Aadarsh Rathore
मैं बचपन से संघ के करीब रहा हूं, विद्या भारती के स्कूल से ही मेरी शिक्षा की शुरुआत हुई. संघ की शाखाओं में नित्य प्रात: जाना होता था। सुबह-सुबह मातृवंदना , राष्ट्र वंदना से शुरुआत होती थी. तभी से संघ और उसकी राष्ट्रभक्ति की विचारधारा से प्रभावित रहा, ये सिलसिला तब तक चला जब मैं दसवीं के बाद शहर से बाहर पढ़ने न चला गया. यकीन मानिए इस दौरान तक मैंने संघ के किसी भी व्यक्ति से मुस्लिमों के खिलाफ कोई बात नहीं सुनी थी। शायद ये हिमाचल प्रदेश के परिवेश का परिणाम रहा होगा। लेकिन सच यही है कि मैं संघ को मुस्लिम विरोधी नहीं मानता था। और मैं प्रसन्न होता था, गर्व से भर जाता था कि इस संस्था के लोग देशद्रोहियों के खिलाफ मुझे सबल कर रहे हैं। तब तक किसी ने नहीं बताया कि देशद्रोही ‘मुस्लिमों’ को कहा जा रहा है। इसलिए मैं जब भी संघ परिवार पर कहीं कोई आघात करने भरा लेख पढ़ता था तो हैरान होता था। मैं ये कतई मानने को तैयार नहीं होता था कि संघ इस तरह की विचारधारा को पोषित करता है। लेकिन मैं विहिप और बजरंग की तोड़-फोड़ और उटपटांग बातों का विरोध किया करता था. मुझे ये संगठन पसंद नहीं थे. लेकिन समय बीतता गया और मेरा संघ संबंधी गतिविधियों से जुड़ाव छूटता गया। लेकिन पता नहीं कैसे बाद में विश्व और देश भर में आतंकी गतिविधियों और जम्मू आदि में नरसंहारों के बाद मेरे मन ये छवि बन गई कि मुस्लिम बहुत बुरे होते हैं। वो ही आतंकी वारदातों में शामिल रहते हैं। बस यहीं से मेरे मन में मुस्लिमों के खिलाफ विचारधारा ने अपना सिर उठाना शुरू कर दिया। कुल मिला कर पिछले तीन सालों में हुए घटनाक्रम में मैं हिंदू संगठनों द्वारा किए जाने वाले उटपटांग कामों और मुस्लिम विरोधी घटनाओं को अंजाम देने पर खुश होने लगा। पता नहीं क्यूं मुझे ये लगने लगा था कि मुस्लिम ही देश को बर्बाद करने पर तुले हैं। और मैं भी हर सभा में मुस्लिम विरोधी बातें करने लगा, लेकिन इस चक्कर में मुझे पता नहीं चला कि मैं विहिप और बजरंगियों का कट्टर समर्थक बन गया। बीजेपी की विचारधारा मुझे पसंद थी, मैं बाबरी मस्जिद ध्वंस को भी गौरवपूर्ण और सदियों बाद लिया गया एक बदला मानता था। समय के साथ ये कट्टरता बढ़ती गई। बिना अपनी तार्किक शक्ति का इस्तेमाल किए मैं दिन ब दिन कट्टर होता चला गया। इसकी वजह ऑरकुट पर कुछ समुदायों में हो रही घटिया टिप्पणियां भी आग में घी का काम करती गईं. मैं