कितना
अच्छा हो
अगर
मैं वृक्ष बन जाऊं,
खड़ा
रहूं एक जगह
सब
चुपचाप सह जाऊं।
खुद
तपूं मैं तेज धूप में
सब
जन को छांव में सुलाऊं,
खुद
पिऊं मिट्टी से पानी
सबको
मधु फल खिलाऊं।
हवा
दूं, जलावन दूं
और
क्या-क्या गिनाऊं,
पूरा
जीवन रहूं एकाकी
परहित
में मर मिट जाऊं।