Aadarsh Rathore

ल मैंने फेसबुक पर कुछ अपडेट किया तो उस पर हैरान कर देने वाले कॉमेंट आए। कुछ लोगों ने मुझे मैसेज करके लिखा कि इस तरह के अपडेट करना मुझे शोभा नहीं देता। मैं हैरान था कि मैंने ऐसा क्या कर दिया। दरअसल लोगों ने मेरी बात का मतलब खुद ही कुछ और निकाल लिया। चलिए, आपको बताता हूं कि सीन क्या है-

अक्सर मैं देखता हूं कि दिल्ली की बड़ी-बड़ी कोठियों के बाहर चौकीदार रखने का ट्रेंड है। इन चौकीदारों की हालत बेहद खराब होती है। दिन-रात वे 4x4 फीट के केबिन में काट देते हैं। दिल्ली में वही उनका ठिकाना है, जबकि उनका परिवार दूर किसी गांव में दुर्दिन काट रहा होता है। कई चौकीदार इन्ही कोठियों के बाहर बूढ़े हो जाते हैं और फिर इन्हें निकाल दिया जाता है।

यह कैसी व्यवस्था है जहां पर एक वर्ग तो नोट पर नोट कमाए जा रहा है और दूसरा गरीबी से ऊपर नहीं उठ पा रहा? देश में सभी का जीवन स्तर बराबर क्यों नहीं? धन, संपदा, संसाधन सभी नागरिकों के लिए हैं, लेकिन वे उन तक पहुंच ही नहीं पाते। गरीब लोग गरीब रहते हैं और जिन चीज़ों पर उनका हक है, वे एक ही क्लास के पास जा रही हैं। अमीर और अमीर हुआ जा रहा है और गरीब और गरीब।

ठीक उसी तरह जो चौकीदार बड़ी सी कोठी के बाहर पहरा दे रहा है, उसका भी हक था उस पैसे और प्रॉपर्टी पर जो कि कोठी में रहने वाले के पास है। लेकिन विड़ंबना यह है कि वह बेबस है और उसे रोजी चलाने के लिए मुश्किल हालात में चौकीदारी करनी पड़ रही है। दिन-रात, हर मौसम में, बिना छुट्टी के। वह भी उस उस चीज़़ की, जिसपर उसका भी हक होना चाहिए।

कल रात भी ऐसे ही एक बूढ़े चौकीदार को ठिठुरते देखा, तो लिखा-

"अंदर उसके हक का माल छिपा रखा है
बाहर उसी को बनाकर पहरेदार बिठा रखा है"

चोट सिस्टम पर थी, लेकिन लोगों ने जाने क्या समझ लिया।

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2 Responses
  1. Unknown Says:

    आपका ब्लॉग यहाँ शामिल किया गया है । समय मिलने पर अवश्य पधारें और अपनी राय से अवगत कराएँ ।
    ब्लॉग"दीप"


  2. eha Says:

    सबकी समझ से अपनी समझ को कम या ज्यादा आंकना भी आपको शोभा नहीं देता..... दो लोगों का नजरिया अलग होता है..किसी एक चीज को देखने का.... कलम का काम है लिखते रहना...और सीधा दिमाग सीधा मैसेज लेगा और उल्टा दिमाग उल्टा मैसेज