विहिप आदि का विरोध करने वाले चैनलो, पत्रकारों और विचारकों को छद्म सेकुलर मानने लगा था। फिर एक दिन मैं पुण्य प्रसून वाजपई और रवीश जी ब्लॉग पर गया. वहां मुस्लिमों के समर्थन में कुछ लिखा था. तो मेरे मन का कट्टर आदमी जाग गया। फिर मैंने वहां उनकी पोस्ट मेरी दलील तेरी दलील से सफेद पर जो टिप्पणी छोड़ी, वो इस तरह है:
आदर्श राठौर said...
देखिए रवीश जी आपने जो लिखा है उसमें कहीं न कहीं सच्चाई ज़रूर है। लेकिन एक मूलभूत बात समझने की बात ये है कि किसी भी देश में अल्पसंख्यकों में असुरक्षा की भावना रहती ही है.लेकिन भारत में इसके दो कारण हैं कि मुस्लिम समुदाय के साथ आज परेशानी खड़ी हो रही है। एक तो इतिहास में भारत में मुगलों के आक्रमण और अत्याचारी शासन के कारण आनुवांशिक रूप से ही विभेद चला आ रहा है, दूसरा आज़ादी के वक्त हुए दंगों ने भी दूरी बढ़ा दी। हर समुदाय में एक दूसरे के प्रति घृणा है। आज हकीकत ये भी है कि मीडिया में बड़े-बड़े लोग मुस्लिम वर्ग के साथ सहानुभूति के लिए लेख लिखते हैं और सेक्युलरिज्म का आलाप बुलंद करते हैं लेकिन बाद में दबी जुबान से आलोचना करते हैं। सोचने की बात है कि आज हिंदु बहुल इस देश में हिंदुओं की शाखाएं मसलन बौद्ध, जैन आदि हैं। वो मुस्लिमों से भी ज्यादा अल्पसंख्यक हैं. लेकिन अन्याय मुस्लिमों के साथ ही क्यूं होता है। इसके मूल कारणों में जाने की जरूरत है, न कि नकली सहानुभूति जताने की। मान भी लिया जाए की भारत का मुस्लिम अन्याय और शोषण के विरुद्ध आवाज़ उठाने के लिए चरमपंथ का रास्ता अपना रहा है तो पूर् विश्व के हालात के बारे में आप क्या कहेंगे? इराक, पाकिस्तान, अफगानिस्तान जैसे देशों में क्यूं चरमपंथ है? वहां तो उन के साथ दुर्व्यवहार करने के लिए हिंदू नहीं हैं, फिर वहां अशांति क्यूं?इसकी असल वजह है अशिक्षा और कुछ अप्रासंगिक सी बातें जो उन्हें कट्टर एवं मुख्य धारा से अलग करती हैं। आज चाहिए कि मुस्लिम धर्म गुरू औऱ संबंधित लोग धर्म के तत्वों पुन: परिभाषित करें और वैज्ञानिक शिक्षा से जुड़ें। लेकिन इस सच्चाई को कोई कहना नहीं चाहता,शायद उसे किसी बात का डर है। और वो सतही स्तर पर हो रहे दंगों और हिंसा की आड़ लेकर मूल को नज़रअंदाज कर देते हैं।और हां, एक बात मैं पहले ही स्पष्ट कर देता हूं कि मैं विहिप या बजरंग दल का समर्थक नहीं हूं। कहीं छद्म सेकुलर लोग मेरे विचारों को पढ़कर ये "लांछन" न लगा दें।

