क्या आपको पता है कि मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं? अगर आपको नहीं बता तो मायावती जी के इस विज्ञापन को देख लें। बाहरी राज्यों के मुख्यमंत्री दिल्ली में विज्ञापन देते हैं। बीसी खंडूड़ी से लेकर नितिश कुमार यही कर चुके हैं। भई इन विज्ञापनों को देने का मतलब क्या है? आप काम करोगे तो जनता को दिखेगा ही। प्रत्यक्ष को प्रमाण की ज़रूरत नहीं होती। लेकिन जन संपर्क विभाग के नाम से छपने वाले इन विज्ञापनों में सरकार की उपलब्धियां गिनाने के अलावा कोई और काम नहीं होता। चलो मानो आपको प्रचार करना ही है तो आप अपने राज्य मे करें। लेकिन नहीं, दुनिया को दिखाना है न कि हम कर क्या रहे हैं, भले ही वो सच्चाई से कोसों दूर हो। उदाहरण के लिए कल के हिंदुस्तान टाइम्स पेपर में पूरे पन्ने पर सरकार का एक विज्ञापन छपा था। मायावती जी दिल्ली में होने वाले चुनावों को लेकर अभी से तैयारी कर रही हैं। सरकार उनकी यूपी में है लेकिन इश्तिहार दिल्ली में छाप रही हैं। वो भी एक ऐसा इश्तिहार जिसमें मायावती मुस्लिम समुदाय का सबसे बड़ा हितैषी होने का दावा कर रही हैं। साफ है कि दिल्ली में आ रहे चुनावों में वो ‘सर्वजन’ को प्रभावित करना चाहती हैं। उन्होंने ने अपना ध्येय तो बदल दिया, पहले बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय से ‘सर्वजन हिताया, सर्वजन सुखाय’ हो गया लेकिन लेकिन फिर भी उसके तहत भी विशिष्ट वर्गीकरण करना वो नहीं भूलीं. वोट बैंक की राजनीति का चरम है ये। ज़रा इस विज्ञापन पर नजर दौड़ाएं।
मायावती ने मुस्लिमों के लिए क्या क्या किया है वो लिखा है। लेकिन देखिए क्या लिखा है, किस अंदाज़ में लिखा है। उपलब्धियां गिनाईं दो बहुत हैं लेकिन क्या वाकई इतना किया है सरकार ने? लेकिन दिखता कहां है? धन्यवाद मायावती जी आपने हमें इस विज्ञापन के माध्यम से ये भी बता दिया कि प्रदेश में आप अल्पसंख्यकों के लिए काम नहीं कर रहीं। आपने लिखा है कि आप योजनाएं अल्पसंख्यकों को ध्यान में रख कर नहीं बनातीं, आप धर्म विशेष को देखकर योजनाएं बनातीं हैं। साथ ही में स्पष्टीकरण भी दिया है कि मुस्लिम जो कि अल्पसंख्यक हैं उनके लिए काम किया है आपने। भई हमें तो पता ही नहीं था कि मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं। या शायद बहन जी के लिए मुस्लिम ही अल्पसंख्यक हैं?
देश में ये क्या है रहा है, देश के सभी हिस्सों में लोगों को धर्म से पहचाना जाना उचित नहीं। मैं मानता हूं कि अल्पसंख्यकों के हितों के बारे में सोचना और उनका उत्थान करना गलत नहीं है लेकिन इसका इस तरह से प्रस्तुतीकरण भी उचित नहीं।
खैर इस सब से अलग हटकर अपनी उपलब्धियां गिनाने में हो रहा ये खर्च भी गलत है। त्योहारों के मौके पर बधाई देने के लिए दिए जाने वाले विज्ञापनों की भी जरूरत नहीं होती। जनता को बधाई नहीं विकास चाहिए। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि अन्य क्षेत्रों में सरकारें पैसे का कितना दुर्पयोग करती होंगी। इस पूरे चलन पर रोक लगाने के लिए जल्द ही लगाम लगनी चाहिए। पैसा जनता का है और इसे विकास कार्यों में ही खर्च किया जाना चाहिए। न कि आत्मप्रचार और राजनीति में।
मायावती ने मुस्लिमों के लिए क्या क्या किया है वो लिखा है। लेकिन देखिए क्या लिखा है, किस अंदाज़ में लिखा है। उपलब्धियां गिनाईं दो बहुत हैं लेकिन क्या वाकई इतना किया है सरकार ने? लेकिन दिखता कहां है? धन्यवाद मायावती जी आपने हमें इस विज्ञापन के माध्यम से ये भी बता दिया कि प्रदेश में आप अल्पसंख्यकों के लिए काम नहीं कर रहीं। आपने लिखा है कि आप योजनाएं अल्पसंख्यकों को ध्यान में रख कर नहीं बनातीं, आप धर्म विशेष को देखकर योजनाएं बनातीं हैं। साथ ही में स्पष्टीकरण भी दिया है कि मुस्लिम जो कि अल्पसंख्यक हैं उनके लिए काम किया है आपने। भई हमें तो पता ही नहीं था कि मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं। या शायद बहन जी के लिए मुस्लिम ही अल्पसंख्यक हैं?
