं, जिन्हें विस्तार से लिखने के लिये यह टिप्पणी बॉक्स बहुत छोटा पड़ेगा… इसलिये बस इस "लेकिन" से समझ जाईये कि आखिर यह बहस क्यों हो रही है, और सभी के सभी "सकपकाये" हुए नहीं हैं, जो तथ्यों और तर्कों के साथ लिख रहे हैं, उन्हें अपने लेखन पर पूरा भरोसा है, और यह बहस तो आजादी के बाद से ही चल रही है, कौन कहता है कि ये नई बहस है?
सुरेश जी और वर्षा जी
मैं वही कहना चाह रहा हूं कि अगर बहस हो तो एक दूसरे को कोस कर गड़े मुर्दे न उखाड़े जाएं. बल्कि सभी ब्लॉगर्स को एक सुर से इसके हल खोजने की दिशा में बहस करनी होगी।
नही बहस क्यों खत्म हो। बहस होनी चाहिए लेकिन आरोप प्रयात्यरोप से परे हो। सही और तथ्यपरक हो। लेकिन यदि आप कहें की बहस ही खत्म हो तो यह बात कुछ अपाच्य है। जहां तक गड़े मुर्दों का सवाल है तो जब बात उठेगी तो इतिहास को खंगाला ही जाएगा...
can u leave ur phone number to me???