लेकिन हकीकत इससे अलग हो चुकी थी, मैं सीपीएम कैडर के नंदीग्राम में मचाए कोलाहल का विरोध करता था लेकिन गोधरा को भूल चुका था। मैं मूर्ख न जाने क्यूं एक वर्ग विशेष के खिलाफ किए जाने वाले अमानवीय कृत्यों का समर्थक बन चुका था. मैंने ऊपर वाले तर्क दिए ही थे कि अगले दिन रवीश जी ने अगले दिन नई पोस्ट डाली जिसने मेरी सारी हवा निकाल दी और सोचने को मजबूर कर दिया। इस पोस्ट को पढ़ने के बाद मुझे आइना दिखा, अपना चेहरा पहचान नहीं पाया मैं, मैं धर्मांध हो चुका था और रवीश जी की इन चंद पंक्तियों ने मुझे फिर से इंसान की तरह सोचने को मजबूर किया। रवीश जी लिखते हैं:

पहचान का स्थायी पता
पहचाने जाने के डर से मैंने एक पहचान बना ली
बालों को छोटा कर लिया और दाढ़ी कटवा ली
जिन्स पहनकर अपने कानों में लटका ली बाली
इस नई पहचान से मैं तमाम नौजवानों सा हो गया
हुलिया बदल कर नए ज़माने का मुसलमान हो गया
नहीं बदली तो आदत पांच वक्त नमाज़ पढ़ने की
रोज़े के तीस दिन भूखे रहने और ईद मनाने की
कहने वालों ने तब भी कहा कट्टर होता है मुसलमान
बदल कर भी नहीं बदलता, रह जाता है मुसलामान
ऐसा क्यों होता है कि शहर बदल जाने के बाद भी
हर फार्म में स्थायी पता का नंबर पहले आता है
होली में हम चाहे कितना भी लगा लें रंग गुलाल
झटका खाने वाले हमको कहते हैं हलाल
मुसलमान बदल कर भी नहीं बदलता,
रह जाता है मुसलमान
हमारी इबादत की हर आदत पर रंज हैं
उनको एक सांस में जल
उठाकर दौड़ने की आदत जिनको
उनकी भक्ति का रंग हमने भी देखा है कई बार
भोले की भक्ति हो या फिर नौ दिन माता का त्योहार
हमने कभी नहीं कहा तुम बदल दो अपनी पहचान
क्यों करते हो साल के बारहों महीने पूजा भगवान की
क्यों नहीं बदल देते हो अपने हिंदू होने के पहचान
की बदल कर भी नहीं बदलता, रह जाता है मुसलमान
ये सियासत वाले हैं जो मुल्क को बदलने निकले हैं
मुल्क बहाना है, हिंदू मुसलमान को बदलने निकले हैं


धन्यवाद रवीश जी, आपने मुझे मेरी सही पहचान कराई है, मेरी आंखों मे चढ़ी धर्मांधता की पट्टी उतार दी आपने । लेकिन काश देश भर में हिंसा और आतंक फैला रहे लोगों को भी ये बात समझ में आती।
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4 Responses
  1. ये सियासत वाले हैं जो मुल्क को बदलने निकले हैं
    मुल्क बहाना है, हिंदू मुसलमान को बदलने निकले हैं
    चाँद लोग हैं जो हिंदू-मुस्लिम का आतंकी चेहरा दिखाते हैं इन्हीं लोगों को गुजरात दंगों में मरे हुए लोग दीखते हैं पर गोधरा की ट्रेन में मारे गए लोग नहीं दीखते. (देखा शब्दों का जादू "मरे" और "मारे") बहरहाल अच्छा लिखा है पर अपना आकलन कीजिए किसी के लिखे पर विश्वास न कीजिए.


  2. आप तो वही करिये जो आपको अच्छा लगे। उन लोगो की बाते खोखली हैं। वैसे आप ने लिखा काफ़ी अच्छा है।


  3. PD Says:

    मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि आपका यह पोस्ट दुबारा पढने को मिल रहा है..


  4. सही समय पर आप इंसान बन गए...वैसे, बैलेंस एटीट्यूड के साथ भी इंसानियत बचाई रखी जा सकती है...जहां तक बात है, आंखें खुलने की तो बड़े नाम जब लिखते हैं तो इसकी गुंजाइश थोड़ी बढ़ जाती है...आपके साथ भी वही हुआ है। यकीन मानिए अगर किसी ऐरे गैरे ने यही बातें लिखी होतीं तो शायद आप ये पोस्ट लिखने की भी जरुरत नहीं समझते..खैर, इंसान बनने की ढेर सारी बधाई,निश्चित तौर पर रवीश जी की भी इसमें हिस्सेदारी है...