देश में ये क्या है रहा है, देश के सभी हिस्सों में लोगों को धर्म से पहचाना जाना उचित नहीं। मैं मानता हूं कि अल्पसंख्यकों के हितों के बारे में सोचना और उनका उत्थान करना गलत नहीं है लेकिन इसका इस तरह से प्रस्तुतीकरण भी उचित नहीं।
खैर इस सब से अलग हटकर अपनी उपलब्धियां गिनाने में हो रहा ये खर्च भी गलत है। त्योहारों के मौके पर बधाई देने के लिए दिए जाने वाले विज्ञापनों की भी जरूरत नहीं होती। जनता को बधाई नहीं विकास चाहिए। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि अन्य क्षेत्रों में सरकारें पैसे का कितना दुर्पयोग करती होंगी। इस पूरे चलन पर रोक लगाने के लिए जल्द ही लगाम लगनी चाहिए। पैसा जनता का है और इसे विकास कार्यों में ही खर्च किया जाना चाहिए। न कि आत्मप्रचार और राजनीति में।
वास्तव में सरकार नागरीकों के लिए काम करे न कि अल्पसंख्यको के लिए.
अगर मुस्लिम अल्प संख्यक है तो पारसी, जैन, सिख, बौद्ध कौन है?
अगर मुस्लिम हिन्दोस्ताँ में अल्पसंख्यक हैं तो फिर चुनाव के समय मुस्लिम वोट पर इतनी माथा पच्ची क्यों या परदे के पीछे का सीन कुछ और है!
अपनी जेब भरने के आलावा यदि जनता के लिए कुछ सार्थक काम किए होते तो . समाज मैं फ़ुट डालने वाले ऐसे प्रचार प्रसार कर सरकारी पैसे लुटाने की आवश्यकता नही होती .
kashmir,asam me hindoo alpsankhyak nahin hain kya
राजनीति चाहे जो कराये वह कम है। शरीफों को बदमाश कहे जाने का गम है। क्या आपमें ऐसों का विरोध करने का दम है?
अगले चुनाव में ऐसे पोस्टर अमेरिका और इराक़ तक में लगाने का प्लान है जी. दिल्ली तो बहुत करीब है.
Sach to ye hai ki ham karakaandme fanske, use "dharm" maan baithte hain..uskee pracheen paribhashahee bhool gaye hain.
"Dharayte iti dhamma"..jo dharan karo so dharm..insaan ho insaaniyat dharan karo. Pracheen bharteey bhashame dhrm shabkaa ullekh nisarg dharm/nisargke niyamonko sandarbhme rakhke hota tha.Jaise agneeka swabhaw dharm hai jalna aur jalana...aap duniyake kisi koneme ho, kisee jaat prajateeke ho, agneeme haath daloge to wo jalega. Nisarg hamesha samata rakhta hai.sabke liye ek jaise niyam hain...hindu malerai aur muslim malerai nahee hota...donoko usee dawaeese theek kiya jaata hai..Ham deshki qanoon wyawasthase bach sakte hain, nisarge niyamonse nahee.Jis din ye baat zehenme aa jayegee us din bhed kam honge..
"aao isee waqt haath milayen
Pyarasa Hindostaa bobara banaye,
Sir hazir hai
gar koyee khanjar uthaye,
Mere watanpe aanch na aane paaye"...
...................
Meree ek kavitakee ye kuchh pankyiyan hain. kavita blogpe achiveme (2007 ke june july)maijood hain..aap padhe to anugrahit mehsoos karungee.
Zara socho, Mahabharat dharamuddh kelaya, Arjun dharamsankatme tha, par wo do paksh koyi qaumee ladayee nahee lad rahe the...adharm se dharm takrayaa tha..isliye wo dharamyuddh thaa.
good work buddy
keep it up.
we have to make this picture clear to all that politicians are just playing their game.
can you email me: mcbratz-girl@hotmail.co.uk, i have some question wanna ask you.thanks