कुरुक्षेत्र में सरस्वती नदी के किनारे कालेश्वर महादेव मंदिर के पास पिछले हफ्ते एक मूर्ति मिली है. कुरुक्षेत्र के श्रीकृष्ण संग्रहालय के उपनिदेशक का दावा है कि ये 1100 साल पुरानी मूर्ति है. बताया जा रहा है कि प्रतिहार काल की शैली से इस मूर्ति की शैली मिलती है और ये प्रभु विष्णु की मूर्ति है.
उपनिदेशक बताते हैं कि इस मूर्ति में भगवान विष्णु महिला रूप में हैं और संसार के पालक होने के नाते सृष्टि यानी पृथ्वी को स्तनपान करके पोषित कर रहे हैं. लेकिन मेरा मानना है ये थ्योरी अजीब है और जल्दबाजी में गढ़ी गई है.
हालांकि मैं पुरातत्विद नहीं लेकिन एक बात ने मुझे आकर्षित किया. वो हैं इस मूर्ति में बने शिशु के बाल. आप ध्यान से देखिए कि शिशु के बाल कैसे बनाए गए हैं. ठीक उस तरह से जैसे कि भगवान बुद्ध के बाल दिखाए जाते हैं. मैंने इस नाते शोध किया गूगल पर तो लगा कि ये विष्णु जी की मूर्ति नहीं है.
वास्तव में ये रानी माया हैं, बुद्ध की मां जो बालक बुद्ध को स्तनपान करा रही हैं. पहले भी अलग-अलग जगहों पर इसी तरह की और कई मूर्तियां मिल चुकी हैं जिनमें बालक बुद्ध को मां माया के साथ दिखाया गया है. पहले मिली कुछ मूर्तियों पर ध्यान दें और खुद तय करें. मेरी मानना सही है उन जनाब का जो कि अजीब सी बात कर रहे हैं
ये देखिए बुद्ध के जन्म के वक्त की कुछ प्राचीन तस्वीरें और मूर्तियां. इसके बाग खुद तय करें कि मूर्ति विष्णु की है या बुद्ध की.
उपनिदेशक बताते हैं कि इस मूर्ति में भगवान विष्णु महिला रूप में हैं और संसार के पालक होने के नाते सृष्टि यानी पृथ्वी को स्तनपान करके पोषित कर रहे हैं. लेकिन मेरा मानना है ये थ्योरी अजीब है और जल्दबाजी में गढ़ी गई है.
हालांकि मैं पुरातत्विद नहीं लेकिन एक बात ने मुझे आकर्षित किया. वो हैं इस मूर्ति में बने शिशु के बाल. आप ध्यान से देखिए कि शिशु के बाल कैसे बनाए गए हैं. ठीक उस तरह से जैसे कि भगवान बुद्ध के बाल दिखाए जाते हैं. मैंने इस नाते शोध किया गूगल पर तो लगा कि ये विष्णु जी की मूर्ति नहीं है.
वास्तव में ये रानी माया हैं, बुद्ध की मां जो बालक बुद्ध को स्तनपान करा रही हैं. पहले भी अलग-अलग जगहों पर इसी तरह की और कई मूर्तियां मिल चुकी हैं जिनमें बालक बुद्ध को मां माया के साथ दिखाया गया है. पहले मिली कुछ मूर्तियों पर ध्यान दें और खुद तय करें. मेरी मानना सही है उन जनाब का जो कि अजीब सी बात कर रहे हैं
ये देखिए बुद्ध के जन्म के वक्त की कुछ प्राचीन तस्वीरें और मूर्तियां. इसके बाग खुद तय करें कि मूर्ति विष्णु की है या बुद्ध की.
यह तो नया विवाद कहलायेगा. ऐसे शिल्प हमने भी देखें है जिन्हें कृष्ण जन्म से जोड़ा जाता रहा है. वैसे हिन्दू और बौद्ध शिल्प शात्रों में लगभग एकरूपता मानी गयी है.फ़ोन ये फ्रेंड का प्रयोग करूँगा.
भारतीय कला में ऐसी कई प्रतिमाएं ज्ञात हैं, लेकिन इनका निश्चित अभिज्ञान अभी तक नहीं हुआ है. धुबेला संग्रहालय की ऐसी प्रतिमा प्रसिद्ध है. इसे माता-शिशु ही माना जा सकता है. यदि प्रतिमाशास्त्रीय दृष्टिकोण से विचार करें तो कुंचित केश के आधार पर अभिज्ञान उचित नहीं माना जा सकता और प्रतिमा के सभी अंकन, वस्तुओं, पात्रों, figures, के साथ किया गया अभिज्ञान प्रामाणिक माना जा सकता है. एक लक्षण, जो निर्धारक deciding न हो, के आधार पर प्रतिमा पहचान के लिए अनुमान हो सकता है, निर्धारण नहीं. न खंडन, न मंडन. इसलिए इस प्रतिमा को बुद्ध मानना मात्र प्रस्ताव स्तर पर मान्य करने योग्य है.
अच्छी जानकारी दी महाराज....लेकिन एक बात पर तो यकीन करना ही पड़ेगा..कि कहीं भी कुछ भी मिले...उसे भगवान से ही जोड़ा जाता है....भले ही किसी ने उसे यूं ही बनाकर फेंक दिया हो...
@ शशांक शुक्ला जी,
कहीं कुछ भी मिले, भगवान से जोड़ती है उसे हमारी आस्था और विश्वास, लेकिन प्रतिमा अभिज्ञान का पूरा शास्त्र है और मैं मानता हूं कि यहां इस प्रतिमा की चर्चा प्रतिमाशास्त्रीय अभिज्ञान के लिए है न कि पूजा-प्रतिष्ठा के लिए. मैं आपकी बात का इस तरह अवश्य समर्थन करना चाहूंगा कि कई बार प्रतिमाओं की पहचान आस्था के फलस्वरूप होती है, फिर उसके लिए प्रतिमाशास्त्रीय प्रमाण जुटाने का प्रयास होता है.
यह सही है कि यह प्रतिमा विष्णु की तो नहीं है । स्त्री के आभूषणों को देखकर उसे रानी माना जा सकता है और केशराशि के आधार पर भी ।
मूर्तियोँ का सम्बन्ध आस्था से कदापि नहीं होता , राहुल जी की इस बात से मैं भी सहमत हूँ ।