मेरे एक दोस्त एक मोबाइल सर्विस प्रोवाइडर कंपनी के कॉल सेंटर में काम करते हैं। कल वो हर रोज़ की तरह उपभोक्ताओं की कॉल्स रिसीव करके उनकी समस्याओं का समाधान कर रहे थे। इतने में एक ग्राहक का फोन आया। जैसे ही मेरे मित्र ने कॉल रिसीव की, दूसरी तरफ़ से भयंकर गालियों की बौछार शुरु हो गई। उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा था। मेरे मित्र ने उनसे शांत होकर मामला बताने को कहा लेकिन उस ओर वाले महाशय की गालियां रुकने का नाम नहीं ले रही थी। एक मिनट बाद जब सामने वाले व्यक्ति की गालियों का भंडार खत्म हुआ, तो फिर से मेरे दोस्त ने खुद पर नियंत्रण रखते हुए समस्या के बारे में पूछा। इस पर कॉलर ने जो समस्या बताई वो वाकई में एक अलग तरह की समस्या है।
आप सोच रहे होंगे की ये कोई तकनीकी समस्या होगी। लेकिन नहीं जनाब, ये समस्या तकनीकी हरगिज़ नहीं। बल्कि वो इतनी गंभीर समस्या है कि एक बार आप भी सोचने को मजबूर हो जाएंगे। या हो सकता है आप इसे एक सामान्य बात भी मानें। जो भी हो मैं इस घटना को प्याले में परोस रहा हूं।
वह व्यक्ति मुस्लिम थे और कंपनी की तरफ़ से आई कॉलर ट्यून (जिससे फोन करने वाले को गाना सुनाई देता है) की कॉल पर उनसे गलती से कोई नंबर दब गया जिससे एक कॉलर ट्यून एक्टीवेट हो गई। दरअसल वो हनुमान जी की आरती थी। ऐसा होने पर जब भी उनका कोई सगा संबंधी या रिश्तेदार उन्हें कॉल करता हनुमान जी की आरती सुनाई पड़ती। ऐसा करने पर उन्हें परिवार और रिश्तेदारों के गुस्से का सामना करना पड़ा। जिससे दबाव पड़ने पर उन्होंने कस्टमर केयर में कॉल किया था। वो बेहद गुस्से में थे। मामला बेहद संवेदनशील था। धर्म का मामला आने पर हम इतने असहिष्णु हो सकते हैं मैं सोच भी नहीं सकता था। अगर ऐसा भूलवश भी हो जाता है तो हम खुद पर नियंत्रण नहीं रख सकते। पता नहीं इस घटना से मैं क्या महसूस कर रहा हूं लेकिन कुछ है जो परेशान कर रहा है।
क्या ये उस मुस्लिम भाई की ही समस्या थी या हर किसी की यही प्रतिक्रिया रहती? अब ये घटना क्या दिखाती है, इसका मतलब क्या है मैं राय नहीं बना पा रहा। आपको क्या लगता है? इस घटना से क्या निष्कर्ष निकलता है? कृपया अपने विचार व्यक्त करें।
आप सोच रहे होंगे की ये कोई तकनीकी समस्या होगी। लेकिन नहीं जनाब, ये समस्या तकनीकी हरगिज़ नहीं। बल्कि वो इतनी गंभीर समस्या है कि एक बार आप भी सोचने को मजबूर हो जाएंगे। या हो सकता है आप इसे एक सामान्य बात भी मानें। जो भी हो मैं इस घटना को प्याले में परोस रहा हूं।
वह व्यक्ति मुस्लिम थे और कंपनी की तरफ़ से आई कॉलर ट्यून (जिससे फोन करने वाले को गाना सुनाई देता है) की कॉल पर उनसे गलती से कोई नंबर दब गया जिससे एक कॉलर ट्यून एक्टीवेट हो गई। दरअसल वो हनुमान जी की आरती थी। ऐसा होने पर जब भी उनका कोई सगा संबंधी या रिश्तेदार उन्हें कॉल करता हनुमान जी की आरती सुनाई पड़ती। ऐसा करने पर उन्हें परिवार और रिश्तेदारों के गुस्से का सामना करना पड़ा। जिससे दबाव पड़ने पर उन्होंने कस्टमर केयर में कॉल किया था। वो बेहद गुस्से में थे। मामला बेहद संवेदनशील था। धर्म का मामला आने पर हम इतने असहिष्णु हो सकते हैं मैं सोच भी नहीं सकता था। अगर ऐसा भूलवश भी हो जाता है तो हम खुद पर नियंत्रण नहीं रख सकते। पता नहीं इस घटना से मैं क्या महसूस कर रहा हूं लेकिन कुछ है जो परेशान कर रहा है।
क्या ये उस मुस्लिम भाई की ही समस्या थी या हर किसी की यही प्रतिक्रिया रहती? अब ये घटना क्या दिखाती है, इसका मतलब क्या है मैं राय नहीं बना पा रहा। आपको क्या लगता है? इस घटना से क्या निष्कर्ष निकलता है? कृपया अपने विचार व्यक्त करें।
उसे बुरा लग रहा था यह तो स्वाभाविक है क्योंकि वह अपने लोगों के ताने सुन सुन कर परेशान हुआ होगा. समस्या का हल ढूँदने के लिए ओवर रीएक्ट करना बेवकूफी रही. आभार.
