तारीख 12 फरवरी
दिन शुक्रवार
यही वो दिन था जब माई नेम इज खान फिल्म रिलीज हुई थी..। पूरा दिन इस फिल्म को लेकर विवाद होता रहा.. और खूब चर्चा हुई...। और इसी दिन दिल्ली समेत पूरे उत्तर भारत में लोगों के सेलफोन पर एक एसएमएस सर्कुलेट हो रहा था..। हर कोई इस मैसेज को पढ़ता और आगे अपने दोस्तो को फॉरवर्ड कर देता...। ये मैसेज लिखा तो अंग्रेज़ी में था...लेकिन उसमें जो लिखा था...
बहुत खेद की बात है कि आज हर कोई चैनल माई नेम इज़ ख़ान फिल्म पर चर्चा करके अपनी देशभक्ति ज़ाहिर कर रहा है... लेकिन आज ही के दिन अल सुबह भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी पर चढ़ा दिया गया था। कोई उन्हें याद नहीं कर रहा...
ये वाकई बेहद शर्मनाक दिन था... भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु 23 मार्च, 1931 को फांसी चढ़े थे.. और लोग 12 फरवरी को ही इस तरह के एसएमएस कर रहे थे...। यानी दूसरों को देशभक्ति की याद दिलाने वाले लोग खुद कितने जागरूक हैं.. इस बात की पोल खुल रही थी..। हर कोई दूसरों पर चोट करके खुद को देशभक्त दिखाना चाह रहा था और बिना सच्चाई को जाने इस मैसेज को अपने जानकारों को भेज रहा था..।
इस मैसेज की शुरुआत भले ही ग़लती से हुई हो लेकिन ये सच है कि इस मैसेज ने साबित कर दिया कि लोग उन लोगों के बारे में कितना जानते हैं.. जिन लोगों ने देश के लिए अपनी जान दे दी..। ये बताता है कि लोगों के दिल में इन शहीदों के प्रति कितना सच्चा सम्मान है। यही नहीं... आज की पीढ़ी वैलेंटाइनन्स डे से लेकर दूसरे तड़क-भड़क वाले दिनों को याद रखती है लेकिन शहीदों की जन्मतिथि या शहादत दिवस को याद रखने की उन्हें कोई जरूरत महसूस नहीं होती...।
ऐसा नहीं है कि शहीदों को एक दिन याद कर लेने भर से कुछ होना है। दरअसल शहीदों की जन्मतिथि और शहादत दिवस के दिन उन्हें इसलिए याद किया जाता है ताकि हमें उनका ध्यान हो आए.. और उनका जीवन, उनके आदर्श और उनके उद्देश्य हमारे अंदर नए जोश का संचार करें...। ताकि हम उनसे प्रेरणा लेकर भटकने से बचें.. और अपने जीवन में कामयाब हो सकें.. जिससे देश और मजबूत हो सके…। लेकिन भोगवाद और भौतिकवाद की चकाचौंध की तरफ आकर्षित हो रही पीढ़ी वर्चुअल लाइफ में भटककर सच्चाई से कोसों दूर जा रही है...। चाहते तो देश के लिए अपनी जान देने वाले वीर भी आराम की जिंदगी जी लेते... लेकिन उन्होंने अलग हटकर ऐसी राह चुनी... जिससे उनकी जिंदगी तो कठिनाई में बीती... लेकिन आज हम आराम से आजाद मुल्क में रह रहे हैं...।
(इस पोस्ट का वीडियो देखने के लिए क्लिक करें)
दिन शुक्रवार
यही वो दिन था जब माई नेम इज खान फिल्म रिलीज हुई थी..। पूरा दिन इस फिल्म को लेकर विवाद होता रहा.. और खूब चर्चा हुई...। और इसी दिन दिल्ली समेत पूरे उत्तर भारत में लोगों के सेलफोन पर एक एसएमएस सर्कुलेट हो रहा था..। हर कोई इस मैसेज को पढ़ता और आगे अपने दोस्तो को फॉरवर्ड कर देता...। ये मैसेज लिखा तो अंग्रेज़ी में था...लेकिन उसमें जो लिखा था...
बहुत खेद की बात है कि आज हर कोई चैनल माई नेम इज़ ख़ान फिल्म पर चर्चा करके अपनी देशभक्ति ज़ाहिर कर रहा है... लेकिन आज ही के दिन अल सुबह भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी पर चढ़ा दिया गया था। कोई उन्हें याद नहीं कर रहा...
ये वाकई बेहद शर्मनाक दिन था... भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु 23 मार्च, 1931 को फांसी चढ़े थे.. और लोग 12 फरवरी को ही इस तरह के एसएमएस कर रहे थे...। यानी दूसरों को देशभक्ति की याद दिलाने वाले लोग खुद कितने जागरूक हैं.. इस बात की पोल खुल रही थी..। हर कोई दूसरों पर चोट करके खुद को देशभक्त दिखाना चाह रहा था और बिना सच्चाई को जाने इस मैसेज को अपने जानकारों को भेज रहा था..।
इस मैसेज की शुरुआत भले ही ग़लती से हुई हो लेकिन ये सच है कि इस मैसेज ने साबित कर दिया कि लोग उन लोगों के बारे में कितना जानते हैं.. जिन लोगों ने देश के लिए अपनी जान दे दी..। ये बताता है कि लोगों के दिल में इन शहीदों के प्रति कितना सच्चा सम्मान है। यही नहीं... आज की पीढ़ी वैलेंटाइनन्स डे से लेकर दूसरे तड़क-भड़क वाले दिनों को याद रखती है लेकिन शहीदों की जन्मतिथि या शहादत दिवस को याद रखने की उन्हें कोई जरूरत महसूस नहीं होती...।
ऐसा नहीं है कि शहीदों को एक दिन याद कर लेने भर से कुछ होना है। दरअसल शहीदों की जन्मतिथि और शहादत दिवस के दिन उन्हें इसलिए याद किया जाता है ताकि हमें उनका ध्यान हो आए.. और उनका जीवन, उनके आदर्श और उनके उद्देश्य हमारे अंदर नए जोश का संचार करें...। ताकि हम उनसे प्रेरणा लेकर भटकने से बचें.. और अपने जीवन में कामयाब हो सकें.. जिससे देश और मजबूत हो सके…। लेकिन भोगवाद और भौतिकवाद की चकाचौंध की तरफ आकर्षित हो रही पीढ़ी वर्चुअल लाइफ में भटककर सच्चाई से कोसों दूर जा रही है...। चाहते तो देश के लिए अपनी जान देने वाले वीर भी आराम की जिंदगी जी लेते... लेकिन उन्होंने अलग हटकर ऐसी राह चुनी... जिससे उनकी जिंदगी तो कठिनाई में बीती... लेकिन आज हम आराम से आजाद मुल्क में रह रहे हैं...।
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बहुत बढ़िया प्रस्तुति .....हमारे लिए शर्म की बात है .....की जिन्होंने आज़ादी के लिए अपने आप को हस्ते हस्ते सूली पर चढा दिया ...उनकी इस क़ुरबानी को भूलते जारहे है