http://mallar.wordpress.com
इसे सहिष्णुता की कमी ही कहेंगे |
मरे विचार में वह व्यक्ति जितना हनुमानजी की आरती सनकर परेशान नही हुआ होगा उससे कहीं अधिक लोगों की सुनकर। फर्ज कजिए आप ही कोई पुजारी होते और कुरान की आयतें आपके फोन से सुनाई पड़ती लिहाजा लोग आपको ताने मार-मारकर उग्र बना देते। मसलन ऐसा करने वाले एक-आध लोग ही होते हैं। जबकि देश में धर्म की राजनीति चरम बिंदु पर है.....
धन्यवाद अमृत
बहुत सटीक विश्लेषण किया आपने
सुब्रमण्यम जी और रतन सिंह जी का भी धन्यवाद।
इसी तरह से आगे भी द्वंद्व से निकालने में सहायता करते रहें।
सुब्रमन्यन जी और रतन भाई से सहमत हूँ. अमृत जी बात भी जचीं.
भाई ठीक है गलती हो गई या किसी ने जान बुझ के कर दिया, ओर उन्हे अपनो के ताने भी सुननए को मिले , लेकिन क्या उन की गालियो की बोछार से सब ताने वपिस हो गये?? यह एक बेवकुफ़ी नही तो इसे ओर क्या कहेगे,
ओर अगर ताने मारने वालो से तंग आ कर यह किया तो महा बेवकुफ़ है, फ़िर तो कल ताने खा कर कुयें मै भी कुद जायेगे, क्योकि उस मालिक ने दिमाग भी तो दिया है, या उस की जरुतर ही नही???
धन्यवाद
ताने किस लिए, ताने सुन-सुन कर परेशान होना किस लिए? मेरे कई ऐसे मुस्लिम जानकार हैं जिनके फ़ोन पर कुरान की शिक्षाएं सुनाई पड़ती हैं, पर मैं तो कभी परेशान नहीं हुआ. दूसरे धर्म के प्रति आदर का भाव होना चाहिए. धर्म यही सिखाता है और इंसानियत का भी यही तकाजा है.
ऐसे लोग के सन्दर्भ में इतना कहना काफ़ी होगा की ....
'ज़मीर की सुनतें नही , मज़हब की बात क्या मानेगें !
अपने अक्स को क़ैद कर, ख़ुद को आजाद कहते है '!
वास्तविकता कुछ और है, हम सब वास्तव में शताब्दियों से अपने देश भारत में एक साथ रहते आ रहे हैं पर एक दूसरे को अब तक न समझ सके हैं। बात यह है कि एक मुसलमान यदि वह पक्का मुस्लिम होगा तो वह सारे धर्म के गुरुओं का सम्मान तो करेगा पर पूजा केवल एक ईश्वर की करेगा, इस नाते जब वह अपने किसी सम्बन्धी को ऐसे गुरूओं से नाता जोड़ते हुए देखता है जिनकी ईश्वर के अतिरिक्त पूजा की जाती है तो वह एकेश्वरवादी होने के नाते उसे बर्दाश्त नहीं कर पाता। यह केवल हनुमान जी की बात नहीं यदि कोई मुस्लिम मुहम्मद सल्ल0 की मूर्ति भी बनाकर ऐसा करे तो उनका क्रोध ऐसा ही होगा। यह पक्षपात के कारण नहीं बल्कि यह उनकी धार्मिक आस्था है कि कोई भी मानव जो माता पिता से पैदा हुआ अथवा उसका कोई रूप है वह पूज्य नहीं हो सकता। शायद मेरी बात स्पष्ट है ।
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